02 फरवरी

बालक येसु का मन्दिर में समर्पण

📒 पहला पाठ: मलआकी का ग्रन्थ 3:1-4

1) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, “देखो, मैं अपने दूत भेजूँगा, जिससे वह मेरे लिए मार्ग तैयार करे। वह प्रभु, जिसे तुम खोजते हो, अचानक अपने मन्दिर आ जायेगा। देखो, विधान का वह दूत, जिस के लिए तुम तरसते हो, आ रहा है।

2) कौन उसके आगमन के दिन का सामना कर सकेगा? जब वह प्रकट होगा, तो कौन टिकेगा? क्योंकि वह सुनार की आग और धोबी के खार के सदृश है।

3) वह चाँदी गलाने वाले और शोधन करने वाले की तरह बैठ कर लेवी के पुत्रों को शुद्ध करेगा और सोने-चाँदी की तरह उनका परिष्कार करेगा।

4) तब वे योग्य रीति से ईश्वर को भेंट चढ़ायेंगे और प्रभु-ईश्वर प्राचीन काल की तरह यूदा और यरूसलेम की भेंट स्वीकार करेगा।

📕 दूसरा पाठ : इब्रानियों 2:14-18

14) परिवार के सभी सदस्यों का रक्तमास एक ही होता है, इसलिए वह भी हमारी ही तरह मनुष्य बन गये, जिससे वह अपनी मृत्यु द्वारा मृत्यु पर अधिकार रखने वाले शैतान को परास्त करें

15) और दासता में जीवन बिताने वाले मनुष्यों को मृत्यु के भय से मुक्त कर दें।

16) वह स्वर्गदूतों की नहीं, बल्कि इब्राहीम के वंशजों की सुध लेते हैं।

17) इसलिए यह आवश्यक था कि वह सभी बातों में अपने भाइयों के सदृश बन जायें, जिससे वह ईश्वर -सम्बन्धी बातों में मनुष्यों के दयालु और ईमानदार प्रधानयाजक के रूप में उनके पापों का प्रायश्चित कर सकें।

18) उनकी परीक्षा ली गयी है और उन्होंने स्वयं दुःख भोगा है, इसलिए वह परीक्षा में दुःख भोगने वालों की सहायता कर सकते हैं।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 2:22-40

22) जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तो वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरुसालेम ले गये;

23) जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है: हर पहलौठा बेटा प्रभु को अर्पित किया जाये

24) और इसलिए भी कि वे प्रभु की संहिता के अनुसार पण्डुकों का एक जोड़ा या कपोत के दो बच्चे बलिदान में चढ़ायें।

25) उस समय येरुसालेम में सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष रहता था। वह इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में था और पवित्र आत्मा उस पर छाया रहता था।

26) उसे पवित्र आत्मा से यह सूचना मिली थी कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा।

27) वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मन्दिर आया। माता-पिता शिशु ईसा के लिए संहिता की रीतियाँ पूरी करने जब उसे भीतर लाये,

28) तो सिमेयोन ने ईसा को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा,

29) ’’प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शान्ति के साथ विदा कर;

30) क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है,

31) जिसे तूने सब राष़्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है।

32) यह ग़ैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।’’

33) बालक के विषय में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये।

34) सिमेयोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उसकी माता मरियम से यह कहा, ’’देखिए, इस बालक के कारण इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा। यह एक चिन्ह है जिसका विरोध किया जायेगा।

35) इस प्रकार बहुत-से हृदयों के विचार प्रकट होंगे और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगी।

36) अन्ना नामक एक नबिया थी, जो असेर-वंशी फ़नुएल की बेटी थी। वह बहुत बूढ़ी हो चली थी। वह विवाह के बाद केवल सात बरस अपने पति के साथ रह कर

37) विधवा हो गयी थी और अब चैरासी बरस की थी। वह मन्दिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए दिन-रात ईश्वर की उपासना में लगी रहती थी।

38) वह उसी घड़ी आ कर प्रभु की स्तुति करने और जो लोग येरुसालेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे, वह उन सबों को उस बालक के विषय में बताने लगी।

39) प्रभु की संहिता के अनुसार सब कुछ पूरा कर लेने के बाद वे गलीलिया-अपनी नगरी नाज़रेत-लौट गये।

40) बालक बढ़ता गया। उस में बल तथा बुद्धि का विकास होता गया और उसपर ईश्वर का अनुग्रह बना रहा।

📚 मनन-चिंतन

ईश्वर के ज्ञान प्राप्त करने में हमारी सीमाएँ हैं। हम ईश्वर के बारे में केवल उतना ही जानते हैं जितना वे हमंभ प्रकट करने की कृपा करते हैं। इस तरह के रहस्योद्घाटन प्राप्त करने में सक्षम होने के लिए हमें खुद को उसी के अनुरूप बनाने की आवश्यकता है। जब बालक येसु को मंदिर में लाया गया तो दो महान व्यक्ति थे जिन्होंने उपवास और प्रार्थना में मसीह का इंतजार किया - सिमयोन और अन्ना। उन्होंने मसीह को पहचान लिया क्योंकि वे ईश्वर के कार्यों के लिए खुले थे। वे प्रभु के लिए समर्पित थे और मंदिर, प्रभु के घर से जुड़े हुए थे। वे प्रभु की खोज करने के लिए पर्याप्त बुद्धिमान थे। स्तोत्रकार कहता है, "ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौड़ाता है कि उन में कोई बुद्धिमान हो, जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो"। (स्तोत्र 14:2; 53:2) प्रभु किसी को भी निराश नहीं करते हैं जो उन्हें चाहता है। वे उन लोगों का परित्याग नहीं करते, जो उनकी खोज में लगे रहते हैं। (देखें स्तोत्र 9:10)। आइए हम हर समय प्रभु की तलाश करना सीखें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

We have our limitations in the knowledge of God. We know about God only as much as He is pleased to reveal to us. To be able to receive such revelation we need to tune ourselves to God. When child Jesus was brought to the temple there were two great souls who awaited the Messiah in fasting and prayer – Simeon and Anna. They recognized the Messiah because they were open to the works of God. They were consecrated to God and were attached to the temple, the house of God. They were wise enough to seek God. Psalmist says, “The Lord looks down from heaven on humankind to see if there are any who are wise, who seek after God” (Ps 14:2; 53:2). Simeon and Anna were wise persons who constantly sought God. God does not disappoint anyone who seeks him. “And those who know your name put their trust in you, for you, O Lord, have not forsaken those who seek you” (Ps9:10). Let us learn to seek God at all times.

-Fr. Francis Scaria


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Praise the Lord!