10 अगस्त

सन्त लोरेन्स – त्योहार

📒 पहला पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 9:6-10

6) इस बात का ध्यान रखें कि जो कम बोता है, वह कम लुनता है और जो अधिक बोता है, वह अधिक लुनता है।

7) हर एक ने अपने मन में जिनता निश्चित किया है, उतना ही दे। वह अनिच्छा से अथवा लाचारी से ऐसा न करे, क्योंकि ‘‘ईश्वर प्रसन्नता से देने वाले को प्यार करता है’’।

8) ईश्वर आप लोगों को प्रचुर मात्रा में हर प्रकार का वरदान देने में समर्थ है, जिससे आप को कभी किसी तरह की कोई कमी नहीं हो, बल्कि हर भले काम के लिए चन्दा देने के लिए भी बहुत कुछ बच जाये।

9) धर्मग्रन्थ में लिखा है- उसने उदारतापूर्वक दरिद्रों को दान दिया है, उसकी धार्मिकता सदा बनी रहती है।

10) जो बोने वाले को बीज और खाने वाले को भोजन देता है, वह आप को बोने के लिए बीज देगा, उसे बढ़ायेगा और आपकी उदारता की अच्छी फसल उत्पन्न करेगा।

📙 सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 12:24-26

24) मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ- जब तक गेंहूँ का दाना मिटटी में गिर कर नहीं मर जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परंतु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है।

25) जो अपने जीवन को प्यार करता है, वह उसका सर्वनाश करता है और जो इस संसार में अपने जीवन से बैर करता है, वह उसे अनंत जीवन के लिये सुरक्षित रखता है।

26) यदि कोई मेरी सेवा करना चाहता है तो वह मेरा अनुसरण करे। जहाँ मैं हूँ वहीं मेरा सेवक भी होगा। जो मेरी सेवा करेगा, मेरा पिता उस को सम्मान प्रदान करेगा।

📚 मनन-चिंतन

आज हम आत्म समर्पण और त्याग के सदगुण पर मनन-चिंतन करते हैं। आज के पहले पाठ में सन्त पौलुस हमें बताते हैं कि ‘ईश्वर प्रसन्नता से देने वाले को प्यार करता है,’ और सुसमाचार में प्रभु येसु उनकी प्रशंसा करते हैं जो ईश्वर के राज्य के लिए और लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। प्रभु येसु गेहूँ के दाने का उदाहरण देते हैं जो अकेला रहता है लेकिन जब वह मिट्टी में गिरकर मर जाता है, अपने आप को बलिदान कर देता है, तो बहुत फल देता है।

दुनिया में ऐसे बहुत से लोगों के उदाहरण हैं, जिन्होंने अपने जीवन से बहुत प्यार किया और उसे सुरक्षित रखना चाहा लेकिन उन्हें उसे खो दिया, और वे भुला दिये गये। वहीं दूसरी ओर ऐसे लोगों के भी अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने ईश्वर और मानव सेवा में अपना जीवन क़ुर्बान कर दिया और दुनिया की नज़रों में “खो दिया” लेकिन ईश्वरीय दृष्टि में अपना सुरक्षित रखा जो आज भी यादों में जीवित हैं। उन्हीं में से एक हैं संत लॉरेन्स जिनका पर्व आज हम मनाते हैं।

वह सन 258 ईसवीं में सन्त पापा सिक्स्तुस द्वितीय के समय में उपयाजक थे और कलिसिया की सम्पत्ति के इंचार्ज थे, ख्रिस्तियों पर अत्याचार के समय जब रोम के शासक ने लॉरेन्स से कलिसिया की सारी सम्पत्ति को सौंपने के लिए कहा तो उन्होंने सारी सम्पत्ति ग़रीबों और जरूरतमंदो, लाचारों और अनाथों में बाँट दी और उन्हें शासक के सामने यह कहते हुए प्रस्तुत कर दिया कि यही है कलिसिया की असली सम्पत्ति। उन्होंने ईश्वर और लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन क़ुर्बान कर दिया। ना केवल उन्होंने सांसारिक सम्पत्ति को दान कर दिया बल्कि अपना जीवन भी विश्वास की ख़ातिर दे दिया। इसी तरह के शहीद संतों के बलिदान द्वारा कलिसिया का विश्वास फल-फूलता और सौ गुना फल उत्पन्न करता है।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today we are invited to reflect on the virtue of self-giving or self sacrifice. St.Paul, in the first reading, tells us that God loves a cheerful giver, and in the gospel, Jesus praises those who give their lives in the service of God and humanity. Jesus gives the example of the grain of wheat which remains single and of not much use, but If it is falls in the soil and sacrifices itself it bears much fruit.

There are so many people who loved themselves and tried to preserve their lives but lost it, and are forgotten. And on the other hand there are many examples of such people who gave their lives in the service of God and others and in worldly sense “lost their lives” but in reality they saved their lives and are still living with us in memory. One of them is St. Lawrence whose feast we celebrate today.

He was the in-charge of the church property and when asked by the prefect of Rome to surrender the property, he distributed it to the destitute and presented them before the prefect. He was martyred for God and people. He not only gave the worldly wealth away but also gave his life for faith. It is because of the sacrifice of the martyrs that Christian faith flourishes and their sacrifice bears much fruits.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!