चालीसा काल का दूसरा सप्ताह, सोमवार



पहला पाठ : दानिएल 9:4-10

4) "प्रभु! महान् एवं भीषण ईश्वर! तू अपना विधान बनाये रखता है। तू उन लोगों पर दयादृष्टि करता है, जो तुझे प्यार करते और तेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं। हम लोगों ने पाप किया है, हमने अधर्म और बुराई की है, हमने तेरे विरुद्ध विद्रोह किया है।

5) हमने तरी आज्ञाओं तथा नियमों का मार्ग त्याग दिया है।

6) नबी तेरे सेवक, हमारे राजाओं, नेताओं, पुरखों और समस्त देश के लोगों को उपदेश देते थे। हमने उनकी शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया है।

7) "प्रभु! तू न्यायी है और यहूदिया के लोग, येरुसालेम के निवासी, समस्त इस्राएली, चाहे वे निकट रहते हों, चाहे उन दूर देशों में बिखेर दिया है, हम सब-के-सब कलंकित हैं।

8) प्रभु! हम सब कलांकित हैं- हमारे राजा, हमारे शासक और हमारे पुरखे, क्योंकि हमने तेरे विरुद्ध पाप किया है।

9) "हमारा प्रभु-ईश्वर हम पर दयादृष्टि करे और हमें क्षमा प्रदान करे, क्योंकि हमने उसके विरुद्ध विद्रोह किया

10) और अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी अनसुनी कर दी है। उसने अपने सेवकों, अपने नबियों द्वारा जो नियम हमारे सामने रखे थे हमने उनका पालन नहीं किया।

सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 6:36-38

36) "अपने स्वर्गिक पिता-जैसे दयालु बनो। दोष न लगाओ और तुम पर भी दोष नहीं लगाया जायेगा।

37) किसी के विरुद्ध निर्णय न दो और तुम्हारे विरुद्ध भी निर्णय नहीं दिया जायेगा। क्षमा करो और तुम्हें भी क्षमा मिल जायेगी।

38) दो और तुम्हें भी दिया जायेगा। दबा-दबा कर, हिला-हिला कर भरी हुई, ऊपर उठी हुई, पूरी-की-पूरी नाप तुम्हारी गोद में डाली जायेगी; क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा।"

📚 मनन-चिंतन

पुराने विधान के अलग अलग ग्रन्थों में हमें ये पढने को मिलता है कि प्रभु एक करुणामय तथा कृपालू ईश्वर है। वह देर से क्रोध करता और अनुकम्पा तथा सत्यप्रतिज्ञता का धनी है। वह हज़ार पीढियों तक अपनी कृपा बनाये रखता और बुराई, अपराध और पाप क्षमा करता है। (निर्गमन 34:6-7,स्तोत्र 103:8, 145:8) नये विधान में प्रभु येसु हमसे कहते है कि हमें ईश्वर का यह स्वभाव हमारे जीवन में धाराण करना चाहिए ा इसलिए येसु आज के सुसमाचार में कहते है कि अपने स्वर्गिक पिता जैसे दयालू बनो, ईश्वर दोष नहीं लगाते है इसलिए तुम भी दोष न लगाओ, ईश्वर हमारे अनगिनित पापों को क्षमा करते है इसलिए तुम भी एक दूसरे को क्षमा करो। प्रभु अपने शिष्यों से ऐसा पूर्णता हासिल करने केलिए आग्रह करते है । सन्त मत्ती के सुसमाचार के 5:48 में येसु कहते है तूम पूर्ण बनो, जैसे तूम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।

हम अपने आप से पूछे कि हम येसु के शिष्य होने के नाथे क्या हम में यह ईश्वरीय स्वभाव है कि नहीं। क्या जब कभि साथ रहने वाले हमारे विरुद्व अपराध करते है तब क्या हम उनके प्रति दयालूता प्रकट करते है? सन्त यूदस कहते है कि जो लोग जिनका विश्वास दृढ नहीं है, उन पर दया करें। (1:22) संत पौलुस कहते है कि यदि यह पता चले कि किसी ने कोई अपराध किया है, तो आप लोग, जो आध्यात्मिक हैं, उसे नम्रतापूर्वक सुधारें। (गलातियों 6:1) संत पौलुस यह इसलिए कहते है क्योंकि उन्होंने स्वयं ईश्वर की दयालुता का अनुभव अपने जीवन में की है। वह कहते है कि वह सबसे घोर पापी था लकिन उन पर ईश्वर ने अपनी दया प्रकट की। (1 तिमथी 1:15-16) संत पौलुस कहते है कि हम शरीर और मन के हर प्रकार के दूषण से अपने को शुद्व करें और ईश्वर पर श्रद्धा रखते हुए पवित्रता की परिपूर्णता तक पहॅुचने का प्रयत्न करते रहें। (2 कुरिन्थियों 7:1)

ईश्वर अपनी असीम दयालुता, सहनशीलता इसलिए प्रकट करते है तकि हम पश्चात्ताप करें (रोमियों 2:4) और नवजीवन प्राप्त करें। आईए दानिएल के समान हम भी हमारे पापों केलिए और एक दूसरे कि पापों केलिए प्रभु से क्षमा मागें। विशेष रुप में उन क्षणों केलिए जब हमने ईश्वर की दयालुता की तिरस्कार किया है और दूसरों पर दया प्रकट नहीं की है।


-फादर शैलमोन आन्टनी


📚 REFLECTION


In the Old Testament there are many references where it is written that God is merciful and compassionate. The word of God says in Ex 34:6-7 The Lord a God merciful and gracious slow to anger, and abounding in steadfast love and faithfulness. Keeping steadfast love for the thousandth generation, forgiving iniquity and transgression and sin. Like this we have in Ps 103:8, 145:8 etc. in the New Testament Jesus says that we need to have this character of God in our lives. Therefore Jesus says in the gospel that be merciful like the heavenly Father. God does not accuse therefore you also should not accuse others. God forgives our innumerable sins therefore we also should forgive each other. Jesus expects his disciples to attain the perfection like the father. Therefore Jesus says in Mt 5:48 be perfect like the heavenly father.

Let us ask ourselves that being a disciple of Jesus do we have the character of God? Are we able to forgive are we able to show compassion when our fellow brethren commits sin against us? St. Jude 1:22 have mercy on some who are wavering. Gal 6:1 My friends if anyone is detected in a transgression, you who have received the Spirit should restore such a one in a spirit of gentleness. St. Paul says that he himself has experienced in his life the mercy of God. He says in 1Tim 1:15-16 he was the foremost sinner but God show his mercy upon him. Therefore he says 2Cor 7:1 Let us cleanse ourselves from every defilement of body and of spirit, making holiness perfect in the fear of God.

Rom 2:4 God is showing his unconditional mercy and patience so that we repent and receive new life. Let us come, like Daniel let us also ask pardon from the Lord for our sins and for the sins of others. Very specially let us ask pardon from the Lord when we ignored God’s mercy and also when we could not show mercy to our brothers and sisters.

-Fr. Shellmon Antony


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Praise the Lord!