चालीसा काल का दूसरा सप्ताह, शुक्रवार



पहला पाठ : उत्पत्ति 37:3-4,12-13, 17-28

3) इस्राएल अपने सब दूसरे पुत्रों से यूसुफ़ को अधिक प्यार करता था, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे की सन्तान था। उसने यूसुफ़ के लिए एक सुन्दर कुरता बनवाया था।

4) उसके भाइयों ने देखा कि हमारा पिता हमारे सब भाइयों से यूसुफ़ को अधिक प्यार करता है; इसलिए वे उस से बैर करने लगे और उस से अच्छी तरह बात भी नहीं करते थे।

12) यूसुफ़ के भाई अपने पिता की भेड़ बकरियाँ चराने सिखेम गये थे।

13) इस्राएल ने यूसुफ़ से कहा, ''तुम्हारे भाई सिखेम में भेडें चरा रहे है। मैं तुम को उनके पास भेजना चाहता हूँ।'' उसने उस को उत्तर दिया, ''जो आज्ञा।''

17) उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ''यहाँ से वे आगे बढ़ गये, क्योंकि मैंने उन को यह कहते हुए सुना था कि हम दोतान चलें।'' यूसुफ़ अपने भाइयों की खोज में निकला और उसने उन को दोतान में पाया।

18) उन्होंने उसे दूर से आते देखा था और उसके पहुँचने से पहले ही वे उसे मार डालने का षड्यन्त्र रचने लगे।

19) उन्होंने एक दूसरे से कहा, ''देखो, वह स्वप्नदृष्टा आ रहा है।

20) चलो, हम उसे मार कर किसी कुएँ में फेंक दें। हम यह कहेंगे कि कोई हिंस्र पशु उसे खा गया है। तब हम देखेंगे कि उसके स्वप्न उसके किस काम आते हैं।''

21) रूबेन यह सुन कर उसे उनके हाथों से बचाने के उद्देश्य से बोला, ''हम उसकी हत्या न करें।''

22) तब रूबेन ने फिर कहा, ''तुम उसका रक्त नहीं बहाओ। उसे मरूभूमि के कुएँ में फेंक दो, किन्तु उस पर हाथ मत लगाओ।'' वह उसे उनके हाथों से बचा कर पिता के पास पहुँचा देना चाहता था।

23) इसलिए ज्यों ही यूसुफ़ अपने भाइयों के पास पहुँचा, उन्होंने उसका सुन्दर कुरता उतारा और उसे पकड़ कर कुएँ में फेंक दिया।

24) वह कुआँ सूखा हुआ था, उस में पानी नहीं था।

25) इसके बाद से वे बैठ कर भोजन करने लगे। उन्होंने आँखें ऊपर उठा कर देखा कि इसमाएलियों का एक कारवाँ गिलआद से आ रहा है। वे ऊँटों पर गोंद, बलसाँ और गन्धरस लादे हुए मिस्र देश जा रहे थे।

26) तब यूदा ने अपने भाइयों से कहा, ''अपने भाई को मारने और उसका रक्त छिपाने से हमें क्या लाभ होगा?

27) आओ, हम उसे इसमाएलियों के हाथ बेच दें और उस पर हाथ नहीं लगायें; क्योंकि वह तो हमारा भाई और हमारा रक्तसम्बन्धी है।'' उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली।

28) उस समय मिदयानी व्यापारी उधर से निकले। उन्होंने यूसुफ़ को कुएँ से निकाला और उसे चाँदी के बीस सिक्कों में इसमाएलियों के हाथ बेच दिया और वे यूसुफ़ को मिस्र देश ले गये।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 21:33-43,45-46

33) "एक दूसरा दृष्टान्त सुनो। किसी भूमिधर ने दाख की बारी लगवायी, उसके चारों ओर घेरा बनवाया, उस में रस का कुण्ड खुदवाया और पक्का मचान बनवाया। तब उसे असामियों को पट्ठे पर दे कर वह परदेश चला गया।

34) फसल का समय आने पर उसने फसल का हिस्सा वसूल करने के लिए असामियों के पास अपने नौकरों को भेजा।

35) किन्तु असामियों ने उसके नौकरों को पकड़ कर उन में से किसी को मारा-पीटा, किसी की हत्या कर दी और किसी को पत्थरों से मार डाला।

36) इसके बाद उसने पहले से अधिक नौकरों को भेजा और असामियों ने उनके साथ भी वैसा ही किया।

37) अन्त में उसने यह सोच कर अपने पुत्र को उनके पास भेजा कि वे मेरे पूत्र का आदर करेंगे।

38) किन्तु पुत्र को देख कर असामियों ने एक दूसरे से कहा, ’यह तो उत्तराधिकारी है। चलो, हम इसे मार डालें और इसकी विरासत पर कब्जा कर लें।’

39) उन्होंने उसे पकड़ लिया और दाखबारी से बाहर निकाल कर मार डाला।

40) जब दाखबारी का स्वामी लौटेगा, तो वह उन असामियों का क्या करेगा?"

41) उन्होंने ईसा से कहा, "वह उन दृष्टों का सर्वनाश करेगा और अपनी दाखबारी का पट्ठा दूसरे असामियों को देगा, जो समय पर फसल का हिस्सा देते रहेंगे"।

42) ईसा ने उन से कहा, "क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में कभी यह नहीं पढा? करीगरों ने जिस पत्थर को बेकार समझ कर निकाल दिया था, वही कोने का पत्थर बन गया है। यह प्रभु का कार्य है। यह हमारी दृष्टि में अपूर्व है।

43) इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ- स्वर्ग का राज्य तुम से ले लिया जायेगा और ऐसे राष्ट्रों को दिया जायेगा, जो इसका उचित फल उत्पन्न करेगा।

45) महायाजक और फरीसी उनके दृष्टान्त सुन कर समझ गये कि वह हमारे विषय में कह रहे हैं।

46) वे उन्हें गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु वे जनता से डरते थे; क्योंकि वह ईसा को नबी मानती थी।

📚 मनन-चिंतन

हम सभी ईश्वर द्वारा लगाया गया दाख की बारी के समान है। जिस प्रकार भूमिधर ने दाख की बारी के चारों ओर घेरा बनवाया, उस के रस का कुण्ड खुदवाया और पक्का मचान बनवाया, उसी प्रकार हमारे जीवन को फलदायी बनाने केलिए ईश्वर ने हमें सबकुछ प्रदान किया है; हमें अपना प्रतिरुप बनाया, हमें अलग पहचान दिया संत पौलुस कहते है धन्य है हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर और पिता, उसने मसीह द्वारा हम लोगों को स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान प्रदान किये हैं। (एफेसियों 1:3)

जिस प्रकार याकूब ने यूसुफ को अधिक प्यार किया उसी प्रकार पिता ईश्वर हम सभी को अधिक प्यार करते है। हम सब ईश्वर की दृष्टि में मूल्यवान है और महत्व रखते है और ईश्वर हमें प्यार करते है (इसायाह 43:4) संत योहन कहते कि जिस प्रकार पिता ईश्वर येसु को प्यार करते है उसी प्रकार पिता ईश्वर हमें भी प्यार करते है (योहन 17:23) और वही ईश्वर हमसे उम्मीद करते है कि हम जीवन में अच्छी फ़सल लाये। अगर हम अच्छी फसल न लाये तो प्रभु यह पूछंेगे - कौन बात ऐसी थी, जो मैं अपनी दाखबारी के लिए कर सकता था और जिसे मैंने उसके लिए नहीं किया? मुझे अच्छी फसल की आशा थी, उसने खट्टे अंगूर क्यों पैदा किये? (इसायाह 5:4) फलहीन अंजीर के पेड़ के दृष्टान्त में येसु कहते है कि किसी मनुष्य की दाखबारी में एक अंजीर का पेड़ था। वह उस में फल खोजने आया, परन्तु उसे एक भी नहीं मिला। तब उसने दाखबारी के माली से कहा, देखो मैं तीन वर्षों से अंजीर के इस पेड़ में फल खोजने आता हॅू, किन्तु मुझे एक भी नहीं मिलता। इसे काट डालो। यह भूमि को क्यों छेंके हुए है? (लूकस 13:6-7)

आईए हम ईश्वर से प्राप्त सभी वरदान केलिए ईश्वर को धन्यवाद दे। हमारा जीवन अनमोल है और समय बहुमूल्य है । यह समझते हुए हम हमारे जीवन में प्राप्त सभी वरदानों का सही रुप में इस्तेमाल करते हुए हमारे जीवन में उत्तम फल लाये। इसकेलिए हम हमारे ह्रदय को शुद्व रखे। जैसे की वचन कहता है जो अच्छी भूमि में बोया गया हैः यह वह है, जो वचन सूनता और समझता है और फल लाता है- कोई सौ गुना, कोई साठ गुना और कोई तीस गुना। (मत्ती 13:23) यह याद रखें कि उत्तम फसल लाये बिना, हम अनंतजीवन का उत्ताराधिकारी नहीं बन सकते।


-फादर शैलमोन आन्टनी


📚 REFLECTION


We all are the vineyards planted by the Lord. As the landowner put a fence around the vineyard, dug a wine press in it and built a watchtower so also in order our life to be fruitful God has arranged everything for us; he created us in his likeness, he gave us uniqueness. St. Paul says blessed be the God and Father of our lord Jesus Christ who has blessed us with every blessing in the heavenly places (Eph 1:3)

As Jacob loved Joseph the most so also God is passionately and individually loving each one of us. Isa 43:4 you are precious in my sight, and honored, and I love you. St. John says that God the Father loves us as he loves Jesus (Jn 17:23). And this God expects that all of us bear good fruits in our life. In Isa 5:4 when God came to gather grapes he got sour ones. So God says what more was there to do for my vineyard that I have not done in it? When I expected it to yield grapes, why did it yield wild grapes? In Lk 13:6-7 Jesus says a man had a fig tree planted in this vineyard; and he came looking for fruit on it and found none. So he said to the gardener, see here for three years I have come looking for fruit on this fig tree, and still I find none. Cut it down, why should it be wasting the soil?

Come let us thank God for all the graces we have received from him. Our life is precious and time is valuable. By making use of all the blessings received from God let us bring forth fruits in abundance. For this let us clean our hearts. Because the Word of God says- in Mt 13:23 But as for what was sown on good soil, this is the one who hears the word and understands it, who indeed bears fruit and yields, in one case a hundredfold, in another sixty, and in another thirty. Remember that without bringing fruits in plenty we cannot inherit the kingdom of God.

-Fr. Shellmon Antony


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Praise the Lord!