चालीसा काल का चौथा सप्ताह, मंगलवार



पहला पाठ : एज़ेकिएल 47:1-9, 12

1) वह मुझे मंदिर के द्वार पर वापस ले आया। वहाँ मैंने देखा कि मन्दिर की देहली के नीचे से पूर्व की ओर जल निकल कर बह रहा है, क्योंकि मन्दिर का मुख पूर्व की ओर था। जल वेदी के दक्षिण में मन्दिर के दक्षिण पाश्र्व के नीचे से बह रहा था।

2) वह मुझे उत्तरी फाटक से बाहर-बाहर घुमा कर पूर्व के बाह्य फाटक तक ले गया। वहाँ मैंने देखा कि जल दक्षिण पाश्र्व से टपक रहा है।

3) उसने हाथ में माप की डोरी ले कर पूर्व की ओर जाते हुए एक हजार हाथ की दूरी नापी। तब उसने मुझे जलधारा को पार करने को कहा- पानी टखनों तक था।

4) उसने फिर एक हज़ार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने को कहा- पानी घुटनों तक था। उसने फिर एक हज़ार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने के कहा- पानी कमर तक था।

5) उसने फिर एक हज़ार हाथ की दूरी नापी- अब मैं उस जलधारा को पार नहीं कर सकता था, पानी इतना बढ़ गया था कि तैर कर ही पार करना संभव था। वह जलधारा ऐसी थी कि उसे कोई पार नहीं कर सकता था।

6) उसने मुझ से कहा, ’’मानवपुत्र! क्या तुमने इसे देखा?’’ तब वह मुझे ले गया और बाद में उसने मुझे फिर जलधारा के किनारे पर पहुँचा दिया।

7) वहाँ से लौटने पर मुझे जलधारा के दोनों तटों पर बहुत-से पेड़ दिखाई पड़े।

8) उसने मुझ से कहा, ’’यह जल पूर्व की ओर बह कर अराबा घाटी तक पहुँचता और समुद्र में गिरता है। यह उस समुद्र के खारे पानी को मीठा बना देता है।

9) यह नदी जहाँ कहीं गुज़रती है, वहाँ पृथ्वी पर विचरने वाले प्राणियों को जीवन प्रदान करती है। वहाँ बहुत-सी मछलिया पाय जायेंगी, क्योंकि वह धारा समुद्र का पानी मीठा कर देती है। और जहाँ कहीं भी पहुचती है, जीवन प्रदान करती है।

12) नदी के दोनों तटों पर हर प्रकार के फलदार पेड़े उगेंगे- उनके पत्ते नहीं मुरझायेंगें और उन पर कभी फलों की कमी नहीं होगी। वे हर महीने नये फल उत्पन्न करेंगे; क्योंकि उनका जल मंदिर से आता है। उनके फल भोजन और उनके पत्ते दवा के काम आयेंगे।

सुसमाचार : सन्त योहन 5:1-3, 5-16

1) इसके कुछ समय बाद ईसा यहूदियों के किसी पर्व के अवसर पर येरुसालेम गये।

2) येरुसालेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है, जो इब्रानी भाषा में बेथेस्दा कहलाता है। उसके पाँच मण्डप हैं।

3) उन में बहुत-से रोगी-अन्धे, लँगड़े और अद्र्धांगरोगी-पड़े हुए थे। (वे पानी के लहराने की राह देख रहे थे,

5) वहाँ एक मनुष्य था, जो अड़तीस वर्षों से बीमार था।

6) ईसा ने उसे पड़ा हुआ देखा और, यह जान कर कि वह बहुत समय से इसी तरह पड़ा हुआ है, उस से कहा, ‘‘क्या तुम अच्छा हो जाना चाहते हो’’

7) रोगी ने उत्तर दिया, ‘‘महोदय; मेरा कोई नहीं है, जो पानी के लहराते ही मुझे कुण्ड में उतार दे। मेरे पहुँचने से पहले ही उस में कोई और उतर पड़ता है।’’

8) ईसा ने उस से कहा, ‘‘उठ कर खड़े हो जाओ; अपनी चारपाई उठाओ और चलो’’।

9) उसी क्षण वह मनुष्य अच्छा हो गया और अपनी चारपाई उठा कर चलने-फिरने लगा।

10) वह विश्राम का दिन था। इसलिए यहूदियों ने उस से, जो अच्छा हो गया था, कहा, ‘‘आज विश्राम का दिन है। चारपाई उठाना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।’’

11) उसने उत्तर दिया, ‘‘जिसने मुझे अच्छा किया, उसी ने मुझ से कहा- अपनी चार पाई उठाओ और चलो’’।

12) उन्होंने उस से पूछा, ‘‘कौन है वह, जिसने तुम से कहा- अपनी चारपाई उठाओ और चलो?’’

13) चंगा किया हुआ मनुष्य नहीं जानता था कि वह कौन है, क्योंकि उस जगह बहुत भीड़ थी और ईसा वहाँ से निकल गये थे।

14) बाद में मंदिर में मिलने पर ईसा ने उस से कहा, ‘‘देखो, तुम चंगे हो गये हो। फिर पाप नहीं करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम पर और भी भारी संकट आ पड़े।’’

15) उस मनुष्य ने जा कर यहूदियों को बताया कि जिन्होंने मुझे चंगा किया है, वह ईसा हैं।

16) यहूदी ईसा को इसलिए सताते थे कि वे विश्राम के दिन ऐसे काम किया करते थे।

📚 मनन-चिंतन

आज के पहले पाठ में नबी एज़ेकिएल का मन्दिर के दर्शन के बारे में हम पढते है। नबी एज़ेकिएल कहते है कि उन्होंने मन्दिर के अंदर से चारों ओर पानी बहते हुए देखा। इसका मतलब यह है कि मन्दिर एैसी जगह है जहॉ से ईश्वर की कृपा बहती है। क्योंकि मन्दिर में सर्वशक्तिमान ईश्वर का सान्निध्य रहता है। येसु के बारे में वचन कहता है - (योहन 7:37-39) पर्व के अन्तिम और मुख्य दिन ईसा उठ खड़े हुए और उन्होंने पुकार कर कहा, यदि कोई प्यासा हो, तो वह मेरे पास आये। जो मुझ में विश्वास करता है, वह अपनी प्यास बुझाये। जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है-उसके अन्तस्तल से संजीवन जल की नदियॉ बह निकलेंगी। उन्होंने यह बात उस आत्मा के विषय में कही, जो उन में विश्वास करने वालों को प्राप्त होगा। उस समय तक आत्मा प्रदान नहीं किया गया था, क्योंकि ईसा महिमान्वित नहीं हुए थे। (इसायाह 55:1) तुम सब, जो प्यासे हो, पानी के पास चले आओ। यदि तुम्हारे पास रूप्या नहीं हो, तो भी आओ। और आगे वचन में कहते है (इसायाह 55:1) तुम आनन्दित हो कर मुक्ति के स्रोत में जल भरोगे। उस दिन तुम यह कहोगे, प्रभु का धन्यवाद करे, उसका नाम घोषित करो। राष्ट्रों में उसके महान कार्यों का बखान करो, उसके नाम की महिमा गाओ।

आईए हम मन्दिर में जाये और अपनी प्यास बुझाये। प्रभु के मंदिर में जाने से प्रभु हमें अपनी कृपा से भरेंगे और हमारा जीवन बदल जायेंगे । जैसे (योहन 1:16)येसु की परिपूर्णता से हम सबों को अनुग्रह पर अनुग्रह मिला है जैसे सुसमाचार में हम पढते है जब वह अर्द्धांगरोगी येरूसालेम में भेड़-फाटक के पास के कुण्ड के पास पडा हुआ था तब वह येसु के कर स्पर्श द्वारा चंगा होकर उनको नवजीवन मिला।

साथ ही साथ जब हम ईश्वर के साथ रहते है तो हम ईश्वर के अनुग्रह से भर जाते है और हम से वह अनुग्रह दूसरों कि ओर बहते है। (प्रेरित चरित 19:11-12) ईश्वर पौलुस द्वारा असाधरण चमत्कार दिखाता था। जब लोग उसके शरीर पर के रूमाल और अॅगोछे रोगियों के पास ले जाते थे, तो उनकी बीमारियॉ दूर हो जाती थीं और दुष्ट आत्मा निकल जाते थे। (एज़ेमिएल 47:9) यह नदी जहॉ कहीं गुज़रती हेै, वहॉ पृथ्वी पर पवचरने वाले प्राणियों को जीवन प्रदान करती है। एज़ेमिएल 47:12 में पढ़ते है कि नदी के दोनों तटों पर हर प्रकार के फलदार पेड़ उगेंगे - दनके पत्ते नहीं पुरझायेंगे और उन पर कभी फलों की कमी नहीं होगी। वे हर महीने नये फल उत्पन्न करेेंगे; क्योंकि उनका जल मन्दिर से आता है। उनके फल भोजन और उनके पत्ते दवा के काम आयेंगे। हम इस प्रकार संतों का रेलिकस इसतेमाल करते है। आईए हम भी इसी तरह प्रभु से जुड़़े रहे ताकी हमाारा जीवन दूसरों केलिए एक अनुग्रह बनजाये।


-फादर शैलमोन आन्टनी


📚 REFLECTION


In today’s reading we hear about the vision of prophet Ezekiel about the temple of the Lord. The Prophet says that he was saw water flowing all over from the temple. It means to say that temple is the place where there is the presence of God and because of that grace flows from there. There is a similar words Jesus says in John 7:37-39 – on the last day of the festival the great day, while Jesus was standing there, he cried out,” Let anyone who is thirsty come to me, and let the one who believes in me drink. As the scripture has said, out of the believer’s heart shall flow rivers of living water. Now he said this about the Spirit, which believers in him were to receive; for as yet there was no Spirit, because Jesus was not yet glorified. In the book of Isaiah also we read in 55:1 Ho everyone who thirsts, come to the waters; and you that have no money, come, buy and eat! Come, buy wine and milk without money and without price. In Isaiah 12:3 with joy you will draw water from the wells of salvation. And you will say in that day: Give thanks to the Lord, call on his name; make known his deeds among the nations; proclaim that his name is exalted.

Come let us go to the house of the Lord and quench our thirst. If you go to the temple of the Lord he will quench our thirst. And our life will be changed. In John 1:16 the word of God says: from his fullness we have all received, grace upon grace. We read in the Gospel of John chapter 5 the man lying near the pool called in Hebrew Bethzatha was healed by Jesus. Thus he received a new life.

When we remain with the Lord we get grace from the Lord and we in turn become a channel of grace for the people. In Acts 19:11-12 God performed extraordinary miracles through Paul, so that when the hand kerchiefs or aprons that had touched his skin were brought to the sick, their diseases left them, and the evil spirits came out of them. The word of God says the same in Ezekiel 47:12 on the banks, on both sides of the river, there will grow all kinds of trees for food. Their leaves will not wither nor their fruit fail, but they will bear fresh fruit every month, because the water for them flows from the sanctuary. Their fruit will be for food, and their leaves for healing.

Come let us all be united with the Lord so that we will be blessed by the grace of God and we in turn become a channel of blessing for the people.

-Fr. Shellmon Antony


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Praise the Lord!