पास्का अठवारा - सोमवार



पहला पाठ :प्रेरित-चरित 2:14,22-33

14) पेत्रुस ने ग्यारहो के साथ खड़े हो कर लोगों को सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर से कहा, "यहूदी भाइयो और येरुसालेम के सब निवासियो! आप मेरी बात ध्यान से सुनें और यह जान लें कि

22) इस्राएली भाइयो! मेरी बातें ध्यान से सुनें! आप लोग स्वयं जानते हैं कि ईश्वर ने ईसा नाज़री के द्वारा आप लोगों के बीच कितने महान् कार्य, चमत्कार एवं चिन्ह दिखाये हैं। इस से यह प्रमाणित हुआ कि ईसा ईश्वर की ओर से आप लोगों के पास भेजे गये थे।

23) वह ईश्वर के विधान तथा पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाये गये और आप लोगों ने विधर्मियों के हाथों उन्हें क्रूस पर चढ़वाया और मरवा डाला है।

24) किन्तु ईश्वर ने मृत्यु के बन्धन खोल कर उन्हें पुनर्जीवित किया। यह असम्भव था कि वह मृत्यु के वश में रह जायें,

25) क्योंकि उनके विषय में दाऊद यह कहते हैं - प्रभु सदा मेरी आँखों के सामने रहता है। वह मेरे दाहिने विराजमान है, इसलिए मैं दृढ़ बना रहता हूँ।

26) मेरा हृदय आनन्दित है, मेरी आत्मा प्रफुल्लित है और मेरा शरीर भी सुरक्षित रहेगा;

27) क्योंकि तू मेरी आत्मा को अधोलोक में नहीं छोड़ेगा, तू अपने भक्त को क़ब्र में गलने नहीं देगा।

28) तूने मुझे जीवन का मार्ग दिखाया है। तेरे पास रह कर मुझे परिपूर्ण आनन्द प्राप्त होगा।

29) भाइयो! मैं कुलपति दाऊद के विषय में। आप लोगों से निस्संकोच यह कह सकता हूँ कि वह मर गये और कब्र में रखे गये। उनकी कब्र आज तक हमारे बीच विद्यमान है।

30) दाऊद जानते थे कि ईश्वर ने शपथ खा कर उन से यह कहा था कि मैं तुम्हारे वंशजों में एक व्यक्ति को तुम्हारे सिंहासन पर बैठाऊँगा;

31) इसलिये नबी होने के नाते भविष्य में होने वाला मसीह का पुनरुत्थान देखा और इनके विषय में कहा कि वह अधोलोक में नहीं छोड़े गये और उनका शरीर गलने नहीं दिया गया।

32) ईश्वर ने इन्हीं ईसा नामक मनुष्य को पुनर्जीवित किया है-हम इस बात के साक्षी हैं।

33) अब वह ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं। उन्हें प्रतिज्ञात आत्मा पिता से प्राप्त हुआ और उन्होंने उसे हम लोगों को प्रदान किया, जैसा कि आप देख और सुन रहे हैं।

सुसमाचार : मत्ती 28:8-15

8) स्त्रियाँ शीघ्र ही कब्र के पास से चली गयीं और विस्मय तथा आनन्द के साथ उनके शिष्यों को यह समाचार सुनाने दौड़ीं।

9) ईसा एकाएक मार्ग में स्त्रियों के सामने आ कर खड़े हो गये और उन्हें नमस्कार किया। वे आगे बढ़ आयीं और उन्हें दण्डवत् कर उनके चरणों से लिपट़ गयीं।

10) ईसा ने उनसे कहा, "डरो नहीं। जाओ और मेरे भाइयों को यह सन्देश दो कि वे गलीलिया जायें। वहाँ वे मेरे दर्शन करेंगे।"

11) स्त्रियाँ जा ही रही थीं कि कुछ पहरेदार नगर आये। उन्होंने महायाजकों को सारा हाल कह सुनाया।

12) महायाजकों ने नेताओं से मिल कर परामर्श किया और सैनिकों को एक मोटी रकम दे कर

13) इस प्रकार समझाया, "तम लोग यही कहो कि रात को जब हम लोग सोये हुये थे, तो ईसा के शिष्य आये और उसे चुरा ले गये।

14) यदि यह बात राज्यपाल के कान में पड़ गयी, तो हम उन्हें समझा कर तुम लोगों को बचा लेंगे।"

15) पहरेदारों ने रुपया ले लिया और वैसा ही किया, जैसा उन्हें सिखाया गया था। यही कहानी फैल गयी और अब तक यहूदियों में प्रचलित है।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में हम दो प्रकार के लोगों को पाते हैं जो प्रभु के पुनरूत्थान की घटना पर दो अलग-अलग विपरीत प्रतिक्रियाएं देते हैं। पहले समूह में मरियम मेगदलेना तथा दूसरी महिलायें है जो येसु के पुनरूत्थान के कारण विस्मित तथा हर्ष से भर गयी है। येसु उन्हें दर्शन देकर बताते है कि उन्हें उनके पुनरूत्थान का साक्षी बनना है तथा शिष्यों को बताना है कि येसु उन्हें कहॉ मिलेंगे। दूसरी ओर पहरदारों का समूह है जो इस वास्तविकता से परिचित है कि येसु जी उठे है। वे यह बात जब महापुरोहितों को बताते तो वे उन्हें रिश्वत देकर न सिर्फ इस बात को दबाना चाहते हैं बल्कि उन्हें झूठी गवाही देने के लिये भी कहते हैं। पहरेदार पुनरूत्थान की सच्चाई को लोगों के प्रभाव एवं पैसे के बदले में नकार देते हैं। वे इस घटना को अफवाह बताकर भी लोगों को इस सच्चाई से दूर रखना चाहते हैं।

हम जीवन में अनेक बार इस घटना की पुनरावृर्ति होते देखते हैं जब लोग येसु के पुनरूत्थान में विश्वास करने के बावजूद भी सांसारिक दबाव, प्रभाव, लाभ एवं पैसे के लिये अपने व्यवहार के द्वारा इस सच्चाई को नकार देते हैं। इन पहरेदारों के समान हम न सिर्फ स्वयं येसु की कृपा से दूर रहते बल्कि दूसरों को भी इस वास्तविक सच्चाई से दूर रखते हैं। जब हम इस पुनरूत्थान को स्वीकारते है तो दूसरों को भी इस सच्चाई के प्रति आकर्षित करते है। शिष्यों के जीवन को देखकर अनेकों ने येसु में विश्वास किया तथा ख्राीस्तीय होना स्वीकारा। जब पेत्रुस और योहन को जब कोडो से मारा जाता है तथा आदेश दिया जाता है येुस का नाम लेकर शिक्षा न दे तो वे कहते हैं, ’’आप लोग स्वयं निर्णय करें-क्या ईश्वर की दृष्टि में यह उचित होगा कि हम ईश्वर की नहीं, बल्कि आप लोगों की बात मानें? क्योंकि हमने जो देखा और सुना है, उसके विषय में नहीं बोलना हमारे लिए सम्भव नहीं।’’ (प्रेरित चरित 4:19-20) हमें भी अपने जीवन में सांसारिक लाभ एवं लोभ से परे जाकर ईश्वर की बात मानकर पुनरूत्थान की सच्चाई का साक्ष्य देना चाहिये।

फादर रोनाल्ड वाँन

📚 REFLECTION


In today’s Gospel we find two type of people or reactions to the truth of the resurrection. In the first group we have Mary Magdalen and the other woman who are overwhelmed by resurrection of the Lord. They are told by the Lord himself not to be panicked and inform the disciples to go to Galilee. On the contrary we have the soldiers who were guarding the tomb. They are aware of the fact that Jesus is risen. When they reported this matter to the high priests, they not only bribed them but also prepare them to bear false witness to the happening. For the greed of money, they not only refuse the truth but also agree to spread it as a lie.

Quite often we witness such scenario being played out time and again when people know the reality of the resurrection yet due to worldly pressure, influence, greed and money deny it in their behaviour. We not only keep ourselves away from the grace and gift of the Lord but also deny others an opportunity to experience it. when we accept it we open the doors for others too. Seeing the life of disciples hundreds of people were attracted to Christianity and accepted Jesus. When Peter and John were beaten and threatened not to preached in the name of Jesus they unlike soldiers refused to buckle under pressured said, “Whether it is right in God’s sight to listen to you rather than to God, you must judge; 20for we cannot keep from speaking about what we have seen and heard.’ (Acts 4:19-20) Like the apostles we too ought too look beyond the safety and security, gains and loses of this world and accept and live the truth of the resurrection in our life.

-Fr. Ronald Vaughan


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Praise the Lord!