पास्का अठवारा - मंगलवार



पहला पाठ : प्रेरित-चरित 2:36-41

36) इस्राएल का सारा घराना यह निश्चित रूप से जान ले कि जिन्हें आप लोगों ने क्रूस पर चढ़ाया ईश्वर ने उन्हीं ईसा को प्रभु भी बना दिया है और मसीह भी।’’

37) यह सुन कर वे मर्माहत हो गये और उन्होंने पेत्रुस तथा अन्य प्रेरितों से कहा, ’’भाइयों! हमें क्या करना चाहिए?’’

38) पेत्रुस ने उन्हें यह उत्तर दिया, ’’आप लोग पश्चाताप करें। आप लोगों में प्रत्येक अपने-अपने पापों की क्षमा के लिए ईसा के नाम पर बपतिस्मा ग्रहण करे। इस प्रकार आप पवित्र आत्मा का वरदान प्राप्त करेंगे;

39) क्योंकि वह प्रतिज्ञा आपके तथा आपकी सन्तान के लिए है, और उन सबों के लिए, जो भी दूर हैं और जिन्हें हमारा प्रभु-ईश्वर बुलाने वाला है।’’

40) पेत्रुस ने और बहुत-सी बातों द्वारा साक्ष्य दिया और यह कहते हुए उन से अनुरोध किया कि आप लोग अपने को इस विधर्मी पीढ़ी से बचाये रखें।

41) जिन्होंने पेत्रुस की बातों पर विश्वास किया, उन्होंने बपतिस्मा ग्रहण किया। उस दिन लगभग तीन हजार लोग शिष्यों में सम्मिलित हो गये।

सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 20:11-18

11) मरियम कब्र के पास, बाहर रोती रही। उसने रोते रोते झुककर कब्र के भीतर दृष्टि डाली

12) और जहाँ ईसा का शव रखा हुआ था वहाँ उजले वस्त्र पहने दो स्वर्गदूतों को बैठा हुआ देखा- एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने।

13) दूतों ने उस से कहा, ’’भद्रे! आप क्यों रोती हैं?’’ उसने उत्तर दिया, ’’वे मेरे प्रभु को उठा ले गये हैं और मैं नहीं जानती थी कि उन्होंने उन को कहाँ रखा है’’।

14) वह यह कहकर मुड़ी और उसने ईसा को वहाँ खडा देखा, किन्तु उन्हें पहचान नहीं सकी।

15) ईसा ने उस से कहा, ’’भद्रे! आप क्यों रोती हैं। किसे ढूँढ़ती हैं? मरियम ने उन्हें माली समझकर कहा, ’’महोदय! यदि आप उन्हें उठा ले गये, तो मुझे बता दीजिये कि आपने उन्हें कहाँ रखा है और मैं उन्हें ले जाऊँगी’’।

16) इस पर ईसा ने उस से कहा, ’’मरियम!’’ उसने मुड कर इब्रानी में उन से कहा, ’’रब्बोनी’’ अर्थात गुरुवर।

17) ईसा ने उस से कहा, ’’चरणों से लिपटकर मुझे मत रोको। मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया हूँ। मेरे भाइयेां के पास जाकर उन से यह कहो कि मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता, अपने ईश्वर और तुम्हारे ईश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ।’’

18) मरियम मगदलेना ने जाकर शिष्यों से कहा कि मैंने प्रभु को देखा है और उन्होंने मुझे यह सन्देश दिया।

📚 मनन-चिंतन

मरियम मग्देलेना अत्यंत दुखी थी। प्रभु येसु का दुखभोग तथा कू्रस पर मरण ने उसको तोड दिया था। उसने अपनी आखों से प्रभु की दुःखदायी मृत्यु तथा दफन की क्रिया को देखा था। वह येसु से बहुत स्नेह रखती थी। इसलिये वह प्रभु के मृत्यु शरीर पर लेपन करना चाहती थी। येसु की कब्र का पत्थर हटा तथा उनके शव को गायब देखकर उसका दुख और भी बढ गया था। वह निरंतर रोती जा रही थी। अपनी वेदना तथा आंसू के कारण वह न तो स्वर्गदूतों को पहचान पाती और न ही येसु को। वह येसु का माली समझ बैठती है और पूछती है, ष्महोदय! यदि आप उन्हें उठा ले गयेए तो मुझे बता दीजिये कि आपने उन्हें कहाँ रखा है और मैं उन्हें ले जाऊँगी।"

हमारे जीवन में भी हम दुख के कारण ईश्वर द्वारा प्रदान वरदानों या रास्तों को देख नहीं पाते हैं। मरियम के दुःख के द्वारा ईश्वर उन्हें पुनरूत्थान का अनुभव करवाना चाहते थे तथा साथ ही उनके इस पुनरूत्थान की घटना को सर्वप्रथम मानवजाति को घोषित करने का विशेषाधिकार भी प्रदान करना चाहते थे। किन्तु जिस प्रकार मरियम दुख और ऑसुओं में डूब गयी थी उसी प्रकार जीवन की असफलतायें हमें दुख पहुंचाती तथा ईश्वर द्वारा प्रदान अवसरों को देखने से रोकती है।

हमें हमेशा याद रखना चाहिये कि ईश्वर हमें कभी नहीं त्यागते है। हमारी तकलीफों के द्वारा वे हमें बडे उपहारों के लिये तैयार करते हैं। हमें हमेशा आशावान तथा जीवन की छोटी-बडी घटनाओं में ईश्वर का हाथ देखना चाहिये। एम्माउस जाते समय शिष्यों में गहरी निराशा थी। वे येसु को पहचान नहीं पाते हैं इसका मुख्य कारण उनकी निराशा थी। उन्होंने यह कहकर अपनी मन-स्थिति प्रकट की, ’’हम उसने बडी आशा थी’’। (लूकस 24:21)

येसु ने मरियम मग्देलेना के दुख के द्वारा उन्हें पुनरूत्थान के दर्शन का उपहार दिया। आइये हम भी निराशा के भाव को त्याग कर, ऑसूओं को पोछकर ईश्वर के अवसरों और कृपाओं महसूस करे।

फादर रोनाल्ड वाँन

📚 REFLECTION


Mary Magdalen was deeply disappointed. The gruesome passion and the death on the cross had left her shattered. She had witnessed the death and the burial of Jesus. She loved Jesus. Even when it was all over, she wanted to embalm the body of Jesus. Seeing stone removed and the empty tomb she became all the more sad. She was weeping incessantly. Her deep sorrows and tears prevented her from recognising angels and the risen Jesus. She didn’t understand the big picture, which included Jesus’ resurrection.She even mistook Jesus to be the gardener asking, “Sir, if you have carried him away tell me where you have laid him and I will take him away.”

So often, we’re just like Mary. We’re disappointed because we don’t understand the big picture of what God is doing. We’re disappointed because God is not working as we think He needs to work. It seems that His promises arenot true! But from God’s perspective, we’re asking the wrong questions and trying to accomplish the wrong tasks! We need to process our disappointments in light of the risen Saviour’s love and care for us. We often don’t understand His sovereign perspective.

God perhaps prepares us through our suffering and difficulties. We need to be optimistic and see God’s hand even in small events of life. The disciples while on the way to Emmaus were deeply sad. They too failed to recognise Jesus in their disappointment. They expressed their state of mind, “But we had hoped that he was the one to redeem Israel.” (Luke 24:21)

Jesus prepared Mary through the sorrows to experience and witness his resurrection. Let us also discard the sadness and wipe away the tears from our eyes so that we may see God and his goodness.

-Fr. Ronald Vaughan


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Praise the Lord!