पास्का का चौथा सप्ताह - शनिवार



पहला पाठ :प्रेरित-चरित 13:44-52

44) अगले विश्राम-दिवस नगर के प्रायः सब लोग ईश्वर का वचन सुनने के लिए इकट्ठे हो गये।

45) यहूदी इतनी बड़ी भीड़ देख कर ईर्ष्या से जल रहे थे और पौलुस की निंदा करते हुए उसकी बातों का खण्डन करते रहे।

46) पौलुस और बरनाबस ने निडर हो कर कहा, "यह आवश्यक था कि पहले आप लोगों को ईश्वर का वचन सुनाया जाये, परंतु आप लोग इसे अस्वीकार करते हैं और अपने को अनंत जीवन के योग्य नहीं समझते; इसलिए हम अब गैर-यहूदियों के पास जाते हैं।

47) प्रभु ने हमें यह आदेश दिया है, मैंने तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बना दिया हैं, जिससे तुम्हारे द्वारा मुक्ति का संदेश पृथ्वी के सीमांतों तक फैल जाये।"

48) गैर-यहूदी यह सुन कर आनन्दित हो गये और ईश्वर के वचन की स्तृति करते रहे। जितने लोग अनंत जीवन के लिए चुने गये थे, उन्होंने विश्वास किया

49) और सारे प्रदेश में प्रभु का वचन फैल गया।

50) किंतु यहूदियों ने प्रतिष्ठित भक्त महिलाओं तथा नगर के नेताओ को उभाड़ा, पौलुस तथा बरनाबस के विरुद्ध उपद्रव खड़ा कर दिया और उन्हें अपने इलाके से निकाल दिया।

51) पौलुस और बरनाबस उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ कर इकोनियुम चले गये।

52) शिष्य आनन्द और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थे।

सुसमाचार : योहन 14:7-14.

7) यदि तुम मुझे पहचानते हो, तो मेरे पिता को भी पहचानोगे। अब तो तुम लोगों ने उसे पहचाना भी है और देखा भी है।"

8) फिलिप ने उन से कहा, "प्रभु! हमें पिता के दर्शन कराइये। हमारे लिये इतना ही बहुत है।"

9) ईसा ने कहा, "फिलिप! मैं इतने समय तक तुम लोगों के साथ रहा, फिर भी तुमने मुझे नहीं पहचाना? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है। फिर तुम यह क्या कहते हो- हमें पिता के दर्शन कराइये?"

10) क्या तुम विश्वास नहीं करते कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में हैं? मैं जो शिक्षा देता हूँ वह मेरी अपनी शिक्षा नहीं है। मुझ में निवास करने वाला पिता मेरे द्वारा अपने महान कार्य संपन्न करता है।

11) मेरी इस बात पर विश्वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में हैं, नहीं तो उन महान कार्यों के कारण ही इस बात पर विश्वास करो।

12) मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ जो मुझ में सिवश्वास करता है, वह स्वयं वे कार्य करेगा, जिन्हें मैं करता हूँ। वह उन से भी महान कार्य करेगा। क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ।

13) तुम मेरा नाम ले कर जो कुछ माँगोगे, मैं तुम्हें वही प्रदान करूँगा, जिससे पुत्र के द्वारा पिता की महिमा प्रकट हो।

14) यदि तुम मेरा नाम लेकर मुझ से कुछ भी माँगोगें, तो मैं तुम्हें वही प्रदान करूँगा।

📚 मनन-चिंतन

कोई भी बच्चा ऐसा नहीं है जो अपने माता-पिता से पूर्ण रूप से भिन्न हो; उसमें अपने माता-पिता की कुछ न कुछ छवि ज़रूर होती है। या तो बच्चे का चेहरा, नयन-नक़्श आदि उसके माँ-बाप से मिलते-जुलते हैं, या उसकी चाल-ढाल, या रूप-रंग अपने माता-पिता से मिलता-जुलता है। बच्चे में ऐसा कुछ ना कुछ ज़रूर होता है तो उसके माता-पिता को इंगित करता है। अगर सांसारिक बच्चों में अपने जन्मदाताओं की छवि इतनी स्पष्ट झलकती है, तो एक ही तत्व से उत्पन्न, सनातन रहने वाले स्वर्गीय पिता और पुत्र की छवि एक जैसी क्यों नहीं होगी? पवित्र आत्मा के साथ पिता और पुत्र एक हैं। प्रभु येसु में पिता ईश्वर की छवि स्पष्ट झलकती है, इसलिये प्रभु येसु कहते हैं कि “जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को भी देखा है।”(योहन १४:९)। बपतिस्मा द्वारा हम भी पिता ईश्वर की संतानें बन जाते हैं। क्या लोग हमारे जीवन द्वारा, हमारे व्यवहार द्वारा, हमारी बातों द्वारा हममें पिता ईश्वर के दर्शन करते हैं? हममें ऐसा क्या है जो प्रभु येसु को और हम को एक बनाता है?

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

A child is not totally different from his parents; there is surely something that identifies the child with his parents. The child carries either the look of the parents, or the style or colour of the parents. There is always something that would show the identity of the parents in the child. If the worldly children can be identified with their worldly parents so well, why not consubstantial and eternal father and son be identified with each other? Father and son are united in one with the Holy Spirit. The image of the Father can be seen in the son, that’s why Jesus proclaims, “If you know me, you will know my Father also…” (Jn.14:7). We become the children of the heavenly Father through Baptism. Do the people see the heavenly father in us through our way of life, through our behaviour, through our dealing with others? What do we have within us that identifies us with Jesus our Lord and brother?

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!