पास्का का सातवाँ सप्ताह - बुधवार



पहला पाठ : प्रेरित-चरित 20:28-38

28) आप लोग अपने लिए और अपने सारे झुण्ड के लिए सावधान रहें। पवित्र आत्मा ने आप को झुण्ड की रखवाली का भार सौंपा है। आप प्रभु की कलीसिया के सच्चे चरवाहे बने रहें, जिसे उन्होंने अपना रक्त दे कर प्राप्त किया।

29) मैं जानता हूँ कि मेरे चले जाने के बाद खूंखार भेडि़ये आप लागों के बीच घुस आयेंगे, जो झुण्ड पर दया नहीं करेंगे।

30) आप लोगों में भी ऐसे लोग निकल आयेंगे, जो शिष्यों को भटका कर अपने अनुयायी बनाने के लिए भ्रान्तिपूर्ण बातों का प्रचार करेंगे।

31) इसलिए जागते रहें और याद रखें कि मैं आँसू बहा-बहा कर तीन वर्षों तक दिन-रात आप लागों में हर एक को सावधान करता रहा।

32) अब मैं आप लोगों को ईश्वर को सौंपता हूँ तथा उसकी अनुग्रहपूर्ण शिक्षा को, जो आपका निर्माण करने तथा सब सन्तों के साथ आप को विरासत दिलाने में समर्थ है।

33) मैंने कभी किसी की चाँदी, सोना अथवा वस्त्र नहीं चाहा।

34) आप लोग जानते हैं कि मैंने अपनी और अपने साथियों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए अपने इन हाथों से काम किया।

35) मैंने आप को दिखाया कि इस प्रकार परिश्रम करते हुए, हमें दुर्बलों की सहायता करनी और प्रभु ईसा का कथन स्मरण रखना चाहिए कि लेने की उपेक्षा देना अधिक सुखद है।’’

36) इतना कह कर पौलुस ने उन सबों के साथ घुटने टेक कर प्रार्थना की।

37) सब फूट-फूट कर रोते और पौलुस को गले लगा कर चुम्बन करते थे।

38) उसने उन से यह कहा था कि वे फिर कभी उसे नहीं देखेंगे। इस से उन्हें सब से अधिक दुःख हुआ। इसके बाद वे उसे नाव तक छोड़ने आये।

सुसमाचार : सन्त योहन 17:11b-19

11) परमपावन पिता! तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, उन्हें अपने नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रख, जिससे वे हमारी ही तरह एक बने रहें।

12) तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, जब तक मैं उनके साथ रहा, मैंने उन्हें तेरे नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रखा। मैंने उनकी रक्षा की। उनमें किसी का भी सर्वनाश नहीं हुआ है। विनाश का पुत्र इसका एक मात्र अपवाद है, क्योंकि धर्मग्रन्थ का पूरा हो जाना अनिवार्य था।

13) अब मैं तेरे पास आ रहा हूँ। जब तक मैं संसार में हूँ, यह सब कह रहा हूँ जिससे उन्हें मेरा आनन्द पूर्ण रूप से प्राप्त हो।

14) मैंने उन्हें तेरी शिक्षा प्रदान की है। संसार ने उन से बैर किया, क्योंकि जिस तरह मैं संसार का नहीं हूँ उसी तरह वे भी संसार के नहीं हैं।

15) मैं यह नहीं माँगता कि तू उन्हें संसार से उठा ले, बल्कि यह कि तू उन्हें बुराई से बचा।

16) वे संसार के नहीं है जिस तरह मैं भी संसार का नहीं हूँ।

17) तू सत्य की सेवा में उन्हें समर्पित कर। तेरी शिक्षा ही सत्य है।

18) जिस तरह तूने मुझे संसार में भेजा है, उसी तरह मैंने भी उन्हें संसार में भेजा है।

19) मैं उनके लिये अपने को समर्पित करता हूँ, जिससे वे भी सत्य की सेवा में समर्पित हो जायें।

📚 मनन-चिंतन

जब हम अपने प्रियजनों के लिए प्रार्थना करते हैं तो उनके लिए सबसे अधिक ज़रूरत वाली चीज़ के लिए प्रार्थना करते हैं। आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु को शिष्यों के लिए प्रार्थना करते हुए देखते हैं। शिष्यों के लिए उस समय सबसे आवश्यक वस्तु थी उनकी सुरक्षा, रास्ते से भटक ना जायें, इसके लिए सुरक्षा, और तितर-बितर ना हो जाएँ उससे सुरक्षा। वे प्रभु येसु के लिए पिता ईश्वर द्वारा प्रदत्त उपहार थे और प्रभु येसु इस उपहार को सदा सुरक्षित रखना चाहते थे। वे संसार के नहीं थे, वे ईश्वर के थे। जब हम ईश्वर के हो जाते हैं तो हमें और भी अधिक सुरक्षा की ज़रूरत होती है - संसार के दूषण से सुरक्षा, बुराइयों से सुरक्षा, छल-कपट से सुरक्षा।

पिता ईश्वर ने हमें हमारे आस-पास बहुत सारे लोगों को प्रदान किया है- हमारा परिवार, हमारे मित्र, हमारे सगे-सम्बन्धी और हमारे साथी या सहकर्मी। क्या हमने कभी उनकी सबसे ज़रूरी आवश्यकता को महसूस किया है और उनके लिए प्रार्थना की है? आइए हम अपने आस-पास के प्रिय लोगों के लिए पिता ईश्वर को धन्यवाद दें, और प्रार्थना करें वे पिता ईश्वर की देख-भाल में सदा सुरक्षित रहें। आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

When we pray for our loved ones, we pray for what is most urgent for them. We see Jesus praying to the Father for the need of the disciples. The most urgent thing needed at the time for the disciples was their protection, protection from being lost, from being scattered. They were gift of God the Father to Jesus and he always protected them and wants they should be always protected. They did not belong to the world, they belonged to God. We need more protection when we belong to God, we need protection from the impurities of the world, the evils of the world, the traps of the world.

God the Father has given us many people around us as a gift, our family, our friends, our relatives and our colleagues. Do I sense their most urgent need and pray for them? Let us thank the Father for gift of the loving people around us and pray for them that they may be protected in the divine care the Father. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!