पास्का का सातवाँ सप्ताह - शुक्रवार



पहला पाठ : प्रेरित-चरित 25:13b-21

13) राजा अग्रिप्पा और बेरनिस कैसरिया पहुँचे और फेस्तुस का अभिवादन करने आये।

14) वे वहाँ कई दिन रहे और इस बीच फ़ेस्तुस ने पौलुस का मामला राजा के सामने प्रस्तुत करते हुए कहा, ’’फेलिक्स यहाँ एक व्यक्ति को बन्दीगृह में छोड़ गया है।

15) जब मैं येरुसालेम में था, तो महायाजकों तथा नेताओं ने उस पर अभियोग लगाया और अनुरोध किया कि उसे दण्डाज्ञा दी जाये।

16) मैंने उत्तर दिया, जब तक अभियुक्त को अभियोगियों के आमने-सामने न खड़ा किया जाये और उसे अभियोग के विषय में सफाई देने का अवसर न मिले, तब तक किसी को प्रसन्न करने के लिए अभियुक्त को उसके हवाले करना रोमियों की प्रथा नहीं है’।

17) इसलिए वे यहाँ आये और मैंने दूसरे ही दिन अदालत में बैठ कर उस व्यक्ति को बुला भेजा।

18) किंतु जिन अपराधों का मुझे अनुमान था, उनके विषय में उन्होंने उस पर कोई अभियोग नहीं लगाया।

19) उन्हें केवल अपने धर्म से सम्बन्धित कुछ बातों में उस से मतभेद था और ईसा नामक व्यक्ति के विषय में, जो मर चुका है, किन्तु पौलुस जिसके जीवित होने का दावा करता है।

20) मैं यह वाद-विवाद सुन कर असमंजस में पड़ गया। इसलिए मैंने पौलुस से पूछा कि क्या तुम येरुसालेम जाने को तैयार हो, जिससे वहाँ इन बातों के विषय में तुम्हारा न्याय किया जाये।

21) किन्तु पौलुस ने आवेदन किया कि सम्राट् का फैसला हो जाने तक उसे बन्दीगृह में रहने दिया जाये। इसलिए मैंने आदेश दिया कि जब तक मैं उसे कैसर के पास न भेजूँ, तब तक वह बन्दीगृह में रहे।’’

सुसमाचार : सन्त योहन 21:15-29

15) जलपान के बाद ईसा ने सिमोन पेत्रुस से कहा, ’’सिमोन योहन के पुत्र! क्या इनकी अपेक्षा तुम मुझे अधिक प्यार करते हो?’’ उसने उन्हें उत्तर दिया, ’’जी हाँ प्रभु! आप जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ’’। उन्होंने पेत्रुस से कहा, ’’मेरे मेमनों को चराओ’’।

16) ईसा ने दूसरी बार उस से कहा, ’’सिमोन, योहन के पुत्र! क्या तुम मुझे प्यार करते हो?’’ उसने उत्तर दिया, ’’जी हाँ प्रभु! आप जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ’’। उन्होंने पेत्रुस से कहा, ’’मेरी भेडों को चराओ’’।

17) ईसा ने तीसरी बार उस से कहा, ’’सिमोन योहन के पुत्र! क्या तुम मुझे प्यार करते हो?’’ पेत्रुस को इस से दुःख हुआ कि उन्होंने तीसरी बार उस से यह पूछा, ’क्या तुम मुझे प्यार करते हो’ और उसने ईसा से कहा, ’’प्रभु! आप को तो सब कुछ मालूम है। आप जानते हैं कि मैं आपको प्यार करता हूँ।“ ईसा ने उससे कहा, मेरी भेड़ों को चराओ”।

18) ’’मैं तुम से यह कहता हूँ- जवानी में तुम स्वयं अपनी कमर कस कर जहाँ चाहते थे, वहाँ घूमते फिरते थे; लेकिन बुढ़ापे में तुम अपने हाथ फैलाओगे और दूसरा व्यक्ति तुम्हारी कमर कस कर तुम्हें वहाँ ले जायेगा। जहाँ तुम जाना नहीं चाहते।’’

19) इन शब्दों से ईसा ने संकेत किया कि किस प्रकार की मृृत्यु से पेत्रुस द्वारा ईश्वर की महिमा का विस्तार होगा। ईसा ने अंत में पेत्रुस से कहा, ’’मेरा अनुसरण करो’’।

📚 मनन-चिंतन

संत पेत्रुस अन्य शिष्यों में शायद सबसे मुख्य थे। कई बार प्रभु के कुछ पूछने पर या शिष्यों के कुछ पूछने सन्त पेत्रुस ही आगे आते हैं। वह उन तीन शिष्यों में से भी एक है जो प्रभु येसु के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाओं एवं चमत्कारों में उनके साथ थे। पेत्रुस ने प्रभु येसु को पहली बार पहचान कर उनकी वास्तविक पहचान की घोषणा की, “आप जीवंत ईश्वर के पुत्र हैं (मत्ती १६:१६)। प्रभु येसु उसे चट्टान अर्थात कलिसिया की नीव बनाते हैं। प्रभु येसु उसे स्वर्ग राज्य की कुंजियाँ प्रदान करने की प्रतिज्ञा करते हैं। (मत्ती १६:१८-१९)

अतः पेत्रुस से आशा की जाती थी कि वह हमेशा अटल और अडिग बने रहेंगे, लेकिन संकट आने पर उसने प्रभु येसु को तीन बार अस्वीकार कर दिया, हालाँकि बाद में उसने पश्चताप किया। प्रभु येसु जब उससे तीन बार पूछते हैं तो यह बताना चाहते हैं कि उसे माफ़ कर दिया गया है, वह वही मज़बूत चट्टान है, उसे अपनी ज़िम्मेदारी समझने की ज़रूरत है। आज प्रभु येसु हमें भी हमारे नाम से पुकारते हैं और पूछते हैं________क्या तुम मुझे प्यार करते हो? जब तक हमारे उत्तर से वह निश्चिंत ना हो जाएँ तब तक वह पूछते ही रहेंगे। क्या हम प्रभु को प्यार करते हैं?

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

St. Peter is perhaps most prominent among all the disciples. Very often he is the one who comes forward to answer or as anything to the Lord even on behalf of other disciples. He is one of those three disciples who were there with Jesus during very important events and miracles in Jesus’s life. It was Peter who first declared the true identity of Jesus when he called him “the Son of the living God” (Matthew 16:16). And Jesus makes him rock, the foundation of the church. He promises him to give the keys of the kingdom of heaven…(Matthew 16:18-19).

So Peter was expected to be steadfast and stable, but he denied Jesus three times and of course after which he also felt guilty and repented. Jesus by asking him three times wants to show him that he is forgiven, he is still the same solid rock, he needs to assert his responsibility. Today Jesus asks each one of us by our name ____do you love me? He will go on asking till he is convinced of our answer. Do we love the Lord?

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!