काथलिक धर्मशिक्षा

मनुष्य, ईश्वर का महान चमत्कार

समूहों में चर्चा कीजिए
इस घटना को पढ़िए और निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

एक दिन जर्मनी के जानेमाने दार्शनिक इम्मानुएल केन्ट एक पार्क में विचारमग्न होकर बहुत लम्बे समय तक बैठे थे। वहाँ पर पहरा देनेवाली पुलिस को उन पर शक हुआ। पुलिस कर्मी ने उनके पास जाकर पूछा, “आप इधर इतने लम्बे समय तक क्या कर रहे हैं?“ उन्होंने जवाब दिया, “मैं सोच रहा हूँ“। इस पर पुलिस ने पूछा, “आप कौन हैं?“ उन्होंने कहा, “यही तो मैं भी सोच रहा हूँ कि मैं कौन हूँ?“


प्रश्न:-
1. अगर आप से यह पूछा जाए कि ’आप कौन हैं?’ तो आप का जवाब क्या होगा?
2. मनुष्य की परिभाषा अपने शब्दों में दीजिए।
3. आप के अनुसार मनुष्य के बारे में सबसे बड़ा रहस्य क्या है?

मनुष्य की अनेक परिभाषाएं हो सकती हैं। परन्तु इस प्राणी को पूरी तरह समझ पाना मुमकीन नहीं है। स्तोत्रकार कहता है, “जब मैं तेरे बनाए हुए आकाश को देखता हूँ, तेरे द्वारा स्थापित तारों तथा चन्द्रमा को, तो सोचता हूँ कि मनुष्य क्या है, जो तू उसकी सुधि ले? आदम का पुत्र क्या है, जो तू उसकी देखभाल करे? तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही छोटा बनाया और उसे महिमा और सम्मान का मुकुट पहनाया। तूने उसे अपनी सृष्टि पर अधिकार दिया और उसके पैरों तले सब कुछ डाल दिया...“ (स्तोत्र 8:4-7)।

मनुष्य का शरीर इस दुनिया का सबसे जटिल यंत्र है। हम जीते, खाते, चलते, सोते और उठते हैं। शरीर के अंगों की मदद से हम देखते, बोलते और सूंघते हैं। अपने मस्तिष्क की मदद से हम सोचते, कल्पना करते तथा विभिन्न बातों का अवलोकन करते हैं। हम शारीरिक तथा मानसिक सुखों का अनुभव करते हैं। मनुष्य का शरीर ईश्वर का चमत्कार है। ईश्वर ने ही शरीर की हड्डियों, मांस पेशियों, धमनियों तथा नसों को एक अनोखे ढ़ंग से सुव्यवस्थित किया है। एक मानवीय शरीर में करीब दस करोड़ खरब कोषाणु होते हैं। ये कोषाणु करीब 250 प्रकार के होते हैं। लेकिन इन सब कोषाणुओं से बने शरीर की शुरुआत एक कोषाणु से होती है। विभिन्न कोषाणु एक साथ मिलकर हड्डियों, नसों, कलेजे, चमड़ी आदि का रूप ले लेते हैं। शरीर का हरेक अंग कोषाणुओं के जुड़ने से ही बनता है। यह सब कैसे संभव हो सकता है, यह कौन बता सकता है?

मानवजाति इस दुनिया से लुप्त न होकर दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है। यह मानवीय जनन-तन्त्र (Reproductive System) के द्वारा ही संभव है। पुरुष और स्त्री के शरीर में अलग अलग जनन-तन्त्र की प्रक्रिया विद्यमान है, परन्तु वे एक दूसरे के परस्पर पूरक हैं। पिता के शुक्राणु तथा माता के अण्डाणु के एक साथ जुड़ने पर एक नये मनुष्य-प्राणी का पहला कोषाणु अस्तित्व में आता है। उसके बाद विभाजन की प्रक्रिया के द्वारा मनुष्य बढ़ता जाता है। बुद्धिमान, संवेदनषील तथा भावुक मानव-प्राणी की शुरुआत एक कोषाणु से होती है तथा उस कोषाणु में भविष्य में क्रियाषील बननेवाले सभी गुण तथा क्षमताएं निहित हैं। मानव षरीर के एक कोषाणु की क्रियात्मकता एक अंतरिक्षयान की क्रियात्मकता से अधिक ज्यादा जटिल मानी जाती है। हरेक कोषाणु की अपनी प्रषासनिक तथा संचार प्रणाली है। ऐसे करीब दस करोड़ खरब कोषाणुओं का सूक्ष्मता तथा सुस्पष्टता से संचालन तथा नियंत्रण करने का कार्य मस्तिष्क करता है। मनुष्य के शरीर में विद्यमान संचार संसाधन प्रणाली अतुलनीय है।

मानवीय शरीर का अस्थि-पंजर हड्डियों को कबजे तथा संधियों से जोड़कर शरीर को पूर्णरूप से नमनषील बनाता है। शरीर में उपस्थित स्नेहक (Lubricant) पदार्थ शारीरिक गतियों को घर्षणहीन बनाते हैं। इन स्नेहक पदार्थों का उपयुक्त मात्रा में उत्पादन समय-समय पर शरीर स्वयं करता रहता है। शरीर में एक ऐसी उत्पादन प्रक्रिया जारी है जो हमारे भोजन से जीवित ऊतकों (living tissue) को बनाता है। जब बीमारी या दुर्घटना के कारण शरीर के अंगों को हानि पहुँचायी जाती है, तो शरीर ऐसे अंगों की मरम्मत स्वयं करता है। जब घावों से खून बहने लगता है तो शरीर थक्का बनाकर उसे रोकने की चेष्ठा करता है। शरीर भोजन से आवष्यक शक्ति उत्पन्न करता है ताकि हम अपना काम कर सकें और चल फिर सकें। इस शक्ति को ज़रूरत के अनुसार विभिन्न अंगों तक समय-समय पर पहुँचाने का कार्य भी नियमित रीति से चलता रहता है।

माँस-पेशी एक इंजन है जिसके द्वारा शरीर अपनी गतिविधियों के लिए ऊर्जा उत्पन्न करता है। शरीर में करीब 600 माँसपेषियाँ है। कुछ माँसपेषियाँ ऐच्छिक हैं और कुछ अनैच्छिक। ऐच्छिक माँसपेशियों को चलाने के लिए हमें स्वेच्छा से आग्रह करना पडता है, परन्तु अनैच्छिक माँसपेषियाँ स्वयं चलती रहती हैं। हृदय तथा आंत्र की माँसपेषियाँ अनैच्छिक हैं, वे चलती रहती हैं। परन्तु भोजन करने के लिए, चलने के लिए, कुछ उठाने के लिए हमें स्वेच्छा से अपनी ऐच्छिक माँसपेशियों को चलाना पड़ता है।

हमारा शरीर पूरी तरह वातानुकूलित है। जब शरीर में गरमी बढ़ती है, तब हमारी स्वेद-ग्रन्थियों से पसीना निकलना शुरू होता है तथा इससे शरीर का तापमान पुनः नियमित स्तर पर लौटता है। शरीर की वातानुकूलन प्रणाली शरीर के तापमान को सामान्यतः 98.6 डिग्री पर बनाये रखती है।

हमारी चमड़ी शरीर का सबसे बड़ा अंग है। चमड़ी में बहुत सारे छिद्र रहते हैं जिनके द्वारा पसीना बाहर निकलता रहता है। फलस्वरूप शरीर का तापमान नियमित रीति से नियंत्रित रहता है। परन्तु ये छिद्र शरीर के अन्दर के अन्य तरल पदार्थों को बाहर जाने नहीं देते हैं। हमारी चमड़ी हमारे शरीर की सीमा की नियंत्रण-रेखा भी है। इसी कारण चमड़ी में शरीर के सुरक्षाबल तैनात है। वे शरीर को हर प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं का मुकाबला करके बीमारियों से बचाते हैं। वे चैबीस घंटे चैकस रहते हैं ताकि शरीर को हानि पहुँचाने वाला कोई दुष्मन अन्दर प्रवेश न करे।

हमारी आँखों में 7,50,000 रंगों को पहचानने की क्षमता है और हमारी स्मरणशक्ति विभिन्न प्रकार के दृष्यों को हमारे मन में अंकित करती है। हमारी आँखें शरीर की खिड़कियाँ हैं जो हमारे शरीर को बाहरी दुनिया के साथ सम्पर्क जोड़ने में सहायक सिद्ध होती हैं। आँखें न केवल देखती हैं, परन्तु सभी दृष्यों को मन में अभिलिखित भी करती है।

हमारे शरीर में दो गुरदे हैं। उनका भी महत्वपूर्ण योगदान है। वे खून से अपषिष्ट पदार्थों को निकालकर उसे साफ करते रहते हैं। हर 50 मिनिट में शरीर के पूरे रक्त को गुरदे एक बार साफ करते हैं। गुरदे शरीर के तरल तथा नमक की मात्रा को नियंत्रित करते हैं।

हमारा हृदय एक दिन में करीब एक लाख बार धड़कता है। वह एक दिन में करीब 8100 लीटर रक्त पम्प करता है। यह पम्प 70, 80, 90 साल तक यह काम नियमित रीति से करता रहता है।

इस प्रकार देखा जाये तो मनुष्य का शरीर एक जटिल मषीन ही नहीं है, बल्कि जटिल मषीनों का समावेष है। इन मषीनों की समक्रमिकता (synchronization) तथा परस्पर सहयोग इससे भी अधिक चमत्कारिक है।

कम्प्यूटर के आविष्कार के हज़ारों साल पहले से ही हमारे शरीर की कम्प्यूटर प्रणाली जानकारियों को शरीर के हरेक अंग को भेजती आ रही है तथा हरेक अंग के द्वारा प्राप्त जानकारी का सूक्ष्मता तथा बारीकी से अवलोकन करके अपने निर्णय के अनुसार कार्य करने के निर्देषों को भी हरेक अंग को नियमित रीति से देती आ रही है। मस्तिष्क के आदेषों के पालन से ही हम सुनते, मुड़ते, उठते तथा आँखें बन्द करते हैं। शरीर का तंत्रिका-तंत्र जानकारियों तथा सूचनाओं को यथास्थान पर पहुँचाने का कार्य करता है।

हमारा मस्तिष्क शरीर का विशेषज्ञ, सलाहकार, निर्देषक तथा शासक होने के कारण उसे शरीर के सबसे बडे सुरक्षा-क्षेत्र, खोपड़ी में रखा गया है।

हम में से हरेक व्यक्ति को ईश्वर ने इस प्रकार का एक रहस्यमय तथा चमत्कारिक शरीर प्रदान किया है। यह ईश्वर की एक बहुत बड़ी देन है। इस शरीर की जटिलताओं पर ध्यान देने से हम आष्चर्यचकित रह जायेंगे। इसमें जो प्रणालियाँ कार्यरत हैं, उन्हें पूर्ण रूप से समझना मनुष्य के लिए असंभव है।

यहाँ एक सवाल उठना स्वाभाविक है। हरेक सृष्टि का एक उद्देश्य होता है। अगर ईश्वर ने मनुष्य को इतना श्रेष्ठ बनाया, तो यह ज़रूरी है कि हम यह सवाल ज़रूर उठायें, “ईश्वर हम से क्या चाहते हैं? जब हम कोई मषीन बनाते हैं, तब हमारे मन में कुछ लक्ष्य रहते हैं। किसी काम को सहज़ रीति से करने के लिये हम उसकी रचना करते हैं। जब ईश्वर ने मनुष्य रूपी जटिल सृष्टि की रचना की तब उनकी कुछ योजना अवष्य थी। जब मनुष्य उस योजना के तहत अपने स्वामी की इच्छानुसार अपना जीवन बिताते हैं तब ईश्वर हमसे प्रसन्न होते हैं। इसी कारण हमारी ज़िंदगी का हर पल हमें ईश्वर की इच्छा खोजना तथा उसे पूर्ण करने हेतु निरंतर प्रयासरत रहना चाहिये। हम जो कुछ भी हैं, ईश्वर की कृपा से हैं। हमारे अस्तित्व को तो हम समझ भी नहीं पाते हैं।

जब प्रथम नारी हेवा ने अपने प्रथम पुत्र काइन को जन्म दिया तो उसने कहा, “मैंने प्रभु की कृपा से एक मनुष्य को जन्म दिया“ (उत्पत्ति 4:1)। हम जितना अपने जीवन के बारे में सोचेंगे तथा उसकी जटिलताओं पर मनन करेंगे, उतना ही ईश्वर में हमारा विश्वास बढे़गा। हमारा दृढ़ संकल्प यह होना चाहिये कि इस क्षणभंगुर दुनिया में रहते समय परम सत्य ईश्वर से जीवन की सच्चाईयाँ सीखते रहें तथा अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाते रहें।

इस अनोखे शरीर में एक आत्मा निवास करती है जिसकी सृष्टि हमारे अस्तित्व की शुरुआत में ईश्वर ने की है। आत्मा हमारे अस्तित्व को अमरता प्रदान करती है ताकि हम अमर ईश्वर को पहचानें और उसे पायें। मनुष्य अपने जीवन के लिये कई प्रकार के लक्ष्य रख सकता है। परन्तु जब तक वह ईश्वर को प्राप्त नहीं करता है तब तक वह भटकता रहता है। ईश्वर-प्राप्ति ही मनुष्य का अनंत लक्ष्य हो सकता है। ईश्वर को खोजने वाले मनुष्य और अपने को प्रकट करने वाले ईश्वर की मुलाकात प्रभु येसु ख्रीस्त में ही होती है।

प्रश्नः-
1. आप यह कैसे कह सकते हैं कि मनुष्य एक चमत्कार हैं? विवरण दीजिये।
2. मनुष्य के जीवन का लक्ष्य क्या हो सकता है? अपने शब्दों में वर्णन कीजिये।
3. ईश्वर मनुष्य से कौन-कौन सी अपेक्षाएं रखते हैं?


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Praise the Lord!