जून 19, 2024, बुधवार

वर्ष का ग्यारहवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ :राजाओं का दुसरा ग्रन्थ 2:1,6-14

1) जब प्रभु एलियाह को एक बवण्डर द्वारा स्वर्गं में आरोहित करने वाला था, तो एलियाह एलीशा के साथ गिलगाल से चला गया।

6) एलियाह ने एलीशा से कहा, ‘‘तुम यहाँ रहो, क्योंकि प्रभु मुझे यर्दन के तट पर भेज रहा है’’। उसने उत्तर दिया, ‘‘जीवन्त प्रभु और आपकी शपथ! मैं आपका साथ नहीं छोडूँगा’’। इसलिए दोनों आगे बढ़े।

7) पचास नबी उनके पीछे हो लिये और जब वे दोनों यर्दन के तट पर रुक गये, तो वे कुछ दूरी पर खड़े रहे।

8) तब एलियाह ने अपनी चादर ले ली और उसे लपेट पर पानी पर मारा। पानी विभाजित हो कर दोनों ओर हट गया और वे सूखी भूमि पर नदी के उस पार गये।

9) नदी पार करने के बाद एलियाह ने एलीशा से कहा, ‘‘मुझे बताओ कि तुम से अलग किये जाने से पहले मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ’’। एलीशा ने उत्तर दिया, ‘‘मुझे आपकी आत्मिक शाक्ति का दोहरा भाग प्राप्त हो’’।

10) एलियाह ने कहा, ‘‘तुमने जो माँगा है, वह आसान नहीं है। यदि तुम मुझे उस समय देखोगे, जब मैं आरोहित कर लिया जाता हूँ, तो तुम्हारी प्रार्थना पूरी होगी। परन्तु यदि तुम मुझे नहीं देखोगे, तो तुम्हारी प्रार्थना पूरी नहीं होगी।’’

11) वे बातें करते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक अग्निमय अश्वों-सहित एक अग्निमय रथ ने आ कर दोनों को अलग कर दिया और एलियाह एक बवण्डर द्वारा स्वर्ग में आरोहित कर लिया गया।

12) एलीशा यह देख कर चिल्ला उठा, ‘‘मेरे पिता! मेरे पिता! इस्राएल के रथ और घुड़सवार!’’ जब एलियाह उसकी आँखों से ओझल हो गया था, तो एलीशा ने अपने वस्त्र फाड़ डाले

13) और वह एलियाह की चादर को, जो उसकी शरीर से गिर गयी थी, उठा कर लौटा और यर्दन के तट पर खड़ा रहा।

14) उसने एलियाह की चादर से पानी पर चोट की, जो विभाजित नहंीं हुआ। वह बोला, ‘‘एलियाह का प्रभु-ईश्वर कहाँ है?’’ उसने फिर चादर से पानी पर चोट की और पानी विभाजित हो कर दोनों ओर हट गया और एलीशा नदी पार कर गया।

📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 6:1-6,16-18

1) ’’सावधान रहो। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने धर्मकार्यो का प्रदर्शन न करो, नहीं तो तुम अपने स्वर्गिक पिता के पुरस्कार से वंचित रह जाओगे।

2) जब तुम दान देते हो, तो इसका ढिंढोरा नहीं पिटवाओ।ढोंगी सभागृहों और गलियों में ऐसा ही किया करते हैं, जिससे लोग उनकी प्रशंसा करें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।

3) जब तुम दान देते हो, तो तुम्हारा बायाँ हाथ यह न जानने पाये कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है।

4) तुम्हारा दान गुप्त रहे और तुम्हारा पिता, जो सब कुछ देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।

5) ’’ढोगियों की तरह प्रार्थना नहीं करो। वे सभागृहों में और चैकों पर खड़ा हो कर प्रार्थना करना पंसद करते हैं, जिससे लोग उन्हें देखें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।

6) जब तुम प्रार्थना करते हो, तो अपने कमरें में जा कर द्वार बंद कर लो और एकान्त में अपने पिता से प्रार्थना करो। तुम्हारा पिता, जो एकांत को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।

16 ढोंगियों की तरह मुँह उदास बना कर उपवास नहीं करो। वे अपना मुँह मलिन बना लेते हैं, जिससे लोग यह समझें कि वे उपवास कर रहें हैं। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।

17) जब तुम उपवास करते हो, तो अपने सिर में तेल लगाओ और अपना मुँह धो लो,

18) जिससे लोगों को नहीं, केवल तुम्हारे पिता को, जो अदृश्य है, यह पता चले कि तुम उपवास कर रहे हो। तुम्हारा पिता, जो अदृश्य को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।

📚 मनन-चिंतन

हम विज्ञापन की दुनिया में जी रहे हैं। हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमारे अच्छे कामों को जानें। दूसरी ओर, हम अपनी गलतियों को छिपाने की कोशिश करते हैं। हम अच्छे दिखना चाहते हैं। येसु चाहते हैं कि हम वास्तव में अच्छे बनें, बिना दुनियावी पहचान की तलाश के भलाई करते रहें। येसु नहीं चाहते कि हम उपवास, प्रार्थना या भिक्षादान का प्रदर्शन करें। वह चाहते हैं कि ये महान काम गुप्त रूप से किए जाएं। जब ये काम सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन के लिए किए जाते हैं, तो इन कार्यों के लिए मानव जाति द्वारा दी गई पहचान हमारा पुरस्कार होगा। दूसरी ओर, अगर हम ये काम गुप्त रूप से करते हैं, जिसे केवल हम और हमारे ईश्वर जानते हैं, तो प्रभु जो अदृश्य को भी देखता है, वह हमें इनाम देगा। दूसरे शब्दों में, येसु नहीं चाहते कि हम दूसरे लोगों से किसी भी पहचान या प्रशंसा की अपेक्षा करें।

- फादर फ्रांसिस स्करिया (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

We are living in a world of advertisement. We want others to know the good things we have done. On the other hand, we try to hide our own wrong doings. We want to appear to be good. Jesus wants us to be really good persons, going about doing good, without seeking worldly recognition. Jesus does not want us to make a show of fasting, prayer or giving of alms. He wants us to carry out these noble acts in secret. When these acts are performed in public to make a show of them, the recognition which human beings give to us for those actions will be our reward. On the other hand, if we perform these acts in secret, known only to us and to our God, then God who sees in secret will reward us. In other words, Jesus does not want us to expect any recognition or praise from other people.

-Fr. Francis Scaria (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

दान, प्रार्थना और उपवास ये तीन कार्य अधिकतर हम चालीसा के काल में करते हैं परंतु प्रभु येसु आज के दिन इस पाठ को देते हुए हमें इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं। परंतु हमें ये तीनों कार्य केवल और केवल ईश्वर को दिखाने या ईश्वर के लिए करनी चाहिए। अक्सर लोग इस बिंदू से हटकर धर्मकार्य को दिखावे के लिए करने लग जाते है। परंतु हमें दान, प्रार्थना और उपवास को उसके मूल मतलब अर्थात्-ईश्वर के लिए-को समझते हुए करना चाहिए।

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

Prayer, fasting and almsgiving are the three things we follow mostly during the time of lent but Lord Jesus invites us to make it as a part and parcel of our lives while giving this teaching on this day. But we should do these three things only and only for God. Often people move away from this point and start doing religious work to show off. But we should do prayer, fasting and almsgiving by understanding its original meaning i.e. for God.

-Fr. Dennis Tigga

📚 मनन-चिंतन - 3

नबी एलियाह ने अपने नबिय जीवन में महान कार्य सम्पन्न किये तथा राजाओं, शासकों तथा दुष्टों के विरूद्ध संघर्ष किया। लेकिन जब उनका इस दुनिया में समय समाप्त होने को हुआ तब वे मरने और दफन नहीं किये जा रहे थे। ईश्वर उन्हें जीवित ही स्वर्ग में उठाने वाले थे। यह बात एलियाह, एलीशा तथा अन्य नबियों को भी मालूम थी। किन्तु केवल एलीशा ही एलियाह का उस स्थान तक पीछा करता रहा जहॉ से वह ऊपर उठाया जाने वाला था। एलियाह ने तीन बार उसे पीछे रह जाने के लिये कहा लेकिन वह उसका पीछा निरंतर करता रहा। एलीशा दृढ़ निश्चियी तथा केन्द्रित था। उसका लक्ष्य एलियाह की आध्यात्मिक शक्ति को दुगुनी प्राप्त करने का था। हालांकि एलिशा ने एलियाह से यह निवेदन किया था किन्तु केवल ईश्वर ही ऐसा कर सकते हैं। वे ही नबियों को बुलाते, उन्हें अभिषिक्त कर उनके कार्यों के लिये वरदान प्रदान करते हैं। ईश्वर ने एलीशा को उसके निवेदन अनुसार एलियाह से दोगुनी ताकत प्रदान की।

क्या हम ईश्वर की शक्ति और सामर्थ्य को देखना चाहते हैं? यदि हम ऐसा चाहते हैं तो हमें दृढ़ तथा ध्यानकेंद्रित बने रहना चाहिये। एलीशा के लिये पीछे किसी शहर में ठहर जाना आसान होता किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। यदि वह ऐसा करता तो फिर वह अपने लक्ष्य, अथार्त दोगुनी आध्यात्मिक शक्ति कभी प्राप्त नहीं कर पाता। एलीशा ने हर स्थिति में अपने लक्ष्य को साधकर उसका अनुकरण किया। जिन नबियों के समूह ने उसे हत्तोसाहित किया था उन्हीं ने उसकी सफलता के लिये उसे बाद में बधाई भी दी।

-फादर रोनाल्ड वाँन, भोपाल


📚 REFLECTION

Prophet Elijah had accomplished a great mission and fought a great fight against the kings and others. However, when his time on earth had come to an end, he was not going to die and be buried. God was taking him up into heaven. This revelation was made known to Elijah, Elisha, and the other prophets. But only Elisha followed him to the place where he will be taken up. Elijah told him three times to stay behind and stop following, yet he continued. Each time he was told to wait, he kept moving on. Elisha was determined and focused. His target was a double portion of Elijah’s anointing. Though Elisha made the requests to Elijah, but only God could raise prophets and anoint them with power needed for a fruitful ministry. God gave Elisha what he requested for: the double portion.

Do we wish or long to see God move in great power? If so, then get focused and stay focused. It would have been easier for Elisha to have stayed in one of the towns they passed through, but had he stopped along the way, he would never have received the blessings he desired and desperately needed. He had every reason to be discouraged and distracted, but he kept going. Elisha maintained an unbroken focus. And the same company of prophets who had mocked him, gathered to celebrate him on his way back.

-Rev. Fr. Ronald Vaughan, Bhopal