जून 21, 2024, शुक्रवार

वर्ष का ग्यारहवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : राजाओं का दूसरा ग्रन्थ 11:1-4,9-18,20

1) जब अहज़्या की माता अतल्या ने देखा कि उसका पुत्र मर गया है, तो वह समस्त राजकुल का विनाश करने लगी।

2) परन्तु राजा यहोराम की पुत्री और अहज़्या की बहन यहोषेबा ने अहज़्या के पुत्र योआश को चुपके से उन राजकुमारों से अलग कर दिया, जिनकी हत्या हो रही थी ओर उसे उसकी धाय के साथ शयनकक्ष में रखा। इस प्रकार वह अतल्या से छिपा रहा और बच गया।

3) वह छः वर्ष तक गुप्त रूप से प्रभु के मन्दिर में उसके साथ रहा। उस समय अतल्या समस्त देश का शासन करती थी।

4) सातवें वर्ष यहोयादा ने कारियों के शतपतियों और अंगरक्षकों को बुला भेजा। उसने उन्हें प्रभु के मन्दिर के अन्दर ले जा कर उनके साथ समझौता कर लिया और शपथ दिला कर उन्हें राजकुमार को दिखाया।

9) शतपतियों ने याजक यहोयादा के आदेश का पूरा-पूरा पालन किया। प्रत्येक व्यक्ति अपने आदमियों को-जो विश्राम-दिवस पर पहरे से छूट गये और जो विश्राम-दिवस पर पहरे पर आये थे, दोनों को ले कर याजक यहोयादा के पास आया।

10) याजक ने शतपतियों को प्रभु के मन्दिर में सुरक्षित राजा दाऊद के भाले और ढ़ालें दे दीं।

11) अंगरक्षक मन्दिर के दक्षिण कोने से उत्तरी कोने तक, वेदी और मन्दिर के सामने, हाथ में अस्त्र लिये खड़े हो गये।

12) तब यहोयादा ने राजकुमार को बाहर ला कर उसे मुकुट और राज्यचिन्ह पहनाये और राजा के रूप में उसका अभिशेक किया। सब तालियाँ बजा कर चिल्ला उठे- राजा की जय !

13) अतल्या लोगों का जयकार सुन कर प्रभु में मन्दिर में लोगों के पास आयी।

14) उसने देखा कि राजा, प्रथा के अनुसार, सेनापतियों ओर तुरही बजाने वालों के साथ मंच पर खड़ा है, देश भर के लोग आनन्द मना रहे हैं और तुरहियाँ बज रही हैं। इस पर अतल्या अपने वस्त्र फाड़ कर चिल्ला उठी,‘‘यह राजद्रोह है ! राजद्रोह है !’’

15) याजक यहोयादा ने सेना के शतपतियों से कहा, ‘‘उसे बाहर ले जाओ। जो उसके साथ जाये, उसे तलवार के घाट उतार दो।’’ क्योंकि याजक ने कहा था कि प्रभु के मन्दिर में उसका वध नहीं किया जा सकता है,

16) वे उसे पकड़ कर अश्व-फाटक से हो कर राजमहल ले गये। वहाँ उसका वध कर दिया गया।

17) तब यहोयादा ने प्रभु, राजा और जनता के बीच एक ऐसा विधान निर्धारित किया, जिससे जनता फिर प्रभु की प्रजा बन जाये। इसके बाद देश भर के लोगों ने बाल के मन्दिर जा कर उसे नष्ट कर दिया।

18) उन्होंने वेदियों और मूर्तिंयों के टुकडे़-टुकडे़ कर दिये और बाल के पुरोहित मत्तान को वेदियों के सामने मार डाला। याजक ने प्रभु के मन्दिर पर पहरा बिठा दिया।

20) देश भर के लोग आनन्दित थे और नगर फिर शान्त हो गया। अतल्या को राजमहल में तलवार के घाट उतारा गया था।

📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 6:19-23

19) पृथ्वी पर अपने लिए पूँजी जमा नहीं करो, जहाँ मोरचा लगता है, कीडे़ खाते हैं और चोर सेंध लगा कर चुराते हैं।

20) स्वर्ग में अपने लिए पूँजी जमा करो, जहाँ न तो मोरचा लगता है, न कीड़े खाते हैं और न चोर सेंध लगा कर चुराते हैं।

21) क्योंकि जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वही तुम्हारा हृद्य भी होगा।

22) आँख शरीर का दीपक है। यदि तुम्हारी आँख अच्छी है, तो तुम्हारा सारा शरीर प्रकाशमान होगा;

23) किन्तु यदि तुम्हारी आँख बीमार है, तो तुम्हारा सारा शरीर अंधकारमय होगा। इसलिए जो ज्योति तुम में है, यदि वही अंधकार है, तो यह कितना घोर अंधकार होगा!

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में, येसु दुनिया में बहुत अधिक धन संचय करने और पृथ्वी पर भौतिक संपत्तियों पर निर्भर रहने की मूर्खता के बारे में बात करते हैं। कलोसियों 3:2 में संत पौलुस कहते हैं, “आप पृथ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीजों की चिन्ता किया करें।” संत याकूब कहते हैं, “आप नहीं जानते कि कल आपका क्या हाल होगा। आपका जीवन एक कुहरा मात्र है- वह एक क्षण दिखाई दे कर लुप्त हो जाता है” (याकूब 4:14)। येसु चाहते हैं कि हम स्वर्ग में खजाने जमा करें। हमारे पृथ्वी पर के खजाने सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन स्वर्ग में हमारे खजाने अच्छी तरह से संरक्षित हैं। येसु हमें बताते हैं कि “झूठे धन से अपने लिए मित्र बना लो, जिससे उसके समाप्त हो जाने पर वे परलोक में तुम्हारा स्वागत करें” (लूकस 16:9)। हम केवल इस पृथ्वी पर यात्री हैं और यहाँ हम तंबुओं में रहते हैं। हमारा असली घर स्वर्ग में है जहाँ हम में से प्रत्येक के लिए एक स्थान निर्धारित है।

- फादर फ्रांसिस स्करिया (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

In today’s Gospel, Jesus speaks about the folly of accumulating too much of wealth in the world and relying on material possessions on the earth. In Col 3:2 St. Paul says, “Set your minds on things that are above, not on things that are on earth”. St. James says, “For you are a mist that appears for a little while and then vanishes” (Jam 4:14). Jesus wants us to store up treasures in heaven. Our treasures on the earth are not safe, but our treasures in heaven are well-protected. Jesus tells us to “make friends for yourselves by means of dishonest wealth so that when it is gone, they may welcome you into the eternal homes” (Lk 16:9). We are only travelers on this earth and here we live in tents. Our real home is in heaven where each one of us has a place.

-Fr. Francis Scaria (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

आज का वचन हम सबके सामने हमारे जीवन के अर्थ या जीवन का उद्देश्य को स्पष्ट करता है। अधिकतर हम इस संसार में अपने और अपने परिवार के जीवन को बेहतर बनाने के लिए समान, धन, सम्पत्ति इत्यादि इक्टठा करते रहते हैं और इसी के लिए अधिक मेहनत करते है। इस संसार में जीवन यापन करने के लिए ये चीजें तो जरूरी है परंतु ये सब एक न एक दिन नष्ट हो जायेगा और ये सब चीजों हमारे मरने के बाद अपने साथ नहीं ले जा सकते। आज का सुसमाचार हमें स्पष्ट रूप से बताता है कि हमें किस के लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता हैं। हमें उस धन या पूॅंजी के लिए प्रयत्न करना चाहिए जो कभी नष्ट नहीं होता जो हमारे मरने के बाद हमारे काम आयेगा। हम इस सत्य को पहचाने।

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

Today's verse makes clear to all of us the meaning of our life or the purpose of life. Mostly we keep accumulating goods, money, property etc. to improve the life of ourselves and our family in this world and work hard for this. These things are necessary to live in this world, but all these things will be destroyed one day and all these things cannot be taken with us after our death. Today's gospel tells us clearly what we need to strive for. We should strive for that money or capital which never gets wasted which will be useful to us after we die. Let us recognize this truth.

-Fr. Dennis Tigga