जून 22, 2024, शनिवार

वर्ष का ग्यारहवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ :दूसरा इतिहास ग्रन्थ 24:17-25

17) यूदा के नेताओं ने यहोयादा की मृत्यु के बाद राजा के पास आ कर उसे दण्डवत् किया। राजा ने उनकी बात मान ली।

18) लोगों ने प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर का मन्दिर त्याग दिया और वे अशेरा-देवियो तथा देवमूर्तियों की पूजा करने लगे। इस अपराध के कारण ईश्वर का क्रोध यूदा तथा येरुसालेम पर भड़क उठा।

19) उसने नबियों को भेजा, जिससे वे उन्हें प्रभु के पास वापस ले आयें, किन्तु लोगों ने नबियों का सन्देश सुन कर उस पर ध्यान नहीं दिया।

20) ईश्वर के आत्मा ने याजक यहोयादा क पुत्र ज़कर्या को प्रेरित किया और उसने जनता के सामने खड़ा हो कर कहा, ‘‘ईश्वर यह कहता है- तुम लोग क्यों प्रभु की आज्ञाओं का उल्लंघन करते हो? इस में तुम्हारा कल्याण नहीं है। तुम लोगों ने प्रभु को त्याग दिया, इसलिए वह भी तुम्हें त्याग देगा।"

21) इसके बाद सब लोगों ने मिल कर उसका विरोध किया और राजा के आदेश से उसे प्रभु के मन्दिर के प्रांगण में पत्थरों से मार डाला।

22) राजा योआश ने ज़कर्या के पिता यहोयादा के सब उपकारों को भुला कर उसके पुत्र ज़कर्या को मरवा डाला। ज़कर्या ने मरते समय यह कहा, ‘‘प्रभु देख रहा है और इसका बदला चुकायेगा’’।

23) वर्ष के अन्त में अमोरियों की सेना योआश पर आक्रमण करने निकली। उसने यूदा और येरुसालेम में प्रवेश कर जनता के सब नेताओं का वध किया और लूट का सारा माल दमिष्क के राजा के पास भेज दिया।

24) अरामी सैनिकों की संख्या अधिक नहीं थी, फिर भी प्रभु ने एक बहुत बड़ी सेना को उनके हवाले कर दिया; क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वजों के प्रभु-ईश्वर को त्याग दिया था। योआश को भी उचित दंड भोगना पड़ा। जब अरामियों की सेना योआश को घोर संकट में छोड़ कर चली गयी,

25) तो उसके दरबारियों ने उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रच कर उसे उसके पलंग पर मारा; क्योंकि उसने याजक यहोयादा के पुत्र का रक्त बहाया था। वह मर गया और दाऊदनगर में दफ़नाया गया, किन्तु वह राजाओं के मक़बरे में नहीं रखा गया।

📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 6:24-34

24) ’’कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन-दोनों की सेवा नहीं कर सकते।

25) मैं तुम लोगों से कहता हूँ, चिन्ता मत करो- न अपने जीवन-निर्वाह की, कि हम क्या खायें और न अपने शरीर की, कि हम क्या पहनें। क्या जीवन भोजन से बढ कर नहीं ? और क्या शरीर कपडे से बढ़ कर नहीं?

26) आकाश के पक्षियों को देखो। वे न तो बोते हैं, न लुनते हैं और न बखारों में जमा करते हैं। फिर भी तुम्हारा स्वर्गिक पिता उन्हें खिलाता है, क्या तुम उन से बढ़ कर नहीं हो?

27) चिंता करने से तुम में से कौन अपनी आयु घड़ी भर भी बढा सकता है?

28) और कपडों की चिन्ता क्यों करते हो? खेत के फूलों को देखो। वे कैसे बढ़ते हैं! वे न तो श्रम करते हैं और न कातते हैं।

29) फिर भी मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि सुलेमान अपने पूरे ठाट-बाट में उन में से एक की भी बराबरी नहीं कर सकता था।

30) रे अल्पविश्वासियों! खेत की घास आज भर है और कल चूल्हे में झोंक दी जायेगी। यदि उसे भी ईश्वर इस प्रकार सजाता है, तो वह तुम्हें क्यों नहीं पहनायेगा?

31) इसलिए यह कहते हुए चिंता मत करो- हम क्या खायें, क्या पियें, क्या पहनें।

32) इन सब चीजों की खोज में गैर-यहूदी लगे रहते हैं। तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सभी चीजों की ज़रूरत है।

33) तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजें, तुम्हें यों ही मिल जायेंगी।

34) कल की चिन्ता मत करो। कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा। आज की मुसीबत आज के लिए बहुत है।

📚 मनन-चिंतन

बहुत से लोग अतीत के बारे में बहुत सारी बुरी भावनाएँ और भविष्य के बारे में अनेक चिंताएँ लेकर चलते हैं। कहा जाता है कि चिंता कल के दुःख को खाली नहीं करती, यह आज की ताकत को खाली कर देती है। येसु चाहते हैं कि हम चिंताओं से मुक्त जीवन जिएं। येसु चाहते हैं कि हम खेत के फूलो और आकाश के पक्षियों को देखें और उनसे सीखें। वह चाहते हैं कि हम ईश्वर की व्यवस्था तथा प्रबन्ध पर भरोसा करें जो हमारी भलाई के लिए सभी प्रावधान करता है। वह हमें बताते हैं, “सबसे पहले उसके राज्य और उसकी धार्मिकता को खोजो, और ये सभी चीजें तुम्हें यूँ ही मिल जायेंगी” (मत्ती 6:33)। हमारे स्वर्गिक पिता बहुत विचारशील हैं। उन्होंने कौवों को नबी एलिय्याह के लिए रोटी ले जाने के लिए नियुक्त किया। उन्होंने सेराफात की विधवा को नबी को खाना खिलाने का आदेश दिया और उसे इसके लिए सुसज्जित किया। उन्होंने नबी हबक्कूक से बाबुल में सिंहों के खड्ड में पडे दानिएल के लिए भोजन ले जाने को कहा। वह हमें कभी नहीं त्यागेंगे।

- फादर फ्रांसिस स्करिया (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Many people carry a lot of ill feelings about the past and numerous worries about the future. It is said that worry does not empty tomorrow of its sorrow, it empties today of its strength. Jesus wants us to live a life, free of anxieties and worries. Jesus wants us to look at the lilies of the field and birds of the air and learn from them. He wants us to trust in the providence of God who makes all provisions for our well-being. He tells us, to “seek first his kingdom and his righteousness, and all these things shall be yours as well” (Mt 6:33). Our heavenly Father is very thoughtful. He arranged ravens to carry bread for the Prophet Elijah. He ordered the widow of Zarephath to feed the prophet and equipped her for the same. He asked the Prophet Habakkuk to send food for the Prophet Daniel in lion’s den in Babylon. He will not fail us.

-Fr. Francis Scaria (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

आज का सुसमाचार हमें उस नवजात बच्चें के समान बनने के लिए आमंत्रित करता है जिसे किसी बात की चिंता नहीं रहती क्योंकि उसे मालूम है कि उसकी देखरेख, खाने-पिलाने उसकी सेवा करने के लिए उसके माता पिता हैं। उसको खाना बनाना या कुछ काम करने की चिंता नहीं क्योंकि सब काम उसके माता पिता करके दे देते हैं। इस प्रकार का विश्वास प्रभु येसु हम सभी से आषा करते है और जो कोई इस प्रकार से प्रभु पर भरोसा रखता है तो उसे किसी बात की चिंता नहीं रहेगी। इस संसार में आधे से ज्यादा लोग अपना जीवन चिंता में गुजारते है; बिते कल की चिंता, आने वाले कल की चिंता, कार्य की चिंता इत्यादि चिंताओं से ग्रस्त है जो मनुष्य को इस संसार में खुल कर जीने नहीं देती। यदि मनुष्य को चिताओं से बचना है तो इसका एक ही उपाय है उसे सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगें रहने की आवश्यकता है और बाकि सब चीजें उसे यों ही मिल जायेंगी।

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

Today's gospel invites us to be like a newborn baby who doesn't care about anything because he knows he has parents to care for him, feed him and to look after him. He is not worried about cooking or doing any work because all the work is given by his parents. This is the kind of faith that Lord Jesus expects from all of us and whoever puts his trust in the Lord in this way, he will not worry about anything. More than half of the people in this world spend their lives worrying; People are obsessed with Worrying about the past, worrying about tomorrow, worrying about work and so on, which do not allow man to live freely in this world. If a man is to be saved from worries, then there is only one way, he needs to be engaged first of all in the seeking for the kingdom of God and his righteousness and everything else will be given to him.

-Fr. Dennis Tigga