12) यदि हमारी शिक्षा यह है कि मसीह मृतकों में से जी उठे, तो आप लोगों में कुछ यह कैसे कहते हैं कि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होता?
13) यदि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होता, तो मसीह भी नहीं जी उठे।
14) यदि मसीह नहीं जी उठे, तो हमारा धर्मप्रचार व्यर्थ है और आप लोगों का विश्वास भी व्यर्थ है।
15) तब हम ने ईश्वर के विषय में मिथ्या साक्ष्य दिया; क्योंकि हमने ईश्वर के विषय में यह साक्ष्य दिया कि उसने मसीह को पुनर्जीवित किया और यदि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होता, तो उसने ऐसा नहीं किया।
16) कारण, यदि मृतकों का पुनरुत्थान नहीं होता, तो मसीह भी नहीं जी उठे।
17) यदि मसीह नहीं जी उठे, तो आप लोगों का विश्वास व्यर्थ है और आप अब तक अपने पापों में फंसे हैं।
18) इतना ही नहीं, जो लोग मसीह में विश्वास करते हुए मरे हैं, उनका भी विनाश हुआ है।
19) यदि मसीह पर हमारा भरोसा इस जीवन तक ही सीमित है, तो हम सब मनुष्यों में सब से अधिक दयनीय हैं।
20) किन्तु मसीह सचमुच मृतकों में से जी उठे। जो लोग मृत्यु में सो गये हैं, उन में वह सब से पहले जी उठे।
1) इसके बाद ईसा नगर-नगर और गाँव-गाँव घूम कर उपदेश देते और ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते रहे। बारह प्रेरित उनके साथ थे
2) और कुछ नारियाँ भी, जो दुष्ट आत्माओं और रोगों से मुक्त की गयी थीं-मरियम, जिसका उपनाम मगदलेना था और जिस से सात अपदूत निकले थे,
3) हेरोद के कारिन्दा खूसा की पत्नी योहन्ना; सुसन्ना और अनेक अन्य नारियाँ भी, जो अपनी सम्पत्ति से ईसा और उनके शिष्यों की सेवा-परिचर्या करती थीं।
आज के सुसमाचार का अंश शायद बड़ा ही अनोखा है। सन्त लूकस के सुसमाचार में ऐसे बहुत से अनोखे अंश हैं जो शायद दूसरे सुसमाचारों में नहीं मिलते, और वे अंश सन्त लूकस के सुसमाचार की विषय वस्तु को और भी स्पष्ट कर देते हैं। सन्त लूकस के सुसमाचार में दरिद्रों, कमजोर वर्ग के शोषितों, महिलाओं, समाज से बहिष्कृत लोगों के प्रति प्रभु के असीम प्रेम को दर्शाया है। प्रभु के इस प्रयास में वे समाज और धर्म में व्याप्त झूठी परंपराओं को तोड़ते हुए नजर आते हैं। प्रभु येसु के समय यहूदी समाज में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में महिलाओं के प्रति भेद-भाव था। उन्हें पुरुषों से कमतर समझा जाता था, और कभी भी पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता था। प्रभु येसु महिलाओं को भी अपने शिष्यों में शामिल कर रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ते हैं और ईश्वर की प्रत्येक संतान के समान होने का संदेश देते हैं।
✍फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today's Gospel passage is indeed quite unique and special. The Gospel of Saint Luke contains many such distinctive passages that are not found in the other Gospels, and these passages further clarify the content and theme of Saint Luke's Gospel. The Gospel of Saint Luke portrays the Lord's boundless love for the poor, the oppressed of the lower classes, women, and those marginalized by society. In His efforts, the Lord appears to challenge and break the false traditions prevalent in society and religion. During the time of Jesus, there was discrimination against women not only in Jewish society but throughout the world. Women were considered inferior to men and were never regarded as equals. By including women among His disciples, Jesus breaks with conservative traditions and conveys the message that all God's children are equal.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
अपनी सेवकाई की शुरुआत से, येसु अपने लिए शिष्यों का एक समुदाय इकट्ठा करते रहे हैं। आज का सुसमाचार स्पष्ट करता है कि येसु ने इस समुदाय में न केवल पुरुषों, बल्कि महिलाओं को भी शामिल किया। इन गलीली महिलाओं का जिक्र संत लूकस के द्वारा फिर से किया जाएगा जहाँ वे येसु की मृत्यु की गवाह बनते हुए गोलगोथा से कुछ दूरी पर खड़ी होंगी है, फिर वे येसु को दफनाते समय मौजूद रहती हैं और पास्का की सुबह वे कब्र पर प्रभु की लाश का विलेपन करने जाती हैं।
आज के सुसमाचार में यह बतलाया गया है कि इन महिलाओं ने येसु से चंगाई का अनुभव किया था। ईश्वर की कृपा का अपने जीवन में अनुभव कर उन्होंने अपना जीवन उस ईश्वर की सेवा में समर्पित कर दिया। येसु से जो कुछ भी उन्हें मिला था, उसके लिए वे अब उनकी सेवा और शिष्यों की सेवा में समर्पित हो गईं, उन्होंने येसु की सेवकाई में सहयोग हेतु, उनकी तरफ से वे जो कुछ भी दे सकती थी दिया और कर सकती थी किया।
ये नारियां हमारे लिए येसु के शिष्य बनने के लिए एक आदर्श पेश करतीं हैं कि हमें येसु के अनुग्रह को प्राप्त करने के लिए खुद को खोलना तथा उनकी आशीष व कृपा से भरकर उनके लिए उदारता पूर्वक देने को तैयार होना चाहिए। हमने हमारे जीवन में बहुत अनुग्रह पाया है, तो आइये हमें जो कुछ भी मिला है, उसके बदले हम भी देना सीखें । जो कुछ हमें मिला है, उसमे से देने, वालों को येसु आश्वासन देते हैं कि उन्हें और भी अधिक मिलेगा (दो और तुम्हें दिया जायेगा )।
✍ - फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)
From the beginning of his ministry, Jesus has been gathering a community of disciples for himself. The gospel of today makes it clear that Jesus included not only men but also women in this community. These Galilean women will be mentioned again by Saint Luke where they will stand at some distance from Golgotha, witnessing the death of Jesus, then present at the time of burial of Jesus and on the morning of Easter Sunday, they will go to embalm the Body of the Lord.
Today's gospel states that these women had experienced healing from Jesus. After experiencing the grace of God in their lives, they dedicated their life to the service of God. For whatever they had received from Jesus, they were now devoted to his service and service to support Jesus’ ministry. They gave, whatever they could give and they did whatever they could do.
These women offer a model for us to become disciples of Jesus that we should be willing to open ourselves to receive the grace of Jesus and be filled with his blessings.
We have found a lot of graces and blessings in our life, so let us also learn to give what we have got. Jesus assures, for those who give in return for what they have received, they will get more (Give and, more will be given to you).
✍ -Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)