1) राजा का हृदय प्रभु के हाथ में जल धारा की तरह है: वह जिधर चाहता, उसे मोड़ देता है।
2) मनुष्य जो कुछ करता है, उसे ठीक समझता है; किन्तु प्रभु हृदय की थाह लेता है।
3) बलिदान की अपेक्षा सदाचरण और न्याय प्रभु की दृष्टि में कहीं अधिक महत्व रखते हैं।
4) तिरस्कारपूर्ण आँखें और धमण्ड से भरा हुआ हृदय: ये पापी मनुष्य के लक्षण हैं।
5) जो परिश्रम करता है, उसकी योजनाएँ सफल हो जाती हैं। जो उतावली करता है, वह दरिद्र हो जाता है।
6) झूठ से कमाया हुआ धन असार है और वह मृत्यु के पाष में बाँध देता है।
10) दुष्ट बुराई की बातें सोचता रहता है, वह अपने पड़ोसी पर भी दया नहीं करता।
11) अविश्वासी को दण्डित देख कर, अज्ञानी सावधान हो जाता है। जब बुद्धिमान् को शिक्षा दी जाती है, तो उसका ज्ञान बढ़ता है।
12) न्यायप्रिय दुष्ट के घर पर दृष्टि रखता और कुकर्मियों का विनाश करता है।
13) जो दरिद्र का निवेदन ठुकराता है, उसकी दुहाई पर कोई कान नहीं देगा।
19) ईसा की माता और भाई उन से मिलने आये, किन्तु भीड़ के कारण उनके पास नहीं पहुँच सके।
20) लोगों ने उन से कहा, "आपकी माता और आपके भाई बाहर हैं। वे आप से मिलना चाहते हैं।"
21) उन्होंने उत्तर दिया, "मेरी माता और मेरे भाई वहीं हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं"।
हम इस दुनिया में जन्म लेने से पहले ही रिश्तों में बंध जाते हैं। कोई हमारा पिता होता है, कोई माता, कोई भाई-बहन, चाचा-चाची इत्यादि। कुछ खून के रिश्ते होते हैं तो कुछ दूर के रिश्ते होते हैं। लेकिन ये सारे रिश्ते तब तक ही हैं जब तक हम इस दुनिया में जीते हैं। हमारी मृत्यु के बाद ये सारे रिश्ते यहीं की यहीं धरे रह जाते हैं। लेकिन क्या कोई ऐसा रिश्ता भी है जो जन्म से भी पहले से शुरू हो जाता है और मृत्यु के बाद भी समाप्त नहीं होता? जी हाँ वह रिश्ता है - ईश्वर के साथ हमारा रिश्ता। यह रिश्ता सारे रिश्तों से ऊपर है। माँ के गर्भ में हमें गढ़ने से पहले ही ईश्वर प्यार करता है, और उसका प्रेम अनंत है। इसलिए प्रभु का वचन सुनकर और उसे अपने जीवन में पालन कर ईश्वर के साथ हमारा सम्बन्ध प्रभु येसु के माता, भाई-बहन आदि से भी बढ़कर है। क्या मैं प्रभु येसु का भाई-बहन या माता या मित्र बन सकता हूँ?
✍फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Before we are born into this world, we are already bound in the web of relationships. Some have a father, some a mother, some have siblings, uncles, and aunts, etc. Some relationships are by blood, while others are distant. But all these relationships exist only as long as we live in this world. After our death, no relationship continues. But is there a relationship that begins even before birth and does not end even after death? Yes, that relationship is our relationship with God. This relationship transcends all others. Even before we are shaped in our mother's womb, God loves us, and His love is infinite. Therefore, by hearing the Lord's word and following it in our lives, we can be more closer to Jesus even more than his mother, brothers and sisters. Am I willing to become a brother, sister, or friend of Lord Jesus?
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
यह ईश्वर की इच्छा नहीं थी कि हम अकेले रहें, बल्कि दूसरों के साथ रहें। वह हमें परिवार, दोस्तों, पड़ोसियों और सहकर्मियों के साथ संबंध विकसित करने के कई अवसर देता है। ऐसा क्यों लगता है कि येसु अपनी ही माँ और सम्बन्धियों को नज़रअंदाज़ करने लगे जब वे उससे मिलने आए? यीशु ने अपने शिष्यों को परमेश्वर के राज्य के बारे में आध्यात्मिक पाठ या सच्चाई सिखाने का अवसर कभी नहीं गंवाया। इस अवसर पर जब बहुत से लोग येसु को सुनने के लिए एकत्रित हुए तो उन्होंने आध्यात्मिक संबंधों की एक और सर्वोत्तम वास्तविकता की ओर इशारा किया, अर्थात् परमेश्वर का परिवार।
येसु रिश्तों के क्रम को बदलते हैं और दिखाते हैं कि सच्ची रिश्तेदारी सिर्फ मांस और खून का मामला नहीं है। परमेश्वर के पुत्र और पुत्रियों के रूप में हमारी छवि हमारे सभी संबंधों को बदल देती है और परमेश्वर और उसके राज्य के प्रति निष्ठा के एक नए आदेश की मांग करती है। एक ख्रीस्तीय विश्वासी के लिए सच्चा सम्बन्ध हमें परमेश्वर और पड़ोसी के लिए हमारे प्रेम को मजबूती प्रदान करता है। हमें ईश्वरीय मित्रों और सलाहकारों के साथ की तलाश करनी चाहिए और दूसरों को ईश्वर के ज्ञान और उनके जीवन के लिए उसकी इच्छा में बढ़ने में मदद करने के तरीकों की तलाश करनी चाहिए? हम अपने सभी रिश्तों में हमेशा वही करने की कोशिश करें जो सही और अच्छा हो।
✍ - फादर रोनाल्ड वाँन
God did not intend for us to be alone, but to be with others. He gives us many opportunities for developing relationships with family, friends, neighbours, and co-workers. Why does Jesus seem to ignore his own mother and relatives when they came to see him? Jesus never lost an opportunity to teach his disciples a spiritual lesson or truth about the kingdom of God. On this occasion when many gathered to hear Jesus he pointed to another and higher reality of spiritual relationship, namely the family of God.
Jesus changes the order of relationships and shows that true kinship is not just a matter of flesh and blood. Our image as sons and daughters of God transforms all our relationships and demands a new order of loyalty to God and his kingdom. True relationship for a Christian should strengthen us in our love for God and for neighbour. We should seek the company of godly friends and advisors and look for ways to help others grow in the knowledge and wisdom of God and his will for their lives? May we always to seek to do what is right and good in all my relationships.
✍ -Fr. Ronald Vaughan
आज के सुसमाचार को, ऊपरी तौर पर पढ़ने से, हमें जो समझ में आता है, वह यह है कि येसु अपने मूल परिवार से खुद को दूर कर रहे हैं। उनकी माँ और भाई घर के बाहर थे और वे उनसे मिलना चाहते थे। हालाँकि, जब उन्होंने येसु को बुला भेजा तो वे उनके पास नहीं आते, इसके बजाय, वे अपने परिवार को फिर से परिभाषित करते हैं। उनका नया परिवार व परिवार सदस्य अब वे लोग हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते, और उसे बनाए रखते हैं।
इस घटना के पहले येसु ने बोने वाले के दृष्टांत सुनाया था, जिसमें अच्छी मिट्टी पर गिरे हुए बीज की पहचान उन लोगों के रूप में की गई थी, जो ईश्वर का वचन को सुनते, और उसे अपने दिल में उतारते तथा फल उत्पन्न करते हैं । ये ऐसे लोग हैं जो अब येसु के सच्चे परिवार का गठन करते हैं। उनकी माँ और उनके रक्त सम्बन्धी व अन्य सदस्य तभी इस नए परिवार का हिस्सा बन सकते हैं जब वे भी ईश्वर के वचन को सुनें और उस पर चलें ।
जहाँ तक हम ईश्वर के वचन को स्वीकार करते हैं और उसका पालन करते हैं, हम भी येसु के नए विस्तृत, परिवार के सदस्य बन सकते हैं। हमारे बपतिस्मा की बुलाहट यही है कि हम ईश्वर के वचनों को सुनें और इसे व्यवहार में लाएं । हमें अपने जीवन को वह अच्छी भूमि बनाना है जहाँ पर बीज गिरकर फल लाता है। यदि हम ईश्वर के वचन को सुनने के लिए प्रयास करते रहते हैं और उनपर चलते हुए ईश्वर की मर्ज़ी को पूरा करते है तो प्रभु येसु हमें अपने परिवार सदस्य कहने में प्रसन्न होंगे।
✍ - फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)
Reading from the periphery, what we understand from the gospel today is that Jesus is distancing himself from his original family. His mother and brothers were outside the house and they wanted to meet him. However, He does not go out to meet them, when they called for him. Instead, He redefines his family and family relations. His new family and family members are now those who listen to, and keep the word of God. Before this event, Jesus narrated the parable of sower, identifying the seed fallen on good soil as those who would listen to the word of God, and keep it in their hearts and produce fruit. These are the people who now constitute the true family of Jesus. His mother and His blood relations and other members can become part of this new family only when they too listen to the word of God and follow it.
When we accept and obey the Word of God, we can also become members of the new extended family of Jesus. The call of our baptism is that we listen to the Words of God and put it into practice. We have to make our life the good and fertile land where the seed falls and brings fruit. If we listen to God's word and do the will of God, then our Lord Jesus will be happy to call us His family members. Amen.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)