2) उपदेशक कहता है, "व्यर्थ ही व्यर्थ; व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है।"
3) मनुष्य को इस पृथ्वी पर के अपने सारे परिश्रम से क्या लाभ?
4) एक पीढ़ी चली जाती है, दूसरी पीढ़ी आती है और पृथ्वी सदा के लिए बनी रहती है।
5) सूर्य उगता है और सूर्य अस्त हो जाता है। वह शीघ्र ही अपने उस स्थान पर जाता है, जहाँ से वह फिर उगता है।
6) हवा दक्षिण की ओर बहती है, वह उत्तर की ओर मुड़ती है; वह घूम-घूम कर पूरा चक्कर लगाती है।
7) सब नदियाँ समुद्र में गिरती हैं; किन्तु समुद्र नहीं भरता। और नदियाँ जिधर बहती है, उधर ही बहती रहती हैं।
8) यह सब इतना नीरस है, कि कोई भी इसका पूरा-पूरा वर्णन नहीं कर पाता। आँखें देखने से कभी तृप्त नहीं होतीं और कान सुनने से कभी नहीं भरते।
9) जो हो चुका है, वह फिर होगा। जो किया जा चुका है, वह फिर किया जायेगा। पृथ्वी भर में कोई भी बात नयी नहीं होती।
10) जिसके विषय में लोग कहते हैं, "देखों, यह तो नयी बात है" वह भी हमारे समय से बहुत पहले हो चुकी है।
11) पहली पीढ़ियों के लोगों की स्मृति मिट गयी है और आने वाली पीढ़ियों की भी स्मृति परवर्ती लोगों मे नहीं बनी रहेगी।
7) राजा हेरोद उन सब बातों की चर्चा सुन कर असमंजस में पड़ गया, क्योंकि कुछ लोग कहते थे कि योहन मृतकों में से जी उठा है।
8) कुछ कहते थे कि एलियस प्रकट हुआ है और कुछ लोग कहते थे कि पुराने नबियों में से कोई जी उठा है।
9) हरोद ने कहा, "योहन का तो मैंने सिर कटवा दिया। फिर यह कौन है, जिसके विषय में ऐसी बातें सुनता हूँ?" और वह ईसा को देखने के लिए उत्सुक था।
कई बार जो लोग प्रभु येसु के बहुत करीब थे, वे भी प्रभु येसु को भली-भांति नहीं पहचान सके। यही ईश्वर की विशेषता है कि उसे हम जितना अधिक जानने की कोशिश करेंगे, उतना ही कम पड़ेगा। लोगों ने जब प्रभु येसु के कार्यों को देखा, उनके वचनों को सुना तो उनके मन में प्रभु की एक छवि बन गई, और वही उनके लिए प्रभु येसु की पहचान बन गई। किसी ने देखा कि नबी एलीयस जैसा कोई नबी नहीं हुआ, जिसने मुरदों को जिलाया, प्राकृतिक शक्तियों को अपने वश में किया, लोगों के दुख-दर्द दूर किए। यही प्रभु येसु ने किया, इसलिए उन्हें लगा कि प्रभु येसु ही नबी एलीयस हैं या कोई और महान नबी हैं। प्रभु के कार्य, उनके वचन, उनका व्यवहार ही उनकी पहचान बन गया। अगर कोई व्यक्ति अच्छे कार्य करता है तो लोग उसकी तुलना किसी अच्छे व्यक्ति से ही करते हैं। क्या हमें देखकर लोग हममें प्रभु येसु के दर्शन कर सकते हैं?
✍फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Sometimes, even those who were very close to Lord Jesus could not fully recognize Him. This is the nature of God: the more we try to know Him, the less we feel we understand him. When people saw the works of the Lord Jesus and heard His words, they formed an image of Him in their minds, which became their identification of the Lord Jesus. Some believed that since there was no prophet like Elijah, who raised the dead, commanded natural forces, and alleviated people's sufferings, Jesus could be that. Since the Lord Jesus did these things, they thought He was either Elijah or another great prophet. The Lord's works, His words, and His behavior became His identity. If a person does good deeds, people compare him to other good individuals. Can people see the Lord Jesus in us by observing our lives?
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
राजा हेरोद एक महान नबी और ईश्वर के सेवक के रूप में योहन बपतिस्ता का सम्मान करता और श्रद्धा रखता था। हालांकि, योहन ने हेरोद के रिश्ते और प्रशंसा के दबाव को महसूस नहीं किया। वह हेरोद को उसके व्यभिचारी संबंधों के लिए फटकारता है। हेरोद, ने आवेग से बाहर और अपने परिवार और दोस्तों को खुश करने की इच्छा से, यहां का सिर कटवा दिया।
उसका अंतकरण उसे सताता है जब वह सुनता है कि कुछ लोग सोचते हैं कि योहन बपतिस्ता जी उठा है। हेरोद ने येसु यीशु को ईश्वर और उसके वचन को सुनने की सच्ची इच्छा से अधिक जिज्ञासा और भय से देखने की कोशिश की।
आप किसे खुश करना चाहते हैं? ईश्वर का अनुग्रह हमें भय और पाप के अत्याचार से मुक्त करता है और हमें जो गलत है उसे अस्वीकार करने और जो अच्छा है उसे चुनने में सक्षम बनाता है। क्या हम येसु की कृपा को हममे विश्वास और साहस भरने की अनुमति देते हैं ताकि जो सच है और जो सही है उसे हम कर सके?
✍ - फादर रोनाल्ड वाँन
King Herod had respected and feared John the Baptist as a great prophet and servant of God. John, however did not feel the pressure of Herod’s relationship and admiration. He chastises Herod for his adulterous relationship. Herod, out of impulse and a desire to please his family and friends, had John beheaded.
Now his conscience is pricked when he hears that some think that the Baptist has risen. Herod sought to see Jesus more out of curiosity and fear than out of a sincere desire to know God and his word. Whom do you seek to please? God's grace frees us from the tyranny of fear and sin and enables us to reject what is wrong and to choose what is good. Do we allow his grace to fill us with faith and courage to speak what is true and to do what is right?
✍ -Fr. Ronald Vaughan
आज के सुसमाचार में वर्णित हेरोद, हेरोद एंटिपस है, हेरोद महान का पुत्र है; वह येसु की सेवकाई दौरान गलीलिया में शासन करते थे । लूकस ने उन्हें येसु को लेकर जिज्ञासु व्यक्ति के रूप में उन्हें चित्रित किया है। उसने उन सभी बातों और कार्यों के बारे में सुना है जो येसु द्वारा किए जा रहे हैं और वह हैरान है। वह खुद से पूछता है, यह मैं किसके बारे में ऐसी खबरें सुन रहा हूं? ’वह येसु को देखने के लिए बेचैन है। येसु के बारे में इस तरह की जिज्ञासा और जानने की इच्छा, कुछ लोगों के लिए विश्वास की शुरुआत हो सकती है। फिर भी, यहां तक कि जो लोग जीवन भर विश्वासी रहे हैं, और यीशु के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, वे भी हैरान रहेंगे, और यह मौलिक सवाल पूछना जारी रखेंगे , 'यह कौन है?' येसु के रहस्य की गहराई, ऊंचाई चौड़ाई है वह अनंत है इस रहस्य को हम कभी पूरी तरह से समझ नहीं पाएंगे। पर एक विश्वासियों होने के नाते हम उन्हें आधी से अधिक जानने के की साथ करते रहें, प्रयत्न करते रहें, न केवल दिमाग से पर दिल व आत्मा से भी।
संत रिचर्ड की एक छोटी सी प्रार्थना मुझे याद आ रही है - Day by day, day by day, O, dear Lord, three things I pray: to see thee more clearly, love thee more dearly, follow thee more nearly, day by day. हे प्रभु ! दिन-ब-दिन मैं बस तीन चीज़ों के लिए हूँ: कि मैं तुझे और स्पष्टता से देख सकूँ; तुझे और गहराई से प्यार कर सकूँ , और करीबी से तेरा अनुसरण कर सकूँ।
✍ - फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)
The Herod, mentioned in today's gospel, is Herod Antipas, the son of Herod the Great; He ruled in Galilee during Jesus’ ministry. Luke portrays him as a curious person about Jesus. He has heard about all the works which were being done by Jesus and he was surprised. He asked himself, ‘who am I hearing such news about? 'He was restless to see Jesus. Such curiosity and desire to know about Jesus may be the beginning of faith for some people. Yet, even those who have been believers for whole life also will not be able to comprehend Jesus fully. They will continue to ask the fundamental question, 'Who is this?’
The depth, height and breadth of the mystery of Jesus is infinite, we will never fully grasp this mystery. But as believers, we keep the process of knowing Jesus on. We keep exploring the height, depth and width of Jesus. We search Him with all our mind, heart and soul.
I am remember a small prayer from Saint Richard - Day by day, day by day, O, dear Lord, three things I pray: to see You more clearly, love You more dearly, follow You more nearly,
✍ -Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)