नवंबर 21, 2024, गुरुवार

वर्ष का तैंत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

धन्य कुवारी मरियम का मंदिर में समर्पण

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📒 पहला पाठ: ज़कारिया का ग्रन्थ 2:14-17

14) प्रभु कहता है, “सियोन की पुत्री! आनन्द का गीत गा, क्योंकि मैं तेरे यहाँ निवास करने आ रहा हूँ।

15) उस दिन बहुत-से राष्ट्र प्रभु के पास आयेंगे। वे उसकी प्रजा बनेंगे, किन्तु वह तेरे यहाँ निवास करेगा“ और तू जान जायेगी कि विश्वमण्डल के प्रभु ने मुझे तेरे पास भेजा है।

16) तब प्रभु पुण्य भूमि में यूदा को फिर अपनी प्रजा बनायेगा और येरूसालेम को फिर अपनायेगा।

17) समस्त मानवजाति प्रभु के सामने मौन रहे। वह जाग कर अपने पवत्रि निवास से आ रहा है।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 12:46-50

46) ईसा लोगों को उपदेश दे रहे थे कि उनकी माता और भाई आये। वे घर के बाहर थे और उन से मिलना चाहते थे।

47) किसी ने ईसा से कहा, ’’देखिए, आपकी माता और आपके भाई बाहर हैं। वे आप से मिलना चाहते हैं।’’

48) ईसा ने उस से कहा, ’’कौन है मेरी माता? कौन है मेरे भाई?

49) और हाथ से अपने शिष्यों की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा, ’’देखो, ये हैं मेरी माता और मेरे भाई!

50) क्योंकि जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही मेरा भाई है, मेरी बहन और मरी माता।’’

📚 मनन-चिंतन

नाकेदार जकेयुस पहले से ही एक पापी जीवन जीने से थक चुका था। वह एक नया जीवन जीना चाहता था, एक ऐसा जीवन जो पाप मुक्त हो और पाप के दोष से मुक्त हो। इसलिए जब जकेयुस ने सुना कि, येसु उनके शहर से गुजरने वाले है तो उसने तुरन्त उन्हें देखने की योजना बनाई। अपनी जीवन शैली को सुधारने की तीव्र इच्छा इतनी प्रबल थी की जकेयुस एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया ताकि वह येसु को देख सकें। निश्चित रूप से येसु को इस सबका ज्ञान था। हम सभी पापी है और इसलिए हमें भी जकेयुस के समान येसु के दर्शन के लिए हर संभव प्रयास करने की आवश्यकता है। येसु हमें पश्चाताप करने के लिए आमंत्रित करते है। पश्चाताप कल नहीं, अगले सप्ताह नहीं और निश्चित रूप से अगले महीने नहीं बल्कि आज यही वह समय है की हम अपनी जीवन शैली को बदलने का पहला कदम उठाएँ।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


Zacchaeus was already tired of living a sinful life. He wanted to live a new life so to speak, a life free from sin and the guilt of sin! So, when Zacchaeus a sinner and a wealthy tax collector heard that Jesus would be passing through their town. He immediately planned to see Him. His ardent desire to mend his ways was so strong that Zacchaeus even climb a sycamore tree so that he would see Jesus. Surely, Jesus knew that there’s this repentant sinner named Zacchaeus who badly wants to see HIM. We all are sinner and being so we are all called to follow the action of Zacchaeus. We are called by Jesus to repent as well. Not tomorrow not next week and certainly not next month but today: This very hour that you’re reading this reflection.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

आज कलीसिया धन्य कुवारी मरियम का मंदिर में सर्मपण का पर्व मनाती है। यह उस दिन का स्मरण दिवस है जब योआकिम और अन्ना ने अपनी पुत्री मरियम को मंदिर में ले जाकर प्रभु को समर्पित किया। मरियम अपने माता पिता के अधीन रहकर अपना सामान्य परंतु पवित्र जीवन जीने लगी और अपने आप को प्रभु और लोगों की सेवा में लगाने लगी।

प्रभु येसु आज के वचनों में कहते है, ‘‘जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही मेरा भाई है, मेरी बहन और मेरी माता।’’ और मरियम के सिवाय और कौन हो सकता है, जो प्रभु येसु की मॉं बनने योग्य हों। प्रभु का मरियम का चुनाव ही बताता हैं कि इस संसार में जीवन भर निष्ठापूर्वक ईश्वरीय वचनों को पालन करने वाली और जन्म से निष्कलंक युवती केवल मरियम ही थी।

मरियम ने ईश्वर के वचनों पर विश्वास करते हुए अपना सम्पूर्ण जीवन प्रभु और उसके वचनों के लिए समर्पित किया। प्रभु ने जो जो संदेश मरियम को दिया मरियम ने उसको अपने ह्दय में संजोय रखा और प्रभु येसु के मरण तक ईश्वर और उसके वचनों पर विश्वास किया।

कुवारी मरियम का मंदिर में समर्पण का पर्व हम सभी को अपना बपतिस्मा की याद दिलाता है। जहॉं हमारे माता-पिता हमें गिरजाघर में ले जा कर हमें त्रियेक ईश्वर के नाम पर बपतिस्मा दिलाते है और हमारा ईश्वर के साथ एक नये जीवन की शरुआत कराते हैं। आज का दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि जो जो प्रतिज्ञाएॅं हमने बपतिस्मा में की थी उसमें हमें दृढ़ बने रहना है। मॉं मरियम हम सबके लिए एक प्रेरणा स्रोत है जो हमें सिखाती है कि किस प्रकार से सुख और दुख में, अच्छे और बुरे समय में, शांति और संकट के समय में ईश्वर के वचनों पर विश्वास करके जिया जा सकता है। मॉं मरियम एक सच्चा ईश्वर का मंदिर और सबसे पवित्र मनुष्य थी।

आज का पर्व हम सभी को अपने जीवन को ईश्वर के लिए समर्पित करने हेतु चुनाव करने के लिए आमंत्रित करता है; माता पिता को अपनी जिम्मेदारी को याद दिलाता हैं कि वे अपने बच्चों को बपतिस्मा संस्कार द्वारा समर्पित करें। आईये आज के पर्व के द्वारा हम अपने आप को ईश्वर के हाथों समर्पित कर इस युग में ईश्वर की योजना में भाग लें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

Today our Catholic Church is celebrating the feast of the Presentation of Blessed Virgin Mary in the Temple. This day reminds of the day when Joachim and Anne presented their child Mary in the temple. Mary lived her normal but holy live under the obedience of her parents and giving herself for the service of God and people.

Lord Jesus in today’s reading says, “Whoever does the will of my Father in heaven is my brother and sister and mother.” And who can be the apt person except Mary to be the mother of Lord Jesus. God choosing Mary itself tells that in this world only Mary was the person doing the will of God with faithfulness and was immaculate from her conception.

Believing in the word of God Mary surrendered her whole life for God and his words. Whatever word and message she got from God she treasured all in her heart and believed in God and his words even up to the death of Lord Jesus.

The feast of the Presentation of the Blessed Mary in temple reminds each one of us of our Baptism where our parents took us to Church for receiving Baptism in the name of Triune God; and helping us to start a new life with God. This day also reminds us to remain strong and faithful to the promises which we made during the time of Baptism. Mother Mary is the source of inspiration for all of us who teaches us how we can live the life having faith in God’s word during the time of happiness and sorrow, good and bad times, peace and problematic times. Mother Mary was true Temple of God and most holy humanity.

Today’s feast invites us to make the choice to surrender our lives to the Lord; Parents are reminded of their responsibility to present their children for Baptism. Let’s participate in God’s plan in this era by surrendering ourselves in the hands of God. Amen!

-Fr. Dennis Tigga