1) मैं सियोन के विषय में तब तक चुप नहीं रहूँगा, मैं येरूसालेम के विषय में तब तक विश्राम नहीं करूँगा, जब तक उसकी धार्मिकता उषा की तरह नहीं चमकेगी, जब तक उसका उद्धार धधकती मशाल की तरह प्रकट नहीं होगा।
2) तब राष्ट्र तेरी धार्मिकता देखेंगे और समस्त राजा तेरी महिमा। तेरा एक नया नाम रखा जायेगा, जो प्रभु के मुख से उच्चरित होगा।
3) तू प्रभु के हाथ में एक गौरवपूर्ण मुकुट बनेगी, अपने ईश्वर के हाथ में एक राजकीय किरीट।
4) तू न तो फिर ’परित्यक्ता’ कहलायेगी और न तेरा देश ’उजाड़’; बल्कि तू ’परमप्रिय’ कहलायेगी और तेरे देश का नाम होगाः ’सुहागिन’; क्योंकि प्रभु तुझ पर प्रसन्न होगा और तेरे देश को एक स्वामी मिलेगा।
5) जिस तरह नवयुवक कन्या से ब्याह करता है, उसी तरह तेरा निर्माता तेरा पाणिग्रहण करेगा। जिस तरह वर अपनी वधू पर रीझता है, उसी तरह तेरा ईश्वर तुझ पर प्रसन्न होगा।
16) इस पर पौलुस खड़़ा हो गया और हाथ से उन्हें चुप रहने का संकेत कर बोलाः "इस्राएली भाइयो और ईश्वर-भक्त सज्जनो! सुनिए।
17) इस्राएली प्रजा के ईश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुना, उन्हें मिस्र देश में प्रवास के समय महान बनाया और वह अपने बाहुबल से उन्हें वहाँ से निकाल लाया।
22) इसके बाद ईश्वर ने दाऊद को उनका राजा बनाया और उनके विषय में यह साक्ष्य दिया- मुझे अपने मन के अनुकूल एक मनुष्य, येस्से का पुत्र दाऊद मिल गया है। वह मेरी सभी इच्छाएँ पूरी करेगा।
23) ईश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उन्हीं दाऊद के वंश में इस्राएल के लिए एक मुक्तिदाता अर्थात् ईसा को उत्पन्न किया हैं।
24) उनके आगमन से पहले अग्रदूत योहन ने इस्राएल की सारी प्रजा को पश्चाताप के बपतिस्मा का उपदेश दिया था।
25) अपना जीवन-कार्य पूरा करते समय योहन ने कहा, ’तुम लोग मुझे जो समझते हो, मैं वह नहीं हूँ। किंतु देखो, मेरे बाद वह आने वाले हैं, जिनके चरणों के जूते खोलने योग्य भी मैं नहीं हूँ।’
(1) इब्राहीम की सन्तान, दाऊद के पुत्र, ईसा मसीह की वंशावली।
(2) इब्राहीम से इसहाक उत्पन्न हुआ, इसहाक से याकूब, याकूब से यूदस और उसके भाई,
(3) यूदस और थामर से फ़ारेस और ज़़ारा उत्पन्न हुए। फ़ारेस से एस्रोम, एस्रोम से अराम,
(4) अराम से अमीनदाब, अमीनदाब से नास्सोन, नास्सोन से सलमोन,
(5) सलमोन और रखाब से बोज़, बोज़ और रूथ से ओबेद, ओबेद से येस्से,
(6) येस्से से राजा दाऊद उत्पन्न हुआ। दाऊद और उरियस की विधवा से सुलेमान उत्पन्न हुआ।
(7) सुलेमान से रोबोआम, रोबोआम से अबीया, अबीया से आसफ़,
(8) आसफ़ से योसफ़ात, योसफ़ात से योराम, योराम से ओज़ियस,
(9) ओज़ियस से योअथाम, योअथाम से अख़ाज़, अख़ाज़ से एजि़कीअस,
(10) एजि़कीअस, से मनस्सेस, मनस्सेस से आमोस, आमोस से योसियस
(11) और बाबुल - निर्वासन के समय योसिअस से येख़ोनिअस और उसके भाई उत्पन्न हुए।
(12) बाबुल - निर्वासन के बाद येख़ोनिअस से सलाथिएल उत्पन्न हुआ। सलाथिएल से ज़ोरोबबेल,
(13) ज़ोरोबबेल से अबियुद, अबियुद से एलियाकिम, एलियाकिम से आज़ोर,
(14) आज़ोर से सादोक, सादोक से आख़िम, आख़िम से एलियुद,
(15) एलियुद से एलियाज़ार, एलियाज़ार से मत्थान, मत्थान से याकूब,
(16) याकूब से मरियम का पति यूसुफ़, और मरियम से ईसा उत्पन्न हुए, जो मसीह कहलाते हैं।
(17) इस प्रकार इब्राहीम से दाऊद तक कुल चैदह पीढ़ियाँ हैं, दाऊद से बाबुल- निर्वाचन तक चैदह पीढ़ियाँ और बाबुल -निर्वासन से मसीह तक चैदह पीढ़ियाँ।
(18) ईसा मसीह का जन्म इस प्रकार हुआ। उनकी माता मरियम की मँगनी यूसुफ़ से हुई थी, परन्तु ऐसा हुआ कि उनके एक साथ रहने से पहले ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गयी।(19) उसका पति यूसुफ़ चुपके से उसका परित्याग करने की सोच रहा था, क्योंकि वह धर्मी था और मरियम को बदनाम नहीं करना चाहता था।
(20) वह इस पर विचार कर ही रहा था कि उसे स्वप्न में प्रभु का दूत यह कहते दिखाई दिया, "यूसुफ! दाऊद की संतान! अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ लाने में नहीं डरे,क्योंकि उनके जो गर्भ है, वह पवित्र आत्मा से है।
(21) वे पुत्र प्रसव करेंगी और आप उसका नाम ईसा रखेंगे, क्योंकि वे अपने लोगों को उनके पापों से मुक्त करेगा।"
(22) यह सब इसलिए हुआ कि नबी के मुख से प्रभु ने जो कहा था, वह पूरा हो जाये -
(23) देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और पुत्र प्रसव करेगी, और उसका नाम एम्मानुएल रखा जायेगा, जिसका अर्थ हैः ईश्वर हमारे साथ है।
(24) यूसुफ़ नींद से उठ कर प्रभु के दूत की आज्ञानुसार अपनी पत्नी को अपने यहाँ ले आया।
(25) यूसुफ़ का उस से तब तक संसर्ग नहीं हुआ, जब तक उसने पुत्र प्रसव नहीं किया और यूसुफ़ ने उसका नाम ईसा रखा।
1) अन्धकार में भटकने वाले लोगों ने एक महती ज्योति देखी है, अन्धकारमय प्रदेश में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है।
2) तूने उन लोगों का आनन्द और उल्लास प्रदान किया है। जैसे फ़सल लुनते समय या लूट बाँटते समय उल्लास होता है, वे वैसे ही तेरे सामने आनन्द मना रहे हैं।
3) उन पर रखा हुआ भारी जूआ, उनके कन्धों पर लटकने वाली बहँगी, उन पर अत्याचार करने वाले का डण्डा- यह सब तूने तोड़ डाला है, जैसा कि मिदयान के दिन हुआ था।
4) सैनिकों के सभी भारी जूते और समस्त रक्त-रंजित वस्त्र जला दिये गये हैं।
5) यह इस लिए हुआ कि हमारे लिए एक बालक उत्पन्न हुआ है, हम को एक पुत्र मिला है। उसके कन्धों पर राज्याधिकार रखा गया है और उसका नाम होगा- अपूर्व परामर्शदाता, शक्तिशाली ईश्वर, शाश्वत पिता, शान्ति का राजा।
6) वह दऊद के सिंहासन पर विराजमान हो कर सदा के लिए शन्ति, न्याय और धार्मिकता का साम्राज्य स्थापित करेगा। विश्वमण्डल के प्रभु का अनन्य प्रेम यह कार्य सम्पन्न करेगा।
11) क्योंकि ईश्वर की कृपा सभी मनुष्यों की मुक्ति के लिए प्रकट हो गयी है।
12) वह हमें यह शिक्षा देती है कि अधार्मिकता तथा विषयवासना त्याग कर हम इस पृथ्वी पर संयम, न्याय तथा भक्ति का जीवन बितायें
13) और उस दिन की प्रतीक्षा करें, जब हमारी आशाएं पूरी हो जायेंगी और हमारे महान् ईश्वर एवं मुक्तिदाता ईसा मसीह की महिमा प्रकट होगी।
14) उन्होंने हमारे लिए अपने को बलि चढ़ाया, जिससे वह हमें हर प्रकार की बुराई से मुक्त करें और हमें एक ऐसी प्रजा बनायें जो शुद्ध हो, जो उनकी अपनी हो और जो भलाई करने के लिए उत्सुक हो।
1) उन दिनों कैसर अगस्तस ने समस्त जगत की जनगणना की राजाज्ञा निकाली।
2) यह पहली जनगणना थी और उस समय क्विरिनियुस सीरिया का राज्यपाल था।
3) सब लोग नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने नगर जाते थे।
4) यूसुफ़ दाऊद के घराने और वंश का था; इसलिए वह गलीलिया के नाज़रेत से यहूदिया में दाऊद के नगर बेथलेहेम गया,
5) जिससे वह अपनी गर्भवती पत्नी मरियम के साथ नाम लिखवाये।
6) वे वहीं थे जब मरियम के गर्भ के दिन पूरे हो गये,
7) और उसने अपने पहलौठे पुत्र को जन्म दिया और उसे कपड़ों में लपेट कर चरनी में लिटा दिया; क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी।
8) उस प्रान्त में चरवाहे खेतों में रहा करते थे। वे रात को अपने झुण्ड पर पहरा देते थे।
9) प्रभु का दूत उनके पास आ कर खड़ा हो गया। ईश्वर की महिमा उनके चारों ओर चमक उठी और वे बहुत अधिक डर गये।
10) स्वर्गदूत ने उन से कहा, "डरिए नहीं। देखिए, मैं आप को सभी लोगों के लिए बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ।
11) आज दाऊद के नगर में आपके मुक्तिदाता, प्रभु मसीह का जन्म हुआ है।
12) यह आप लोगों के लिए पहचान होगी-आप एक बालक को कपड़ों में लपेटा और चरनी में लिटाया हुआ पायेंगे।"
13) एकाएक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गीय सेना का विशाल समूह दिखाई दिया, जो यह कहते हुए ईश्वर की स्तुति करता था,
14) "सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा प्रकट हो और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शान्ति मिले!"
11) यह है समस्त पृथ्वी के लिए ईश्वर का सन्देश। “सियोन की पुत्री से यह कहोः ’देख! तेरे मुक्तिदाता आ रहे हैं वह अपना पुरस्कार अपने साथ ला रहे हैं और उनका विजयोपहार भी उनके साथ है’।“
12) वे ’पवित्र प्रजा’ और ’प्रभु के मुक्ति-प्राप्त लोग कहलायेंगे और तेरा नाम ’परमप्रिय’ तथा ’अपरित्यक्त नगरी’ रखा जायेगा।
4) किन्तु हमारे मुक्तिदाता ईश्वर की कृपालुता तथा मनुष्यों के प्रति उसका प्रेम पृथ्वी पर प्रकट हो गया।
5) उसने नवजीवन के जल और पवित्र आत्मा की संजीवन शक्ति द्वारा हमारा उद्धार किया। उसने हमारे किसी पुण्य कर्म के कारण ऐसा नहीं किया, बल्कि इसलिए कि वह दयालु है।
6) उसने हमारे मुक्तिदाता ईसा मसीह द्वारा हमें प्रचुर मात्रा में पवित्र आत्मा का वरदान दिया,
7) जिससे हम उसकी कृपा की सहायता से धर्मी बन कर अनन्त जीवन के उत्तराधिकारी बनने की आशा कर सकें।
15) जब स्वर्गदूत उन से विदा हो कर स्वर्ग चले गये, तो चरवाहों ने एक दूसरे से यह कहा, "चलो, हम बेथलेहेम जा कर वह घटना देखें, जिसे प्रभु ने हम पर प्रकट किया है"।
16) वे शीघ्र ही चल पड़े और उन्होंने मरियम, यूसुफ़़, तथा चरनी में लेटे हुए बालक को पाया।
17) उसे देखने के बाद उन्होंने बताया कि इस बालक के विषय में उन से क्या-क्या कहा गया है।
18) सभी सुनने वाले चरवाहों की बातों पर चकित हो जाते थे।
19) मरियम ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा और वह इन पर विचार किया करती थी।
20) जैसा चरवाहों से कहा गया था, वैसा ही उन्होंने सब कुछ देखा और सुना; इसलिए वे ईश्वर का गुणगान और स्तुति करते हुए लौट गये।
7) जो शान्ति घोषित करता है, सुसमाचार सुनाता है, कल्याण का सन्देश लाता और सियोन से कहता है, “तेरा ईश्वर राज्य करता है“- इस प्रकार शुभ सन्देश सुनाने वाले के चरण पर्वतों पर कितने रमणीय हैं!
8) येरूसालेम! तेरे पहरेदार एक साथ ऊँचे स्वर से आनन्द के गीत गाते हैं। वे अपनी आँखों से देख रहे हैं कि प्रभु ईश्वर सियोन की ओर वापस आ रहा है।
9) येरूसालेम के खँड़हर आनन्दविभोर हो कर जयकार करें! प्रभु-ईश्वर अपनी प्रजा को सान्त्वना देता और येरूसालेम का उद्धार करता है।
10) प्रभु-ईश्वर ने समस्त राष्ट्रों के देखते-देखते अपना पावन सामर्थ्य प्रदर्शित किया है। पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हुआ है।
1) प्राचीन काल में ईश्वर बारम्बार और विविध रूपों में हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोला था।
2) अब अन्त में वह हम से पुत्र द्वारा बोला है। उसने उस पुत्र के द्वारा समस्त विश्व की सृष्टि की और उसी को सब कुछ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया है।
3) वह पुत्र अपने पिता की महिमा का प्रतिबिम्ब और उसके तत्व का प्रतिरूप है। वह पुत्र अपने शक्तिशाली शब्द द्वारा समस्त सृष्टि को बनाये रखता है। उसने हमारे पापों का प्रायश्चित किया और अब वह सर्वशक्तिमान् ईश्वर के दाहिने विराजमान है।
4) उसका स्थान स्वर्गदूतों से ऊँचा है; क्योंकि जो नाम उसे उत्तराधिकार में मिला है, वह उनके नाम से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
5) क्या ईश्वर ने कभी किसी स्वर्गदूत से यह कहा- तुम मेरे पुत्र हो, आज मैंने तुम्हें उत्पन्न किया है और मैं उसके लिए पिता बन जाऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा?
6) फिर वह अपने पहलौठे को संसार के सामने प्रस्तुत करते हुए कहता है- ईश्वर के सभी स्वर्गदूत उसकी आराधना करें,
1) आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था।
2) वह आदि में ईश्वर के साथ था।
3) उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ। और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ।
4) उस में जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था।
5) वह ज्योति अन्धकार में चमकती रहती है- अन्धकार ने उसे नहीं बुझाया।
6) ईश्वर को भेजा हुआ योहन नामक मनुष्य प्रकट हुआ।
7) वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग उसके द्वारा विश्वास करें।
8) वह स्वयं ज्यांति नहीं था; उसे ज्योति के विषय में साक्ष्य देना था।
9) शब्द वह सच्च ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अन्धकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था।
10) वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ; किन्तु संसार ने उसे नहीं पहचाना।
11) वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया।
12) जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया।
13) वे न तो रक्त से, न शरीर की वासना से, और न मनुष्य की इच्छा से, बल्कि ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
14) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी महिमा देखी। वह पिता के एकलौते की महिमा-जैसी है- अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण।
15) योहन ने पुकार-पुकार कर उनके विषय में यह साक्ष्य दिया, "यह वहीं हैं, जिनके विषय में मैंने कहा- जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से बढ़ कर हैं; क्योंकि वह मुझ से पहले विद्यमान थे।"
16) उनकी परिपूर्णता से हम सब को अनुग्रह पर अनुग्रह मिला है।
17) संहिता तो मूसा द्वारा दी गयी है, किन्तु अनुग्रह और सत्य ईसा मसीह द्वारा मिला है।
18) किसी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा; पिता की गोद में रहने वाले एकलौते, ईश्वर, ने उसे प्रकट किया है।
सुसमाचार क्या ही उपहार है! “हमारे लिए एक उद्धारकर्ता का जन्म हो चुका है जो मसीह प्रभु है!“ हर युग में और अनंत काल तक हमें कितना अविश्वसनीय उपहार मिला है! राजा मसीह के इस महान उपहार के लिए धन्यवाद में, हमारे भीतर और आसपास, ईश्वर द्वारा हमें दिए गए कई उपहारों के लिए कृतज्ञता की खुशखबरी का प्रचार कर सकते हैं। यह पहाड़ की चोटी पर, अपने मन की शांति में, या जहाँ भी हम हों, किया जा सकता है। जैसे-जैसे हम पुराने और नए नियम के माध्यम से येसु, उनकी माँ, मरियम, जोसेफ, प्रेरितों और अनगिनत अन्य लोगों की यात्रा का अनुसरण करते हैं, हमारा जीवन प्रतिदिन समृद्ध होता जाता है। जब हम परमेश्वर का वचन प्राप्त करते हैं तो सुसमाचार हमारे अंदर जीवंत हो उठता है। शांत और सौम्य तरीकों से, हम उद्घोषणा कर सकते हैंः सर्वोच्च और पृथ्वी पर ईश्वर की महिमा, महिलाओं, पुरुषों और सद्भावना वाले बच्चों को शांति!
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)What a gift the Good News is! “A savior has been born to us who is Christ the Lord!” What an incredible gift we have received, throughout all ages, and into eternity! In thanksgiving for this great gift of Christ the King, within and around us, we can PROCLAIM the good news of gratitude for the many gifts God has bestowed upon us. This can be done on the mountain top, in the quiet of our own hearts, or, wherever we happen to be. As we follow the journey of Jesus, his mother, Mary, Joseph, the Apostles and countless others through the Old and New Testament our lives are daily enriched. The Good News, or Gospel, comes alive in us when we receive God’s Word. In quiet and gentle ways, we can proclaim: GLORY TO GOD IN THE HIGHEST, AND ON EARTH, PEACE TO WOMEN, MEN AND CHILDREN OF GOOD WILL!
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
आज पूरी दुनिया मुक्तिदाता के आगमन पर खुशियों में डूबी हुई है। संसार का कोना-कोना झिल-मिल रोशनी से जगमगा रहा है और हमारे हृदय को गद-गद करने वाली क्रिसमस गीतों की मधुर ध्वनि हमारे मन को आनंदित कर रही है। कल्पना कीजिए जब दो हजार साल पहले प्रभु येसु ने बेथलहम की उस नन्ही सी चरनी में जन्म लिया था और सारी दुनिया को अपनी दैविक उपस्थिति से भर दिया था। कैसा अनोखा पल रहा होगा वह। उत्पत्ति ग्रन्थ हमें बताता है कि प्रारंभ में कुछ नहीं था, प्रभु ने कहा और जैसा कहा वैसा ही हो गया। ईश्वर ने कहा, प्रकाश हो जाए, और प्रकाश हो गया। ईश्वर के शब्दों के द्वारा ही सब कुछ अस्तित्व में आया, चाहे वह सभी प्राणी हों, धरती-आकाश या और कोई वस्तु, सब कुछ उसके शब्दों से उत्पन्न हुआ और, उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ।
ईश्वर का वही वचन हमारे बीच देहधारण कर आया है। ईश्वर के इसी शब्द में इस बिखरी हुई दुनिया को फिर से नई ज़िंदगी देने की ताकत है। यही देहधारी शब्द हमें अनन्त जीवन का सहभागी बना सकता है। यही शब्द है जो स्वर्गीय पिता के वास्तविक रूप को हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। पिता को किसी ने नहीं देखा है, केवल प्रभु येसु ने देखा है, इसलिए प्रभु येसु के अलावा इस दुनिया के सामने कोई भी पिता ईश्वर की छवि के दर्शन नहीं करा सकता। इसलिए प्रभु येसु ने कहा है, “जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को देखा है... मैं पिता में हूँ और पिता मुझमें है।” (देखिए योहन 14:9,11)।
यह देहधारी शब्द सभी को अनन्त जीवन पाने के लिए बुलाता है। ईश्वर अनन्त है और वह अनन्त ईश्वर हमारे बीच इंसान बन कर आया ताकि हमें अनन्त जीवन प्रदान कर सके। जो इस देहधारी वचन के निमंत्रण को और ईशपुत्र को अपने जीवन में स्वीकार करते हैं, ईश्वर के एकलौते पुत्र में विश्वास करते हैं वे अनन्त जीवन के सहभागी हो जाते हैं। वही सारी खुशी और आनन्द के स्रोत हैं। जो अपने जीवन में ईश्वर के प्रेम को नहीं अपनाते हैं, वे अंधकार में निवास करते हैं, और उस अंधकार में विनाश के सिवाय और कुछ नहीं है। ईश्वर हम सभी के हृदयों के अपनी अपार खुशी और आनन्द से भर दे।
✍ -फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today the whole world rejoices at the coming of the Saviour. Every corner of the world is lit with sparkling lights and the sound of sweet carols delights the hearts. Imagine the joy of the creation when Jesus was born two thousand years ago and filled the world with his divine presence. What a thrill it must have been! The Book of Genesis tells us that, ‘in the the beginning there was nothing and God said words and those words materialized and the world came into being. God said, “Let there be light” and there was light. God’s words caused things to happen. Whole creation including all creatures and everything came into being through God’s word and without God’s words nothing came into existence.
Same Word of God has taken on flesh in the form of Jesus. This Word has power to heal broken world. This word-made-flesh can give us a share in the life eternal. This is the Word that presents the true image of God, the Heavenly Father. Nobody has seen God except Jesus and therefore nobody could truly describe God or present the true image of God before the world. But Jesus presents the true face of God before the world. That’s why he could say “whoever has seen me has seen the Father…I am in the Father and the Father is in me.” (Cf. John 14:9, 11).
The Word that has become flesh invites everyone to the eternal life. God is eternal and has become human so that humans can become the children of Eternal God. Those who accept the invitation and the Word incarnate in their life, those who put their trust in him, can join him in eternal life. He is the source of all joys and happiness. Those who do not welcome him in their life, they choose to live in darkness and there is nothing in darkness except the destruction. May God fill everyone’s hearts with the light of joys and happiness!
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
क्रिसमस उपहारों के आदान-प्रदान का समय है। प्रभु येसु मसीह के जन्म के समय ईश्वर ने मानव को कई उपहार दिए। क्रिसमस का सबसे बड़ा उपहार है चरनी में जन्मे ईश्वर का रहस्य। यहाँ चरनी के असहाय बच्चे में क्रिसमस का सबसे बड़ा रहस्य है। यहूदी लोगों की पूजा के केंद्र, यरूसालेम के मंदिर में येसु का जन्म नहीं हुआ था; न तो वे किसी राजमहल में और न ही किसी अमीर या प्रभावशाली परिवार में जन्म लेते हैं। वे यरूशलेम या किसी प्रसिद्ध शहर में पैदा नहीं हुए थे, लेकिन एक छोटे शहर के बाहरी इलाके में। उन्हें यूसुफ और मरियम के नम्र घर में भी पैदा होने का भी अवसर नहीं मिला था। उन्होंने बेथलेहेम के बाहरी इलाके में एक गोशाले में पैदा होना पसंद किया। प्रभु हमें यह बताना चाहते हैं कि वे ऐसे व्यक्तियों और स्थानों में मौजूद हैं जहाँ हम उनसे मिलने का कम से कम उम्मीद करते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि उन्होंने मूसा के सामने मरुभूमि में एक जलती हुई झाड़ी में खुद को प्रकट करना पसंद किया। वे रेगिस्तान में हागार को दिखाई दिये। वे कुएँ और बंदीगृह में यूसुफ के साथ थे। वे सिंहों के खड्ड में दानिएल के साथ थे। प्रभु येसु के अनुसार, ईश्वर भूखे, प्यासे, नग्न, कैदियों, अपरिचितों और बीमारों में उपस्थित हैं। हमें अपने आस-पास ईश्वर की अनुपम और अगोचर उपस्थिति के बारे में लगातार जागरूक रहने की आवश्यकता है। संत योहन कहते हैं, "ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।" (योहन 3:16)। इस प्रकार हमने प्रभु ईश्वर के स्व-उपहार का अनुभव किया है जो हमें क्रिसमस पर दिया गया है। अन्य सभी उपहार इस स्व-उपहार के उपोत्पाद हैं।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Christmas is a time to exchange gifts. At the time of the actual birth of Christ God gave many gifts to human beings. The Greatest gift of Christmas is the Mystery of God in the Manger. Here in the seemingly helpless child of the manger is the Greatest Mystery of Christmas. Jesus was not born in the temple of Jerusalem, the centre of worship of the Jewish people; nor was he born in the royal palace, not even in any wealthy or influential family. He was not born in Jerusalem or any well-known town, but in a small town. He did not even have the comfort of being born in the humble home of Joseph and Mary. He chose to be born in a manger in the outskirts of Bethlehem. The Lord wants to communicate to us that he is present in persons and places we least expect. No wonder he chose to reveal himself to Moses in a burning bush in the wilderness. He appeared to Hagar in the desert. He was with Joseph in the well and in prison. He was with Daniel in the Lion’s den. According to Jesus, God is present in the hungry, the thirsty, the naked, the prisoners, the strangers and the sick. We need to be constantly aware of the unassuming and inconspicuous presence of God around us. St. John says, “For God so loved the world that he gave his only Son, so that everyone who believes in him may not perish but may have eternal life” (Jn 3:16). Thus we have God’s self-gift offered to us at Christmas. All other gifts are by-products of this self-gift.
✍ -Fr. Francis Scaria
क्रिसमस उपहारों के आदान-प्रदान का समय है। प्रभु येसु मसीह के जन्म के समय ईश्वर ने मानव को कई उपहार दिए। क्रिसमस का सबसे बड़ा उपहार है चरनी में जन्मे ईश्वर का रहस्य। यहाँ चरनी के असहाय बच्चे में क्रिसमस का सबसे बड़ा रहस्य है। यहूदी लोगों की पूजा के केंद्र, यरूसालेम के मंदिर में येसु का जन्म नहीं हुआ था; न तो वे किसी राजमहल में और न ही किसी अमीर या प्रभावशाली परिवार में जन्म लेते हैं। वे यरूशलेम या किसी प्रसिद्ध शहर में पैदा नहीं हुए थे, लेकिन एक छोटे शहर के बाहरी इलाके में। उन्हें यूसुफ और मरियम के नम्र घर में भी पैदा होने का भी अवसर नहीं मिला था। उन्होंने बेथलेहेम के बाहरी इलाके में एक गोशाले में पैदा होना पसंद किया। प्रभु हमें यह बताना चाहते हैं कि वे ऐसे व्यक्तियों और स्थानों में मौजूद हैं जहाँ हम उनसे मिलने का कम से कम उम्मीद करते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि उन्होंने मूसा के सामने मरुभूमि में एक जलती हुई झाड़ी में खुद को प्रकट करना पसंद किया। वे रेगिस्तान में हागार को दिखाई दिये। वे कुएँ और बंदीगृह में यूसुफ के साथ थे। वे सिंहों के खड्ड में दानिएल के साथ थे। प्रभु येसु के अनुसार, ईश्वर भूखे, प्यासे, नग्न, कैदियों, अपरिचितों और बीमारों में उपस्थित हैं। हमें अपने आस-पास ईश्वर की अनुपम और अगोचर उपस्थिति के बारे में लगातार जागरूक रहने की आवश्यकता है। संत योहन कहते हैं, "ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।" (योहन 3:16)। इस प्रकार हमने प्रभु ईश्वर के स्व-उपहार का अनुभव किया है जो हमें क्रिसमस पर दिया गया है। अन्य सभी उपहार इस स्व-उपहार के उपोत्पाद हैं।
क्रिसमस का दूसरा उपहार मोक्ष (Salvation) है। प्रभु येसु मनुष्यों को उद्धार का अवसर प्रदान करते हैं। येसु में प्रभु ईश्वर ने उन सब कार्यों को पूरा किया जो मानवता के उद्धार के लिए आवश्यक हैं। प्रभु येसु में हमारा उद्धार है। लेकिन हमारे निजी जीवन में इस मुक्ति का अनुभव करने के लिए, हम में से प्रत्येक को पापों से मुक्त होना चाहिए और येसु के साथ एक होना चाहिए। सभी मनुष्यों को येसु में मुक्ति का अनुभव करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। मोक्ष का यह अनुभव 'ईश्वर का राज्य' कहा जाता है। चरवाहों, जोतिषियों, सिमयोन और अन्ना ने उस आमंत्रण का सकारात्मक जवाब दिया और उनसे मिलने या उनका इंतजार करने के लिए कष्टों को झेला।
क्रिसमस का एक और उपहार है - प्यार। सेंट जॉन कहते हैं, "पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं" (1योहन 3: 1)। हमारे लिए अपना एकलौते बेटे को भेजकर, उन्होंने हमें दिखाया है कि वे हमसे कितना प्यार करते हैं।
खुशी भी क्रिसमस का एक प्रमुख उपहार है। प्रभु के दूत ने येसु के जन्म के समय चरवाहों के सामने घोषणा की, "डरिए नहीं। देखिए, मैं आप को सभी लोगों के लिए बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ। आज दाऊद के नगर में आपके मुक्तिदाता, प्रभु मसीह का जन्म हुआ है।“ (लूकस 2:10-11) सोत्र 16:11 में हम पढ़ते हैं, “तू मुझे जीवन का मार्ग दिखायेगा, तेरे साथ रह कर परिपूर्ण आनन्द प्राप्त होता है और तेरे दाहिने सदा के लिए सुख-शान्ति।” संत पेत्रुस कहते हैं, “आपने उन्हें कभी नहीं देखा, फिर भी आप उन्हें प्यार करते हैं। आप अब भी उन्हें नहीं देखते, फिर भी उन में विश्वास करते हैं। जब आप अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात् अपनी आत्मा की मुक्ति प्राप्त करेंगे, तो एक अकथनीय तथा दिव्य उल्लास से आनन्दित हो उठेंगे।" (1पेत्रुस 1: 8-9)
क्रिसमस का एक और उपहार शांति है। लूकस 2:14 में, हम स्वर्गदूतों को बेथलेहेम में येसुके जन्म के समय गाते हुए पाते हैं, "सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा प्रकट हो और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शान्ति मिले!" बाद में, उनके सार्वजनिक जीवन के दौरान येसु कई बार कहते हैं, "तुम्हें शान्ति मिले" (लूकस 24:36, योहन 20:21)। योहन 14:27 में वे कहते हैं , “मैं तुम्हारे लिये शांति छोड जाता हूँ। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ। वह संसार की शांति-जैसी नहीं है।“
पाप क्षमा भी क्रिसमस का एक उपहार है। येसु ने खुद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जो मानव का ईश्वर के साथ मेलमिलाप कराने के लिए आये थे। उन्होंने इस अंत के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। "ईश्वर ने मनुष्यों के अपराध उनके ख़र्चे में न लिख कर मसीह के द्वारा अपने साथ संसार का मेल कराया और हमें इस मेल-मिलाप के सन्देश का प्रचार सौंपा है।" (2कुरिन्थियों 5:19)। क्रिसमस का त्योहार हमें सूचित करता है कि ईश्वर दयालु हैं और धैर्यपूर्वक हमारी वापसी का इंतजार कर रहे हैं। प्रभु की क्षमा को हमारे द्वारा स्वतंत्रता के रूप में भी अनुभव किया जाता है।
वास्तव में क्रिसमस हमारे लिए अनगिनत उपहार लाता है - जैसे मुक्ति, शक्ति, दिशा की भावना इत्यादि। क्रिसमस का वास्तविक उत्सव हम से अपेक्षा रखता है कि हम इनमें से कम से कम कुछ उपहारों का अनुभव करें।
✍ -Fr. Francis Scaria