कलीसियाइ इतिहास

6 - द्वितीय वतिकान महासभा से वर्तमान तक

बीसवीं सदी आधुनिकता की सदी मानी जाती है। लेकिन शायद कई लोग यह भूल जाते हैं कि यह युद्ध और नास्तिकता की सदी भी रही। इस सदी में युद्ध में मारे जानेवाले लोगों की संख्या मानव जाति के इतिहास के सभी युद्धों में मारे गये तमाम लोगों की संख्या की तुलना में कहीं अधिक है। इसके अलावा यह भी एक चैकाने वाली बात है कि दुनिया की लगभग आधी आबादी निरीश्वरवादात्मक साम्यवाद (Atheistic Communism) के अधीन है।

संत पापा पीयुस दसवें ने पूजनविधि में परिवर्तन किये और सोचने समझने की उम्र (Age of Reason) पहुँचने पर बच्चों को पापस्वीकार और परमप्रसाद संस्कार ग्रहण करने की अनुमति प्रदान की। उन्होंने सन् 1917 में कलीसियाई नियम-संहिता का प्रकाशन किया। बीसवीं सदी में कलीसिया को माक्र्सवाद (Marcism), नाज़ीवाद (Nassicism) और फासीवाद (Fascism) का सामना करना पडा। कलीसियाई परमाध्यक्षों ने विश्वासियों को इन खोखली धारणाओं तथा वादों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने विश्वास को बनाये रखना सिखाया।

सन् 1929 में पापा पीयुस दसवें ने वतिकान की 109 एकड़ ज़मीन को छोड पूरी ज़मीन इटली की तत्कालीन फासिस्ट सरकार को सौंप दी। इस घटनाक्रम ने संत पापा को आध्यात्मिक उन्नति पर ध्यान देने को बाध्य किया।

पापाओं की लंबी लाइन में पापा योहन तेईसवें अनन्य साबित हुए। सन् 1958 में वे पापा बने। वे एक लोकप्रिय पापा थे। अब तक के पापाओं की परम्पराओं को तोड़ते हुए वे साधारण लोगों के साथ अपना समय बिताना पसन्द करते थे। वे अस्पतालों तथा जेलों में जाकर मरीजों तथा कैदियों से मिलते थे। वे लोगों के साथ प्रेममयी बातें कर उन्हें आनन्द प्रदान करते थे। वे कलीसिया के लिए एक अच्छी और दूरदर्षी परिकल्पना रखते थे। वे किसी समुदाय या वर्ग के खिलाफ नहीं थे। परन्तु सबों के साथ अच्छा संबंध स्थापित करना चाहते थे। ख्रीस्तीय कलीसियाओं की एकता में उनकी बड़ी दिलचस्पी थी।

प्रोटेस्टेन्ट समुदायों ने बीसवीं सदी में आपसी एकता में बड़ी रुचि दिखायी। वे यह महसूस करने लगे कि कलीसियाई समुदायों के बीच प्रतिस्पर्धा तथा एक दूसरे के सदस्यों को भटकाना ठीक नहीं है। आपस में एकता कायम करने के लिए उन्होंने सन् 1925 में विश्वास और व्यवस्था (Faith and Order) और सन् 1927 में जीवन और कार्य (Life and Work) संगठनों की स्थापना की। इन संगठनों के ज़रिए प्रोटेस्टेन्ट ख्रीस्तीय विश्वासी आपस में शिक्षा तथा सेवा में एकता लाने की कोशिश करते रहे। सन् 1948 में इन दोनों संगठनों ने मिलकर विश्व कलीसियाई सभा (World Council of Churches) को रूप दिया। अभी तक के पापाओें ने कैथलिक कलीसिया को इस संगठन में सक्रिय रूप से भाग लेने से दूर रखा था लेकिन पापा योहन तेईसवें का यह मानना था कि प्रभु येसु की इच्छा के अनुसार ख्रीस्तीयों मे एकता लाना कैथलिक कलीसिया का कर्त्तव्य है।

जब संत पापा योहन तेईसवें ने पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर विश्व के सारे धर्माध्यक्षों की सभा बुलाने का अपना संकल्प प्रकट किया, तब सब लोग आश्चर्यचकित थे। महासभा का उद्देश्य पापा योहन ने ’’अज्जोर्नोमेन्तो’’ बताया। इटालियन भाषा के इस शब्द का अर्थ है नवीनीकरण। पापा योहन की यह आशा थी कि महासभा के ज़रिए कलीसिया को नवस्फूर्ति प्रदान करें। दुनिया बदल गई थी। मनुष्य बदल गया था। विचारधारणाएं बदल गई थीं। दुनिया इतिहास के एक मोड पर खडी थी। कलीसिया को सार्थक और प्रभावशाली बने रहने के लिए सारी सृष्टि को नवीन बना देने वाले पवित्र आत्मा की कृपा से अपने को बदलना था। यही कार्य पापा योहन धर्माध्यक्षों की महासभा द्वारा करना चाहते थे। हिरोषिमा तथा नागसाखी में फटे परमाणु बम मानव-जाति के ऊपर मण्डराते खतरे के प्रतीक मात्र थे। युद्धों ने मनुष्य को दिशाहीन और आशाहीन बना दिया था। इन परिस्थितियों से गुजरती कलीसिया के लिए अपने दायित्व और भूमिका की विवेचना करना ज़रूरी हो गया था। हालॉकि पापा के कार्यालय के सदस्य और कई धर्माध्यक्ष महासभा के लिए उत्सुक नहीं थे, पर पापा योहन ने पवित्र आत्मा की प्रेरणा के बल पर महासभा की अगुवाई की।

इस महासभा में भारत के भी कई धर्माध्यक्षों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। पूर्वी देशों की कलीसियों की चिन्ताओं तथा आकांक्षाओं को व्यक्त करते हुए भोपाल के महाधर्माध्यक्ष स्व. डा. यूजीन डीसूज़ा ने जो विचार प्रस्तुत किये थे उसकी कई विश्वविख्यात ईशशास्त्रियों ने सराहना की। इस महासभा में कलीसिया को एक नई दिशा तथा नई उमंग प्राप्त हुई। महासभा के पहले सत्र के बाद पापा योहन का निधन हुआ। महासभा पापा पौलुस छठवें के मार्गदर्शन में आगे बढ़ी। महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों को रूप देना तथा उन्हें कार्यान्वित करना पापा पौलुस की जिम्मेदारी थी। महासभा ने सोलह महान दस्तावेज़ों को तैयार किया। इन दस्तावेज़ों के जरिए महासभा ने कलीसिया का नवीनीकरण करना चाहा।

द्वितीय वतिकान महासभा के अनुसार कलीसिया एक रहस्य तथा संस्कार है। वह ईश्वर की प्रजा है जिसमें याजकवर्ग, धर्मसंघी और लोकधर्मी अपनी अपनी बुलाहट के अनुसार अपना योगदान देते हैं। धर्माध्यक्षीय परिषद संत पापा के साथ मिलकर प्रामाणिक शिक्षा प्रदान करती है। महासभा यह भी स्पष्ट करती है कि अन्य धर्मों में जो कुछ अच्छा और सच्चा है उसे कलीसिया स्वीकारती है। महासभा ने लातीनी भाषा की जगह देशीय तथा प्रान्तीय भाषाओं को कलीसियाई धर्मविधियों में उपयोग में लाने का सुझाव दिया। बाइबिल के विद्वानों तथा इतिहासकारों को स्वतंत्रता दी गई कि वे बाइबिल के अध्ययन में विभिन्न वैज्ञानिक तरीकों की मदद लें। महासभा ने लोकधर्मियों के कर्त्तव्यों तथा गौरव को स्पष्ट किया। महासभा ने अन्य ख्रीस्तीय समुदायों के साथ मिलकर काम करने पर भी जोर दिया। महासभा के पहले ही पापा योहन ने ईश्वर से एक नये पेन्तेकोस्त के अनुभव के लिए प्रार्थना करने के लिए ख्रीस्तीय विश्वासियों से अनुरोध किया था। महासभा के द्वारा कलीसियाई जीवन में जो परिवर्तन आया उससे यह साफ नज़र आ रहा था कि पवित्र आत्मा कलीसियाई नवीनीकरण में सक्रिय थे।

सन् 1965 में कैथलिक करिश्मायी नवीनीकरण के साथ लोग पेन्तेकोस्त का विशेष अनुभव करने लगे। सन् 1975 में पापा पौलुस छठवें ने इस आन्दोलन को औपचारिक मान्यता प्रदान की। इस प्रकार द्वितीय वतिकान महासभा के साथ कलीसिया को एक नई दिशा तथा नई स्फूर्ति हासिल हुई।

संत पापा पौलुस छठवें का सेवा-कार्य वतिकान महासभा तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए युद्ध के अन्त के लिए आह्वान किया। उन्होंने पवित्र भूमि की यात्रा करके पूर्व के प्राधिधर्माध्यक्ष का ’शांति के चुम्बन’ से अभिवादन किया। वे यूखारिस्तीय कॉग्रेस में भाग लेने हेतु मुम्बई भी आए थे। इस सिलसिले में उन्होंने श्रीलंका तथा इटली का भी दौरा किया। प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित लोगों से मिलने वे पाकिस्तान भी गये। माता मरियम के जीवन से संबंधित स्थलों की यात्रा करते वे फातिमा व एफेसुस पहुँचे। एंग्लिकन कलीसिया के प्रमुख महाधर्माध्यक्ष मिखाएल रामसे से मिलकर उन्होंने ख्रीस्तीयों में एकता का हाथ बढाया। पापा पौलुस ने अपने विश्वपत्रों द्वारा समय समय पर विश्वासियों को मार्गदर्शन दिया।

पापा पौलुस छठवें के बाद पापा योहन पौलुस प्रथम का कार्यकाल 33 दिन तक ही सीमित रहा। उनके बाद पापा योहन पौलुस द्वितीय लगभग 25 सालों तक विश्वासियों की सेवा करते हुए कलीसियाई इतिहास में अद्वितीय एवं अविस्मरणीय बन गये। वे आधुनिक युग के सबसे प्रभावशाली तथा लोकप्रिय पापा माने जाते हैं। उनकी मृत्यु के बाद वर्तमान में ईशशास्त्री तथा ज्ञानी पापा बेनेडिक्ट सोलहवें कलीसिया को मार्गदर्शन देते आ रहे हैं।

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 1. पापा पीयुस दसवें के कार्यो का उल्लेख कीजिए।
2. बीसवीं सदी में प्रोटेस्टेंट समुदायों ने आपसी एकता के लिये क्या कदम उठाये?
3. पापा योहन ने वतिकान महासभा किन उद्देष्यों को ध्यान में रखकर बुलायी थी?
4. वतिकान महासभा के महत्वपूर्ण निर्णयों का विवरण लिखिये।
5. वतिकान महासभा के अलावा पापा पौलुस छठवें के अन्य कार्य कौन-कौन से है?
2. रिक्त स्थानों की पूर्ति करो। 1. बीसवीं सदी...............................मानी जाती है।

2. वतिकान महासभा बुलाने का मुख्य उद्देष्य...................बताया गया।
3. पापा योहन पौलुस द्वितीय......................सालों तक पद पर रहें।
4. पापा योहन पौलुस द्वितीय की मृत्यु के उपरांत.........................पोप बने।
5. यूखारिस्तीय कॉग्रेस में भाग लेने............................... भारत की यात्रा पर आये।





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