आध्यात्मिक मन्ना

हमारी बुलाहट, हमारा जीवन

फ़ादर बी.जॉनसन मरिया


Johnson Maria क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो बिना किसी मकसद के जीवन जिए जा रहा हो? क्या कोई ऐसा इंसान है जिसके जीवन का कोई उद्देश्य ही ना हो? जी नहीं ! हम में प्रत्येक व्यक्ति किसी न् किसी मकसद के लिये जीता है. हम सोचते हैं कि अपने जीवन का मकसद हम खुद तय करते हैं, लेकिन हमारे जीवन का मकसद ईश्वर चुनते हैं, हम तो सिर्फ अपने जीवन में उनकी इच्छा पूरी करते हैं. इसी को बुलाहट कहते हैं.

जी हाँ, किसी को डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करने की बुलाहट है, तो किसी को किसान बनकर अन्न पैदा करने की बुलाहट है, तो किसी को टीचर बनकर ज्ञान का प्रकाश फैलाने की बुलाहट है. यानि कि सभी को कुछ न कुछ बुलाहट ज़रूर मिली है. क्या आपने अपनी बुलाहट को पहचान लिया है? लेकिन इन सभी बुलाहटों से भी बढ़कर और इन सभी बुलाहटों से महत्त्वपूर्ण बुलाहट है - ईश्वरीय राज्य का प्रचार-प्रसार करना. हम प्रत्येक ख्रीस्तीय का कर्तव्य है कि जिस प्रभु ने क्रूस पर कुर्बान होकर इस दुनिया को बचाया है उसी दुनिया को उसी प्रभु के असीम प्रेम के बारे में बताना. हम अक्सर सोचते हैं कि धर्मप्रचार या सुसमाचार प्रचार का कार्य तो फादर-सिस्टर लोगों का है, पास्टरों का है, समर्पित जीवन जीने वालों का है. हमारा ऐसा सोचना जायज़ भी है, क्योंकि फादर-सिस्टर गण व अन्य जन इसी के लिये बकायदा ट्रेनिंग ग्रहण करते हैं, अपना सब कुछ त्याग देते हैं, तो सुसमाचार प्रचार करना भी उन्हीं का काम है.

लेकिन ख्रीस्त में प्यारे भाइयो और बहनों, प्रभु येसु ने कभी ऐसा नहीं कहा कि सुसमाचार के प्रचार की जिम्मेदारी सिर्फ समर्पित जीवन जीने वालों की है और बाकी विश्वासियों की नहीं ! माता कलीसिया हमें वाटिकन की द्वतीय महासभा द्वारा सिखाती है कि सुसमाचार प्रचार की जिम्मेदारी न केवल धर्मभाई-बहनों की है बल्कि लोकधर्मियों की भी है. यह जिम्मेदारी प्रत्येक ख्रीस्तीय को बपतिस्मा के समय ही मिल जाती है. अतः हम चाहे जो भी हों, जैसे भी हों, ईश्वर ने यदि हमें प्रभु येसु में बुलाया है तो प्रभु येसु की शिक्षाओं के प्रचार की जिम्मेदारी भी हमारी ही है.हमारी इसी बुलाहट को और स्पष्ट रूप से हमें समझाते हुए संत पौलुस हमें समझाते हैं, कि ‘उसने संसार की सृष्टि से पहले हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त होकर, उसकी दृष्टि में पवित्र तथा निष्कलंक बनें (एफे० 1:4).’

जी हाँ ख्रीस्त में प्यारे भाइयो और बहनों, हमारी वास्तविक बुलाहट है- “ईश्वर की दृष्टि में पवित्र और निष्कलंक बने रहना”. और आज के इस संसार में पवित्र और निष्कलंक बने रहकर जीवन जीने से बढ़कर सुसमाचार का प्रचार और क्या हो सकता है? और इसीलिए प्रभु येसु जब अपने शिष्यों को उनकी इसी बुलाहट का एहसास कराते हुए सुसमाचार के प्रचार की जिम्मेदारी देकर भेजते हैं, तो उन्हें स्पष्ट रूप से इस ओर इंगित करते हैं कि उन्हें किस प्रकार सुसमाचार का प्रचार करना है. प्रभु येसु ने उन्हें ये नहीं बताया कि लोगों को मेरी शिक्षाओं को समझाओ, मेरे चमत्कारों के बारे में बताओ या मेरे दृष्टांतो का अर्थ लोगों को समझाओ. ये सब बाद की बातें हैं, सबसे पहली और प्रमुख बात यह है, कि तुम अपने जीवन द्वारा सुसमाचार का प्रचार करो. सुसमाचार प्रचार करने के लिये हमें त्यागमय जीवन जीने की आवश्यकता है, हमें सादा जीवन जीने की आवश्यकता है, और जब हम ऐसा करने में कामयाब हो जायेंगे, तभी हम सच्चा ख्रीस्तीय जीवन जीयेंगे, और जब हम सच्चा ख्रीस्तीय जीवन जीयेंगे, तभी हम सही मायने में प्रभु येसु की इस महान आज्ञा का पालन करेंगे ‘संसार के कोने-कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ.’

लेकिन आज की इस उपभोक्तावादी दुनिया में त्यागमय और सादा जीवन जीने के लिये कहना जितना आसान है उतना ही कठिन है ऐसा जीवन वास्तव में जीना. आज-कल सुख-सुविधाओं की सारी चीजें उपलब्ध हैं, फिर भी उन्हें छोड़कर, सादा एवं कठिन जीवन जीना एक बहुत बड़ी चुनौती है. प्रभु येसु संत मारकुस के सुसमाचार में अपने शिष्यों को बताते हैं कि, वे लाठी के सिवाय रास्ते के लिये कुछ भी न ले जाएँ (मारकुस 6:8-9). इसका तात्पर्य यह है कि इस दुनिया में पवित्र, कठिन परिश्रमी, ईमानदार और निष्कलंक बने रहने के लिये हमें ईश्वर पर निर्भर रहना है. यह बात सब जानते और मानते हैं कि जब इंसान के पास सुख-सुविधा की सारी चीजें होती हैं तो वह ईश्वर को भूल जाता है, अतः हमें सदा ईश्वर पर निर्भर रहना है. और ऐसा करने के लिये स्वयं प्रभु येसु ने हमारे लिये विभिन्न संस्कारों की स्थापना की है जो हमें पवित्र और निष्कलंक बने रहने में शक्ति प्रदान करते हैं. तो आइये हम ईश्वर को धन्यवाद दें कि उसने हमें चुना है, और उसकी इच्छा पूरी करते हुए उसी ईश्वर पर निर्भर रहने की शक्ति मांगें.


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