भलाई करते करते हिम्मत न हारें

कोर्नेलियुस के घर में प्रवचन देते हुए संत पेत्रुस प्रभु येसु के सार्वजनिक कार्यों के बारे में संक्षेप में बताते हैं, “वह चारों ओर घूम-घूम कर भलाई करते रहे” (प्रेरित-चरित 10:38)। प्रभु येसु हम से भी चाहते हैं कि हम हमेशा भलाई करते रहें। सूक्ति 3:27 हम से कहता है, “पुत्र! यदि यह तुम्हारी शक्ति के बाहर न हो, तो जिसके आभारी हो, उसका उपकार करो।”

संत पौलुस तिमथी को लिखते हुए कहते हैं कि वे “इस संसार के धनियों से अनुरोध करें कि “वे भलाई करते रहें, सत्कर्मों के धनी बनें, दानशील और उदार हों। इस प्रकार वे अपने लिए एक ऐसी पूंजी एकत्र करेंगे, जो भविष्य का उत्तम आधार होगी और जिसके द्वारा वे वास्तविक जीवन प्राप्त कर सकेंगे।” (1तिमथी 6:17-19)

कई बारे ऐसा होता है कि भलाई करते समय हम आशा करते हैं कि दूसरे लोग हमारे कार्यों की सराहना करें। परन्तु अकसर ऐसा होता है कि जिनके लिए हम भलाई के कार्य करते हैं, वे भी हमारे खिलाफ़ खड़े हो जाते हैं। ऐसे में कई लोग हिम्मत हार कर भलाई करना ही छोड़ देते हैं।

इसलिए संत पौलुस गलातियों को लिखते हुए 6:9-10 में कहते हैं, “हम भलाई करते-करते हिम्मत न हार बैठें; क्योंकि यदि हम दृढ़ बनें रहेंगे, तो समय आने पर अवश्य फसल लुनेंगे। इसलिए जब तक हमें अवसर मिल रहा है, हम सबों की भलाई करते रहें, विशेष रूप से उन लोगों की, जो विश्वास के कारण हमारे सम्बन्धी हैं।” हम दूसरों से कुछ भी पाने की आशा न करें।

हमें न केवल भलाई के कार्य करना चाहिए, बल्कि, उसे सही इरादे के साथ भी करना चाहिए। हम में से कई लोग दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए भलाई के कार्य करते हैं। प्रभु भिक्षादान, प्रार्थना तथा उपवास के विषय में हमें चेतावनी देते हुए कहते हैं, “सावधान रहो। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने धर्मकार्यों का प्रदर्शन न करो, नहीं तो तुम अपने स्वर्गिक पिता के पुरस्कार से वंचित रह जाओगे।” (मत्ती 6:1)

भलाई करने का सही इरादा क्या होना चाहिए। ईश्वर की महिमा करने के लिए और ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए हमें भलाई के कार्य करना चाहिए न कि अपनी महिमा के लिए या दूसरों को खुश करने के लिए। प्रभु कहते हैं, “तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे स्वर्गिक पिता की महिमा करें”(मत्ती 5:16)। संत पौलुस भी यही कहते हैं, “आप लोग चाहे खायें या पियें, या जो कुछ भी करें, सब ईश्वर की महिमा के लिए करें” (1कुरिन्थियों 10:31)।

प्रेरित-चरित, अध्याय 5 में हम पाते हैं कि अनानीयस और सफीरा चाहते हैं दूसरे लोग उनके बारे में अच्छा सोचें। उसके लिए वे कुछ भलाई के कार्य करने का ढ़ोंग भी करते हैं। इस संदर्भ में पवित्र वचन कहता है, “मनुष्य अपना आचरण निर्दोष समझता है, किन्तु प्रभु हृदय की थाह लेता है” (सूक्ति 16:2)।

दूसरी बात यह है कि हम भातृप्रेम से प्रेरित होकर कार्य करें। संत पौलुस कहते हैं, “आप जो कुछ भी करें, भ्रातृभेम से प्रेरित हो कर करें” (1कुरिन्थियों 16:14)। संक्षेप में ईश्वर को अपनी सारी आत्मा, सारे हृदय, सारे मन तथा सारी शक्ति से प्यार करने और पडोसियों को अपने समान प्यार करने के लिए हम बुलाये गये हैं। इस प्रकार हम भलाई के कार्य कर सकते हैं।

-फादर फ्रांसिस स्करिया

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