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संत योहन बपरिस्ता का जन्मोत्सव

इसायाह 49:1-6; प्रेरित-चरित 13:22-26; लूकस 7:57-66,80

फादर फ्रांसिस स्करिया


पूजन-पध्दति के अनुसार काथलिक कलीसिया केवल तीन व्यक्तियों के जन्म-दिवस मनाती है। वे हैं – प्रभु येसु ख्रीस्त, माता मरियम और संत योहन बपतिस्ता। इसका कारण स्पष्ट है। जबकि सभी मनुष्य जन्म के समय जन्मपाप से कलंकित होते हैं, ये तीन ऐसे व्यक्ति हैं जो जन्म के समय पाप से कलंकित नहीं थे। येसु स्वयं ईश्वर हैं, इसी कारण उनमें कोई पाप नहीं हो सकता। कलीसिया के विश्वास के अनुसार माता मरियम के जन्म से पहले ही ईश्वर ने अपनी माता बनने के लिए उन्हें चुन कर पवित्र किया। हम माता मरियम के निष्कलंक गर्भागमन का त्योहार भी मनाते हैं। 25 मार्च, सन 1858 को लूर्द में बर्नडिक्ट को दर्शन देते हुए माता मरियम ने कहा, “मैं निष्कलंक गर्भागमन हूँ”। कलीसिया यह भी मानती है कि ईश्वर ने योहन बपतिस्ता को, जो मसीह के अग्रदूत बनने के लिए बुलाये गये थे, माँ मरियम के एलिज़बेथ से भेंट के समय पवित्र किया। पवित्र वचन कहता है कि जैसे ही एलिज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बालक योहन उनके गर्भ में उछल पडा (देखिए लूकस 1:44)।

आज हम संत योहन बपरिस्ता के जन्म का त्योहार मनाते हैं, वह भी एक इतवार को। प्रभु येसु स्वयं संत योहन बपतिस्ता की महानता पर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। वे कहते हैं, “मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बड़ा कोई पैदा नहीं हुआ” (मत्ती 11:11)। योहन बपतिस्ता का जन्म उनके माता-पिता के बुढापे में उन्हें एक विशेष वरदान के रूप में मिला। मसीह के अग्रदूत बनने के योग्य बनने हेतु उन्होंने कभी भी अंगूरी या मदिरा नहीं पी। उनके विषय में स्वर्गदूत गब्रिएल ने ज़करियस से कहा था, “वह प्रभु की दृष्टि में महान् होगा, अंगूरी और मदिरा नहीं पियेगा, वह अपनी माता के गर्भ में ही पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जायेगा और इस्राएल के बहुत-से लोगों का मन उनके प्रभु-ईश्वर की ओर अभिमुख करेगा। वह पिता और पुत्र का मेल कराने, स्वेच्छाचारियों को धर्मियों की सद्बुद्धि प्रदान करने और प्रभु के लिए एक सुयोग्य प्रजा तैयार करने के लिए एलियस के मनोभाव और सामर्थ्य से सम्पन्न प्रभु का अग्रदूत बनेगा।“ (लूकस 1:15-17) नबी इसायाह (40:1-4) ने करीब 750 वर्ष पहले ही उनके जन्म की भविष्यवाणी की थी।

प्रभु ईश्वर ने योहन बपतिस्ता को लोगों को प्रभु की ओर अभिमुख करने के लिए बुलाया। योहन ने अपने माता-पिता की सहायता तथा अपने दृढ़संकल्प से अपनी इस ज़िम्मेदारी को उत्कृष्ठ रूप से निभाया। ईश्वर के पवित्र आत्मा के योग्य बनने के लिए उन्होंने सादगी, परहेज उपवास तथा परित्याग का जीवन बिताया। मत्ती 3:4 में कहा गया है, “योहन ऊँट के रोओं का कपड़ा पहने और कमर में चमडे़ का पट्टा बाँधे रहता था। उसका भोजन टिड्डियाँ और वन का मधु था”। उन्होंने अपना जीवन निर्जन स्थानों में बिताया। वे लोगों को पश्चात्ताप का सन्देश सुनाते थे। “येरुसालेम, सारी यहूदिया और समस्त प्रान्त के लोग योहन के पास आते थे और अपने पाप स्वीकार करते हुए यर्दन नदी में उस से बपतिस्मा ग्रहण करते थे।“ ( मत्ती 3:5-6) उन्होंने साधारण लोगों, शास्त्रियों, नाकेदारों तथा सैनिकों को ईश्वर का वचन सुना कर उन्हें ईश्वर की ओर अभिमुख होने की चुनौती दी। कुछ लोगों ने उनकी चुनौती को स्वीकार कर अपने जीवन में परिवर्तन लाया। योहन निडर हो कर सच्चाई का साक्ष्य देते थे। उन्होंने राजा हेरोद के अनैतिक जीवन की आलोचना भी की। राजा ने अपने भाई की पत्नी को अपनी पत्नी के रूप में रखा था। उस स्त्री के दबाव में आकर राजा ने उनका सिर कटवा दिया। इस प्रकार उन्होंने मृत्यु के समय भी, मृत्यु से भी सत्य का साक्ष्य दिया। उन्होंने प्रभु के लिए जन्म लिया, प्रभु के लिए जीवन बिताया और वे प्रभु के लिए मर गये। उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं किया, बल्कि सब कुछ प्रभु के लिए अर्पित किया। वे अपने को वर (येसु) का मित्र (योहन 3:29) मान कर उस मित्रता में अपने आप को धन्य पाते थे। उन्होंने येसु के विषय में कहा, “यह उचित है कि वे बढ़ते जायें और मैं घटता जाऊँ" (योहन 3:30)।

योहन बपतिस्ता एक ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने जन्म से ले कर मृत्यु तक ईश्वर की इच्छा का पालन किया। उन्होंने लोगों को वह सन्देश सुनाया जो ईश्वर चाहते थे। उन्होंने दूसरों को प्रसन्न करने के लिए कुछ नहीं किया, सब कुछ प्रभु को प्रसन्न करने के लिए किया। संत पौलुस ने भी इसी प्रकार अपना जीवन प्रभु के लिए समर्पित किया था। वे कहते हैं, “यदि हम जीते रहते हैं, तो प्रभु के लिए जीते हैं और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिए मरते हैं। इस प्रकार हम चाहे जीते रहें या मर जायें, हम प्रभु के ही हैं” (रोमियों 14:8)। कुरिन्थियों के लिखते हुए वे कहते हैं, “मसीह सबों के लिए मरे, जिससे जो जीवित है, वे अब से अपने लिए नहीं, बल्कि उनके लिए जीवन बितायें, जो उनके लिए मर गये और जी उठे हैं” (2 कुरिन्थियों 5:15)। संक्षेप में, “मेरे लिए तो जीवन है-मसीह, और मृत्यु है उनकी पूर्ण प्राप्ति” (फिलिप्पियों 1:21)। ईश्वर हमारी सहायता करें।


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