चक्र अ के प्रवचन

पवित्र परिवार का पर्व

पाठ: प्रवक्ता 3:2-6,12-14; कलोसियों 3:12-21 या 3:12-17; मत्ती 2:13-15,19-23

प्रवाचक: फादर रोनाल्ड वाँन


आज हम पवित्र परिवार का त्योहार मना रहे है। आज के दिन माता कलीसिया नाजरेथ के येसु, युसूफ और मरियम के परिवार को आदर्श परिवार के रूप में प्रस्तुत करती है। इस परिवार की विशेषता येसु का होना है। जहॉ भी ईश्वर की उपस्थिति होती है वहॉ धार्मिकता नदी के समान बहती है। ईश्वर की दृष्टि एवं योजना में परिवार एक महत्वपूर्ण ईकाई है। जब ईश्वर ने अपने पुत्र को संसार में भेजा तो उन्हें यूसुफ और मरियम का परिवार प्रदान किया।

परिवार समाज की धुरी है। परिवारों की स्थिति ही समाज की दिशा निरधारित करती है। ईश्वर भी परिवारों को मनुष्य के कल्याण तथा मुक्ति का साधन बनाते हैं। वे परिवारों को आशिष देना एवं बचाना चाहते हैं। परिवार के एक सदस्य के द्वारा भी ईश्वर सारे परिवार को मुक्ति प्रदान करते हैं। परिवार का यदि एक सदस्य भी धार्मिक हो तो वह अपने विश्वास की अभिव्यक्ति जैसे प्रार्थना, सदाचरण, त्याग, मधुर विचार आदि के द्वारा परिवार के अन्य सदस्यों को प्रभावित करता तथा उनके लिये ईश्वर की कृपा की द्वार खोल देता है।

’’प्रभु को इस बात का खेद हुआ कि उसने पृथ्वी पर मनुष्य को बनाया था। इसलिए वह बहुत दुःखी था।प्रभु ने कहा, ’’मैं उस मानवजाति को, जिसकी मैंने सृष्टि की है, पृथ्वी पर से मिटा दूँगा...क्योंकि मुझे खेद है कि मैंने उन को बनाया है’’। नूह को ही प्रभु की कृपादृष्टि प्राप्त हुई।.... नूह सदाचारी और अपने समय के लोगों में निर्दोष व्यक्ति था। वह ईश्वर के मार्ग पर चलता था।’’ (उत्पति 6:6-8) चूंकि नूह ईश्वर की दृष्टि में कृपापात्र था ईश्वर उसे पोत बनाने का निर्देश देते हैं। ईश्वर नूह के साथ-साथ उसके परिवार को भी बचाने के उद्देश्य से पोत में ले जाने का आदेश देते हैं। ’’तुम अपने सारे परिवार के साथ पोत पर चढो, क्योंकि इस पीढी में केवल तुम्हीं मेरी दृष्टि में धार्मिक हो।’’ (उत्पति 7:1) इस प्रकार नूह की धार्मिकता उसके परिवार के कल्याण का कारण बनती है। धर्मग्रंथ उसके परिवार को धार्मिक कहकर नहीं बुलाता है बल्कि केवल नूह को। नूह के परिवार में भी पाप की छाया को हम कालांतर में देखते हैं जब उसका बेटा हाम अपने पिता नूह की नग्नता को देखता है जिसके कारण नूह उसे अभिशाप देता है। ’’कनान को अभिशाप! वह अपने भाइयों का दास बने।’’ (उत्पति 9:25) इससे हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि नूह का परिवार शायद नहीं बल्कि केवल नूह ईश्वर की दृष्टि में धार्मिक था।

निर्गमन ग्रन्थ का अध्याय 12 बताता है कि जब ईश्वर ने मिस्रियों को दण्ड दिया था तो उसने इस्राएलियों के परिवारों की रक्षा की थी। ’’जब प्रभु ने मिस्रियों को मारा था, तो वह मिस्र में रहने वाले इस्राएलियों के घरों के सामने से आगे निकल गया था और उसने हमारे घरों को छोड दिया था।’’ (निर्गमन 12:27)

ईश्वर की परिवारों को बचाने की इच्छा हम इब्राहीम और ईश्वर के वार्तालाप में भी पाते हैं। जब ईश्वर ने सोदोम और गोमोरा को नष्ट करने की योजना इब्राहीम को जाहिर की तो इब्राहीम उन नगरों को बचाने की गुहार लगाते हैं। इब्राहीम के ईश्वर से इस प्रकार प्रार्थना का एक कारण यह भी था कि उन नगरों में उसका भतीजा लोट रहता था। ईश्वर लोट को बचाने के साथ-साथ उसके परिवार को बचाते हैं। यह बात और है कि लोट की पत्नी अपनी अवज्ञा के कारण ’नमक का खम्भा’ बन गयी। (देखिये उत्पति 19) इस प्रकार इब्राहीम के कारण लोट और लोट के कारण उसका परिवार ईश्वर की कृपा प्राप्त करता है।

जकेयुस की घटना इस मतको और अधिक दृढता प्रदान करती है कि ईश्वर एक की धार्मिकता के कारण पूरे परिवार की मुक्ति का द्वार खोलते हैं। जकेयुस येसु से मिलकर एक नया जीवन पाता है तथा इस उमंग और उल्लास में वह प्रभु से कहता है, ’’प्रभु! देखिये, मैं अपनी आधी सम्पत्ति गरीबों को दूँगा और मैंने जिन लोगों के साथ बेईमानी की है, उन्हें उसका चौगुना लौटा दूॅगा’’। प्रभु जकेयुस के इस कथन के प्रतिउत्तर में कहते हैं, ’’आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है,...’’ (देखिये लूकस 19:1-10) केवल जकेयुस के हृदय परिवर्तन के कारण येसु उसके सारे परिवार को मुक्ति के पथ पर पहुॅचा देते हैं।

ईश्वर का दूत रोमन शतपति करनेलियुस को इन शब्दों से संबोधित करते हुये कहता है, ’’आपकी प्रार्थनायें और आपके भिक्षादान ऊपर चढकर ईश्वर के सामने पहुँचे और उसने आप को याद किया।’’ (प्रेरित चरित 10:4) इस संबोधन के द्वारा ईश्वर करनेलियुस को धार्मिक ठहराता है तथा उसे पेत्रुस को बुलाने का निर्देश देते हुये उसे तथा उसके परिवार को मुक्ति का वरदान देते हैं, ’’वह जो शिक्षा सुनायेंगे, उसके द्वारा आप को और आपके सारे परिवार को मुक्ति प्राप्त होगी।’’(प्रेरित चरित 11:14) इस प्रकार जब कारापाल आत्महत्या की कोशिश कर रहा था तो जो पौलुस उसे बताते हैं, ’’आप प्रभु ईसा में विश्वास कीजिए, तो आप को और आपके परिवार को मुक्ति प्राप्त होगी।’’ (प्रेरित चरित 16ः31)

इसी परिपेक्ष्य में संत पौलुस कहते हैं, ’’विश्वास नहीं करने वाला पति अपनी पत्नी द्वारा पवित्र किया गया है और विश्वास नहीं करने वाली पत्नी अपने मसीही पति द्वारा पवित्र की गयी है। नहीं तो आपकी संतति दूषित होती, किन्तु अब वह पवित्र ही है। (1 कुरि. 7:14) संत पौलुस के अनुसार किसी एक का विश्वासी होना भी दूसरे तथा बच्चों के लिये विश्वास का मार्ग खोल देता है।

ईश्वर के पुत्र के जन्म के पूर्व ईश्वर ने उसके लिये परिवार को तैयार किया जिसमें वह जन्म ले तथा उसका पालन-पोषण हो सके। येुस, मरियम और यूसुफ के नाजरेत का परिवार के सदस्यों की विशेषता यह है कि वे एक-दूसरे की ईश्वर की योजना पूरी करने में मदद करते हैं। धर्मग्रंथ में ऐसे अनेक उदाहरण है जो हमें सिखलाते हैं कि ईश्वर की दृष्टि में परिवार एक महत्वपूर्ण इकाई हैं तथा परिवार की मुक्ति हरेक सदस्य की जिम्मेदारी है। हमें भी अपने परिवार के प्रति गंभीर रहना चाहिये क्योंकि हरेक का व्यक्तिगत आचारण उनके परिवार को भी प्रभावित करता है।


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