चक्र अ के प्रवचन

प्रभु-प्रकाश का पर्व

पाठ: इसायाह 60:1-6; एफेसियों 3:2-3अ,5-6; मत्ती 2:1-12

प्रवाचक: फादर जीवन किशोर तिर्की


प्रिय भाइयों और बहनों, आज हम प्रभु प्रकाश का पर्व मना रहें हैं। वास्तव में यह ख्रीस्त जयन्ती का ही एक विस्तृत पर्व है। इसे हम ज्योति का पर्व भी कह सकते हैं। येसु मसीह इस धरा पर मनुष्य बनकर आये। ईश्वर ने अपने आप को प्रकट किया है। अतः यह विशाल रहस्योद्घाटन है। यह रहस्योद्घाटन किसी विशेष जाति, धर्म, संस्कृति, भाषा-भाषी, वर्ग या क्षेत्र के लोगों के लिए ही नहीं अपितु समस्त संसार व समस्त मानव जाति के लिए है। बस आवश्यकता है लोग इसे जाने, समझें, विश्वास कर स्वीकर करें।

जाने-अनजाने में ज्योतिषियों ने तारों का अनुसरण किया, ज्योति का अनुसरण किया। तारों का अनुसरण करते-करते उन्हें महती ज्योति मिल गयी। नबी इसायस चाहते हैं कि येरूसालेम को प्रकाशमान रहना चाहिये। येरूसालेम अपने-आप में प्रकाशमान होनी चाहिए थी क्योंकि यह ईश्वर की चुनी हुई प्रजा थी। ईश्वर की चुनी हुई प्रजा को स्वयं प्रकाशमान होकर अन्य राष्ट्रों व लोगों के लिए एक ज्योति बननी चाहिए थी परन्तु येरूसालेम में अंधकार छाया हुआ है। इतना ही नहीं जिस तारे का ज्योतिषी अनुसरण कर रहे थे वह भी येरूसालेम में अदृश्य हो जाता है जिसकी वजह से ज्योतिषियों को राजमहल में जाकर पता लगाना पड़ता है। परन्तु वहॉं और ही अधिक अंधकार छाया हुआ है। अतः नबी इसायस येरूसालेम को याद दिलाते हैं और येरूसलेम से अहवान करते हैं कि वह स्वयं ज्योति बन विशाल ज्योति को जानें, पहचानें और स्वीकार करें।

सुसमाचार में हम देखते हैं कि ज्योतिषियों को तारों का अनुसरण करते-करते बहुत ही लम्बी यात्रा करनी पड़ी। वे पूर्व देश से यात्रा करते हुए बेथलेहेम आये। बेथलेहेम व पूर्व देश एक दूसरे के इतने करीब भी नहीं रहे होगे। उनको यात्रा करते-करते कई दिन गुजर गये होंगे। राहों में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा। लेकिन उनका लक्ष्य मात्र एक था कि वे नवजात बालक का दर्शन करें। वे गैर-यहूदी, ईश्वर की चुनी हुई प्रजा में से नहीं थे। संभवतः उनका ईश्वर अलग रहा होगा। सुसमाचार से तो यही विदित होता है कि वे नक्षत्र का अध्ययन करने वाले थे। अतः वे तारे को ही अपना भाग्य मानते होंगे। इस तरह हम देख सकते कि तारे को मानने व पूजने वाले सच्चे ईश्वर को पाने पर सच्चे ईश्वर की पूजा करने लग गये। यह स्पष्ट है कि उनकी यह यात्रा न सिर्फ बाह्य है बल्कि अन्तरतम भी है जहॉं उनका परिवर्तन प्रत्यक्ष होता है। अब उन्होंने सच्चे ईश्वर को पाया और वही उनके अब सब कुछ है। अब वे तारों को पूजने वाले नहीं बल्कि सच्चे ईश्वर को पूजने वाले बन गये। इस तरह से उनका विश्वास, उनकी धारणा, उनका मत पूर्ण रूप से बदल गया। उन्होंने तारे का अनुसरण करते-करते महती ज्योति, प्रभु मसीह को पाया।

ज्योतिषियों की यह यात्रा हमारे ख्रीस्तीय जीवन को दर्शाती है। हमारा ख्रीस्तीय जीवन आरम्भ से लेकर अन्त तक एक यात्रा है। इसमें हमें उन ज्योतिषियों के भॉंति तरह-तरह की कठिनाइयॉं झेलनी पड़ेगी। हो सकता है हमारे जीवन के किसी-न-किसी हिस्से या कोने में अंधकार हो। जैसे-जैसे हम इस ख्रीस्तीय जीवन-यात्रा में आगे बढ़ते जाते हैं हमारा अंधकारमय हिस्सा उज्ज्वल होता जाता है। ज्योतिषियों का जीवन भी कुछ हद तक अंधकारमय था। लेकिन प्रभु मसीह से मुलाकात के पश्चात् उनका जीवन पूर्ण रूप से बदल गया। उनके जीवन में आन्तरिक परिवर्तन आया। इसी प्रकार हमारे जीवन में भी जैसे-जैसे हम प्रभु येसु की ओर आगे बढ़ रहे हैं हमें भी हर प्रकार की बुराइयों को त्यागना है। जो कुछ हमारे मन-दिल को धुमिल करता है उनसे मुक्त होकर उनसे अपने आप को दूर रखना है। शुद्ध दिल से हमें उस महान ज्योति को ढूढ़ना है। हमें उस सच्चे ईश्वर की ओर जाना और उसे पाना है।

ब्लैस पास्कल के अनुसार लोग तीन तरह के होते हैं। एक प्रकार के लोग वे हैं जो ईश्वर को पा चुके हैं और उनकी सेवा करते हैं। दूसरे प्रकार के लोग वे हैं जिन्होंने ईश्वर को अब तक पाया नहीं है पर ईश्वर की खोज में लगे हुए हैं। तीसरे प्रकार के लोग वे हैं जो न तो ईश्वर को खोजते हैं और न ही पाते हैं। आज के सुसमाचार में हम इन तीनों समूह के लोगों को पाते हैं। ये तीन तरह के लोग न सिर्फ आज के सुसमाचार में ही बल्कि हम इन्हें अपने दैनिक जीवन में भी पाते हैं। जिन्होंने ईश्वर को पाया और जो उनकी तन-मन से सेवा करते हैं उन में से माता मरियम एवं यूसुफ भी शामिल हैं। ये हमेशा तारों को नहीं बल्कि तारों के सृष्टिकर्ता को निहारते रहे। दूसरे प्रकार के लोग ज्योतिषियों के रूप में प्रस्तुत किये जा सकते हैं। ये ज्योतिषी राजा या ज्ञानी रहे होंगे। इन्होंने अपने अपने पद, प्रतिष्ठा, सुख-चैन, सुविधा, सौभाग्य को त्याग कर तारों का अनुसरण कर नन्हे बालक को खोजने व पाने के लिए निकल पड़े। उन्होंने उसे एक गौशाले में पाया। तीसरी तरह के लोग राजा हेरोद के जरिये पेश किए जा सकते हैं। वह ईश्वर को ढूंढ़ता नज़र आता है पर वास्तव में वह उन्हें खोजता नहीं है।

येसु के जन्म ने हेरोद के जीवन में हलचल मचा दी । उसे घबराहट और चिन्ता होने लगी। उसे संदेह, भय, शंका एवं चिन्ता सताने लगी थी। मरियम व युसूफ ने अपने जीवन में ईश्वर की योजना एवं इच्छा का पालन किया। दूसरी ओर ज्योतिषी ने तारे का अनुसरण करते हुए बालक को खोजा और उन्होंने उसे पाया भी। पर होरोद तो अपनी ताकत, अपने अधिकार तथा अपनी शक्ति से अपनी कुर्सी, अपने पद पर बने रहना चाहता था। आइये हम प्रार्थना करें कि हम भी उन ज्योतिषियों की भॉंति सच्चे व जीवित ईश्वर को ढूंढ़ और पा सकें जो हमारी जीवन को पूर्ण रूप से बदल कर हमें अपना बना लेगा।

-फादर जीवन किशोर तिर्की


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