चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का पाँचवाँ इतवार

पाठ: इसायाह 58:7-10; 1 कुरिन्थियों 2:1-5; मत्ती 5:13-16

प्रवाचक: फादर रोनाल्ड वाँन


ज्योति और नमक अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण कारक हैं। जहाँ कहीं भी वे रहें उनकी उपस्थिति किसी से छिप नहीं सकती है। ये न सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं बल्कि अगर ये मौजूद न हो तो अपनी अनुपस्थिति कहीं अधिक प्रभावशाली रूप से दर्ज करवाते हैं। न सिर्फ अपनी उपस्थिति या अनुपस्थिति बल्कि अगर इनकी मात्रा भी यदि सही अनुपात में न हो तो इसका अहसास हमें महसूस होता है। जैसे अगर खाने में नमक न हो तो सारा खाना ही स्वादहीन हो जाता है और सभी खाने वाले जान जाते हैं कि खाने में नमक नहीं है। नमक की कई विशेषतायें होती हैं जैसे नमक स्वाद बढ़ाता है, नमक शुद्धता का प्रतीक है तथा यह अगर नष्ट होने वाली वस्तुओं पर आलेपित किया जाये तो ये वस्तुयें कहीं अधिक समय तक बनी रहती हैं। प्रभु येसु खीस्त नमक की इन्हीं विशेषताओं को अपने शिष्यों को भी आत्मसात करने को कहते है। जैसे संसार के स्वादहीन या बेमतलब के जीवन में अपने कार्यो द्वारा स्वाद लाना। मनुष्य की निराशा में, बीमारी के दौरान या फिर, नास्तिक के जीवन में क्रमशः आशा, स्वास्थ्य, एवं ईश्वर का अहसास कराना आदि अनेकों ऐसे कार्य हैं जो नमक के स्वाद बढ़ाने के गुण को मानवीय जीवन में व्यक्त करते हैं। इसी प्रकार नमक श्वेत होता है एवं शुद्धता का प्रतीक है। लेकिन जब नमक को अशुद्ध तत्वों के साथ रखा जाये तो उसकी शुद्धता प्रभावित होती है एवं उसकी चमक धुँधला जाती है। यदि हम पाप रूपी अशुद्धता के संपर्क में रहें तो हमारे जीवन की शुद्धता भी नष्ट या कम हो सकती है। जब नमक की शुद्धता प्रभावित होती है तो उसकी उपयोगिता भी घट जाती है। इसी प्रकार यदि हम पाप के संपर्क रहें तो हमारी उपयोगिता भी घट जायेगी और हम शायद स्वर्ग राज्य के योग्य भी न रह जायें (मत्ती 13:40-43; प्रकाशना 3:15-16)। हमें भी नमक के माफिक अपनी शुद्धता सदा बनाये रखनी चाहिये जिससे हम स्वर्ग राज्य के योग्य बने रहें। 

प्रभु शिष्यों को संसार की ज्योति घोषित करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार ज्योति अंधकार को मिटाकर सारी जगह को प्रकाशमय बना देती है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य का जीवन जो अज्ञानता, पाप, स्वार्थता आदि के कारण अंधकारमय हो गया है उसे शिष्य को अपने प्रभु येसु की ज्योति के द्वारा मुक्त कराना है। लेकिन हम अपने आप में ज्योति नहीं हैं बल्कि हम प्रभु येसु खीस्त से यह प्रकाश पाते हैं तथा हम उनकी ज्योति बन जाते हैं जैसे कि संत पौलुस कहते हैं, ‘‘ईश्वर ने आदेश दिया था कि अंधकार में प्रकाश हो जाये। उसी ने हमारे हृदयों को अपनी ज्योति से आलोकित कर दिया है, जिससे हम ईश्वर की वह महिमा जान जायें, जो मसीह के मुखमण्डल पर चमकती है‘‘ (2 कुरिन्थियों 4:6)। यहाँ हमें एक बात और ध्यान में रखनी चाहिये कि प्रभु येसु खीस्त ही मूल, नवीन एवं वास्ततिक ज्योति हैं तथा हमारी मुक्ति की गारण्टी हैं जैसा कि संत योहन लिखते हैं, ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी‘‘ (योहन 8:12)। 

जो बपतिस्मा संस्कार में इस ज्योति के धारक बन जाते हैं तथा जिन्हें प्रभु संसार की ज्योति घोषित करते हैं उनकी कुछ जिम्मेदारियाँ भी हैं। सर्वप्रथम हमें ऐसे रहना चाहिये जिससे हम लोगों को दिखाई दे सकें। जिससे संसार के लोग हमें देख सकें (योहन 13:35; 17:21)। प्रभु यह बात शहर एवं दीपक के पैमाने के उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं। दूसरा, हमें अपने प्रकाश से दूसरों को भी प्रकाशित करना चाहिये ताकि हमारी चमक से लोग यह पहचान सकें कि हम स्वर्गिक पिता की संतान हैं।

जिस प्रकार दीपक जल कर लोगों को प्रकाश देता है उसी प्रकार हमें अपने कार्यों के प्रकाश के द्वारा दूसरों के जीवन के बुझे या मंद हो चुके दीपक को जलाना चाहिये। मदर तेरेसा एक बार आस्ट्रेलिया के दौर पर गयी थी। वे वहाँ अपनी सिस्टरों के कॉवेंट में रुकी। जैसा कि सामान्यतः मदर करती थी वे उन सिस्टरों के साथ उनके दैनिक कार्यों में हाथ बँटाने लगी। शाम के समय सिस्टर्स लोगों से मिलने उनके घर जाया करती थी। मदर भी उनके साथ घर-घर गयी। ऐसा करते समय वे एक ऐसे व्यक्ति के घर गयी जो अकेला रहा करता था। मदर ने पाया की उसके घर में बिजली की सुविधा नहीं थी लेकिन फिर भी उसके घर में जो दीपक था, वह ऐसा लग रहा था जैसे उसे वर्षों से किसी ने छुआ तक नहीं है। यह देखकर मदर ने उससे पूछा कि वह इस दीपक का उपयोग क्यों नहीं करता। इस पर उसने बड़े ही निराशाजनक लहजे़ में बताया कि वह इस दुनिया में अकेला है, न ही वह किसी से मिलता-जुलता है और न ही कोई उससे मिलने आता है। ऐसे में अंधेरा होने से पहले ही वह अपना खाना-पीना खत्म कर अपनी तनहाईयों में खो जाता है और इस तरह उसे अंधेरे में भी दीपक को जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। मदर ने उस निराश व्यक्ति के पुराने जंग लगे दीपक को साफ किया उस में तेल डाला, नई बत्ती डाली और उसे जलाकर एक दीवट पर रखा। फिर मदर ने उससे कहा आज से तुम इसे रोज जलाना क्योंकि हर शाम को मेरी सिस्टर्स तुमसे मिलने आया करेगी। मदर उसे यह आशवासन देकर चली गई। 

कुछ सालों बाद मदर तेरेसा को उस व्यक्ति से एक पत्र मिलता है जिसमें उसने लिखा था, ‘‘प्रिय मदर, जो दीपक आपने मेरे जीवन में वर्षों पहले जलाया था वह आज भी जल रहा है‘‘। निश्चित रूप से वह अपने जीवन रूपी दीपक की बात कर रहा था। वह व्यक्ति अकेलेपन के कारण निराश व हताश हो चुका था, यहाँ तक कि उसे अपने घर में भी रोशनी की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। लेकिन मदर की उससे भेंट करने और उसके बाद सिस्टरों के प्रतिदिन उसके घर जाने व मिलने से उसके अंधकारमय जीवन में आशा का दीपक जल उठा। जब शाम को अंधेरा छाने लगता था तो उसको मालूम था कि वह अकेला नहीं है उससे मिलने कोई आने वाला है। इस तरह उसके जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन आ गया। वह लोगों से मिलने लगा और एक मिलनसार व्यक्ति बन गया। 

हम भी अपने कार्यों के द्वारा इस तरह अंधकार में डूबे लोगों को ज्योति का मार्ग दिखा सकते हैं। इसके लिये हमें कोई बड़े-बड़े कार्य करने की ज़रूरत नहीं है और न ही अवसरों का इंतजार करने की। बल्कि यह कार्य तो हम अपने दैनिक जीवन के छोटे-छोटे कार्यों द्वारा भी कर सकते हैं। जैसे किसी की मदद करके, क्षमा करके, दो शब्द शालीनता के कहकर, बीमार एवं लाचारों का हालचाल पूछ कर। ऐसे सैकड़ों अवसर हैं जब हम अपनी खीस्त की ज्योति जो हम में प्रज्वलित है, को दूसरों को दिखा सकते हैं और उन्हें भी ज्योतिर्मय कर सकते हैं। आइए हम भी सही अर्थों में संसार के नमक और ज्योति बन जायें और इन तत्वों के गुणों का अपने जीवन में पालन करें।


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