चक्र अ के प्रवचन

चालीसे का पाँचवाँ इतवार

पाठ: एज़ेकिएल 37:12-14; रोमियों 8:8-11; योहन 11:1-45

प्रवाचक: फादर वर्गीस पल्लिपरम्पिल


संत योहन के सुसमाचार में हम देखते हैं कि प्रभु येसु अनेक बार चिह्नों एवं प्रतिकों के द्वारा लोगों को शिक्षा देते हैं। उदाहरण के लिए संत योहन के सुसमाचार 6,48 में प्रभु येसु कहते हैं, “जीवन की रोटी मैं हूँ ’’। योहन 8,12 में प्रभु येसु कहते हैं, “संसार की ज्योति मैं हूँ। योहन 10,7 में प्रभु येसु कहते हैं, “भेड़शाला का द्वार मैं हूँ“। योहन 15,1 में प्रभु येसु कहते हैं, “मैं सच्ची दाखलता हूँ’’। योहन 14,6 प्रभु येसु कहते हैं, ‘मार्ग, सत्य ओर जीवन मैं हूँ’’। अध्याय 10, वाक्य 11 में प्रभु कहते हैं, “भला गडे़रिया मैं हूँ“। और आज के सुसमाचार में हमने सुना कि प्रभु येसु लाज़रुस की बहन मारथा से कहते हैं, “पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ’’ (11,25)। संत योहन के सुसमाचार में और भी जगहों पर हम देख सकते हैं कि येसु चिह्नों एवं प्रतीकों के द्वारा अपने बारे में कहते हैं। वे बार बार चिह्नों तथा प्रतीकों का इस्तेमाल इसलिए करते हैं कि लोग उन्हें पूर्ण रूप से समझ सकें कि वे ही ईश्वर के पुत्र हैं, वे ही मसीह हैं और वे ही हमारे लिए सब कुछ हैं। 

जब प्रभु येसु कहते हैं कि मैं जीवन की रोटी हूँ, तो प्रभु हमें यह समझाना चाहते हैं कि वे हमारे लिए वह भोजन हैं जो हमारी आत्मिक भूख मिटाता है और जीवन यात्रा में हमें शक्ति प्रदान करता है। जब प्रभु येसु कहते हैं कि “मैं संसार की ज्योति हूँ’’ तो वे हमसे कहना चाहते हैं कि वे हमारे लिए वह ज्योति हैं जो हमारे जीवन के सभी तरह के अन्धकार को दूर करती है या येसु वह ज्योति हैं जो हमारा मार्गदर्षन करती है और हमें ईश्वरीय ज्योति की ओर ले चलती है। जब प्रभु येसु कहते हैं कि मैं सच्ची दाखलता हूँ, तो वे हमें समझाना चाहते हैं कि वे हमारे जीवन का स्रोत हैं जिससे जुडे़ रहने से हमारा जीवन फलदायक बन जाता है और जिससे दूर हो जाने से हमारा जीवन सूखी डाली की तरह बन जाता है। जब प्रभु येसु कहते हैं कि भला गडेरिया मैं हूँ तो वे हमसे कहते हैं कि वे हमारे संरक्षक एवं मार्गदर्षक हैं। आज के सुसमाचार में हमने सुना कि प्रभु येसु कहते हैं कि जीवन और पुनरुत्थान मैं हूँ। इस वचन के द्वारा प्रभु हमसे कहना चाहते हैं कि वे ही हमें जीवन प्रदान करने एवं हमारे जीवन को सुरक्षित रखने वाले एवं हमें पुनर्जीवन प्रदान करने वाले ईश्वर हैं। 

प्रभु येसु हमारे लिए सब कुछ हैं। वे हमारा आत्मीय भोजन हैं, वे हमारे जीवन का स्रोत हैं, वे हमारे मार्ग और सत्य हैं, वे हमारे मार्गदर्षक हैं, वे हमारे जीवन की ज्योति हैं, और वे हमें जीवन एवं पुनरुत्थान प्रदान करने वाले सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं। प्रभु येसु हमारा सर्वस्व हैं उनके बिना हम कुछ भी नहीं हैं। संत योहन के सुसमाचार में प्रभु येसु स्पष्ट रूप से अपने शिष्यों से कहते हैं, ’’मुझ से अलग रह कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते हो“ (योहन 15,5)। हम मनुष्य कई अवसरों पर अपने को निस्सहाय पाते हैं। बीमारियों, दुर्घटनाओं और विशेष करके मृत्यु के सामने हम पूरी तरह निस्सहाय हैं। लेकिन इन सब परिस्थितियों के सामने ईश्वर निस्सहाय नहीं हैं। वे परमशक्तिशाली हैं। उन पर भरोसा करने वालों को वे हमेशा सहायता प्रदान करते हैं। चाहे कुछ भी हो जाये वे उनकी रक्षा करते हैं। इस बात को दूसरे शब्दों में संत पौलुस कहते हैं, “जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं और उसके विधान के अनुसार बुलाये गये हैं, ईश्वर उनके कल्याण के लिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है“ (रोमियों 8,28)। आज के सुसमाचार में हम ये सब बातें देख सकते हैं। 

आज के सुसमाचार में हमने लाज़रुस की मृत्यु एवं पुनरुत्थान के बारे में सुना। प्रभु येसु ने लाज़रुस को उसकी मृत्यु के चार दिन के बाद कब्र में से पुनर्जीवित किया। सुसमाचार के अनुसार यह पहली बार नहीं है जब प्रभु येसु ने किसी मृतक को पुनर्जीवित किया। इससे पहले भी प्रभु ने यह चमत्कार किया था। संत लूकस के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि प्रभु येसु एक विधवा के बेटे को पुनर्जीवित करते हैं (लूकस 7,12), और संत मत्ती के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि प्रभु येसु एक अधिकारी की बेटी को पुनर्जीवित करते हैं (9,18-26)। इन दोनों घटनाओं में प्रभु येसु ने विधवा के बेटे एवं अधिकारी की बेटी को उनकी मृत्यु होने के कुछ ही क्षण बाद पुनर्जीवित किया था। लेकिन लाज़रुस को उन्होंने उसके मृत्यु के चार दिन के बाद पुनर्जीवित किया था। इसके अलावा इन घटनाओं के बीच में और भी अंतर हैं। लाज़रुस का पुनर्जीवन प्रभु येसु की मृत्यु के कुछ ही दिनों के पहले हुआ था और लाज़रुस के पुनरुत्थान प्रभु येसु की मृत्यु एवं पुनरुत्थान के बारे में हमें बहुत सारी बातें कहता है। 

बाइबिल में हम बार बार यह देख सकते हैं कि जब मनुष्य पूर्ण रूप से निस्सहाय होते हैं और अपने आपको निस्सहाय मानते हुए ईश्वर पर भरोसा रखते हैं तब ईश्वर की शक्ति एवं महिमा ज्यादा से ज्यादा प्रकट होती है। उदाहरण के लिए पिता इब्राहीम के जीवन में हम देख सकते हैं कि उनके बुढापे में, जब वे पूर्ण रूप से निस्सहाय थे ईश्वर उन्हें संतान-प्राप्ति का सुख देते हैं। निर्गमन ग्रन्थ में बार बार हम यह देख सकते हैं कि विभिन्न अवसरों में जब इस्राएली जनता निस्सहाय थी ईश्वर उनकी रक्षा करते हैं। आज के सुसमाचार में भी हम यह देख सकते हैं। लाज़रुस की बहनें पूर्ण रूप से निस्सहाय थीं और प्रभु येसु उन्हें साँत्वना देते हैं और मृत्यु होने के चार दिन बाद भी प्रभु लाज़रुस को पुनर्जीवित करते हैं। लाजरुस का मृतशरीर मनुष्य की निस्सहायता का चिह्न है और जब मनुष्य निस्सहाय होता है और ईश्वर पर भरोसा रखता है, तब ईश्वर वहाँं चमत्कार करते हुए अपनी महिमा प्रकट करते हैं। प्रभु येसु की मृत्यु एवं पुनरुत्थान में भी हम यही देख सकते हैं। सर्वशक्तिमान होने के बावजूद भी उन्होंने अपने आपको सूली पर मरने दिया, ईश्वर की महिमा एवं हमारी मुक्ति के लिए अपने आपको क्रूस पर एवं बाद में कब्र के अन्दर निस्सहाय बनाया। इसलिए ईश्वर उन्हें पुनर्जीवन प्रदान करते हैं। यहाँ हम ईश्वरीय शक्ति का दर्षन कर सकते हैं। कब्र में से ईश्वर अपने निस्सहाय पुत्र को पुनर्जीवित करते हैं क्योंकि उन्होंने सर्वशक्तिमान होने के बावजूद भी अपने आपको निस्सहाय बनाया और ईश्वर पर भरोसा किया। फिलिप्पियों के नाम के पत्र में संत पौलुस इसका वर्णन करते हुए कहते है, “वह (येसु) वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया। इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान बनाया और उन को वह नाम प्रदान किया, जो सब नामों में श्रेष्ठ हैं“(फिलिप्पियों 2:6-9)। 

संत मारकुस के सुसमाचार में प्रभु येसु कहते हैं, “जो छोटे बालक की तरह ईश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा“ (मारकुस 10,15)। यह तो सच है कि छोटा बच्चा निष्कलंकता, सच्चाई आदि अच्छे से अच्छे गुणों का प्रतीक है। लेकिन जब प्रभु येसु ने यह कहा कि हमें छोटे बालक के समान बनना है तो उन्होंने बच्चों के इन गुणों के अलावा एक गुण बहुत छोटे बच्चों में देखा था और वह है निर्भरता। हम सब जानते हैं कि छोटे बच्चे अपने आप से कुछ भी नहीं कर सकते हैं। वे सभी बातों के लिए अपने माता-पिता पर या अपने से बड़ों पर निर्भर रहते हैं। मैं यहाँं बहुत छोटे बच्चों के बारे में कह रहा हूँ। चाहे खाना खाने के लिए हो, चैन से सोने के लिए हो या चलने के लिए हो, वे अपनों से बड़ों पर निर्भर करते हैं। इसलिए जब प्रभु येसु ने कहा कि जो छोटे बालक की तरह ईश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा, प्रभु हमें यह समझाना चाहते हैं कि स्वर्गराज्य में प्रवेश करने के लिए या अनंत जीवन प्राप्त करने के लिए हमें अपनी निस्सहायता समझकर ईश्वर पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए। प्रभु के जीवन में हम यह बात बार-बार देख सकते हैं। जब प्रभु येसु अपने पिता पर पूर्ण रूप से निर्भर थे तब पिता ने उनके लिए सब कुछ किया। प्रभु का पुनरुत्थान भी इस बात का साक्ष्य देता है। आज के सुसमाचार के द्वारा प्रभु हमसे भी आग्रह करते हैं कि हम भी ईश्वर पर भरोसा करना सीखें। 

हम भी जीवन में कभी कभी पूर्ण रूप से निस्सहाय बन जाते हैं। कभी बीमारियों के कारण या कभी आर्थिक कठिनाईयों के कारण, कभी किसी की मृत्यु के कारण या कभी परिवार में शान्ति न होने के कारण हम निस्सहाय बन जाते हैं। आज के सुसमाचार के द्वारा प्रभु हम से यही कहना चाहते हैं कि उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है, वे किसी के सामने निस्सहाय भी नहीं है। वे हमारी रक्षा करेंगे, वे हमारा दूख दूर करेंगे। 

आइए, हम भी ईश्वर के सामने अपनी निस्सहायता को प्रकट करें एवं स्वीकारे। हम उन पर भरोसा करें ताकि हम भी हमारे जीवन में ईश्वर की महिमा देख सकें।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!