चक्र अ के प्रवचन

पेन्तेकोस्त का इतवार (दिन का मिस्सा)

पाठ: प्रेरित-चरित 2:1-11; 1 कुरिन्थयों 12:3ब-7,12-13; योहन 20:19-23

प्रवाचक: फ़ादर जॉंनी पुल्लोप्पिल्लिल


पेन्तेकोस्त का दिन हमें यह याद दिलाता है कि प्रभु येसु स्वयं मृत्यु पर विजयी होकर महिमा के साथ पुनरुत्थित हुए और कथनानुसार वे शिष्यों के बीच रहने लगे। ‘‘मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोडूँगा बल्कि दुनिया के अंत तक तुम्हारे साथ रहूँगा‘‘। पुनरुत्थान के बाद उन्होंने यह स्थापित किया कि वे शारीरिक रूप से हमारी सीमाओं के परे हैं, पर वे पुनः हमारे सम्मुख विभिन्न रूपों में प्रकट हुए। वे किसी व्यक्ति विषेष, जाति एवं धर्म विषेष के नहीं बल्कि सारे विश्व मण्डल के प्रभु हैं। येसु ने अपने शिष्यों को अलग-अलग रूपों में दिव्य दर्षन दिये। पवित्र आत्मा अग्नि के रूप में प्रेरितों पर उतरते हैं। 

जब पवित्र आत्मा प्रेरितों पर उतरते हैं तब उनमें विभिन्न प्रकार के बदलाव आते हैं। उनमें सर्वप्रथम है - डर से छुटकारा। पवित्र आत्मा के आगमन के पहले प्रेरित बहुत डरे हुए थे। डर के मारे वे बंद कमरे में बैठते थे। प्रभु के दुखभोग व क्रूसमरण के अवसर पर वे सब डर के मारे ही उन्हें छोड़कर भाग गये थे। डर के कारण पेत्रुस ने प्रभु को अस्वीकार किया था। लेकिन पवित्र आत्मा के आगमन से उन्हें निडरता का वरदान मिलता है। शिष्य निडर होकर सुसमाचार सुनाने लगते हैं। इतना ही नहीं, यहूदी नेताओं के मुँह से धमकियाँ सुनने के बाद भी वे निर्भीकता के साथ ईश्वर का वचन सुनाते रहे। हमने भी अपने बपतिस्मा तथा दृढ़ीकरण संस्कारों में पवित्र आत्मा को स्वीकार किया है। अगर हम इस पवित्र आत्मा का अनुभव करते हैं तो हमें भी निर्भीकता के साथ अपना जीवन बिताना चाहिए। बाइबिल में हमें देखने को मिलता है कि जब ईश्वर अपने आपको मनुष्य के सामने प्रकट करते हैं तो उनका पहला आदेष है- ‘‘डरो मत‘‘। हमें क्यों डरना नहीं चाहिए यह भी प्रभु व्यक्त करते हैं। ‘‘क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ’’। जो भी व्यक्ति ईश्वर के साथ होने का अनुभव करता है वह डर के अधीन नहीं रह सकता। डर को मनुष्य से हमेषा के लिए दूर भगाने के लिये ईश्वर ‘‘इम्मानूएल‘‘ बन कर हमारे बीच में आये। इम्मानूएल का अर्थ है ‘‘ईश्वर हमारे साथ हैं‘‘। ईश्वर मानव बनकर हमारे बीच में रहे। लेकिन मानव जीवन की कुछ सीमाएं हैं। मानव जीवन कुछ सीमित समय के लिये होता है। प्रभु येसु का मानवीय जीवन भी कुछ सालों तक सीमित था। परन्तु अपने पुनरुत्थान से प्रभु इन सीमाओं को पार करते हैं तथा एक असीम एवं असीमित जीवन शुरू करते हैं। इस प्रकार पवित्र आत्मा का वरदान पुनरुत्थित प्रभु की शिष्यों के बीच अनन्त उपस्थिति का वरदान है। इसलिये जो व्यक्ति इस पवित्र आत्मा को पाते हैं, वे सभी प्रकार के डर और भय से मुक्त होते हैं। 

हम में से कई लोग विभिन्न प्रकार के भय के गुलाम हैं। कोई अपने पिता से डरता है तो कोई अपने पति से, कोई जानवरों से डरता है तो कोई अपने आप से, कोई पानी से डरता है तो कोई अंधकार से, कोई किसी समस्या से डरता है तो कोई संकट से। वास्तव में इस प्रकार के डर व भय की मौजूदगी इस सत्य का दर्षाती है कि हमने वास्तव में पवित्र आत्मा को नहीं परखा है, उनकी शक्ति को नहीं पहचाना है। तो आइए आज हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वे हमें पवित्र आत्मा को पहचानने की कृपा प्रदान करें।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!