चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का चौदहवाँ इतवार

पाठ: ज़कर्या 9:9-10; रोमियों 8:9, 11-13; मत्ती 11-25-30

प्रवाचक: फ़ादर टॉमी जोसफ


सिकंदर महान, दुनिया के सब से बड़े नेताओं में से एक था। 336 ई. पू. वह मेसिडोनिया के सिंहासन का उत्तराधिकारी बना। ई. पू. 334 और 330 के बीच सिंकदर ने विजय यात्रा प्रारम्भ की। फिलीस्तीन भी उसके अधीन आ गया। उस समय लिखे गये धर्मग्रंथ के भागों में इस ऐतिहासिक घटना का प्रभाव अवश्य देखने को मिलता है। नबी ज़कर्या की पुस्तक के अध्याय 9-14 का भाग इस दौरान लिखा गया था। सिकंदर घोड़े पर सवार होकर लोगों को मारते-मरवाते भारत तक आ पहुँचा था। सिंकदर 330 ईस्वी पूर्व तक राज्य के विस्तार में लगा रहा और उसके बाद 327 तक वह साम्राज्य में विद्रोह दबाने में लगा रहा। उसे इसके लिये सैकड़ों लोगों को मारना तथा मरवाना पड़ा। इस हमलावर हत्यारे को मिस्रियों ने देवता मान लिया था। 

हमलावर सिंकदर की तुलना में शांति लाने वाले, न्यायी राजा के विषय में नबी ज़कर्या लिखते हैं कि तेरे राजा न्यायी और विजयी हैं, वे विनम्र हैं, वे गधे के बछड़े पर सवार हैं। उनके समय युद्ध के घोड़े तथा रथ की ज़रूरत नहीं रहेगी। वे राष्ट्रों के लिये शांति घोषित करेंगे। नबी ज़कर्या ने भविष्यवाणी की कि उनका राज्य पृथ्वी के सीमान्तों तक होगा। जब प्रभु ने महिमा के साथ येरुसालेम में प्रवेश किया तो नबी की इस भविष्यवाणी को पूर्ण होते देखा गया। 

संत पौलुस के पत्रों में से सबसे लंबा रोमियों के नाम उनका पत्र है। यह पत्र उन्होंने सन् 58 में कुरिन्थ में रहते समय लिखा था। संत पौलुस का इरादा था कि वे मिशनरी कार्य हेतु रोम से होकर स्पेन पहुँच जाए। संत पौलुस रोम की कलीसिया का भ्रमण करना चाहते थे। मगर दुःख की बात है कि पौलुस की योजना पूरी नहीं हो पायी। वे येरुसालेम गये जहाँ वे बंदी बना लिये गये। आखिरकार वे सन् 61 में रोम पहुँच ही गये लेकिन बिलकुल भिन्न परिस्थितियों में। रोमियों के नाम उनके पत्र में संत पौलुस बहुत सारी ईश शास्त्र की बातें बताते हैं। आज का दूसरा पाठ अध्याय आठ से लिया गया है। इसमें ‘‘आत्मा‘‘ शब्द का प्रयोग बीस बार किया गया है। आज के चार वाक्यों में ‘‘आत्मा‘‘ शब्द 6 बार आया है। यह संत पौलुस की उस शिक्षा का प्रमाण है जो आध्यात्मिकता से सम्पन्न है। संत पौलुस हमें चेतावनी देते हैं कि हमें सांसारिकता से ऊपर उठकर आध्यात्मिकता को महत्व देना है, शारीरिक जीवन की तुलना में आत्मिक जीवन को प्राथमिकता देना चाहिये। अगर हम शरीर की इच्छा के अनुसार जीयें तो शरीर के कर्जदार बन जायेंगे। हम खीस्तीय बपतिस्मा स्वीकार कर चुके हैं। बपतिस्मा संस्कार में हम सबके सब पाप की ओर से मर चुके हैं। हमारा पुराना स्वभाव उन्हीं के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका है, जिससे पाप का शरीर मर जाये और हम फिर पाप के दास न बनें। इसलिये हमें आत्मा से प्रेरित होकर जीवन बिताने के लिये संत पौलुस सलाह देते हैं। 

आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु को पिता परमेश्वर की स्तुति और प्रशंसा करते हुए पाते हैं। प्रभु येसु ने पिता परमेश्वर की स्तुति इसलिये की कि उन्होंने ने स्वर्ग राज्य के रहस्यों को ज्ञानियों से छिपाकर निरे बच्चों पर प्रकट किया है। आज के सुसमाचार के भाग के ठीक पहले के भाग में हम पढ़ते हैं कि प्रभु ने उन शहरों को धिक्कारा जिनके लोगों ने येसु के चमत्कारों को देखकर भी उनपर विश्वास नहीं किया था। मत्ती 11:23 में येसु ने कहा कि कफ़रनाहुम को अधोलोक तक नीचे गिराया जायेगा। येसु ने कफ़रनाहुम को अपना निवास स्थान बनाया था (मत्ती 4:13)। कफ़रनाहुम येसु के वास के लिये उचित स्थान था लेकिन वहाँ के लोगों ने प्रभु पर विश्वास नहीं किया। 

समाज के निम्न स्तर के लोगों ने प्रभु को स्वीकारा तथा उनकी वाणी सुनी। चरवाहे, मछुवारे, नाकेदार जैसे लोगों ने प्रभु पर विश्वास किया। समाज के नेता फ़रीसी, सदूकी आदि लोगों ने येसु को ठुकराया तथा उनके संदेश की अनदेखी की। प्रभु ने इन सब बातों में पिता परमेश्वर की इच्छा को स्वीकारा। प्रभु के पास जो लोग आये वे यहूदी धर्म की कानूनीयत के बोझ से दबे हुये थे। प्रभु ने उनसे कहा, ‘‘तुम सब मेरे पास आओ‘‘। प्रभु ने कहा, ‘‘मेरा जुआ सहज और मेरा बोझ हल्का है‘‘। जुआ शोषण का औज़ार है। वह दुख-तकलीफ, गुलामी का प्रतीक है। नबी यिरमियाह एक जुआ पहन कर चलते थे (यिरमियाह 27-28)। राजाओं की प्रथम पुस्तक 12:4 में हम पढ़ते हैं कि इस्राएली जनता ने राजा येरोबोआम से अनुरोध किया था कि वे उस भारी जुएं को हल्का कर दें जिसे उनके पिता सुलेमान ने उनके कंधो पर रखा था तो वे उसकी सेवा करेंगे। 1 राजाओं 12:14 में हम पढ़ते हैं कि राजा येरोबोआम ने इस्राएलियों को यह उत्तर दिया, ‘‘मेरे पिता ने तुम लोगों पर भारी जुआ रख दिया, मैं उसे और अधिक भारी करूँगा, मेरे पिता ने तुम्हें कोड़ों से पिटवाया, मैं तुम्हें कील लगे कोड़ों से पिटवाऊँगा।‘‘ 1 राजाओं 12:19 में हम पढ़ते हैं कि इसी कारण इस्राएल दाऊद के घराने से अलग हो गया। एक राजा की मूर्खता के कारण, उसके जुआ हल्का न करने के कारण यहूदी राष्ट्र हमेशा के लिये खण्डित हो गया। 

येसु मसीह दाऊद के वंश में जन्मे तथा 28वीं पीढ़ी में येरोबोआम की त्रुटी को सुधारा और कहा, ‘‘मेरे पास आओ, मेरा जुआ हल्का है।‘‘ यहूदी धर्म आम लोगों के लिये बोझ बन गया था। खीस्तीय धर्म किसी के लिये बोझ नहीं बनता और बनना भी नहीं चाहिये। बल्कि लोगों का बोझ हल्का करने वाला धर्म बनना चाहिये। खीस्तीय धर्म की प्राथमिकता आत्मा की मुक्ति है। आइए हम हमारे जीवन के हरेक बोझ को इस यूखारिस्तीय समारोह में प्रभु के समक्ष लाये और विष्वास करें की प्रभु उसे अवष्य हल्का करेंगे। हम एक-दूसरे का बोझ भी परस्पर प्रेम, भाईचारे और परोपकार के माध्यम से हल्का करें।


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