चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का अठारवाँ इतवार

पाठ: इसायाह 55:1-3; रोमियों 8:35,37-39; मत्ती 14:13-21

प्रवाचक: फ़ादर फ्रांसिस स्करिया


अंग्रेजी में कहा जाता है, “Team work makes the dream work”. यानी दलीय कार्य सपने को साकार करता है। प्रभु येसु ईश्वर के पुत्र हैं। ईश्वर ने अपने शब्द मात्र से सारे विश्व की सृष्टि की। उन्हें किसी की मदद या सहायता की कोई ज़रूरत नहीं थी। वे सर्वशक्तिमान हैं। फिर भी अपने मुक्ति कार्य में निर्बल मनुष्यों को सहभागी बनाते हैं। उन्होंने अपना साथ देने के लिये 12 प्रेरितों को चुना और उन्हें अपने सुसमाचारीय कार्य में सहभागी बनाया। अगर हम आज के सुसमाचार को ध्यानपूर्वक पढे़गे तो हमें यह पता चलेगा कि येसु ने रोटियों के चमत्कार में अपने बारह शिष्यों को सहभागी बनाया। जब शिष्य येसु के पास यह कहते हुए आते हैं कि यह स्थान निर्जन है, दिन ढ़ल चुका है और उन्हें लोगों को विदा करना चाहिए तो प्रभु उन्हें समझाते हैं कि उन्हें अपने कर्त्तव्यों से हाथ नहीं धोना चाहिए यानी उन्हें खुद लोगों को खाना खिलाना चाहिये। इस अवसर पर शिष्य चिंतित हो जाते हैं क्योंकि जिस काम की अपेक्षा उनसे की जाती है उसे पूरा करना उनके लिये असंभव है- पाँच हज़ार से अधिक लोगों को खिलाना। फिर भी प्रभु के रहते उन्हें चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे प्रभु के दल के सदस्य हैं और प्रभु ही उनके दल के नेता हैं। इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि पूरा काम प्रभु के ऊपर छोड़ दें। उन्हें अपनी क्षमता तथा सामर्थ्य के अनुसार अपना योगदान देना चाहिए। वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ प्रभु के पास लाते हैं। फिर प्रभु अपने शिष्यों को लोगों को घास पर बैठा देने का आदेश देते हैं। फिर प्रभु रोटियों के ऊपर आशिष की प्रार्थना बोलकर उन्हें शिष्यों को देते हैं ताकि वे लोगों को दें। अन्त में प्रभु शिष्यों को बचे हुए टुकड़ों को बटोरने के लिये भी कहते हैं। बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरे भर जाते हैं। इस प्रकार प्रभु न केवल एक बहुत बड़ा चमत्कार करते हैं बल्कि शिष्यों को इस कार्य में सहभागिता प्रदान करते हैं। ज़रा सोच लीजिए इस चमत्कार को करने से, प्रभु का साथ देने से, शिष्यों को किस प्रकार का अनुभव हुआ होगा? 

हम सभी प्रभु के दल के ही सदस्य हैं। जब हम प्रभु के कार्य करते हैं तो प्रभु हमारी अल्पता या अपर्याप्तता को उनके काम में बाधा बनने नहीं देते हैं। प्रभु हमारी कमियों को पूरा करते हैं। कभी-कभी हमें लगता हैं कि हमसे जो अपेक्षा की जा रही है, वह असंभव-सा कार्य है और हम यह भूल जाते हैं कि हम प्रभु के दल के सदस्य हैं। प्रभु हमसे चाहते हैं कि हम भी अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करें। हमारा परिश्रम पाँच रोटियों तथा दो मछलियों के समान है। हमारे हाथों में उन पाँच रोटियों तथा दो मछलियों का ज्यादा मूल्य नहीं है। किन्तु जब हम उन्हें प्रभु के पास लाते हैं, तब प्रभु उसी से चमत्कार करते हैं। यही है हमारे प्रयत्नों को प्रभु को चढ़ाने का मतलब। साधारणतः हम पाँच रोटियों तथा दो मछलियों से दो या तीन लोगों को ही खिला सकते हैं, लेकिन प्रभु की आशिष मिलने से वे पाँच हज़ार से अधिक लोगों के लिये पर्याप्त हो जाती हैं। मदर तेरेसा से किसी ने कहा कि आप जो सेवा कर रही है वह दुनिया की बड़ी गरीबी के सामने समुद्र के एक बूँद पानी के समान है, उससे दुनिया में कुछ फ़र्क़ तो पड़ने वाला नहीं है। इसपर मदर ने उत्तर दिया, ‘‘मुझे मालूम है कि मेरा काम समुद्र के एक बूँद पानी के समान है लेकिन सच्चाई यही है कि अगर मैं अपना यह काम नहीं करूँगी तो समुद्र में एक बूँद पानी कम होगा‘‘।

प्रभु की इच्छा यही है कि हम अपनी क्षमता के अनुसार काम करें। प्रभु हमारी अपर्याप्तता को पर्याप्तता में एवं अल्पता को बहुलता में बदलेंगे। एक माँ ने अपने बेटे को बचपन से ही संगीत में प्रशिक्षण देना चाहा। जब वह चार साल का था तो एक दिन माँ उसे अपने शहर में आयोजित संगीत-गोष्ठी में ले गयी। वहाँ एक मशहूर संगीतज्ञ पधारने वाले थे। जैसे ही वह माँ अपने बेटे के साथ हॉल के अंदर घुस रही थी तो उसने कुछ दूरी पर अपनी सहेली को देखा। वे एक-दूसरे से बातें करने लगी। इस बीच वह बालक जिज्ञासा के कारण हॉल के चारों ओर देखने लगा। थोड़ी ही देर में कार्यक्रम की शुरुआत के संकेत देने वाली घण्टी बज गई। माँ अपने बेटे को ढूँढने लगी लेकिन बेटा नहीं मिला। इतने में मंच का परदा उठ गया और वहाँ मंच पर खड़ा वह बालक पियानो पर अपनी नर्सरी में सिखाया गया ‘‘टिंकल, टिंकल लिटिल स्टार...‘‘ की धुन बजा रहा था। माँ डर गयी कि अब क्या होगा। इतने में संगीतज्ञ मंच पर आ गये। वे उस लड़के के पास आकर उसके कान में बोलने लगे, ‘‘अच्छा कर रहे हो, बजाते रहो‘‘। संगीतज्ञ खुद सभी कमियों को दूर करते हुए उस बालक के साथ ही बजाते रहे। किसी भी श्रोता या दर्षक को कोई कमी महसूस नहीं हुई। सबों ने सोचा कि वह बच्चा उस मशहूर कलाकार के दल का ही सदस्य था। बच्चे ने बड़ा गर्व महसूस किया और आगे चलकर बड़ा संगीतज्ञ बन गया। ईश्वर हमारे साथ ऐसा ही करते हैं। वे हमारी कमियों को दूर कर हमें अपने चमत्कारों का साधन बना देते हैं। इसलिये आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस हमें याद दिलाते हैं कि हम सब बातों पर प्रभु के द्वारा विजय प्राप्त करते हैं। तो आइए हम प्रभु के दल के सदस्य होने के नाते प्रभु को पूरा-पूरा सहयोग देने का दृढ़ संकल्प करें।


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Praise the Lord!