चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का चौबीसवाँ इतवार

पाठ: प्रवक्ता 27:30-28:7; रोमियों 14:7-9; मत्ती 18:21-35

प्रवाचक: फादर वर्गीस पल्लिपरम्पिल


हम संत लूकस के सुसमाचार अध्याय 15 में ईश्वरीय प्रेम और क्षमा पर आधारित उडाऊ पुत्र का दृष्टान्त पढ़ते हैं । इस दृष्टान्त से हम सब परिचित है । एक पिता के दो पुत्र थे । छोटे पुत्र ने अपने पिता से कहा कि सम्पत्ति का जो हिस्सा मेरा है वह मुझे दे दीजिए और पिता ने दोनों में अपनी सम्पत्ति का बटॅंवारा कर दिया । इस तरह छोटा बेटा अपनी सम्पत्ति लेकर अपने पिता और घर से दूर चला जाता है और वहाँ घोर पापमय जीवन जीता है और अपनी धन-सम्पत्ति का दुरुपयोग करता है और सब कुछ समाप्त होने के बाद, पश्चात्ताप करते हुए वह घर लौटता है । तब पिता उसके अपराधों को क्षमा करते हुए घर में उसका स्वागत करते हैं। यह दृष्टान्त हम मनुष्यों के पाप, पश्चाताप और पिता परमेश्वर के प्रेम और क्षमा पर आधारित है। इस दृष्टान्त से हम सब भली भांति परिचित है। हम इस कहानी के दूसरे भाग के बारे में भी कल्पना कर सकते हैं। कल्पना कीजिए कि इस प्रकार घर आने के बाद वह उडाऊ पुत्र अपने पिता के साथ खुशी से रहता है और कुछ समय बाद उसका विवाह होता है। विवाह के पश्चात अपने पिता के ही समान उसके भी दो पुत्र होते हैं, पुत्रों के बड़े होने पर जैसा कि उडाऊ पुत्र ने अपने पिता के साथ किया, ठीक वैसे ही उसका पुत्र भी उसके साथ करता है। वह सम्पत्ति का हिस्सा माँगता है और अपने पिता व घर से दूर चला जाता है, पिता की सम्पत्ति का दुरूपयोग करता है, पापमय जीवन जीता है और सब कुछ समाप्त होने के पश्चात, पश्चाताप करते हुए अपने पिता के पास लौट आता है। घर लौटने पर क्या उडाऊ पुत्र अपने बेटे को अपने पिता के समान स्वीकार करेगा या नहीं? यदि वह अपने पिता के समान अपने पुत्र का स्वागत करता है तो वह अपने पिता के समान बन जाता है। परन्तु यदि वह अपने पिता के विपरीत अपने पुत्र का स्वागत नहीं करता है तो वह अपने पिता के साथ रहने के बावजूद भी अपने पिता से दूर है। हमारी बुलाहट पिता के समान बनने के लिए है। प्रभु कहते हैं कि हमें स्वर्गीय पिता के समान दयालु और परिपूर्ण बनना चहिए।

उडाऊ पुत्र के दृष्टान्त के द्वारा पुत्र के पश्चाताप और पिता के घर में वापस लौटने पर जोर दिया गया है। अपनी गलतियों के लिए क्षमा माँगते हुए ईश्वर के पास आना हमारी आत्मीय यात्रा की शुरूआत हैं । आत्मीय जीवन में हमारा लक्ष्य पिता परमेश्वर के समान बनना हैं इसलिए हमारी बुलाहट में दया, क्षमा, प्रेम आदि होना चाहिए ताकि हम पिता परमेश्वर के समान बन सकें।

आज के सुसमाचार में हमने सुना कि जब सेवक अपने मालिक से दया की याचना करता है, तो उसे दया मिल जाती हैं। लेकिन वही सेवक अपने सह कर्मियों के साथ विपरीत व्यवहार करता है। उसने अपने मालिक से दया व क्षमा प्राप्त की है परन्तु फिर भी वह मालिक के समान नही बन पाया क्योंकि उसमें दयालुता की भावना नही है। इसी कारण उसे दंड भी मिलता है ।

हम पिता ईश्वर से दया व क्षमा की प्रार्थना करते हैं और वे हमारे अपराधों केा क्षमा भी करते हैं। क्या हम क्षमा प्राप्त करने के पश्चात प्रभु के समान बनने की कोशिश करते हैं या नहीं? प्रभु चाहते है कि हम पिता के समान बने जिन्होंने हमें अपनी असीम दया और क्षमा प्रदान की है।

उत्पत्ति ग्रंथ अध्याय 33 में याकूब को अपने भाई से मिलते इुए हम देखते हैं। याकूब ने अपने भाई को धोखा दिया था तथा उसके इस धोखे के कारण ही उसका बडा भाई एसाव अपने जीवन में पिता की आशिष से वंचित रह गया था। कई सालों के बाद याकूब एसाव से मिलने जाता है। उस समय वह बहुत डरा हुआ था लेकिन उसकी सोच के विपरीत एसाव उसके पास स्नेह से आता है और उसे गले लगाता है। तब याकूब अपने भाई से कहता है, ”मेरे लिए आपके दर्शन ईश्वर के दर्शनों के तुल्य है”। जो कोई भी दूसरों के अपराधों को क्षमा करता है व दया दिखाता है वह प्रभु के समान बन जाता है। इसलिए हमें भी प्रभु के समान बनने की कोशिश करना चाहिए। हम प्रभु से प्रार्थना करें कि हम प्रभु के समान क्षमाशील व दयावान बनें ताकि दूसरों के अपराधो व गुनाहों को माफ कर सकें और प्रभु के नजदीक जा सकें ।


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Praise the Lord!