चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का बत्तीसवाँ इतवार

पाठ: प्रज्ञा 6:12-16; 1 थेसलनीकियों 4:13-18 या 13-14; मत्ती 25:1-13

प्रवाचक: फ़ादर थॉमस फिलिप


आज के पाठों द्वारा पिता परमेश्वर ने हमें एक प्रभावशाली संदेश दिया है। प्रभु हमें हमारे आत्मिक जीवन का विवेकपूर्ण संचालन करने के लिये समझाते हैं। 

पहला पाठ प्रज्ञा ग्रंथ से लिया गया है जहाँ हम सुनते हैं कि प्रज्ञा प्राप्ति के क्या लाभ हैं। इस पाठ में प्रज्ञा को इस तरह सम्बोधित किया गया है मानो वह एक व्यक्ति हो। इस पाठ पर मनन् करते समय मैं पवित्र आत्मा का आभास पाता हूँ। यदि हम प्रज्ञा शब्द के बदले पवित्र आत्मा शब्द का प्रयोग करेंगे और एक व्यक्ति के रूप में उसकी परिकल्पना करेंगे तो इस पाठ का अर्थ हमारे लिये अधिक स्पष्ट हो जायेगा।

’’पवित्र आत्मा देदीप्यमान है। वह कभी मलिन नहीं होता। जो लोग पवित्र आत्मा को प्यार करते हैं वे उसे सहज ही पहचानते हैं। जो पवित्र आत्मा को खोजते हैं वे उसे प्राप्त कर लेते हैं। जो उसे चाहते हैं आत्मा स्वयं आकर उन्हें अपना परिचय देता है। जो पवित्र आत्मा को खोजने के लिये बडे़ सबेरे उठते हैं उन्हें परिश्रम नहीं करना पडे़गा। वे उसे अपने द्वार के सामने बैठा हुआ पायेंगे। पवित्र आत्मा पर मनन् करना बुद्धिमानी की परिपूर्णता है। जो पवित्र आत्मा के लिये जागरण करेगा, वह शीघ्र ही पूर्ण शांति प्राप्त करेगा। पवित्र आत्मा स्वयं उन लोगों की खोज में निकलता है, जो उसके योग्य हैं। वह कृपापूर्वक उन्हें उनके मार्ग में दिखाई देता है और उनके प्रत्येक विचार में उन से मिलने आता है।’’ (प्रज्ञा 6:12-16) 

इन पवित्र वचनों से हम समझ सकते हैं कि पवित्र आत्मा की ज्योति उनके बच्चों पर किस प्रकार चमकती है। वे मसीह के आत्मा हैं जो सदा हमारे साथ रहेंगे। आत्मा के फल की परख द्वारा हम ईश्वर की आत्मा को पहचान सकते हैं। हर एक व्यक्ति जो उन्हें खोजता है ईश्वर उसे आत्मा प्रदान करता है। जो आत्मा को जानना चाहता है आत्मा तुरन्त उसे अपना परिचय देते हैं जैसे कई बार विभिन्न प्रार्थना दलों और नवीनीकरण गतिविधियों में स्पष्ट होता है। 

जो व्यक्ति ईश्वर पर अपनी दृष्टि लगाता और अपना ध्यान आध्यात्मिक बातों पर केन्द्रित करता है वही बुद्धिमान और विवेकशील मनुष्य है। ऐसा व्यक्ति ही आत्मा पर मन केन्द्रित कर सकता है। प्रवक्ता ग्रंथ में इसका बार-बार उल्लेख किया गया है। पवित्र आत्मा के द्वारा ही हमें ज्योति, आध्यात्मिक ज्ञान और बुद्धि प्राप्त होती है। पवित्र आत्मा ही हमारी आत्मा को आत्मिक बातें समझा सकते हैं। 

यह वाक्य कि ’जो उसकी खोज करते हैं’, इस महत्व को बताता है कि हमें ईश्वरीय इच्छा के प्रति अपने को समर्पित करना है ताकि पवित्र आत्मा हमारे अंदर कार्य करते हुए हमें प्रभु येसु के योग्य बनायें। यदि हम ईश्वर की सच्ची संतान की तरह अपने विश्वास को जीवित रखेंगे तो हमें किसी प्रकार की चिन्ता नहीं रह जायेगी क्योंकि तब हम ईश्वर की उपस्थिति के अनंत आनंद को अनुभव करेंगे। प्रज्ञा ग्रन्थ बताता है कि पवित्र आत्मा उन लोगों को खोजते रहते हैं जो ईश्वर के योग्य हैं, जो हृदय के सच्चे हैं और जो आध्यात्मिक जीवन की गंभीरता को समझते हैं। 

पवित्र आत्मा अपने को उन पर जो हृदय के सच्चे हैं सांसारिक अथवा आत्मिक चिह्नों द्वारा प्रकट करते हैं। वे प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं। वे आत्मिक रूप से बढ़ने में हमारी सहायता करते हैं ताकि हमारा जीवन मसीह में पूर्णता प्राप्त करे। जब हम थक जाते हैं तो वे हमें आंतरिक आनंद और शांति प्रदान करते हैं। वे ही हमारे हृदय में ईश्वर को पाने की अग्नि सुलगाते हैं। जब हम ईश्वर के मार्ग से भटकते हैं तो वे हमारी आत्मा को ज्योति प्रदान करते और पथ प्रदर्षन करते हैं। वे हमें प्रभु येसु के वचनों की याद दिलाते और सतर्क करते हैं। ये पवित्र आत्मा, दिव्य प्रज्ञा हमारे सब मित्रों में सबसे महान हैं। 

आज का दूसरा पाठ थेसलनीकियों के नाम संत पौलुस के पहले पत्र से लिया गया है जहाँ पर हमने प्रभु येसु के द्वितीय आगमन के विषय में सुना। अभी तक इस पाठ के अर्थ को सही रूप से नहीं समझा जा सका है, और भिन्न-भिन्न अर्थ निकाले जाने के कारण कलीसिया में बँटवारा भी हुआ है और कई लोग सत्य के आत्मा से दूर चले गये हैं। 

संत पौलुस हमारे शरीर के पुनरुत्थान और स्वर्गिक महिमा के विषय में समझाते हैं कि जो मसीह के विश्वास में अंत तक दृढ़ बना रहेगा उसके शरीर को प्रभु येसु पुनर्जीवित करेंगे। वे कहते हैं कि ये सोचना गलत होगा कि जो पहले मर गये हैं वे पहले जी उठेंगे। वास्तव में जब वह घड़ी आयेगी तो वे लोग जो पहले मर चुके हैं और जो वर्तमान में जीवित हैं एक साथ स्वर्ग में उठा लिये जायेंगे। अंतिम न्याय की घड़ी सबों पर एक साथ आ पडे़गी और हम सब अपने-अपने कार्य के अनुसार प्रभु के दायीं या बायीं ओर चले जायेंगे। संत पौलुस विश्वासियों को हर प्रकार का ज्ञान देना चाहते थे ताकि वे एक-दूसरे को प्रभु के आने तक धैर्य बँधाते हुए प्रोत्साहित करते रहें।

आज का सुसमाचार स्वर्गराज्य के बारे में अनेक तस्वीरें प्रस्तुत करता है। प्रभु येसु वह वर हैं जो स्वर्ग से उतर कर अपनी अदृश्य वधु नये येरुसालेम को तैयार करते हैं, जिसका दृश्य रूप है संसार में फैली पवित्र कलीसिया। येरुसालेम को प्रभु की वधु कहा गया है। स्मरण रहे कि काथलिक कलीसिया का प्रारंभ येरुसालेम से तब हुआ जब पेंतेकोस्त के दिन प्रारंभिक कलीसिया ने पवित्र आत्मा को ग्रहण किया। 

कलीसिया के सदस्य होने के नाते हम ही प्रभु येसु की वधु हैं, हम जो प्रभु येसु पर विश्वास द्वारा पिता ईश्वर की संतान बन गये हैं। हमें प्रभु येसु का बपतिस्मा प्राप्त हुआ है तथा पवित्र आत्मा ने ईश्वर के नियमों को हमारे हृदय में अंकित किया है। बपतिस्मा के द्वारा हमें आदि पाप और व्यक्तिगत पापों से मुक्ति मिली है जो हमारे अंदर बपतिस्मा पाने के पूर्व विद्यमान थे। अब हम पवित्र कलीसिया में पाप स्वीकार संस्कार के द्वारा पाप मुक्ति के आनंद का अनुभव करते हैं और पवित्र परमप्रसाद संस्कार द्वारा जीवन की रोटी को ग्रहण करते हैं। 

उपरोक्त सभी बातें आवश्यक हैं ताकि हम ईश्वर की संतान के रूप में संसार में चमकें और पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकें। यदि हम इनमें से एक के प्रति भी लापरवाही बरतते हैं तो हम उन मूर्ख कुँवारियों के सदृश्य बन जाते हैं जो अपने दिये के लिये पर्याप्त तेल लेकर नहीं गई थी। यदि हमारा हृदय संसार के भोग-विलास, धन और स्वार्थ में रमा हुआ है, जो हमारी आत्मा के लिये विनाशकारी हैं और यदि हम अयोग्य रीति से पवित्र रोटी को ग्रहण करते हैं तो क्या ऐसी स्थिति में हमारी मृत्यु होने पर प्रभु हमें स्वर्गराज्य में प्रवेश करने देंगे? मृत्यु के समय हमारे हृदय की सच्चाई की कसौटी पर हमारा न्याय किया जायेगा। 

आज का स्वर्गिक संदेश हमें आगाह करता है कि हम प्रभु के आगमन के लिये जागते रहें क्योंकि हम उनके आने का समय और घड़ी नहीं जानते। आज प्रभु हमें समझदार बनने के लिये आह्वान करते हैं। हम स्वर्गिक पिता के आभारी हैं जो हमें याद दिलाते हैं कि हम विवेकपूर्ण रीति से अपने आध्यात्मिक जीवन को जीयें। हम प्रभु येसु खीस्त के शरीर यानि पवित्र काथलिक कलीसिया के आभारी हैं जहाँ हमें अन्य भाई-बहनों से बल और सहारा मिलता है कि हम हमारी आध्यात्मिक तीर्थ यात्रा में दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ते रहें।


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