चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का बत्तीसवाँ इतवार

पाठ: प्रज्ञा 6:12-16; 1 थेसलनीकियों 4:13-18 या 13-14; मत्ती 25:1-13

प्रवाचक: फादर रोनाल्ड वाँन


दस कुँवारियों के दृष्टांत द्वारा प्रभु हमारे ख्रीस्तीय विश्वास के जीवन के बहुत ही महत्वपूर्ण पहलूओं पर प्रकाश डालते हैं। वे हमें सदैव धार्मिक जीवन द्वारा प्रभु के लिए तैयार रहने को कहते हैं। वे हमें दूसरों के आलस एवं नास्तिकता के जीवन देखकर उनके समान नहीं बनने, बल्कि ईश्वर द्वारा सौंपे गये कार्य को पूरी तत्परता, निरंतरता तथा सजकता के साथ करने को कहते हैं। प्रभु हमें टाल-मटौल की आदत से दूर रहकर, समझदारी के साथ हमेशा तैयार रहने को कहते हैं। वे हमें चेतावनी देते हैं कि यदि हम यथासमय, उचित तैयारी नहीं करेंगे तो अंतिम समय आने पर हमारी मुक्ति की कोई संभावना नहीं होगी।

इस दृष्टांत में सभी दस कुँवारियॉ एक समान बतायी गयी है। सभी की परिस्थितियाँ एक समान थी तथा सभी को एक समान अवसर प्रदान किये गये थे। उनके वर की आगवानी करने के कार्य को कुछ ने गंभीरता के साथ लिया तो कुछ ने हल्के-फुल्के तौर पर। किन्तु इनमें मूर्ख और समझदार कौन हैं - इसकी पहचान तब होती है जब संकट आता है क्योंकि संकट आने पर ही मालूम पडता है कि कौन तैयारी के साथ आया था और कौन नहीं। अथार्त कौन अपनी मशालों के लिए कुप्पी में तेल लाया था और कौन नहीं। समाज में भी हम भले और बुरे मनुष्यों में ज्यादा फर्क नहीं नहीं पाते हैं। सामान्य समय में सबकुछ एक जैसा लगता है। लेकिन गधे और घोडे का फर्क केवल दौड शुरू होने पर ही मालूम पडता है। संकट आने पर ही हमें लोगों की या फिर स्वयं अपनी कमी और अपूर्णता का अहसास होता है।

चट्टान और बालू पर बनाये गये घरों का दृष्टांत इसी सच्चाई को इंगित करता हैं। सामान्य मौसम में दोनों घर उपयोगी प्रतीत होते हैं किन्तु बाढ की स्थिति में जो घर या जीवन ईश्वर की शिक्षा रूपी चट्टान पर बनाया गया था वह खडा रहता है। इसके विपरीत सांसारिक चालाकियों पर निर्मित जीवन बालू की नींव पर बने घर के सदृश होता है जो ढह जाता है तथा उसका सर्वनाश हो जाता है। (मत्ती 7:24-28)

इसी बात को प्रभु अनेक उदाहरणों द्वारा समझाते हैं, ’’जो नूह के दिनों में हुआ था, वही मानव पुत्र के आगमन के समय होगा। जलप्रलय के पहले, नूह के जहाज पर चढ़ने के दिन तक, लोग खाते-पीते और शादी-ब्याह करते रहे। जब तक जलप्रलय नहीं आया और उसने सबको बहा नहीं दिया, तब तक किसी को इसका कुछ भी पता नहीं था। मानव पुत्र के आगमन के समय वैसा ही होगा।’’ (मत्ती 24:37-39) ईमानदार और बेईमान कारिंदे का व्यवहार भी ऐसा ही था। ईमानदार कारिंदा सदैव तैयार, सजग तथा अपना कार्य ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ किया करता था किन्तु बेईमान अपने पद तथा समय का दुरूपयोग करता हुआ पाया जाता है। (देखिए मत्ती 24:45-51) मूर्ख और समझदार कुॅवारियॉ (मत्ती 25:1-12) तथा न्याय के दिन भेड और बकरियों का न्याय आदि उदाहरणों द्वारा प्रभु सदाचारी एवं भ्रष्ट व्यक्तियों का अंतर उचित समय पर प्रकट करने की बात कहते हैं।

उत्पत्ति ग्रन्थ में हम पाते हैं कि जब ईश्वर ने पृथ्वी के सब शरीरधारियों का विनाश करने का संकल्प किया तो ईश्वर को नूह का ध्यान आया जो प्रभु की दृष्टि में धार्मिक था। ’’नूह सदाचारी और अपने समय के लोगों में निर्दोष व्यक्ति था। वह ईश्वर के मार्ग पर चलता था।’’ (उत्पत्ति 6:9) नूह सदैव ईश्वर का भय मन में बनाये रख अपने जीवन को संचालित करता था किन्तु इसके विपरीत अन्य लोग खाते-पीते और मौजमस्ती में समय बिताते थे। बाहरी तौर पर तो वे ही लोग अधिक खुश और सही प्रतीत होते हैं किन्तु जलप्रलय के दिन जब वर्षा शुरू होती है तब ही सदाचारी नूह तथा अन्य कुकर्मियों के बीच का अंतर निर्णायक तौर पर पता चलता है। इस घोर संकट में ही नूह के सदाचारी जीवन को ईश्वर पुरस्कृत करते हैं। स्तोत्रकार कहते हैं, ’’ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौडाता है कि उन में कोई बुद्धिमान हो, जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो।’’ (स्तोत्र 14:2) नबी हबक्कूक भी धार्मिक को सांत्वना देते हुए कहते हैं, ’’जो धर्मी है, वह अपनी धार्मिकता के कारण सुरक्षित रहेगा।’’ (हबक्कूक 2:4)

कई बार दूसरों के भ्रष्ट, अनैतिक तथा सांसारिक तौर पर सफल प्रतीत लगते जीवन को देखकर अनेक लोग भटक कर सुमार्ग को त्याग देते हैं। वे इस सरलता तथा भ्रष्टचार के जीवन को वास्तविकता मान बैठते हैं। ईश्वर का इंतजार तथा उनके पुरस्कार की बातें उन्हें अकल्पनीय प्रतीत होती है। किन्तु इतिहास इस बात का गवाह है कि ऐसे अनेक स्वयं-घोषित ज्ञानी लोगों का अंत बहुत दयनीय था। स्तोत्रकार दुष्ट के विचारों को बताते हुये कहते हैं, ’’वह अपने घमण्ड में किसी की परवाह नहीं करता और सोचता है, ईश्वर है ही नहीं। उसके सब कार्य फलते-फूलते हैं, वह तेरे निर्णयों की चिंता नहीं करता...और अपने मन में कहता है, ’जैसा हूँ वैसा ही रहूँगा, मेरा कभी अनर्थ नहीं होगा।....वह अपने मन में कहता हैः ’ईश्वर लेखा नही रखता; उसका मुख छिपा हुआ है और वह कभी कुछ नहीं देखता’’। (स्तोत्र 10:4-6,11)

किन्तु दृष्टांत के द्वारा प्रभु स्पष्ट कर देते हैं कि वर तो अवश्य आयेगा किन्तु जो ईमानदारी एवं धार्मिकता के साथ योग्य पाये जायेंगे वे पुरस्कृत तथा पापियों को हमेशा हमेशा के लिए अयोग्य माना जायेगा।

दस कुँवारियों के दृष्टांत द्वारा येसु हमारे आध्यात्मिक जीवन की एक और महत्वपूर्ण बात को बताते हैं। जो लोग उनके जीवन को पूरी उन्मुक्त्ता तथा मौज-मस्ती के साथ जीते हैं उन्हें उनके कार्यों के नैतिक तथा आध्यात्मिक परिणामों की चिंता नहीं होती। वे ईश्वर में विश्वास तो करते हैं किन्तु वे ईश्वर की शिक्षा से निश्चित दूरी बनाये रखते हैं। वे ईश्वर के पास जाने की बात को खारिज भी नहीं करते हैं। वे तो बस ’बाद में’ ’अगली बार’ ’फिर कभी’ या ’इसके बाद’ जैसे खोखले शब्दों के द्वारा अपनी मुक्ति की संभावना को टालते रहते हैं। लेकिन किसी का समय बोल कर नहीं आता। जब संकट आता है तो वे चाह कर भी ईश्वर के पास लौट नहीं पाते हैं।

एक कहानी है - एक बार शैतानों की महासभा हुयी। सभी इस बात पर विचार कर रहे थे कि किस प्रकार मनुष्य को ईश्वर से दूर रखा जाये। सभी ने अपने-अपने विचार रखे। एक ने कहा कि यदि हम मनुष्य को इस बात का विश्वास दिलाये कि ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है तो वह ईश्वर की खोज बंद कर देगा। इस विचार को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि मनुष्य तो यह इस सच्चाई से परिचित है कि ईश्वर सचमुच में है। फिर किसी ने कहा कि हम ईश्वर के ज्ञान को ऐसे अज्ञात स्थान में छिपा देगे जिससे वे ईश्वर की शिक्षा को जान ही नहीं पायेंगे। लेकिन इस सुझाव मं् भी समस्या थी। मनुष्य का ज्ञान तथा उसकी जिज्ञासा इतनी गहरी तथा प्रबल है कि वह इस ज्ञान को एक न एक दिन कहीं से भी ढूंढ लायेगा। फिर किसी शैतान ने कहा, हम मनुष्य को न तो यह बतायेंगे कि ईश्वर नहीं है और न ही ईश्वर के ज्ञान को किसी जगह छिपायेंगे बल्कि हम मनुष्य को केवल यह समझाकर भरोसा दिलायेंगे कि ईश्वर को कभी भी पाया जा सकता है। इस कार्य को करने की कोई जल्दी नहीं। तुम जब चाहोगे ईश्वर से मिल सकते हो।’’ शायद इस कारण मनुष्य ईश्वर से मिलने की बात ’आने वाले कल’ पर टालने लगा। यह ’कल’ शायद उसके जीवन में कभी नहीं आता तथा परिणामस्वरूप यह टालमटौल वाला रवैया उसके नर्क जाने को सुनिश्चित कर देता है।

संकट के समय पाँच समझदार कुँवारियाँ अन्य पॉच मूर्ख कुँवारियों के साथ अपना तेल बांटने से इंकार कर देती है। ऐसा वे स्वार्थ के कारण नहीं करती बल्कि यह तो उस समय की पहचान को प्रदर्शित करता है। उस समय केवल उतना ही तेल था जो उनकी ही मशाल जलाये रख सकता था यदि वे अपना तेल बांटती तो वे स्वयं की अयोग्य हो जाती। इसलिए अंतिम समय में कोई चाहकर भी हमारी मुक्ति में कोई भी मदद नहीं कर पायेगा। केवल ईश्वर की असीम दया पर ही यह निर्भर करेगी। जो ईश्वर की दृष्टि में योग्य पाये जायेंगे केवल वे बच पायेंगे। उस समय बचने का कोई दूसरा उपाय नहीं रहेगा। अंतिम समय की भीषणता ऐसी निर्णायक होगी कि अयोग्यों की मुक्ति की कोई संभावना नहीं बचेगी। ’’तब मैं उन्हें साफ-साफ बता दूँगा, ’’मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियों! मुझ से दूर हटो।’’ (मत्ती 7:23)

आइये हम भी इस जीवन में ईश्वरीय बातों की ओर ध्यान देकर सदाचार का जीवन बितायें तथा धर्मग्रंथ की चेतावनी पर ध्यान दे। ’’नींद से जागो,....अपने आचरण का पूरा-पूरा ध्यान रखें। मूर्खों की तरह नहीं, बल्कि बुद्धिमानों की तरह चल कर वर्तमान समय से पूरा लाभ उठायें, क्योंकि ये दिन बुरे हैं। आप लोग नासमझ न बनें, बल्कि प्रभु की इच्छा क्या है, यह पहचानें। (एफेयिसों 5:14-17)


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