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04. आगमन का चैथा इतवार

2 समूएल 7:1-5, 8ब-11, 16; रोमियों 16:25-27; लूकस 1:26-38

(फादर जोनी कन्नीक्काट)


हमारा जीवन एक यात्रा है। इस जीवन यात्रा को सफल बनाने के लिये हमें प्रतीक्षा के साथ जीना चाहिए। जितनी हम प्रतीक्षा करते हैं उतनी ही हमारी यात्रा सफल होगी। हम रेलवे स्टेशन पर रेलगाड़ी के आने की प्रतीक्षा में घोषणाएं सुनते रहते हैं। जब हमारी रेलगाड़ी आने का समय निकट आ जाता है तो हम बहुत ध्यानपूर्वक उसकी घोषणा को सुनते हैं। ठीक इसी प्रकार आगमन काल के आखिरी समय में हम पहुँच गये है। हम ईश्वर का वचन ध्यानपूर्वक सुने और पूरी तरह से समझने की कोशिश करें। हम आगमन काल के समय हमारे मुक्तिदाता प्रभु येसु ख्रीस्त के इंतजार में है। ईश्वर अनेक नबियों के द्वारा विभिन्न समय में एक मुक्तिदाता के बारे में भविष्यवाणी करते रहे। लेकिन मानव ने इस भविष्यवाणी को गंभीरता से नहीं लिया, परन्तु ईश्वर ने अपने वचन का पालन किया। हम इस महान कार्य को मनाने के इंतज़ार में है।

इस त्योहार को मनाने के लिए हमें अपने आपको तैयार करना है। हम तीन सप्ताह से इस त्योहार के लिए उपवास एवं प्रार्थना करते आ रहे हैं। हम इस त्योहार को योग्य रीति से मनाने के लिए अपने पापों के प्रति पश्चात्ताप करके ईश्वर की ओर मुड़े ताकि हमारे हृदयों में ईश्वर निवास करें।

ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। इसी कारण माता मरियम ने स्वर्गदूत के सन्देश पर विश्वास किया। मरियम एक पवित्र एवं निर्मल व्यक्ति थी। उन्होंने अपने आपको ईश्वर के हाथों में समर्पित कर दिया तथा इसी कारण मरियम ने कहा, ’’मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझमें पूरा हो जाये।’’ यह मरियम के लिए सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव था। ईश्वर का वचन पूरा करने का मतलब है ईश्वर के बताये हुए मार्ग पर चलना और अपने विष्वास के साथ जीना।

मरियम ने ईश्वर के वचनों का पालन किया और ईश्वर की इच्छानुसार अपना जीवन बिताया, मरियम ने यह सब कार्य मानव की मुक्ति के किया। मरियम एक पुत्र को जन्म देंगी लेकिन वह पुत्र ईश्वर का होगा। वह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण है। वह इस संसार के लिए मुक्ति दिलाने आयेगा।

मरियम यह खोज रही थी कि ईश्वर किस प्रकार उनका उपयोग स्वर्ग राज्य के लिए तथा मानव-मुक्ति के लिए करने के इच्छुक है। मरियम की जिम्मेदारी बहुत बड़ी थी। एक बार कुछ बच्चों को यह कहा गया कि प्रभु येसु के जन्म से संबंधित घटना को वे नाटकीय रूप में प्रस्तुत करे तो वे बहुत उत्सुकता से इस कार्य में लग गये। कुछ देर बाद जिस लड़की को माता मरियम का किरदार निभाने की जिम्मेदारी दी गयी थी वह टीचर के पास आकर बोलने लगी कि माता मरियम का किरदार बहुत कठिन है इसलिये मैं स्वर्गदूत बनूँगी। ये एक सत्य है कि माता मरियम को जो जिम्मेदारी ईश्वर ने सौंपी थी वह कठिन थी। क्योंकि आज्ञापालन आसान नहीं है। बाइबिल हमें सिखाती है कि इब्राहिम ने अपने विश्वास के कारण ईश्वर की आज्ञाओं का पालन किया। जो विश्वास करते हैं वे ही आज्ञाओं का पालन कर सकते हैं। मरियम ने विश्वास किया और इसी कारण उन्होंने ईश्वर की आज्ञा का पालन किया। संत अगस्टीन कहते हैं, ’’मरियम ने पहले अपने मन में प्रभु को धारण किया, उसके बाद में अपने गर्भ में।’’

माता मरियम हमारे लिए आज्ञापालन का सर्वोंत्तम नमूना है। उनके आज्ञापालन के कारण ही संसार की मुक्ति संभव हुई है। जब कभी हम ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं तो हम ईश्वर की ओर बढ़ते है और ईश्वर प्रेम में आगे बढ़ते हैं। हम पूजन विधि में बार-बार ’आमेन्’ कहते हैं। आमेन् का मतलब है ’तथास्तु; ’ऐसा ही हो’। यह वास्तव में आज्ञापालन को प्रस्तुत करता है। जब हम आमेन् कहते हैं तब हमें ईश्वर की आज्ञाओं को स्वीकारने तथा पालन करने की इच्छा हमारे मन में जगाना चाहिए। मरियम का ’आमेन्’ सबसे सार्थक था। हमें भी हमारी प्रार्थनाओं को सार्थक बनाने के लिए आज्ञापालन सिखाना ज़रूरी है। मरियम ने ईश्वर की इच्छा की खोज की और जब ईश्वर की इच्छा प्रकट हुई तो उसके सामने उन्होंने आमेन् कहा।

स्वर्गदूत माता मरियम को कृपापूर्ण कहते हैं। संत लुई दे मोन्टफोर्ड ने कहा था, ’’पिता ईश्वर ने सारे जल को एकत्र कर उसे समुद्र कहा; उन्होंने सारी कृपाओं का एकत्र कर उसे मरियम कहा।’’ ईश्वर ने मरियम को चुनकर उन्हें कृपाओं को प्रदान करने वाली मध्यस्था बनाया। मरियम को हम विधान की मंजूषा भी कहते हैं। विधान की मंजूषा के अंदर ईश्वर द्वारा मूसा को दी गयी दो पाटियों को रखा गया था जिन पर ईश्वर की आज्ञायें लिखी थी। इसी प्रकार मरियम ने जब ईष्वरीय शब्द को अपने गर्भ में धारण किया तब मरियम विधान की मंजूषा बन गयी। पुराने विधान के अनुसार पापी मनुष्य को मंजूषा के निकट जाने की अनुमति नहीं थी। अगर किसी कारणवश पापी मनुष्य मंजूषा के निकट जाता था तो वह नष्ट हो जाता था। ईश्वर के निकट रहने के लिए मनुष्य को पापों से छुटकारा पाना ज़रूरी है। मरियम निष्कलंक थी। ईश्वर ने उन्हें निष्कलंक बनाया ताकि वे येसु की माँ बन सकें। और इसी कारण स्वर्ग दूत ने उन्हें कृपापूर्ण कहा। तो आइए इस आगमन काल में प्रभु का सच्चा अनुभव पाने के लिए हम अपने आप को पापों से छुटकारा दिलाए। इसी कृपा के लिए हम ईश्वर से प्रार्थना करें।


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