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04. आगमन का चैथा इतवार_2017

2 समूएल 7:1-5, 8ब-11, 16; रोमियों 16:25-27; लूकस 1:26-38

फादर शैल्मोन अंथोनी


इस दुनिया में रहते समय हम सभी जाने-अनजाने में किसी न किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना की प्रतीक्षा में सदा रहते हैं। यह प्रतीक्षा हम लोगों को जीवन में उत्साह के साथ-साथ आगे बढने के लिए प्रेरणादायक होती है। उदाहरण के लिए - हमारे अधिकांश बच्चे स्कूल में छुट्टी की प्रतीक्षा में रहते हैं। घर में जो महिलाएँ नियमित तौर पर टीवी में सीरियल देखती रहती हैं वे हर हफ्ते इस इंतज़ार में रहती हैं कि अगले हफ्ते सीरियल में क्या होगा। पुरुष-वर्ग इस ताक में हैं कि आगामी पार्टी कब होगी। ठीक इस प्रकार लोग किसी न किसी कार्य की प्रतीक्षा में रहते हैं।

हम आगमन काल में हैं और प्रभु येसु के जन्म-दिन के करीब आ चुके हैं। इसलिए हमें और गंभीरता से मनन-चिंतन करना चाहिए कि हमें बालक येसु के जन्म-दिन मनाने के लिए और क्या-क्या तैयारी करनी चाहिए और उनको उपहार के रुप में क्या देना चाहिए? जन्म-दिन मनाना हमारे लिए कुछ नयी बात नहीं है। हम सभी हमारा और हमारे साथ जुडे हुए सब लोगों का जन्म-दिन हर साल बराबर मनाते ही हैं। जब भी हम किसी का जन्मदिन मनाते हैं तो हम उनको उपहार खरीद के देते हैं। हम यह सुनिश्चित करते है कि जो उपहार उसे पसंद वहीं दिया जाये। ठीक वैसे ही येसु के जन्म-दिन मनाने की तैयारी में लगे रहकर हमारे लिए यह पता करना उचित होगा कि आखिर येसु के लिए मैं क्या दूँ? येसु का मनपंसद उपहार क्या है?

धर्मग्रन्थ के आधार पर देखा जाये तो यह स्पष्ट है कि येसु का मनपसंद उपहार हमारी आत्मा है। हॉ वे हमारी आत्मा के चरवाहा तथा रक्षक हैं। (1पेत्रुस 2:25) येसु ने लोगों से कहा कि आत्मा को जोखिम में डाल कर कभी भी जीना नहीं चाहिए -’’मनुष्य को इस से क्या लाभ यदि वह सारा संसार तो प्राप्त करले, लेकिन अपना जीवन ही गॅवा दे? अपने जीवन के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है?’’ (मारकुस 8:36-37)

येसु ने सारी मानवजाति की आत्माओं को बचाने का जो कार्य आरंभ किया, उस कार्य को उन्होंने प्रेरितों को सौंप दिया और प्रेरितों ने इस कार्य को गंभीरता से लेते हुए दुनिया के कोने-कोने में जा कर प्रचार किया और येसु के आध्यात्मिक सान्निध्य में वह कार्य आज भी जारी है।

प्रभु येसु हर हाल में हमारे जीवन में आकर अपने पवित्र सान्निध्य के द्वारा हमें पवित्र करते हुए हमारी आत्माओं को बचाना चाहते हैं। प्रकाशना ग्रन्थ में हम पढते हैं- मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हॅू। तो क्रिस्मस एक ऐसा अवसर है जब बालक येसु हम सभी के दिलों में आकर जन्म लेना चाहते हैं; चाहे हम पापी क्यों न हो, चाहे हम गरीब, अनपढ, नगण्य, तुच्छ क्यों न हो। याद रखें कि येसु के जन्म के अवसर पर चरवाहों को ही इस शुभ संदेश दिया गया था; चरणी में जानवरों के बीच में ही येसु का जन्म हुआ। इसलिए हम यह कह कर पीछे नहीं हट सकते हैं कि हम इस के काबिल नहीं। प्रभु का ये वचन इस चिंतन को और भी स्पष्ट करता है कि ”मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हॅू।” (मत्ती 9:13)

एक समय संत पेत्रुस और संत पौलुस भी हमारे समान पापी थे। पेत्रुस ने येसु के चरणों में गिर कर कहा - प्रभु मेरे पास से चले जाइए। मैं पापी मनुष्य हॅू। (लूकस 5:8) और अपने बारे में पौलुस कहते हैं - येसु मसीह पापियों को बचाने के लिए संसार में आये, और उन में सर्व प्रथम मैं हॅू। (1तिमथी 1:15) इन दोनों ने बाद में येसु मसीह को उन के जीवन में जन्म लेने दिया। पेत्रुस कहते हैं कि - मेरे पास न तो चॉदी है और न सोना; लेकिन मेरे पास येसु है। (प्रेरित-चरित 3:6) इस प्रकार संत पौलुस कहते हैं कि अब मैं जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित हैं। (गलाति 2:20) इसलिए हमारे पास अभी कोई भी बहाना नहीं रहा। हमारे जीवन की अवस्था जो कुछ भी हो, चरणी में जन्म लेने वाले येसु हमारे पाप भरे दिल में जन्म लेने के लिए सदा तैयार है।

हमें कभी भी यह न सोचना चाहिए कि हमारे जीवन को बदलना असंभव है। ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। (लूकस 1:37) ”....क्या मेरा हाथ इतना छोटा हो गया है कि वह तुम्हारा उद्वार करने में असमर्थ है? क्या मेरे पास इतना सामर्थ्य नहीं कि मैं तुम को छुड़ा सकता? देखो! मैं धमकी दे कर समुद्र सुखाता हॅू। मैं नदियों को मरुभूमि बना देता हॅू...।’’ (इसायाह 50:2) हॉ, अगर ईश्वर चाहे तो कुवॉरी भी गर्भवती हो सकती है।

आइए हम भी चरवाहों एवं ज्योतिषियों के समान अपने पास जो कुछ भी है येसु के चरणों में अर्पित करें; माता मरियम के समान हम भी कहें ”देखिए, मैं प्रभु की दासी हॅू। तेरा कथन मुझमें पूरा हो जाये।” (लूकस 1:38); हमारी ”पॉच रोटियों और दो मछलियों को” उनके हाथों में दें; विशेष रूप से हमारी पापमय अवस्था को येसु को दें और कहें कि येसु हम अपने आपको पूर्ण रूप में तुझे समर्पित करते हैं।

याद रखें कि प्रभु के कहने पर अगर हम उन को हमारे दिल में जगह देगें तो बदले में वह हमें सबसे बडा उपहार जो अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी है (1पेत्रुस 1:4) प्रदान करेंगे। वह उपहार है अनंत जीवन।


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