Smiley face

06 ख्रीस्त जयंती (रात्रि)

इसायाह 9:1-6; तीतुस 2:11-14; लूकस 2:1-14

(फादर जोसफ तान्निप्पिल्लि)


सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा प्रकट हो और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति मिले (लूकस 2:14)।

हैप्पी क्रिसमस, हैप्पी क्रिसमस, हैप्पी क्रिसमस,...................... प्रभु येसु मसीह के जन्म का अभिनन्दन हम इस प्रकार एस.एम.एस., ग्रीटिंग कार्ड, ई-मेल, टेलीफोन इत्यादि द्वारा करते हैं। इन सब चेष्टाओं से हम यह बताने की कोशिश करते हैं कि क्रिसमस आनन्द और शांति का त्योहार है। क्रिसमस हमारे लिए ईश्वर का सबसे बड़ा आनन्द और शांति का संदेश है।

हर साल हम क्रिसमस की तैयारियाँ करते हैं और क्रिसमस धूमधाम से मनाते भी हैं। घर की साफ-सफाई, नये कपड़े बनवाना, केक एवं विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान बनाना - इन सब में हम सभी बहुत दिलचस्पी लेते हैं। लेकिन हम सब में से, कितने लोग यह कह सकते हैं कि हमने हमारे दिलों को सजाने के लिए भी इतनी ही दिलचस्पी ली है? क्या हम कह सकते हैं कि हमारे दिलों में सच्ची शांति और आनन्द हैं? लोग कई तरह के होते हैं - अमीर हैं, गरीब हैं, ताकतवर हैं, कमज़ोर हैं, लाचार हैं, पापी हैं .......... !

वर्तमान में जब हम दूरदर्शन, रेडियों या अखबार को खोलते हैं तब हमें भ्रूण हत्या, महिलाओं पर अत्याचार एवं शोषण, बलात्कार, चोरी-डकैती, बम-विस्फोट, सामूहिक-हत्या, धोखाधड़ी इत्यादि सर्वश्रेष्ठ समाचार बनकर उभर आते हैं। हाल ही में निठारी में मासूमों पर किये अत्याचार एवं हत्या, हमारे किसानों द्वारा आत्म-हत्या आदि से हम विचलित और अशांत हैं। इन सब कोलाहलों से यह साबित होता है कि दुनिया में एवं हमारे दिलों में अशांति फैली हुई है। कई सालों से यह शांति का त्योहार मनाने के बावजूद भी, क्यों हमारे दिलों में शांति का अनुभव या आनंद का आगाज़ नहीं होता है? क्या इन बातों पर हमने कभी गंभीरता से विचार किया है?

आज के सुसमाचार में हमें स्वर्गदूतों के मुँह से इसका जवाब मिलता है। स्वर्गदूतों ने कहा- ‘‘स्वर्ग में ईश्वर की महिमा प्रकट हो और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति मिले। इससे स्पष्ट होता है कि आनन्द और शांति केवल कृपापात्रों को ही मिलेगी। अब सवाल यह उठता है - कृपा पात्र कौन कौन हैं? पवित्र ग्रन्थ के मुताबिक माता मरियम्, संत जोसफ, शिष्यगण, बच्चे, ये सब के सब ईश्वर के कृपापात्र कहलाये गये हैं क्योंकि इन सभी में दो सार्वजनिक गुण विद्यमान हैं और वे हैं निष्कलंकता एवं ईश्वरीय योजनाओं को अपनाना।

हमें कृपापात्र बनने में कौन-कौन सी बाधाओं का सामना करना पड़ता है? मेरे विचार से हमारा अहंकार या घमण्ड हमें कृपापात्र बनने से रोकता है। सुसमाचार हमें यह बताता है कि प्रभु के जन्म का सन्देष बड़े बड़े राज्यपालों तथा सम्राटों को नहीं सुनाया गया था क्योंकि उनमें घमण्ड था और हमेशा बड़े बने रहने का मोह था। यह सन्देष सरल स्वभाव के गड़ेरियों को दिया गया।

एक छोटी-सी कहानी है - एक बार हाथ के पाँचों उँगलियों के बीच आपस में बहस हो रही थी कि पाँचों में सबसे महान कौन है? भगवान ने उनको बुलाकर कहा, ’’तुममें से हरेक यह बताओ कि अपने आपको कैसे महान स्थापित कर सकते हो? सबसे पहले अंगूठे ने कहा कि मैं सबसे महान हूँ क्योंकि मेरे बिना कोई भी लिख नही सकता। तब तर्जनी उँगली ने कहा कि मैं सबसे महान हूँ क्योंकि मेरे इशारे पर तुम सब काम करते हो। तब बीच की दोनों उँगलियों ने कहा, ’’लोग हमें चांदी, सोना और हीरों से सवांरते हैं इसलिए हम सबसे महान हैं।’’ तब सबसे छोटी उँगली ने दुखी होकर कहा, ’’मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नही है। मैं सबसे छोटी हूँ दुर्बल व लाचार हूँ।’’ तब ईश्वर ने कहा, ’’तुम निराश मत हो। क्या तुम जानती हो कि हाथ जोड़कर मेरे सामने खड़े होकर प्रार्थना करते समय, मैं केवल तुम्हें ही पूर्ण रूप से देख सकता हूँ, बाकी को नहीं। इसलिए मेरी नज़र में तुम ही सबसे महान हो।’’ यह छोटी उंगली निष्कंलकता व नम्रता का प्रतीक है। कृपापात्र बनने के लिए हमें ज़रूर सबसे विनम्र बनना होगा। प्रभु मसीह का जन्म करीब 2000 वर्ष पूर्व हुआ था। हम उनका जन्म दिवस आज के दिन मनाते हैं और यह एक ऐतिहासिक घटना है। उस समय जब प्रभु मसीह उनके साथ थे तब भी केवल कुछ ही लोग इस महानतम् अनुभव से लाभान्वित हुए थे। बाक़ी लोगों ने अपने दिल को कठोर बनाकर, ईश्वरीय कृपा को स्वीकार नही किया। आज भी यदि हम अपने हृदय को कठोर बनाकर, केवल प्रभु मसीह के ऐतिहासिक जन्म का स्मरण मना रहे हैं तो हमें आंतरिक शांति नही मिलेगी। प्रभु मसीह का जन्म 2000 वर्ष पूर्व की एक घटना मात्र नहीं, बल्कि हमारे जीवन में हर पल प्रभु के जन्म का अनुभव होना चाहिए। यह तभी संभव है, जब हम विनम्र होकर, येसु के सान्निध्य को महसूस करते हुए अपने दिल में उनके निवास के लिए गौशाला बनायें।

हमारी पल्ली में और घर में गौशाला बनाने के लिए हम सब बहुत प्रयत्न करते हैं। क्या हमने हमारे दिल में प्रभु के जन्म के लिए सुन्दर-सा गौशाला बनाया है? क्या हमारा दिल रूपी गौशाला ईश्वर के योग्य है? यदि गड़ेरिये हमारा दिल रूपी गौशाला देखने आयेंगे तो क्या वे उसमें बालक येसु का दर्षन कर पायेंगे? हमारे दैनिक जीवन में, ईसाई होने के नाते, कई तरह के लोग, ख्रीस्तीय मूल्यों को देखने एवं जानने के लिए बड़ी उत्सुकता से आते हैं। उन्हें कभी भी निराश होकर लौटने का अवसर नहीं देना चाहिए।

अगर हमें प्रभु की शांति प्राप्त हुई है (हमारे हृदय में प्रभु का जन्म हुआ है) तो वे हमारे दिल तक सीमित नहीं रह सकते परन्तु उन्हें दूसरों तक पहुँचाना है। इस त्योहार को धूमधाम से मनाते समय क्या हम उन लाचार एवं बेबस लोगों के बारे में सोचते हैं? क्या हमने कभी अपने घरों में बने स्वादिष्ट पकवान को क्रिसमस के दिन, बेघर बच्चों एवं गरीबों के बीच बाँटा है? यदि हम इस त्योहार को, भले कर्मो में अनुवाद नहीं करते तो यह त्योहार महत्वहीन रह जायेगा और मात्र अनुष्ठान रहेगा। लेकिन इस तरह के अनुष्ठान से हम कृपापात्र नहीं बनते। आइए, प्रभु की उस शांति को पाने के लिए हम तैयार हो जायें और कृपापात्र बनकर हर दिन, हर पल, सभी को हैप्पी क्रिसमस कहलाने योग्य बन जायें। ईश्वर की महिमा हमारे परिवारों, समाज, राष्ट्र एवं समस्त दुनिया में प्रकट हो जाये और हम कृपापात्र बनकर उनकी शांति प्राप्त कर सकें। हैप्पी क्रिसमस!


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Praise the Lord!