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22. चालीसे का तीसरा इतवार_2018

निर्गमन 20:1-17; 1 कुरिन्थियों 1:22-25; योहन 2:13-25

फादर फ्रांसिस स्करिया


सुसमाचार हमें बताता है कि प्रभु येसु ने येरूसालेम के मंदिर में प्रवेश कर रस्सियों का कोड़ा बना कर भेड़ों और बेलों-सहित सब को मन्दिर से बाहर निकाल दिया, सराफों के सिक्के छितरा दिये, उनकी मेजे़ं उलट दीं और कबूतर बेचने वालों से कहा, “यह सब यहाँ से हटा ले जाओ। मेरे पिता के घर को बाजार मत बनाओ।” (योहन 2:14-16) मंदिर में ईश्वर उपस्थित रहते, दर्शन देते तथा हमें अपना अनुभव कराते हैं। बाइबिल के पवित्र वचन में हम चार प्रकार के मंदिर पाते हैं।

पहला – येरूसालेम का मंदिर। राजा दाऊद की इच्छा के अनुसार उनके पुत्र सुलेमान ने येरूसालेम में एक भव्य मंदिर बनाया। इस मंदिर के निर्माण में सात साल लगे। हज़ारों कारीगरों तथा कलाकारों ने मेहनत कर उसे बनाया था। शत्रुओं ने उस पर बार-बार आक्रमण किया, लूट लिया और उसे ढा दिया। इस्राएलियों ने अपनी क्षमता के अनुसार कई बार उस के पुननिर्माण की कोशिश की। उस मंदिर की प्रतिष्ठा के समय प्रभु ने वहाँ अपना नाम स्थापित कर उसे पवित्र किया और प्रतिज्ञा की कि उनकी आँखें और उनका हृदय उस में सदा विराजमान रहेंगे। (देखिए 1 राजाओं 9:3) लेकिन साथ-साथ उन्होंने सुलेमान को यह चेतावनी भी दी – “यदि तुम अपने पिता दाऊद की तरह निष्कपट हृदय और धार्मिकता से मेरे सामने आचरण करोगे; यदि तुम मेरे आदेशों, नियमों और विधियों का पालन करोगे, तो जैसा कि मैंने तुम्हारे पिता से यह कहते हुए प्रतिज्ञा की- ‘इस्र्राएल के सिंहासन पर सदा ही तुम्हारा कोई वंशज विराजमान होगा’, मैं तुम्हारा राज्यसिंहासन इस्राएल में सदा के लिए स्थापित करूँगा। किन्तु यदि तुम लोग - तुम और तुम्हारे पुत्र - मुझ से विमुख होगे और मेरे द्वारा अपने को दी गयी आज्ञाओं और विधियों का पालन नहीं करोगे; यदि तुम जा कर उन्य देवताओं की सेवा-पूजा करोगे, तो मैं इस्राएलियों को इस देश से निकाल दूँगा, जिसे मैंने उन्हें दिया है और इस मन्दिर को त्याग दूँगा, जिसका मैंने अपने नाम के लिए प्रतिष्ठान किया है। सब राष्ट्र इस्राएल की निन्दा और उपहास करेंगे।” मंदिर की पवित्रता को बनाये रखने का मतलब है ईश्वर को प्यार करना और उनकी आज्ञाओं पर चलना। जब कभी इस्राएली लोग ईश्वर का अनादर कर उनके नियमों को टुकराते थे, वे मंदिर को अपवित्र करते थे।

दूसरा - प्रभु येसु। योहन 2:19 में प्रभु येसु दावा करते हैं, “इस मन्दिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिनों के अन्दर फिर खड़ा कर दूँगा”। इसके बाद योहन 2:21 में सुसमाचार के लेखक टिप्पणी लिखते हैं – “ईसा तो अपने शरीर के मन्दिर के विषय में कह रहे थे”। सबसे पवित्र मंदिर तो येसु ही है क्योंकि वे स्वयं ईश्वर है और उनमें पवित्रता परिपूर्णता में मौजूद थी। अदृश्य ईश्वर येसु में दृश्य बन गये। मंदिर में बालक येसु के समर्पण के समय सिमयोन नामक धर्मी तथा भक्त पुरुष ने उन्हें देख कर भावात्मक होकर ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा था, “प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शान्ति के साथ विदा कर; क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है, जिसे तूने सब राष़्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है। यह ग़ैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।“ (लूकस 2:29-32)

तीसरा – विश्वासियों का समुदाय। विश्वासियों के समुदाय का तात्पर्य विश्वव्यापी कलीसिया, धर्मप्रान्तीय कलीसिया, पल्ली-समुदाय, लघु ख्रीस्तीय समुदाय या पारिवारिक समुदाय से है। इस विश्वासियों के समुदायों में ईश्वर विशेष रूप से उपस्थित रहते हैं। इन समुदायों की पवित्रता बनाये रखना उनके सदस्यों की जिम्मेदारी है। इन समुदायों के नेताओं को समुदाय की पवित्रता सुनिश्चित करने की विशेष जिम्मेदारी सौंपी गयी है। समुदाय की पवित्रता उसके सदस्यों की पवित्रता पर निर्भर है। संत पौलुस कहते हैं, “आप लोगों का निर्माण भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खड़ा है और जिसका कोने का पत्थर स्वयं ईसा मसीह हैं। उन्हीं के द्वारा समस्त भवन संघटित हो कर प्रभु के लिए पवित्र मन्दिर का रूप धारण कर रहा है। उन्हीं के द्वारा आप लोग भी इस भवन में जोड़े जाते हैं, जिससे आप ईश्वर के लिए एक आध्यात्मिक निवास बनें।” (एफेसियों 2:20-22) संत पेत्रुस कहते हैं, “प्रभु वह जीवन्त पत्थर हैं, जिसे मनुष्यों ने तो बेकार समझ कर निकाल दिया, किन्तु जो ईश्वर द्वारा चुना हुआ और उसकी दृष्टि में मूल्यवान है। उनके पास आयें और जीवन्त पत्थरों का आध्यात्मिक भवन बनें। इस प्रकार आप पवित्र याजक-वर्ग बन कर ऐसे आध्यात्मिक बलिदान चढ़ा सकेंगे, जो ईसा मसीह द्वारा ईश्वर को ग्राह्य होंगे।” (1 पेत्रुस 2:4-5)

चौथा – हरेक विश्वासी। 1 कुरिन्थियों 3:16-17 में संत पौलुस कहते हैं, “क्या आप यह नहीं जानते कि आप ईश्वर के मन्दिर हैं और ईश्वर का आत्मा आप में निवास करता है? यदि कोई ईश्वर का मन्दिर नष्ट करेगा, तो ईश्वर उसे नष्ट करेगा; क्योंकि ईश्वर का मन्दिर पवित्र है और वह मन्दिर आप लोग हैं।“ 1 कुरिन्थियों 6:18-20 में वे कहते हैं, “व्यभिचार से दूर रहें। मनुष्य के दूसरे सभी पाप उसके शरीर से बाहर हैं, किन्तु व्यभिचार करने वाला अपने ही शरीर के विरुद्ध पाप करता है। क्या आप लोग यह नहीं जानते कि आपका शरीर पवित्र आत्मा का मन्दिर है? वह आप में निवास करता है और आप को ईश्वर से प्राप्त हुआ है। आपका अपने पर अधिकार नहीं है; क्योंकि आप लोग कीमत पर खरीदे गये हैं। इसलिए आप लोग अपने शरीर में ईश्वर की महिमा प्रकट करें।”

प्रभु ईश्वर हम से कहते हैं, “मैं तुम्हारा प्रभु तुम्हारा ईश्वर हूँ, इसलिए अपने आप को पवित्र करो और पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ। तुम भूमि पर रेंगने वाले जीव-जन्तुओं से अशुद्ध मत बनो। मैं वह प्रभु हूँ, जो तुम्हें इसलिए मिस्र से निकाल लाया कि मैं तुम्हारा अपना ईश्वर बनूँ। पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।“ (लेवी 11:44-45)

संत पेत्रुस कहते हैं, “आप को जिसने बुलाया, वह पवित्र है। आप भी उसके सदृश अपने समस्त आचरण में पवित्र बनें; क्योंकि लिखा है- पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।“ (1 पेत्रुस 1:15-16)

हम कलीसियाई समुदायों की और हमारी अपनी पवित्रता बनाये रखने के लिए बुलाये गये हैं। ईश्वर की शिक्षा पर ध्यान देकर तथा उनकी आज्ञाओं का पालन कर हम इस पवित्रता को बनाये रख सकते हैं। इसलिए स्तोत्रकार कहते हैं, “तेरी शिक्षा का पालन करने से ही नवयुवक निर्दोष आचरण कर सकता है। मैं सारे हृदय से तुझे खोजता रहा, मुझे अपनी आज्ञाओं के मार्ग से भटकने न दे। मैंने तेरी शिक्षा अपने हृदय में सुरिक्षत रखी, जिससे मैं तेरे विरुद्ध पाप न करूँ”। (स्तोत्र 119:9-11)


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