Smiley face

खजूर इतवार

इसायाह 50:4-7; फि़लिप्पियों 2:6-11; जुलूसः मारकुस 11:1-10 या योहन 12:12-16; मिस्साः मारकुस 14:1-15, 47

फादर फ्रांसिस स्करिया


काथलिक कलीसिया की लातीनी पूजनविधि के अनुसार आज एक ऐसा दिन है जब एक मिस्सा बलिदान के दौरान सुसमाचार के दो पाठ पढ़े जाते हैं। एक शुरूआत में जुलूस के पूर्व पढ़ा जाता है जिस में येसु की येरूसालेम यात्रा का वर्णन है। बडे आदर-सम्मान के साथ समाज के साधारण लोगों ने येसु को एक गदही के बछडे पर बिठा कर अपने कपड़े रास्ते में बिछा दिये। कुछ लोगों ने खेतों में हरी-भरी डालियाँ काट कर फैला दीं। फिर ईसा के आगे-आगे जाते हुए और पीछे-पीछे आते हुए लोग यह नारा लगा रहे थे, "होसन्ना! धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं! धन्य हैं हमारे पिता दाऊद का आने वाला राज्य! सर्वोच्च स्वर्ग में होसन्ना!" (मारकुस 11:8-10) येसु विजेता के समान येरूसालेम में प्रवेश करते हैं।

मिस्सा बलिदान के दौरान अन्य पाठों के साथ-साथ सुसमाचार से एक और पाठ घोषित किया जाता है, जिस में येसु के दुख-भोग का वर्णन है। तब जो पहले ’होसन्ना’ बोल रहे थे, वे ही “उसे क्रूस दीजिए, उसे क्रूस दीजिए” बोलने लगते हैं। इस प्रकार आज की पूजन-विधि में एक तरफ खुशी का माहौल है, तो दूसरी तरफ दुख का। ऐसा क्यों? आइए हम इस पर थोडा मनन-चिंतन करते हैं।

कई बार इस बात पर ईशशास्त्रियों के बीच वाद-विवाद होता है कि प्रभु येसु की मृत्यु एक बलिदान थी या एक हत्या। वास्तव में पवित्र ग्रन्थ को पढ़ने और समझने पर हमें यह ज्ञात होता है कि येसु की ओर से वह एक बलिदान थी। योहन 10:18 में प्रभु कहते हैं, “कोई मुझ से मेरा जीवन नहीं हर सकता; मैं स्वयं उसे अर्पित करता हूँ। मुझे अपना जीवन अर्पित करने और उसे फिर ग्रहण करने का अधिकार है। मुझे अपने पिता की ओर से यह आदेश मिला है।” इस से यह स्पष्ट होता है कि येसु ने अपने जीवन को अपने पिता के आदेश का पालन करते हुए स्वेच्छा से अर्पित किया। मरते-मरते उन्होंने कहा, “पिता! मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों सौंपता हूँ"(लूकस 23:46) योहन 15:12-13 में प्रभु येसु कहते हैं, “मेरी आज्ञा यह है, जिस प्रकार मैंने तुम लोगो को प्यार किया, उसी प्रकार तुम भी एक दूसरे को प्यार करो। इस से बडा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिये अपने प्राण अर्पित कर दे।” यहाँ पर येसु अपने प्रेम को हमारे लिए आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं। येसु स्वयं हमें समझाते हैं कि उन्होंने क्रूस पर अपने जीवन की कुर्बानी दे कर हमारे प्रति उनके सर्वोत्तम प्रेम का प्रमाण दिया। इब्रानियों के पत्र में ईशवचन कहता है, “उन्होंने बकरों तथा बछड़ों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परमपावन स्थान में प्रवेश किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है” (इब्रानियों 9:12)। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि येसु अब येरूसालेम में अपने पिता की इच्छा को पूरा करने हेतु तथा हमारे प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते हुए अपने जीवन की कुर्बानी देने के लिए प्रवेश कर रहे थे।

परन्तु, जिन्होंने येसु को मार डाला, उनके लिए यह एक हत्या थी। यहूदी लोग येसु को मार डालने का षड़यन्त्र रच रहे थे और येसु इस बात को भली भाँति जानते थे। इसलिए योहन 8:40 में वे यहूदियों से कहते हैं, “अब तो तुम मुझे इसलिए मार डालने की ताक में रहते हो कि मैंने जो सत्य ईश्वर से सुना, वह तुम लोगों को बता दिया”। मारकुस के सुसमाचार के अध्याय 12 में प्रभु येसु असामियों के दृष्टान्त द्वारा यह स्पष्ट करते हैं – “अब उसके पास एक ही बच गया- उसका परमप्रिय पुत्र। अन्त में उसने यह सोच कर उसे उनके पास भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। किन्तु उन असामियों ने आपस में कहा, ‘यह तो उत्तराधिकारी है। चलो, हम इसे मार डालें और इसकी विरासत हमारी हो जायेगी।’ उन्होंने इसे पकड़ कर मार डाला और दाखबारी के बाहर फेंक दिया।” (मारकुस 12:6-8) पेन्तेकोस्त के बाद संत पेत्रुस ने इस्राएलियों के सामने प्रवचन देते हुए कहा, “आप लोगों ने सन्त तथा धर्मात्मा को अस्वीकार कर हत्यारे की रिहाई की माँग की। जीवन के अधिपति को आप लोगों ने मार डाला; किन्तु ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया। हम इस बात के साक्षी हैं।” (प्रेरित-चरित 3:14-15) संत पेत्रुस और

अन्य प्रेरितों ने निडर हो कर प्रधानयाजक से भी कहा था, “आप लोगों ने ईसा को क्रूस के काठ पर लटका कर मार डाला था” (प्रेरित-चरित 5:30) 1 थेसलनीकियों 2:15 में संत पौलुस भी कहते हैं, “यहूदियों ने ईसा मसीह तथा नबियों का वध किया और हम पर घोर अत्याचार किया”। इस प्रकार यहूदी नेताओं ने रोमी शासकों के साथ मिल कर येसु की हत्या की। यह एक दर्दनाक घटना थी।

इस प्रकार आज के मिस्सा बलिदान मे बलिदान और हत्या – दोनों का वातावरण बना रहता है। येसु क्रूस को टाल सकते थे, परन्तु पवित्र वचन हमें समझाता है – “वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।”

इस प्रकार आज के पाठ हमें भी ईश्वर की इच्छा को ईमानदारी से खोजने तथा विनम्रता से स्वीकार करने के लिए प्रेरित करते हैं।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!