Smiley face

45. वर्ष का चैदहवाँ इतवार

एज़ेकिएल 2:2-5; 2 कुरिन्थियों 12:7-10; मार्कुस 6:1-6

फादर मेलविन चुल्लिकल


पिछले इतवार के सुसमाचार में हमने प्रभु को लोगों द्वारा तिरस्कृत हुए पाया। इसलिए हम आज के सुसमाचार में प्रभु को अपनी रणनीति बदलते हुए देखते है। प्रभु अपने शिष्यों को स्वर्गराज्य के रह्स्यों की शिक्षा दे कर दो दो करके भेजते हैं। इससे प्रभु हमें एक सीख जरूर देते हैं कि जब भी हम कुछ कार्य करने निकलते हैं तो हमारे पास एक वैकल्पिक योजना होनी चाहिए। एक नहीं चले तो दूसरा चलेगा। अपने शिष्यों को भेजते समय प्रभु द्वारा दिये गये अनुदेशों या हिदायतों पर हम आज मनन चिन्तन करेंगे।

1. साधारण जीवन शैली

2. अच्छे लोगों की संगति

3. तिरस्कृति में धूल झाडना

4. लोगों को चंगा करना

1. साधारण जीवन शैली :- एक बार एक व्यक्ति एक ऋषि के दर्शन करने आया और वह उस संत का कमरा देख कर चकित हो गया। उसके कमरें में एक भी फर्नीचर नहीं था। उसने ऋषि से पूछा कि यह बहुत बुरी बात है कि आपके घर में मेहमान को बिठाने के लिए एक कुर्सी तक नहीं है। तो साधू ने उनसे पूछा आपकी कुर्सी कहाँ है? उसने कहा कि मुझे कुर्सी की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मैं एक मुसाफिर हूँ। तब ऋषि ने उनसे कहा कि मैं भी इस संसार में एक मुसाफिर हूँ।

रेल गाडी के डिब्बे में कई जगह हम यह लिखा हुआ पाते हैं – Less luggage, more comfort - जितना कम वजन उतना आराम। आज के सुसमाचार में प्रभु यही बात अपने शिष्यों को समझाते हैं कि सुसमाचार प्रचार करते समय हम अपने आप को जितना विमुक्त रखते हैं, वह काम उतना ज़्यादा आसान बनता है। प्रभु अपने शिष्यों को मौलिक या बुनियादी आवश्यकताओं से भी वंचित कर देते हैं। उनका मतलब यह था कि एक सुसमाचार प्रचारक का मन और हृदय हमेशा प्रभु पर और केवल प्रभु पर निर्भर रहना चाहिए।

2. अच्छे लोगों की संगति :- हम तारामंडल में काले छेद के बारे में ये पढ़ते हैं। उनके पास इतनी ताकत होती है कि आस पास से गुजरने वाले हर तारे को अपनी ओर आकर्षित करके एक चक्की की तरह काम करते हुए उसे काला कर देता है। इसी प्रकार जब हम बुरे या गलत लोगों की संगति में आते है तब हम भी उसके जैसे बदल सकते हैं। इसीलिए प्रभु उन्हें चेतावनी देते हुए कहते हैं कि गाँव छोडने तक उन्हें अच्छे लोगों की संगति में रहना है।

3. धूल झाडना :- यहूदी लोग दूसरे गैरयहूदियों के देश घूमकर वापस आते समय उनके पैर और कपडे से धूल झाडने की एक प्रथा प्रचलित थी। इसी परंपरा को याद दिलाते हुए प्रभु अपने शिष्यों से कहते हैं कि जो उनका प्रवचन को अस्वीकार करते हैं, जो उनकी निन्दा करते हैं, जो उन पर विश्वास नहीं करते हैं, उनके वहाँ ठहरने की ज़रूरत नहीं है। आज के पहले पाठ में हम देखते हैं कि इस्राएल के राजा येरोबाम यहूदियों को आराधना के लिए येरूसलेम नहीं भेजता है बल्कि अपने देश में बाल देवता के लिए मंदिर बना कर लोगों को बाल देवता की आराधना करने के लिए बाध्य करता है। ना नबी आमोस ने इसके विरुध्द आवाज उठायी और न ही बतेल मंदिर के अमासिया ने उनकी निन्दा की। ईश्वरीय कार्य में निन्दा या तिरस्कार हमें मिलते रहेंगे लेकिन लोगों को चेतावनी देना हमारा कर्तव्य है। धूल झाडना एक प्रकार का चेतावनी है।

4. लोगों को चंगा करना :- आज की दुनिया को चंगाई की जरूरत है क्योंकि लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों से गुजर रहे हैं। शारीरिक और मानसिक बीमारियों की चंगाई के अतिरिक्त आज समाज के हर क्षेत्र में फैल रही सामाजिक बीमारियों को भी चंगाई की आवश्यकता है। समाज में एक दूसरे के प्रति नफरत भेदभाव के व्यवहार, असहिष्णुता, नैतिक मूल्यों का उडेल, धोखेबाजी और अस्वस्थ प्रतियोगिता आदि इसके कुछ उदाहरण है। प्रभु ने हमें सबको इन बीमारियों से चंगाई प्रदान करने का माध्यम बनाया हैं।

हमें अपनी इस बुलाहट को पहचानना जरूरी है। हम प्रभु के इस मिशन-कार्य को गंभीरता से लें। लोगों की निन्दा से हताश न होते हुए अच्छे लोगों की संगति में रहते हुए प्रभु की योजना के अनुसार हम काम करते रहें, लोगों को और समाज को चंगाई देते रहें। प्रभु आज हम से यही अपेक्षा करते हैं।


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