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47. वर्ष का सोलहवाँ इतवार

यिरमियाह 23:1-6; एफेसियों 2:13-18; मारकुस 6:30-34

(फादर अंथोनी स्वामी)


आज का वचन समारोह हमें प्रभु के व्यक्तित्व को पहचानने के लिए प्रेरित करता है। आज का पहला पाठ नबी यिरमियाह के ग्रंथ से लिया गया है। नबी का जीवनकाल प्रभु येसु के जन्म के करीब 600 साल पहले का था। उस समय की परिस्थितियों का हम इस पाठ से अंदाज़ा लगा सकते हैं। उस काल में राजाओं की तुलना गड़ेरियों से की जाती थी। यूदा के राजा अपनी बुलाहट के अनुसार जीवन बिताने तथा कार्य करने से पीछे हटते थे। वे अपनी प्रजा की देखरेख ठीक से नहीं करते थे। इसलिए नबी यिरमियाह के द्वारा ईश्वर उन्हें चेतावनी देते हैं और कहते हैं, ’’मैं तुम लोगों को तुम्हारे अपराधों का दण्ड दूँगा’’ (यिरमियाह 23:2)। आज की परिस्थिति में भी यह लागू है। ईश्वर ने अपनी प्रजा की देखरेख करने की जिम्मेदारी जिन लोगों को सौंपी है, अगर वे यह जिम्मेदारी नहीं निभायेंगे तो उन्हें दण्ड भोगना पड़ेगा। हमारे राजनैतिक नेताओं को हमारे राष्ट्र के शासन का कार्य सौंपा गया है, हमारे धार्मिक अधिकारियों को कलीसिया तथा विश्वासियों की देखरेख और मार्गदर्षन का कार्यभार सौंपा गया है। माता-पिताओं को अपने बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। अध्यापकों को अच्छी शिक्षा तथा मार्गदर्षन देने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। जब हम अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटते हैं या उसे लापरवाहीपूर्वक निभाते है तो ईश्वर हमें दण्ड देंगे क्योंकि हर जिम्मेदारी ईश्वर के कार्य में शामिल होने की एक बुलाहट है।

साथ ही साथ नबी यिरमियाह द्वारा प्रभु यह भी कहते हैं, ’’मैं स्वयं अपने झुण्ड की बची हुई भेड़ों को उन सभी देशों से एकत्र कर लूँगा, जहाँ मैंने उन्हें बिखेर दिया हैं, मैं उन्हें उनके अपने मैदान वापस ले चलूँगा और वे फलेंगी-फूलेंगी। मैं उनके लिए चरवाहों को नियुक्त करूँगा, जो उन्हें सचमुच चरायेंगे (यिरमियाह 23:3-4)। एजे़किएल के ग्रंथ अध्याय 34 का भी यही सारांश है। वहाँ प्रभु खुद अपनी प्रजा का चरवाहा बनने की प्रतिज्ञा करते हैं, ’’मैं स्वयं अपनी भेड़ो की सुध लूँगा और उनकी देखभाल करूँगा। भेड़ों के भटक जाने पर जिस तरह गड़ेरिया उनका पता लगाने जाता है उसी तरह मैं अपनी भेडे़ं खोजने जाऊँगा। कुहरे और अंधेरे में जहाँ कहीं वे तितर-बितर हो गयी हैं, मैं उन्हें वहाँ से छुड़ा लाऊँगा। मैं उन्हें राष्ट्रों में से निकाल कर और विदेषों से एकत्र कर उनके अपने देश में लौटा लाऊँगा। मैं उन्हें इस्राएल के पहाड़ों पर, घाटियों में और देश भर के बसे हुए स्थानों पर चराऊँगा। मैं उन्हें अच्छे चरागाहों में ले चलूँगा। वे इस्राएल के पर्वतों पर चरेंगी। वहाँ वे अच्छे चरागाहों में विश्राम करेंगी और इस्राएल के पर्वतों की हरी-भरी भूमि में चरेंगी। प्रभु कहता है- मैं स्वयं अपनी भेड़े चराऊँगा और उन्हें विश्राम करने की जगह दिखाऊँगा। जो भेड़ें खो गयी हैं, मैं, उन्हें खोज निकालूँगा; जो भटक गयी हैं, मैं उन्हें लौटा लाऊँगा; जो घायल हो गयी हैं; उनके घावों पर पट्टी बाँधूँगा; जो बीमार हैं, उन्हें चंगा करूँगा; जो मोटी और भली-चंगी हैं, उनकी देखरेख करूँगा। मैं उनका सच्चा चरवाहा होऊँगा।’’

आज के सुसमाचार पाठ में हम देखते है कि प्रभु अपने शिष्यों को आराम करने के लिए बाध्य करते हैं। हमारी दुनिया में हम तीन प्रकार के लोगों को देखते है- एक, जो अपना कत्र्तव्य अपनी क्षमता के अनुसार निभाते है। वे जीवन में खुशी का अनुभव करते हैं। दूसरा, जो काम को जीवन समझते हैं तथा जिनको अंग्रेजी में workaholic कहते हैं। वे हमेशा काम करते रहते हैं। आराम करने के लिए उनके पास समय नहीं, अपनी पत्नी से या बच्चों से बात करने के लिए भी उनके पास समय नहीं है। वे व्यस्त ही व्यस्त रहते हैं। उनका रास्ता बहुत संकरा है। वे दूसरों के बारे में भी सोच नहीं सकते हैं। तीसरे प्रकार के लोग वे है जो आलसी है। वे काम करना नहीं चाहते हैं। वे दूसरों पर निर्भर रहते हैं। वे दूसरों की कमाई से अपनी जिन्दगी गुजारते हैं। प्रभु यह नहीं चाहते हैं कि हम आलसी बनें। लेकिन प्रभु यह भी नहीं चाहते हैं कि हम अपनी क्षमता से ज्यादा काम करें। कुछ लोग सोते नहीं, सो भी नहीं सकते हैं क्योंकि हमेषा काम करने का विचार रहता है। नेपोलियन बोनपार्ट महान होने के बावजूद भी इस प्रकार के व्यक्ति थे। वे लगातार 16 घण्टों तक काम करते थे। उनके बारे में किसी ने कहा था, ’’ईश्वर ने नेपोलियन की सृष्टि करने के बाद आराम किया।’’ लगता है कि अब ईश्वर नहीं बल्कि नेपोलियन पूरी दुनिया संभाल रहे हैं। प्रभु येसु यह नहीं चाहेंगे कि उनके शिष्य भी ऐसे बनें। इसलिये उनसे वे आराम करने के लिए अनुरोध करते हैं। आइए हम अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभायें। लेकिन ऐसा न हो कि दुनियावी चेष्ठा में अपनी आत्मा खो बैठें। जीवन का संतुलन बनाये रखने के लिए आइए हम ईश्वर से कृपा माँगे।


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