Smiley face

48. वर्ष का सत्रहवाँ इतवार

2 राजाओं 4:42-44; एफेसियों 4:1-6; योहन 6:1-15

(फादर जॉनी पुल्लोप्पिल्लिल)


आज के पहले और तीसरे पाठ में रोटी के बारे में कहा गया है। पहले पाठ में अलीशा के नौकर उससे पूछते हैं कि मैं, जो कि बीस रोटियों से एक सौ लोगों में कैसे बाँट सकता हूँ? अलीशा उत्तर देते हैं, ’’प्रभु का कहना है, वे खायेंगे और उसमें से कुछ बच जायेगा’’। और सचमुच में खिलाने के बाद उसमें से बहुत कुछ बच गया।

सुसमाचार का यह पाठ ’रोटियों के चमत्कार’ के बारे में है। फिलिप की परीक्षा लेते हुए येसु ने उनसे पूछा, ’’इतने बड़े जनसमूह को खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ खरीदे?’’ फिलिप हैरान रह गये। लेकिन बताया गया है कि जोकि पाँच रोटियों से पाँच हजार लोगों के बीच इच्छा भर बटवायाँ गया पर इनमें से भी बहुत कुछ बच गया। करीब बारह टोकरे भर।

रोटी मनुष्य के अस्तित्व का अटूट भाग है। रोटी बिना मानवीय जीवन संभव नहीं हो सकता। रोटी कमाना ही मनुष्य की सबसे प्रथम चिंता है। वह रोटी कमाने के बाद घर के लोगों को खिलाता और परिवार में ही बटाँता है। घर में एक साथ बैठकर खाना खाना अधिकत्तर लोग पंसद करते हैं। ’’एक गाँव की कहावत है कि परिवार एक सामूहिक भोजन में अपनी सभी समस्याओं को एक ही थाली भूलते / खाते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि रोटी परिजनों के साथ खायी जाती है। जहाँ प्रेम मोहब्बत है। लोग दुष्मनों के साथ न तो खाते हैं और न उसे खिलाते है।

जीवन में खाना ही सब कुछ नहीं होता है। मनुष्य की मानसिकता भी मायने रखती है। नौकर ने जब अलीशा से पूछा की, कि मैं बीस रोटियों को सौ लोगों में कैसे बाँट सकता हूँ तब अलीशा ने उत्तर दिया, ’’लोगों को खाने के लिए दो’’ याने रोटियों की संख्या तो तुच्छ है पर बाँटे जाने पर सबका पेट भर जायेगा।

कोई भी वस्तु वैसी ही रहती है यदि उसे अपने स्वार्थपूर्ति के लिये उपयोग किया जाए। वो कभी बढ़ती नहीं और न ही किसी के काम आती है। इस मानसिकता को दर्षाने के लिए येसु ने पाँच रोटियाँ उस लड़के से माँगी। याने कोई भी वस्तु बाटँने पर वह दो तीन गुणा बढ़ जाती है। पाँच रोटियों से पाँच हजार लोग खा पायेंगे।

अअंग्रेज़ी में कहावत है, ’’The joy shared is doubled’’ याने खुशियाँ बाँटने से दो गुणा होती है। कही गयी बातों से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि रोटी साथ खाने के लिए प्रेम मोहब्बत की ज़रूरत है एव सदैव भोजन बाँट कर किया जाये। यदि वे दोनों बातें आप अपने जीवन में ला पाये तो मात्रा मायने नहीं रखेगा। वरन् जो हमारे पास है उससे हम संतुष्ट हो जायेंगे।

इसलिए संत पौलुस आज के दूसरे पाठ में कहते हैं, ’’प्रेम से एक-दूसरे के साथ रहो, सौम्य और सहनशील बनो, शांति के सूत्र में बंधे रहो, और एकता को बनाये रखो।’’ रोटी जीवन की अटूट मांग है। वैसे ही उसे प्रेम के साथ एक दूसरे के साथ खाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जीवन में देखने को मिलता है, कि कभी-कभी परिवार में भोजन कम होने पर माँ भोजन बच्चों में बाँट कर खुद भूखी रहती है। बच्चों में भोजन बाटने से और बच्चों की खुशी देखकर माँ की भूख मिट जाती है और पेट बच्चों की खुशी से भर जाता है। और हम देखते है कि दुनिया के धनाढ़य व्यक्ति भी दान देने में दूसरों की मदद करने में कंजूसी करते हैं। जब पैसा, भोजन आदि ईश्वर का दिया हुआ दान है एवं सब के साथ बाँट कर खाना चाहिए।

जैसे संत लूकस के सुसमाचार में पढ़ते हैं (12:20-21), ’’परन्तु ईश्वर ने उनसे कहा, रे मूर्ख इसी रात तेरे प्राण तुझ से ले लिये जायेंगे और तू ने जो इकट्टा किया है, अब वह किसका होगा’’। यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है किन्तु ईश्वर की दृष्टि में वह धनी नहीं है।

आइए हम अपने अंतकरण को जाँचे कि जो ईश्वर ने हमको दिया है चाहे वह धन हो या भोजन, खुशी हो या शांति, दूसरों के साथ बाँटते हैं या नहीं।


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