Smiley face

50. वर्ष का उन्नीसवाँ इतवार

1 राजाओं 19:4-8; ऐफिसियों 4:30,5:2; योहन 6:41:45

(फादर मरिया फ्रांसिस)


मनुष्य विभिन्न प्रकार की यात्रायें करते हैं। यात्रा की दूरी तथा लक्ष्य के अनुसार उसे तैयारी करनी पड़ती है। यात्रा में जितनी साहसिकता होती है उतनी अधिक तैयार भी। किसी साहसिक एवं रोमांचिक यात्रा की पूर्ति पर हम बहुत हर्ष मनाते हैं। हिमालय पर्वत की चोटी ऐवरेस्ट पर पहुँचने वाले महान माने जाते हैं क्योंकि उस ऊँचाई तक पैदल चलकर पहुँचना आसान काम नहीं है। नबी एलियस मरुभूमि में एक दिन का रास्ता तय करके एक झाड़ी के नीचे बैठ जाते हैं। उस यात्रा के पहले उनके कहने पर बाल के साढे़ चार सौ नबियों का वध किया गया था। इस घटना से उत्तेजित होकर रानी ईजे़बेल नबी एलियस को मार डालना चाहती थी। इसी कारण नबी होरेब पर्वत की ओर भाग रहे थे। रास्ते में अब एक झाड़ी के नीचे बैठकर एलियस मौत के लिए प्रार्थना करने लगे, ’’हे प्रभु! बहुत हुआ। मुझे उठा ले।’’ इसके बाद वे सोने के लिए लेट गये। परन्तु स्वर्गदूत ने दो बार उन्हें नींद से जगाया तथा यह कहकर खिलाया पिलाया, ’’उठिये और खाइए नहीं तो रास्ता आपके लिए अधिक लंबा हो जायेगा’’। पवित्र वचन कहता है कि उस भोजन के बल पर वे चालीस दिन और चालीस रात चलकर ईश्वर के पर्वत होरेब तक पहुँचा।

मैं और आप इस दुनिया में तीर्थ यात्री है। हम सब हमारे होरेब पर्वत, यात्री स्वर्ग की ओर यात्रा कर रहे हैं। इस यात्रा में हमें भी नबी एलियस के समान विघ्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कुछ विघ्न बाधायें इतनी जटिल होती है कि हम नबी एलियस की तरह हताश भी हो जाते हैं। कभी-कभी हम भी उन्हीं की तरह किसी झाड़ी के नीचे बैठकर उस आशाहीन प्रार्थना को दोहराते हैं कि मुझे ’उठा लो’। परन्तु प्रभु हमें ’उठाते’ नहीं बल्कि अपने स्वर्गदूत को भेजकर हमें खिला-पिलाकर पुष्ठ करते हैं ताकि हमारे लंबे सफर में थकान महसूस न करे।

यूखारिस्तीय समारोह में स्वर्ग से उतरी हुई रोटी और दाखरस हमें भोजन के रूप में दी जाती है। इस रोटी के विषय में आज के सुसमाचार में प्रभु हमें समझाते हैं। यह रोटी प्रभु ही है और प्रभु कहते हैं, ’’यदि कोई वह रोटी खाये तो वह सदा जीवित रहेगा। जो रोटी मैं दूँगा वह संसार के जीवन के लिए अर्पित मेरा माँस है’’। यूखारिस्तीय रोटी में बड़ी ताकत है। पुराने विधान में हम देखते हैं कि ईश्वर ने मिस्र से इस्राएलियों को छुड़ाकर प्रतिज्ञात देश ले आते समय मरूभूमि में उनको मन्ना खिलाया था। सुसमाचार में भी हम देखते हैं कि एक बार चमत्कार के द्वारा प्रभु ने पाँच हजार से ज्यादा लोगों को खिलाया और फिर एक बार उन्होंने चार हजार से ज्यादा लोगों को खिलाया। यह सब खाकर लोग तृप्त हो गये थे और रोटियों के चमत्कारों के बाद बचे हुए टुकड़ों से बहुत से टोकरे भर भी गए थे।

यूखारिस्तीय रोटी में प्रभु अपने आप को हमें दे देते हैं। प्रभु सृष्टिकर्त्ता तथा सबके स्वामी होने पर भी अपने आप को बलि स्वरूप अर्पित करके हमारे लिए भोजन बनते हैं। भोजन बनने का मतलब है अपने आपको न्यौछावर कर दूसरों को जीवन देना। ये वहीं काम है जो मोमबत्ती करती है। जिस प्रकार जलती हुई मोमबत्ती रोशनी देते-देते खत्म हो जाती है उसी प्रकार भोजन दूसरो बल प्रदान करता है। साधारणतः हम बार-बार खाना खाते तथा पानी पीते हैं। समारी स्त्री से वार्तालाप में प्रभु कहते हैं, ’’जो मेरा दिया हुआ जल पीता है, उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी। जो जल मैं उसे प्रदान करूँगा वह उसमें वह स्रोत बन जायेगा जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहता है’’। (योहन 4:14) जब कभी हम पानी पीते हैं, थोड़ी देर के बाद पुनः हम प्यास महसूस करते हैं। परन्तु प्रभु के दिये गये जल को पीने पर हमें कभी प्यास नहीं लगेगी। प्रभु येसु हमारे ह्नदय में आकर वह जीवन-स्रोत बन जाते हैं जो उमड़ता रहता है।

प्रभु जो जीवन की रोटी है यूखारिस्तीय समारोह में हमारे ह्नदय का भोजन बनकर आते हैं, ह्नदय में आकर वे हमारा जीवन स्रोत बनते हैं तथा उमड़ते रहते हैं। इसका मतलब है कि यूखारिस्तीय भोजन एक प्रसाद मात्र नहीं है जिसके द्वारा हम एक देवता की आशिष प्राप्त करते हैं। यूखारिस्त में हम जीवन स्रोत को ही ग्रहण करते हैं। यूखारिस्त ग्रहण करने से हम ईश्वर को हमारे जीवन का स्रोत बनाते हैं और जीवन के हर कार्य में उन्हीं से प्रेरणा तथा बल पाकर हम आगे बढ़ते रहते हैं। हर बार जब हम यूखारिस्तीय समारोह में भाग लेते हैं हम होरेब पर्वत की ओर कदम बढ़ाते हैं। होरेब पर्वत पवित्रता का प्रतीक है। पवित्रता ईश्वर की सीमा है जिसके अंदर ईश्वर से हमारी मुलाकाल होती है। इस संदर्भ में एफ़ेसियों को लिखते हुए संत पौलुस कहते हैं कि इस जीवन यात्रा में पवित्र आत्मा ने मुक्ति के दिन के लिए हम पर अपनी मोहर लगा दी है तथा हम उस पवित्र आत्मा को दुख न दे। संत पौलुस विश्वासियों से आग्रह करते हैं कि वे सब प्रकार की कटुता, उत्तेजना, क्रोध, लड़ाई-झगड़ा, परनिंदा और हर तरह की बुराई अपने बीच में से दूर कर दे। इस प्रकार स्वर्ग की ओर हमारी तीर्थ यात्रा में भक्ति भाव से हम उस अंनत जीवन की रोटी को ग्रहण करे तथा अंनत जीवन के योग्य आचरण करने का दृढ़ संकल्प करें।


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