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वर्ष का उन्नीसवाँ इतवार

1 राजाओं 19:4-8; ऐफिसियों 4:30,5:2; योहन 6:41:45

फादर रोनाल्ड वाँन


राजाओं के दूसरे ग्रंथ में हम नबी एलियस के जीवन की उस घटना के बारे में पढते हैं जब वे शत्रुओं से भाग रहे थे। थकान, भूख और विषम परिस्थितियों के कारण वे अत्याधिक क्षीण होकर सो जाते हैं। इस दौरान स्वर्गदूत उन्हें जगाते तथा रोटी और जल प्रदान करते हैं। इस प्रकार ईश्वर स्वयं नबी को रोटी प्रदान करते हैं। (1राजाओं 19:4-8) धर्मग्रंथ में अनेक अवसरों पर ईश्वर मनुष्यों को रोटी प्रदान करते हैं। मरूभूमि में ईश्वर लोगों को मन्ना अर्थात रोटी प्रदान करते हैं। ’’प्रभु ने मूसा से कहा, मैं तुम लोगों के लिए आकाश से रोटी बरसाऊँगा।...मूसा ने लोगों से कहा, ’’यह वही रोटी है, जिसे प्रभु तुम लोगों को खाने के लिए देता है।’’ (निर्गमन 16:4,15) जब नबी दानिएल को सिंहों के खडड में डाल दिया गया था तो ईश्वर नबी हबक्कूक को दानिएल के लिए भोजन ले जाने को कहते हैं, ’’प्रभु के दूत ने हबक्कूक से कहा, ’अपने पास का यह भोजन बाबुल के सिंहों के खड्ड में दानिएल के पास ले जाओ’’। (दानिएल 14:34) इसी प्रकार प्रभु सरेप्ता की विधवा को भी अकाल के दौरान रोटी प्रदान करते हैं। ’’इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः जिस दिन तक प्रभु पृथ्वी पर पानी न बरसाये, उस दिन तक न तो बर्तन में आटा समाप्त होगा और न तेल की कुप्पी खाली होगी।’’ (1राजाओं 17:14) सुसमाचार में येसु रोटी के चमत्कार के द्वारा लोगों के लिए रोटी का प्रबंध करते हैं, (मत्ती 14:13-21; मारकुस 6:30-44; लूकस 9:10-17; योहन 6:1-15)

योहन 6:41-51 में येसु समझाते हैं कि जो रोटी मरुभूमि में उन्हें प्रदान की गयी थी वह रोटी सचमुच में ईश्वर ने प्रदान की थी किन्तु वह भोजन मात्र था जिसका उद्देश्य शारीरिक भूख मिटाना था। वह रोटी उन्हें अनंत मृत्यु से बचाने में असमर्थ थी। ’’तुम्हारे पूर्वजों ने मरुभूमि में मन्ना खाया; फिर भी वे मर गये।’’ किन्तु येसु आगे कहते हैं ’’स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवंत रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खाये, तो वह सदा जीवित रहेगा।’’

येसु ने शिष्यों के साथ अपने भोज में यूखारिस्त की स्थापना करते हुये पुनः अपने शरीर को रोटी के रूप में घोषित किया, ’’यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जा रहा है। यह मेरी स्मृति में किया करो’’ (लूकस 22:19) (देखिए मत्ती 26:26; मारकुस 14:22; 1कुरि.11:24) येसु तो उस भोज के दौरान रोटी देते हैं किन्तु कलवारी पर वह अपने शरीर, जिसे उन्होंने रोटी कहा था, को क्रूस पर चढा कर सचमुच में अपने शरीर को वह रोटी बना देते हैं जो हम विश्वासियों को मुक्ति प्रदान करेगी।

जो येसु को रोटी के रूप में ग्रहण करता है वह अपने जीवन में क्रूस की शिक्षा को भी अपनाता है। इसके द्वारा वह सदैव प्रभु में जीवित रहता है तथा प्रभु उसमें। इस विश्वास के द्वारा हम जीवन की सारी अनिश्चिताओं एवं विपत्तियों पर विजयी प्राप्त कर सकते हैं। येसु जो ’स्वर्ग से उतरी जीवंत रोटी’ के रहस्य हैं, उनको समझने के लिए विश्वास की आवश्यकता पडती है जो केवल पिता ही दे सकता है। ’’कोई मेरे पास तक नही आ सकता जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे आकर्षित न करे।’’(योहन 6:44) ’’इसलिए मैंने तुम लोगों से यह कहा कि कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक उसे पिता से यह वरदान न मिला हो।’’ (6:65) इसलिए हमें येसु में ईश्वरीयता को पहचानने तथा उसे स्वीकार करने के लिए विश्वास के वरदान के लिए पिता से प्रार्थना करना चाहिए तथा सांसारिक सोच से ऊपर उठकर येसु को अपनाना चाहिए। यहूदी येसु को मात्र मनुष्य समझते और तिरस्कृत करते हुए कहते हैं, ’’क्या यह यूसुफ का बेटा येसु नहीं है? हम इसके मॉ-बाप को जानते हैं। तो यह कैसे कह सकता है-मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?’’ ऐसी सांसारिक सोच के विरूद्ध संत पौलुस चेतावनी देते हैं, ’’यदि मसीह पर हमारा भरोसा इस जीवन तक ही सीमित है, तो हम सब मनुष्यों में सब से अधिक दयनीय है। (1 कुरि. 15:19) कई बार हमारी सोच इस नश्वर संसार तक सीमित रहती है। इस कारण हम येसु में अंनत जीवन के महान रहस्य को समझने में विफल होकर भटकते रहते हैं। आईये हम विश्वास के वरदान के लिए प्रार्थना करे तथा येसु जो जीवंत रोटी है को ग्रहण कर अंनत जीवन प्राप्त करे।


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