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वर्ष का बीसवाँ इतवार

सूक्ति 9:1-6; एफ़ेसियों 5:15-20; योहन 6:51-58

फादर रोनाल्ड वाँन


प्रज्ञा ईश्वर का दान है। अपनी प्रज्ञा के द्वारा ही परमेश्वर ने सारी सृष्टि की रचना की तथा मनुष्य को बनाया। ईश्वर आदिकाल से अपने चुने हुये लोगों को अपनी प्रज्ञा प्रदान करता आ रहा है जो उनपर श्रद्धा रखते, उन्हें खोजते तथा उनकी इच्छानुसार जीवन जीते हैं। धर्मग्रंथ बताता है ’’प्रज्ञा का मूलस्रोत प्रभु पर श्रद्धा है। बुद्धिमानी परमपावन ईश्वर का ज्ञान है;’’(सुक्ति 9:10) प्रज्ञावान बनने की चाह रखने वाला व्यक्ति सर्वप्रथम ईश्वर पर श्रद्धा रखता है। उसके जीवन को निर्देशित करने वाली मूल भावना ईश्वर पर उसकी श्रद्धा होती है। वह इसी श्रद्धा-भक्ति से प्रेरित होकर अपने जीवन के निर्णय लेता है। वह यह नहीं सोचता कि उसके लिए क्या लाभदायक है बल्कि यह कि ईश्वर को क्या अधिक प्रिय है। जैसे कि स्रोतकार बताते हैं, ’’ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौड़ाता है कि उन में कोई बुद्धिमान हो, जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो।’’ (स्त्रोत 53:3) तथा नबी से प्रभु की वाणी कहती है, ’’प्रज्ञ अपनी प्रज्ञा पर गर्व नहीं करे।....यदि कोई गर्व ही करना चाहे, तो वह इस बात पर गर्व करे कि वह मुझे जानता है और यह समझता है कि मैं वह प्रभु हूँ, जो पृथ्वी पर दया, न्याय और धार्मिकता बनाये रखता है।’’ (यिरमियाह 9:22-23)

पुराने विधान में सुलेमान को सबसे बुद्धिमान व्यक्ति बताया गया है। ईश्वर ने सुलेमान को अद्वितीय विवेक इसलिए प्रदान किया था कि उन्होंने अपने जीवन या शासन को ईश्वर पर श्रद्धा रखकर ’न्यायपूर्वक करने की इच्छा जतायी थी। ’’अपने सेवक को विवेक देने की कृपा कर, जिससे वह न्यायपूर्वक तेरी प्रजा का शासन करे...’’(1राजाओं 3:9) दानिएल एवं उनके साथियों ने ईश्वर पर अपनी असीम श्रद्धा के कारण गैर-यहूदियों के अनुसार अपना खानपान एवं जीवन चर्या को अपनाने से इंकार कर दिया था। उनकी इस अदम्य श्रध्दा के कारण ईश्वर ने नबी दानिएल को अद्वितीय ’प्रखर बुद्धि’, ’विवेक शक्ति’, ’दिव्य ज्ञान’ ’अंतर्ज्योति, एवं असाधारण प्रज्ञा’ का भण्डार बनाया। ( देखिए दानिएल 5:11-14) ’’ईश्वर ने उन चार नवयुवकों को ज्ञान, समस्त साहित्य की जानकारी और प्रज्ञा प्रदान की। दानिएल को दिव्य दृश्यों और हर प्रकार के स्वप्नों की व्याख्या करने का वरदान प्राप्त था। (दानिएल 1:17) संत पेत्रुस संत पौलुस को ईश्वर का चुना वह व्यक्ति बताते हैं जिनमें प्रज्ञा विद्यमान थी, ’’हमारे भाई पौलुस ने अपने को प्रदत्त प्रज्ञा के अनुसार आप को लिखा’’। (2पेत्रुस 3:15) संत पौलुस एक ज्ञानी पुरूष थे तथा अपने ज्ञान के बल पर ख्रीस्त के कट्टर विरोधी थे। किन्तु जब उन्हें येसु के दर्शन होते हैं तो वे स्वयं को ईश्वर के सामने दीन-हीन बनाते हैं तथा ख्रीस्त की शिक्षा के सामने अपने समस्त ज्ञान को कूडा मानते हैं, ’’किन्तु मैं जिन बातों को लाभ समझता था, उन्हें मसीह के कारण हानि समझने लगा हूँ। इतना ही नहीं, मैं प्रभु ईसा मसीह को जानता सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हूँ और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हूँ। ...और उसे कूडा समझता हूँ,’’ (फिलिप्पियों 3:7-8)

आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस भी हमें ईश्वर की दृष्टि में बुद्धिमान बनने का आव्हान करते हुये कहते हैं, ’’अपने आचरण का पूरा-पूरा ध्यान रखें। मूर्खों की तरह नहीं, बल्कि बुद्धिमानों की तरह चलकर,...आप लोग नामसझ न बनें, बल्कि प्रभु की इच्छा क्या है, यह पहचानें।’’ ईश्वर की इच्छा को जानना तथा उसे पूरा करना प्रज्ञ व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य होता है। जो व्यक्ति ईश्वर की इच्छा पूरी करने की ठान लेता है तो वह अपने आचरण को भी ईश्वर की आज्ञाओं के दायरे में लाने का प्रयास करता उसका व्यवहार परिरिस्थति के अनुसार नहीं बल्कि वचन के अनुसार दृढ बनता है। ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति अपनी सोच को सांसारिक चलन एवं तत्वों के अनुसार नहीं बल्कि ईश्वर की इच्छानुसार ढालता है। चट्ठान और बालू के दृष्टांत द्वारा येसु इस बात को समझाते हैं, ’’जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्ठान पर अपना घर बनवाया था।’’ (मत्ती 7:24) संत याकूब भी प्रज्ञा को अपने आचरण में ढालने पर बल देते हैं, ’’आप लोगों में जो ज्ञानी और समझदार होने का दावा करते हैं, वह अपने सदाचरण द्वारा, अपने नम्र तथा बुद्धिमान व्यवहार द्वारा इस बात का प्रमाण दें।’’ (याकूब 3:13) प्रभु येसु के जीवन का परम उद्देश्य पिता परमेश्वर की इच्छा पूरी करना था। येसु ने अपने जीवन के प्रत्येक कार्य को ईश्वर की इच्छा अनुसार किया। उन्होंने अपने आचरण द्वारा प्रदर्शित किया कि प्रज्ञा उनमें सचमुच में विद्यमान है।

आइये हम भी ईश्वर पर श्रद्धा को केन्द्रित अपने आचरण को ईश्वर की इच्छा अनुसार सुधारे जिससे हम ईश्वर की दृष्टि में बुद्धिमान बने।


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Praise the Lord!