Anthres Minj

65_2015. ख्रीस्त राजा का पर्व

दानिएल 7:13-14; प्रकाशना 1:5-8; योहन 18:33ब-37

ब्रदर अंद्रेयस मिंच, (बेतिया धर्मप्रांत)


मेरे प्रिय मित्रों! आज हमारे लिए बहुत बड़ा खुशी का दिन है क्योंकि आज समस्त काथलिक कलीसिया राजराजेश्वर का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मना रही है तथा येसु के नाम की जय-जयकार कर रही हैं। ऐसा करके कलीसिया इस सत्य की पुनः उद्घोषणा करती हैं कि येसु ही हमारे सच्चे राजा है। इस बात की येसु स्वयं घोषणा करते हैं। आज के सुसमाचार में जब पिलातुस येसु को राजा कहता है तो इसके प्रतिउत्तर में येसु कहते हैं, ’’आप ठीक ही कहते हैं। मैं राजा हूँ। मैं इसलिए जन्मा और इसलिए संसार में आया हूँ कि सत्य के विषय में साक्ष्य दूँ।’’

इसके बारे में नबी नातान ने समुएल के दूसरे ग्रन्थ अध्याय 7 पद संख्या 16 में दाऊद से प्रतिज्ञा की थी, ‘‘तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ बना रहेगा।’’ यह भविष्यवाणी जो चिरस्थायी राजा और शवी साम्राज्य के विषय में की गई थी वह हमारे राजा प्रभु मसीह में पूरी हुई। जब स्वर्गदूत ने माता मरिया को दशर्न दिए तो उन्होंने प्रभु मसीह के बारे में की गई सभी भविष्यवाणियों को संक्षिप्त में कह सुनाया कि ’’वे महान होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु पिता ईश्वर उन्हें उनेक पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा, वह याकूब के घराने पर सदा सर्वदा राज्य करेंगे और उसके राज्य का कभी अंत नही होगा।‘‘ (देखिए लूकस 1:32-33) इससे ज्ञात होता है कि वे भविष्यवाणियाँ मसीह से संबंधित थी। वे हमारे शाश्वत राजा एवं सभी युगों के सम्राट हैं।

येसु के राज्य में सांसारिक शक्ति, अधिकार, सेना, अस्त्र-शस्त्र का उपयोग और भोग-विलास का स्थान नहीं थी। उनमें अहंकार की भावना नहीं थी। उन्होंने लोगों के साथ अपना जीवन बिताया। उन्होंने अपने सच्च-चरित्र आचरण, सद्गुणों को व्यवहार में प्रदर्शित कर, असीम करूणा के कार्यों तथा अपने दुःखभोग से एक आदर्श मानव जीवन का प्रेरणामय उदाहरण दिया। उन्हें दूसरों से मान-मर्यादा, सम्मान और प्रतिष्ठा पाने की कोई इच्छा नहीं थी। येसु ख्रीस्त ने अपने भले कार्यों के द्वारा हमें साक्ष्य दिया हैं। उन्होंने लोगों की सेवा करने की राह दिखायी। उन्होंने सारी मानवजाति के पापों के खतिर अपने आप को क्रूस मरण के लिए समर्पित कर दिया। इसलिए हम ख्रीस्तीय लोग गर्व महसूस करते हैं और कहते हैं कि येसु प्रेम के राजा हैं क्योंकि उन्होंने अपने शत्रुओं को भी क्रूसमरण के समय क्षमा किया और उन्होंने कहा ‘‘पिता! इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।‘‘ (लूकस 23:34) इस तरह येसु ख्रीस्त ने प्रेम और क्षमा का सर्वोत्तम उदाहरण दिया।

आज उसी प्रेम को हमारे माता-पिता, भाई-बहन और अपने पड़ोसियों के साथ बाँटने तथा अमल में लाने हेतु येसु ख्रीस्त हमारा आव्हान करते हैं। इस महान एवं अद्भूत प्रेम को हम कैसे समझ सकते हैं? हम जानते हैं कि हम एक परिवार या समुदाय में रहते हैं। येसु ने क्रूस मरण के द्वारा यह साबित कर दिया कि वे हमें प्यार करते है। उस प्यार को बनाये रखने के लिए उन्होंने हमारे लिए यूखारिस्त की स्थापना की। ताकि हम उस यूखारिस्तीय बलिदान में सहभागी होकर येसु को ग्रहण कर सकें। यूखारिस्तीय संस्कार में सहभागी होने का मतलब है येसु के समान हम भी दूसरों के लिए स्वयं का आत्मत्याग करें। इस आत्मत्याग के द्वारा ही हमारा यूखारिस्तीय मिलन सम्पूर्ण एवं ग्राही बनता है।

आज हम ख्रीस्त के अनुयायियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती का समय है। क्योंकि आज लोगों की विचारधारा संकीर्ण होती जा रही है। लोग दूसरों का स्वागत करने से नकारते हैं इसलिए हम सबों के लिए यह चुनौती है कि हम अपना आत्मविश्लेषण करे और स्वयं से पूछे - मेरा अपने पड़ोसी भाई-बहन के साथ क्या संबंध है? क्या मैं उन्हें तुच्छ दृष्टि से देखता हूँ? क्या मैं जरूरतमदों का तिरस्कार करता हूँ? क्या मैं उनको उचित एवं सच्चा आदर और सम्मान देता हूँ? अगर हममें सुसमाचारिय गुणों की कमी है तो आइए हम ईश्वर की असीम कृपा के लिए प्रार्थना करें ताकि हम स्वर्गराज्य की सेवा और प्रेम को समझ पाएँ। और हममें उनकी कृपा की सद्बुध्दि मिले और हमारे मन में अच्छे सोच-विचार उत्पन्न हो ताकि हम अपने भाई-बहनों के साथ ईश्वर के प्रेम को पूरा करने के लिए निःस्वार्थ भाव से सेवा कार्य कर सकें। और जब हम येसु ख्रीस्त को हम अपने राजा मानकर उसका जय-जयकार करते हैं तो आइए इस पवित्र यूखारिस्तीय बलिदान के द्वारा उनका अपने हृदय और जीवन का राजा के रूप में स्वागत करें। आमेन।


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