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65_2015. ख्रीस्त राजा का पर्व

दानिएल 7:13-14; प्रकाशना 1:5-8; योहन 18:33ब-37

डीकन प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


हम कहते हैं सोना धातुओं को राजा है क्योंकि यह साधारणतः अन्य धातुओं में मंहगा है। उसी प्रकार शेर को जंगल का राजा कहा जाता है क्योंकि शेर को सारे जंगली जानवरों में शक्तिषाली माना जाता है। उसी प्रकार हम प्रभु येसु को सारी मानवजाती का राजा कहते हैं क्योंकि वह ‘‘अदृष्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टी के पहलौटे हैं, क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टी हुई है... वह समस्त सृष्टी के पहले से विद्यमान है और समस्त सृष्टी उन में ही टीकी हुई है।...इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेठ है। ईश्वर ने चाहा कि उनमें सब प्रकार की परिपूर्णता हो’’ (कोलो 1:15-18)।

पिलातुस येसु से पुछता है - ‘‘तो तुम यहुदियों के राजा हो?’’ येसु कहते हैं - ‘‘यह आप ठीक ही कहते हैं। मैं इसिलिए जन्मा और संसार में आया हूँ कि सत्य के पक्ष में साक्ष्य दूँ। जो सत्य के पक्ष में है वह मेरी सुनता है’’ (यो. 18:37)।

इसलिए प्रभु येसु सर्वश्रेष्ठ व सर्वोपरी राजा है। पर वे कहते हैं - ‘‘मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है’’ (योहन 18:36)। यह साफ तौर पर ज़ाहिर है कि येसु का राजत्व इस संसार के लिए नहीं है। वे दुनिया के सब राजाओं से भिन्न हैं। उनका राज-मुकुट काँटों का था; जो राजकीय वस्त्र उन्हें पहनाया गया वो मज़ाक व बेइज्जती का प्रतीक लाल चैगा था; उनका राजदंड था सरकंडा जिसे दुष्मनों ने उनके ही सिर मारा था। ख्रीस्त ने न तो दुनिया के जाने-माने राजाओं की श्रेणी में खुद को गिने जाने का दावा किया और न ही किसी राजा की बराबरी करना चाहा। उन्होंने हर प्रकार के सांसारिक वैभव व शानो-षौकत को ठुकरा दिया। उनका जन्म एक छोटी सी गौषाला में हुआ क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी (लुक 2:7), उनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत के पहले जब शैतान उन्हें ‘‘अत्यंत ऊँचे पहाड पर ले गया और संसार के सभी राज्य और वैभव दिखला कर बोला, ‘यदि आप दंडवत कर मेरी आराधना करें, तो मैं आप को यह सब दे दूँगा।’ येसु ने उत्तर दिया, ‘‘हट जा शैतान क्यांेकि लिखा है - अपने प्रभु ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो’’ (मत्ती 4:8-10)।

जब हमारे प्रभु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार से भी अधिक लोगों को भोजन कराया, तो लोग उन्हें राजा बनाना चाहते थे। लेकिन प्रभु येसु राजा बनने से इनकार कर देते हैं क्योंकि वे उन्हें सांसारिक राजा बनाना चाहते थे (योहन 6:15)। इस दुनिया के राजा धन-दौलत, शक्ति, सेना, साम्राज्य, ज़मीन-जायदाद व लोगों के राजा होते हैं। लेकिन हमारे प्रभु आत्माओं के राजा हैं वे आत्माओं पर, हमारे दिलों पर राज्य करते हैं। उनका राज्य भौतिक व सांसारिक नहीं, आध्यात्मिक है। सांसारिक राज्य समाप्त हो जाने वाला राज्य है। इतिहास के पन्ने पलटकर यदि हम देखें तो पायेंगे कि कितने ही महान से महान राजा हुवे, उन्होंने पृथ्वी के सिमांतों तक अपने राज्य का विस्तार किया। सिकंदर महान जैसे राजा ने तो करीब-करीब पूरे विश्व पर विजय प्राप्त कर ली थी। पर कोई टिक नहीं सका; सब मिट गया; उनका राज्य इतिहास के पन्नों में सिमट के रह गया। लेकिन हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त का राज्य दो हजार से भी ज्यादा वर्ष बीत जाने के बाद भी बरकरार है; उतना ही प्रभाषाली है जितना पहले था; उतना ही जीवन्त है जितना प्रेरितों के समय था। और ये कभी अन्त होने वाला नहीं है। यह अनन्तकाल तक बना रहने वाला राज्य है। साँसारिक राज्य मिट गये, समाप्त हो गये क्योंकि वे सब मिथ्या थे, झूठे थे, फरेबी थे, वे स्वार्थी, अभिमानी व बुराईयों से भरपूर थे। परन्तु हमारे प्रभु का राज्य सत्य पर आधारित है। प्रभु पिलातुस के सामने कहते हैं, ‘‘मैं राजा हूँ। मैं इसलिए जन्मा हूँ कि सत्य के विषय में साक्ष्य दूँ। जो सत्य के पक्ष में है वह मेरी सुनता है‘‘ (योहन 18:37)।

प्रभु एक ऐसे राज्य के राजा हैं जो इस संसार का नहीं है। उनका राज्य स्वर्ग का राज्य है। ये राज्य हम मनुष्यों की आसान पहुँच से दूर था। इसलिए हमारे राजा स्वयं इसे हमारे करीब लेकर आये हैं। प्रभु के आगमन पर संत योहन बपतिस्ता कहते हैं - ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है’’ (मारकुस 1:15)। प्रभु येसु के इस धरा पर आगमन के साथ ईश्वर का राज्य हमारे निकट, हमारे बीच आ गया। और इसमें प्रवेष करने के लिए वचन कहता है - ‘‘पष्चताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो’’ (मारकुस 1:15)। यदि हमें ख्रीस्त राजा की प्रजा बनना है, शैतान व उसके पाप व अंधकार के राज्य तथा उसकी शक्तियों से छुटकरा पाना है तो हमें हमारे गुनाहों पर पश्चताप करना होगा व सुसमाचार में विश्वास करना होगा, स्वयं को ईश्वर के आत्मा व उसके सामाथ्र्य के सम्मुख समर्पित करना होगा।

ईश्वर के राज्य की स्थापना करने का आधार है इन्सान का ईश्वर से मेल-मिलाप कराना। उस सदियों पुराने रिष्ते को पुनः जोडना जिसे हमारे आदि माता-पिता के पाप के द्वारा तोड दिया गया था। इस मेल-मिलाप का जिम्मा हमारे प्रभु येसु, हमारे राजा ने अपने ऊपर ले लिया है। उन्होंने अपने दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान द्वारा पिता से हमारा मेल कराया है। प्रभु येसु हमारे लिए क्रूस पर इसलिए मरे कि शैतान के राज्य का अंत हो जाये और प्रभु हम सब पर, हमारे दिलों पर हमेषा शासन करते रहें।

बपतिस्मा में प्रभु येसु को धारण करके हम ज्योति की संतान बन गये हैं संत पौलुस हमसे कहते हैं ‘‘भाईयों आप लोग अंधकार में नहीं हैं ... आप सब ज्योति की संतान है,...हम रात या अंधकार के नहीं हैं’’ (1 थेस. 5:4)। अतः यदि हम ख्रीस्त राजा की प्रजा बन गये हैं, तो हम सब का ये फर्ज़ बनता है, कि हम उनके ज्योति के इस राज्य को फैलायें।

प्रभु ने हमें अपने राज्य की एक निष्क्रिय प्रजा बनने के लिए नहीं बुलाया है, परन्तु हम सब को एक सक्रिय सैनिक बनकर शैतान के विरूद्ध लडने के लिए बुलाया है। आज के परिवेष में यदि हम देखें तो पायेंगे शैतान विभिन्न रूप में अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लिजिए 70 से 80 प्रतिषत खबरें शैतान के राज्य से ताल्लुक रखती हैं - कहीं लडाई तो कहीं दंगे, कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, कहीं आतंकी हमला तो कहीं नरसंहार, कहीं चोरी तो कहीं धर्म के नाम पर खून-खराबा, कहीं ठगबाजी तो कहीं राजनैतिक सत्ता के लिए बेईमानी, धोखाधडी व झूठ फरेब। शैतान धीरे-धीरे अपने वर्चस्व, व अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। उसके लुभावने प्रलोभनों से वह अधिक से अधिक लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। और हम प्रभु के सैनिक यह तमाषा देख रहे हैं। हम खुद भी उसके षिकार बन रहे हैं। आज का यह पर्व ‘ख्रीस्त राजा की जय!‘ ‘प्रभु हमारा राजा है!‘ आदि नारे लगाने भर तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रभु आज हमें हमारी आध्यात्मिक निंद से जगाना चाहते हैं। प्रभु हमें अंधकार की शक्तियों से लडने को कहते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘आप संयम रखें और जागते रहें। आपका शत्रु, शैतान, दहाडते हुवे सिंह की तरह विचरता है और ढूँढता रहता है कि किसे फाड खाये। आप विश्वास में दृढ़ रहकर उसका सामना करें’’ (1 पेत्रुस 5:8)।

प्रभु हमें एक कुषल सैनिक की तरह शैतान के विरूद्ध लडने को कह रहे हैं। वह हमसे कहते हैं ‘‘आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामाथ्र्य से बल ग्रहण करें, आप ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों। क्योंकि हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि इस अन्धकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पडता है। इसलिए आप दुर्दिन में शत्रु का सामना करने में समर्थ हों और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें’’ (एफे. 6:10-13) शैतान का सामना करने उसके राज्य पर विजय पाने के लिए हमें लाठी, डंडे, तलवार, बंदुक, व गोला-बारूद आदि की ज़रूरत नहीं। हमें ईश्वर के अस्त्र-सस्त्रों को धारण करने की ज़रूरत है। और ये अस्त्र-सस्त्र क्या हैं? संत पौलुस हमें बतलाते हैं ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र हैं - सत्य का कमरबंद, धार्मिकता का कवच, शान्ति व सुसमाचार के जूते, विश्वास की ढाल, मुक्ति का टोप व आत्मा की तलवार अर्थात ईष वचन।

आईये ख्रीस्त राजा का पर्व मानाते समय हम इन आध्यात्मिक अस्त्र-सस्त्रों को धारण करके स्वयं को प्रभु के राज्य के लिए एक योग्य सैनिक बना लें व प्रभु को हमारे दिलों के सिंहासन पर असीन करें। और जैसा वह हमसे कहते हैं हम वैसा ही करें (योहन 2:5) तथा उसकी इच्छा के अनुरूप अपना जीवन बितायें; उनके प्रेम, क्षमा, शाँति, दया, व भाईचारे के राज्य की स्थापना में अपने सर्वस्व समर्पित करें।


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