Johnson

परम पवित्र त्रित्व का पर्व

विधि-विवरण ग्रन्थ 4:32-34,39-40; रोमियों 8:14-17; मत्ती 28:16-20

फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


आज माता कलीसिया परम पवित्र त्रित्व का महापर्व मनाती है। कलीसिया की शिक्षायें हमें बताती हैं कि हमारे विश्वास का आधार ही पवित्र त्रित्व है। पवित्र त्रित्व के बारे में हमारा ज्ञान पवित्र धर्मग्रन्थ में वर्णित बातों पर आधारित है। हमारी धर्मशिक्षा में भी हमें सिखाया जाता है कि हमारे धर्म की चार बड़ी सच्चाइयों में से एक यह भी है कि केवल एक ईश्वर है और एक ईश्वर में तीन जन हैं- पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। इस परम सच्चाई के बारे में यह भी सच है कि पवित्र त्रित्व के इस रहस्य को समझना टेढ़ी खीर है अर्थात् इसे समझना बहुत मुश्किल है, क्योंकि माता कलीसिया हमें सिखाती है कि तीनों एक ही ईश्वर हैं और तीनों सिर्फ एक ही नहीं बल्कि पूर्ण रूप से एक दूसरे से भिन्न व अलग-अलग जन हैं।

मनुष्य की सृष्टि ईश्वर ने की है। ईश्वर सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान एवं सर्वत्र है। वहीं दूसरी ओर मनुष्य का ज्ञान, शक्ति और क्षमता सीमित है। इस सीमित क्षमता के साथ उस असीम ईश्वर व सृष्टिकर्ता के रहस्य को पूर्ण रूप से समझना असम्भव है। पवित्र त्रित्व के रहस्य को समझने की कठिनाई के बारे में सन्त अगस्टीन की लोकप्रिय कहानी प्रचलित हैः सन्त अगस्टीन पवित्र त्रित्व के रहस्य को समझने के लिए तीस वर्षों तक अध्ययन करते रहे। एक बार वे समुन्द्र के किनारे इसी रहस्य को समझने के लिये मनन-चिन्तन में व्यस्त थे कि तभी उनकी नज़र एक छोटे बालक पर पड़ी जो समुन्द्र के किनारे पर एक छोटा सा गड्ढा बनाकर एक सीप के माध्यम से उस गड्ढे को भरने का प्रयास कर रहा था। सन्त अगस्टीन ने जब उससे पूछा कि वह क्या करना चाहता है तो बालक ने उत्तर दिया कि वह उस समुन्द्र के पूरे जल को उस छोटे से गड्ढे में भरना चाहता है। सन्त अगस्टीन को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे सम्भव है, इतना विशाल सागर उस छोटे से गड्ढे में कैसे समा सकता है। उस बालक ने उत्तर दिया कि तुम भी तो वही कर रहे हो, सर्वशक्तिमान ईश्वर के रहस्य को अपने छोटे से सीमित ज्ञान से समझने का प्रयास कर रहे हो। और यह बताकर वह बालक अन्तर्ध्यान हो गया।

पवित्र बाईबिल का अध्ययन करने पर हमें ऐसा प्रतीत होता है कि तीनों जन - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा अलग-अलग हैं और अलग-अलग समय पर सक्रिय हैं। पुराने व्यवस्थान में सिर्फ पिता ईश्वर ही कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। चाहे वह सृष्टि की रचना हो, इब्राहीम का बुलावा हो, या मिश्र की दासता से इस्रायलियों को बाहर निकालने का कार्य हो, अथवा नबियों को भेजकर लोगों को सही मार्ग पर लाने का कार्य हो। ऐसा प्र्रतीत होता है कि पुराने व्यवस्थान का युग पिता ईश्वर का युग है और पुत्र और पवित्र आत्मा कहीं स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते। उसी तरह चारों सुसमाचारों में हम मुख्य रूप से प्रभु येसु के बारे में पढते और सुनते हैं। हालांकि पिता और पवित्र आत्मा भी यदा-कदा दिखाई देते हैं। वहीं सुसमाचारों के बाद की पुस्तकों में हमें मुख्य रूप से पवित्र आत्मा की भूमिका दिखाई देती है। लेकिन सत्य तो यह है कि तीनों जन एक साथ, एक समान रूप से सदैव सक्रिय हैं। क्योंकि वे एक ही हैं, अलग नहीं हैं। जब प्रभु येसु क्रूस पर मरकर दुनिया को मुक्ति प्रदान करते हैं तो इसमें वे अकेले नहीं, बल्कि तीनों जन एक साथ हैं।

जब पिता ईश्वर इस दुनिया की रचना करते हैं तो हमें तीनों के दर्शन होते हैं। ’’... अथाह गर्त पर अन्धकार छाया हुआ था और ईश्वर का आत्मा सागर पर विचरता था।’’ (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:2) आत्मा भी प्रारम्भ से विद्यमान था। सन्त योहन के सुसमाचार के प्रारम्भ में हम पढते हैं- ’’आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था, और शब्द ईश्वर था।’’ (योहन 1:1) आगे पढते हैं कि सब कुछ शब्द के द्वारा ही उत्पन्न हुआ। यानि कि सृष्टि के पहले कार्य से ही हर कार्य में वे एक साथ हैं। प्रभु येसु के मिशन के प्रारम्भ में भी हम तीनों को एक साथ देखते हैं। मत्ती 3:16-17 में हम पढते हैं कि बपतिस्मा के समय पवित्र आत्मा कपोत के रूप में उन पर उतरा और स्वर्ग से पिता ईश्वर की वाणी सुनाई दी, ’’यह मेरा प्रिय पुत्र है...।’’ बल्कि प्रभु येसु के हर कार्य में पवित्र आत्मा उनके साथ था। प्रभु येसु पिता का कार्य करते थे (देखें योहन 4:34) “मेरे पिता का कार्य करना ही मेरा भोजन है”। लूकस 4:18 में लिखा है - ’’प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है...।’’ पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा तीनों अलग होते हुए भी एक हैं और एक होते हुए भी अलग हैं।

पवित्र त्रित्व हमारे विश्वास का आधार है। हम पवित्र त्रित्व के नाम में ही बपतिस्मा ग्रहण कर ईश्वर की सन्तान व कलीसिया के सदस्य बनते हैं। पवित्र त्रित्व के ही नाम से हमारे सब कार्य प्रारम्भ और पूर्णता तक पहुँचते हैं। हमारी सारी प्रार्थनायें भी इसी पवित्र त्रित्व के नाम से प्रारम्भ होती हैं। आइये आज के इस पावन पर्व के अवसर पर हम प्रण लें कि पवित्र त्रित्व को हम अपने ख्रिस्तीय जीवन का आधार बनायेंगे और अपने जीवन में सर्वोच्च स्थान देंगे। जिस तरह पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा सदैव एक रहकर कार्य करते हैं उसी तरह हमारे परिवारों के सभी सदस्य सदा एक बने रहें। आमेन।


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