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चक्र स - 01. आगमन का पहला इतवार

यिरमियाह 33:14-16; 1 थेसलनीकियों 3:12-4:2; लूकस 21:25-28, 34-36

((फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत)


‘‘आईये हम राजा येसु की आराधना करें जो आने वाला है।’’ इसी उद्घोषणा के साथ माता कलीसिया आज आगमनकाल का आगाज़ करती है। आगमन याने किसी का आना। इस पवित्र आगमनकाल में हम प्रभु येसु के आने की तैयारी करते हैं। इस समय हम दो प्रकार के आगमन की याद करते हैं जहाँ एक ओर हम उनके प्रथम आगमन की याद करते हैं जब वह मानवता के उद्धार हेतु मनुष्य बनकर इस धरा पर आये; वहीं दूसरी ओर उनके द्वितीय आगमन की तैयारी करते हैं जब वह अंत समय में हमारा न्याय करने फिर आयेंगे। इसलिए हर विश्वासी जो प्रभु के प्रथम आगमन याने प्रभु के जन्म की यादगार की तैयारी करता है उसे चाहिए कि वह उतनी ही मुस्तैदी से उनके द्वितीय आगमन की तैयारी भी करे।

प्रभु येसु आये थे, आते हैं, और आते रहेंगे। प्रभु येसु इतिहास में आये और इतिहास का एक भाग बन गये; वह संस्कारों के रहस्य में रोज़ हमारे बीच आते हैं और दुनिया के अंत में महिमा के साथ फिर आयेंगे। येसु प्रेम के साथ बेतलेहेम में आये। वह कृपा के साथ हमारी आत्माओं में आते हैं और दुनिया के अंत में न्याय के साथ फिर आयेंगे। आज का सुसमाचार पाठ हमें कहता है - ‘‘जब ये बातें होने लगेगी, तो उठ कर खडे हो जाओ और सिर ऊँपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है’’ (लूक 21:28)। सुसमाचार के प्रारम्भ में भयानक विपत्तियों का वर्णन किया गया है। लेकिन ये अंतिम पंक्तियाँ हमारा सारा भय व शंकायें दूर कर देती है। प्रभु कहते हैं कि इन विषम परिस्थितियों के बावज़ूद भी तुम जो विश्वासी हो, धीरज धरो क्योंकि तुम्हारा उद्धार ईश्वर के हाथों में है। प्रभु हमें अपना सिर ऊँचा करने को कहते हैं। इसका मतलब होता है कि हम हमारे मन को स्वर्गीय आनन्द की ओर ऊँचा उठायें।

आज का पहला पाठ हमें, उम्मीद बँधाते हुवे कहता है कि ‘‘उन दिनों युदा का उद्धार होगा, येरूसालेम सुरक्षित रहेगा’’ (यिर 33:16)। प्रभु आज हमें, नयी इस्राएली प्रजा को यह आश्वासन देते हैं कि हम सुरक्षित रहेंगे, बच जायेंगे, हमारा विनाश नहीं होगा। हम कैसे बच जायेंगे? उद्धार पाने के लिए हमारा सिर्फ ईसाई होना ही काफी नहीं है। हमें प्रभु की बातों पर ध्यान देना होगा; उनके वचनों पर विश्वास करना होगा; उनके वचनों पर चलना होगा। “तुम सुरक्षित रहोगे, तुम मुक्ति प्राप्त करोगे” – प्रभु यह इसलिए नहीं कह रहे हैं कि हम सिर्फ ईसाई हैं पर इसलिए कि ईसाई होने के नाते, विश्वासी होने के नाते हम प्रभु के वचनों को जानते हैं और उनका पालन करते हैं। प्रभु ने हमें समय से पहले आगाह कर दिया है। प्रभु का वचन हमारे पास है। यदि हम प्रभु के वचन को सुनते और उसके अनुसार आचरण करते हैं तो हमारा उद्धार निश्चित है।

पवित्र बाईबल में हमें कई ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे जहाँ ईश्वर ने अपने प्रिय जनों को, अपने भक्तों को चेतावनी दी और उन्होंने ईश्वर की चेतावनी पर ध्यान दिया और वे बच गये तथा जिन्होंने चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया उनका विनाश हो गया।

नूह के ज़माने में सारी पृथ्वी पर पाप फैल गया था केवल नूह और उसका परिवार धर्मी था। ईश्वर ने सारे संसार को जल प्रलय द्वारा नष्ट करने की योजना बनाई। उन्होंने नूह को एक जहाज बनाकर अपने परिवार के साथ उस में सवार होने को कह दिया। उसने वैसा ही किया जैसा ईश्वर ने आदेश दिया था। और वह अपने परिवार के साथ बच गया। इब्राहीम के समय, सोदोम और गोमोरा नामक दो नगरों के लोग वासना के पाप में डूब गये थे तब ईश्वर ने उन दो नगरों को आग बरसाकर भस्म करने का निर्णय लिया। वहाँ एक धर्मी परिवार रहता था। वह था इब्राहीम का भतीजा लोट। ईश्वर ने उन्हें नगर से भाग जाने का आदेश दिया और चेतावनी दी कि तुम वापस मुडकर नहीं देखना। वे ईश्वर के आदेशानुसार वे नगर छोडकर भाग गये। जब वे नगर छोडकर भाग रहे थे कि बीच में लोट की पत्नी ने पीछे मुडकर देख लिया और वह नमक का खंबा बन गयी जबकि लोट बच गया। ईस्राएली लोगों को मिस्र की गुलामी से मुक्त करते समय जब ईश्वर का दूत दसवीं व आखरी विपत्ति के रूप में मिस्र में रहने वाले हर इंसान व जानवर के पहलौटों को मारने आने वाला था तो प्रभु ने मूसा द्वारा ईस्राएलियों को उस रात अपने घरों की चैखट पर मेमने का रक्त पोत देने का आदेश दिया। इस्राएलियों ने वैसा ही किया। उस रात ईश्वर का दूत आया जिन घरों की चैखटों पर मेमने का रक्त लगा था उन घरों को छोडकर बाकि सब घरों के पहलौटों को मार डाला गया, इस्राएली बच गये।

जब मुम्बई में ताज होटल पर आतंकी हमला हुआ था तब कहा जता है कि खुफिया एजेंसी को इसकी भनक लग चुकि थी। और उन्होंने इसकी सुचना गृह मंत्रालय व सुराक्षा विभाग को दे दी थी। लेकिन किसी ने इस को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया और उसका अंज़ाम क्या हुआ हम सब जानते हैं।

आज के सुसमाचार के द्वारा प्रभु भी हमें समय रहते चेतावनी दे रहे हैं ‘‘सावधान रहो। कहीं ऐसा न हो कि भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिंताओें से तुम्हारा मन कुंठित हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक आप पर आ पडे; क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के निवासियों पर आ पडेगा। इसलिए जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खडे होने योग्य बन जाओ’’ (लूक 21:34-36)। अब जागते रहना या सोते रहना हमारे ऊँपर निर्भर है। जब चिडिया खेज चुग जायेगी तब पछताने से कुछ भी नहीं मिलने वाला। याद करो उस गरीब लाज़रूस व धनी के दृष्टाँत को। मरने के बाद वह धनी व्यक्ति पछताता है, मरने के बाद उसको लाज़रूस का ख्याल आता है। वह पिता इब्राहीम से कहता है कि वह लाज़रूस को एक बूंद पानी लेकर उसके पास भेज दे। हम उन पाँच नासमझ कुँवारियों के समान न बनें जो दुल्हे की अगवानी करने तो गयी लेकिन अपने लिए पर्याप्त तेल नहीं ले गयीं। तब अंत में रोने से कुछ भी हासिल नहीं होगा जब द्वार बंद कर लिया जायेगा। तब हम यह कहेंगे “प्रभु हमने आपके नाम पर बपतिस्मा ग्रहण किया है; प्रभु हम गिरजा भी जाते थे।“ प्रभु कहेंगे, “मैं तुम्हें नहीं जानता।“ प्रभु हमारे पाखंड से नहीं हमारी सच्ची धार्मिकता से प्रसन्न होता है। वह हमसे पुछेंगे – “तुम चर्च गये थे ये तो ठिक बात है, नोवेना में भाग लिया बहुत अच्छा पर मैं जब भूखा था क्या तुमने मुझे खिलाया, मैं प्यासा था तब क्या तुमने मुझे पिलाया, मैं बीमार, बंदी व परदेसी था तब क्या तुम मुझसे मिलने आये? तब उस समय कोई भी बहाना प्रभु के सामने नहीं चलेगा। तब हम यदि मुर्ख पापियों की तरह कहने लगेंगे - ‘‘प्रभु आप कब आये हमारे पास, यदि मुझे पता होता तो रोटी तो क्या मैं तो 5 स्टार होटल में मेरे प्रभु को पार्टी देता। मुझे तो पता ही नहीं चला! प्रभु कहेंगे तुमने मेरे इन छोटे से छोटे भाईयों के लिए जो कुछ भी किया वो मेरे लिए किया और जो नहीं किया वो मेरे लिए नहीं किया। इसलिए जाओ उस नरक की आग में जो तुम्हारे लिए तैयार की गयी है। संत योहन के पहले पत्र 4:12 प्रभु का वचन हमसे कहता है - ‘‘ईश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा। यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईश्वर हम में निवास करता है और ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त करता है। और वचन 20 कहता है यदि कोई कहता है कि मैं ईश्वर से प्रेम करता हूँ और वह अपने भाई से बैर करता है, तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को जिसे वह देखता है, प्यार नहीं करता, तो ईश्वर को, जिसे उसने कभी नहीं देखा, प्यार नहीं कर सकता।’’

तो आईये आज हम आगमन काल में जब हमारे मुक्तिदाता के हमारे दिलों में जन्म लेने की तैयारी करते हैं, तो न केवल बाहरी तैयारियाँ करें परन्तु भलाई के कार्यों व आध्यात्मिक कार्यों द्वारा स्वयं को तैयार करें।


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