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चक्र स - 10. ईशमाता मरियम का महापर्व

गणना 6:22-27; गलातियों 4:4-7; लूकस 2:16-21

(फादर वी. एम. डेविडसन)


आज हमारे लिये दोहरी खुशी का दिन है क्योंकि आज नूतन वर्ष एवं ईशमाता मरियम का महापर्व है। सारा विश्व बीते वर्ष को अलविदा कर नूतन वर्ष का जश्न मना रहा है। सभी अपने-अपने तरीके से इस खुशी का इज़हार कर रहे हैं। कई जान-पहचान वालों को ग्रीटिंग कार्ड भेजकर, घर एवं आस पड़ोस में सजावट करके नाना प्रकार के व्यंजनों एवं पकवानों का स्वाद लेकर, तो कुछ रोशनी, आतिशबाजी, पार्टी, पिकनिक आदि का आयोजन करके।

हम भी इस खुशी में भाग लेने, बीते वर्ष के लिये ईश्वर का धन्यवाद करने एवं नव वर्ष के लिये ईश्वर की आशिष माँगने के लिये इस वेदी के सामने उपस्थित हुए हैं। बीते वर्ष में ईश्वर लगातार हमारे साथ रहे। उनकी आशिष हम पर बनी रही। हमने कई उतार-चढ़ाव देखे। हमने सुखों के साथ-साथ दुखों का भी अनुभव किया। इन सबों के लिये हम ईश्वर को धन्यवाद दें।

हम नहीं जानते कि यह नूतन वर्ष हमारे लिये क्या लेकर आयेगा, हमें किन-किन परिस्थितियों से गुजरना पडे़गा, कैसी-कैसी कठिनाइयों का सामना करना पडे़गा, किस प्रकार की चुनौतियाँ हमारे सामने होंगी, किस प्रकार की सफलता या असफलता हमारा इंतजार कर रही है, हमारे हिस्से में खुशीयाँ आयेंगी या गम आयेंगे, हम रहेंगे या नहीं रहेंगे, हम इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकते। पर हम एक बात निश्चित रूप से जानते हैं कि ईश्वर हमारे साथ हैं। उन्हें हमारी फिक्र है और हर परिस्थिति में वे हमारी देखरेख करेंगे, हमारी मदद करेंगे और हमें सुरक्षित रखेंगे। इसलिये इस नव वर्ष को ईश्वर के हाथों में रखते हुए हम प्रार्थना करें कि ईश्वर हम लोगों को इस वर्ष के दौरान आशीर्वाद प्रदान करें और सुरक्षित रखें, वह हम पर प्रसन्न हो और हम पर दया करे, वह हम पर दया दृष्टि करे और हमें शांति प्रदान करे।

आज वर्ष के पहले दिन को माता कलीसिया कोई अन्य पर्व भी मना सकती थी। पर वह जानबूझ कर माँ मरियम ईश्वर की माँ के पर्व को आज के लिये चुनती है। आज वर्ष के प्रथम दिन कलीसिया हमारे सामने माता मरियम ईश्वर की माँ को एक आदर्श एवं मार्गदर्शिका के रूप में प्रस्तुत करती है। माँ मरियम ईश्वर की माँ से ज्यादा बेहतर प्रभु को और कौन जान सकता है? माता मरियम अपने ईश्वरीय पुत्र के साथ शुरू से अंत तक निरंतर बनी रही, इसलिये प्रभु की छत्र-छाया में इस नूतन वर्ष में आगे बढ़ने के लिये उनसे अच्छा सहारा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।

कलीसिया माँ मरियम को ’’ईश्वर की माँ’‘ का दर्जा देती है, साथ ही कलीसिया में अहम् स्थान भी। ईश्वर ने माँ मरियम को प्रभु की माँ बनने का सौभाग्य प्रदान किया। शुरू से ही वे आदि-पाप से अछूती थी। ईश्वर ने उन्हें रहस्यमय रूप से मुक्ति प्रदान की थी। ईश्वर पर उनका अटल विश्वास था। उन्होंने ईश्वर की इच्छा को अपने जीवन में सर्वोपरी माना एवं उसे अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। ईश्वर की इच्छा को अपनी सहमति देकर उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया। मुक्तिदाता को जन्म देकर उन्होंने ईश्वर की मुक्ति योजना में अपना योगदान दिया। ईशमाता होने के बावजूद भी वे हमसे भिन्न नहीं थी। वे हममें से एक थी। उन्हें भी उन्हीं दैनिक अनुभवों से गुजरना पड़ा जिनसे एक आम स्त्री, पत्नी, माता गुजरती है। हमारे समान वे भी उनके लिए ईश्वर की योजना से अनभिज्ञ थी। वे नहीं जानती थी कि ईशमाता बनने की कीमत उन्हें कैसे चुकानी पड़ेगी, उन्हें किन-किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ेगा, किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। पर वे एक बात जानती थी कि ईश्वर उनके सृजनहार है और वे हर स्थिति में उनकी देखरेख करेंगे। इसलिये उन्होंने स्वयं को ईश्वर के हाथों में रख दिया था और ईश्वर पर अपना अटूट विश्वास जताया। आज माँ मरियम ईश्वर की माँ इस पूरे वर्ष को प्रभु के हाथों में रखने की चुनौती हमारे सामने प्रस्तुत करती है जैसे उन्होंने अपने जीवन को ईश्वर के हाथों में रखा था। हम यह तभी कर सकते हैं जब हम माँ मरियम ईशमाता के समान हमारे विश्वास में दृढ़ बनें। ईश्वर की इच्छा को अपने जीवन में सर्वोपरी मानें और उसे पूरा करने के लिये स्वयं को समर्पित कर दें।

माँ मरियम में नम्रता का गुण कूट-कूट कर भरा था। ईशमाता होने के बावजूद उनमें अहंकार नहीं था। उनकी जीवनशैली में कोई बदलाव नहीं आया था। जो भी स्थिति उनके सामने आयी उसे उन्होंने ईश्वर की इच्छा मानकर उसका सामना किया। ईश्वर ने उनके नम्रता के इस गुण का सम्मान किया और उन्हें हर चुनौती में सफलता प्रदान की।

हो सकता है हम सम्पन्न हो, धन-धान्य से भरपूर हो, अच्छे खानदान से तालुकात रखते हो, हमारी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति मजबूत हो, अच्छे ओहदे पर कार्यरत हो, राजनैतिक दबदबा हो, लोग हमारा लोहा मानते हो, हमें किसी चीज़ की कमी नहीं हो। पर हम इनपर घमण्ड न करें। क्योंकि ये स्थाई नहीं हैं। आज वर्ष के प्रथम दिन कलीसिया माँ मरियम ईशमाता को हमारे सम्मुख नम्रता के आदर्श के रूप में पेश करती है ताकि हम भी माता मरियम के समान इस पूरे वर्ष में नम्र्रता के गुण को अपनाते हुए प्रभु के मार्ग पर अग्रसर हो।

माँ मरियम ईश्वर की माँ सेवा का प्रतीक है। उन्होंने येसु को अपने गर्भ में धारण कर ईश्वर की इच्छा पूरी की और इस प्रकार ईश्वर की सेवा की। बालक येसु के रूप में मुक्तिदाता को जन्म देकर उन्होंने मानवजाति की सेवा की। अपने मातृत्व के कत्र्तव्यों का निर्वाह कर उन्होंने येसु की सेवा की। ज़रूरतमंदों की सहायता के लिये वे हमेशा अग्रणी रही। अपनी कुटुम्बनी एलीज़बेथ की सेवा के लिये अपनी परवाह किये बिना वे एक लम्बी एवं कठिन यात्रा करती हैं । काना के विवाह में दाखरस की कमी के कारण जब मेज़बान की इज्ज़त पर बन आई थी तब वे ही उनकी सहायता के लिये पहल करती हैं।

कलीसिया माँ मरियम ईशमाता को आज के दिन सेवा के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है ताकि हम इस पूरे वर्ष में माँ मरियम से प्रेरणा लेकर सेवा में तत्पर रहें, जिससे हम उस प्रभु के सच्चे अनुयायी बने रह सकें जो सेवा कराने नहीं बल्कि सेवा करने आये, जिन्होंने अपने शिष्यों के पैर धोकर इसका जीवंत उदाहरण पेश किया।

प्रभु ने अपनी माँ को हमारी माँ के रूप में दिया है ताकि उनकी छत्र-छाया में हम उनसे संयुक्त रह सकें। जब सांसारिक मोहमाया, भोग-विलास, रूतबा, सम्पन्नता, शक्ति आदि ईश्वर की छबि को हमारे हृदयों में धुंधला कर देती है और हम ईश्वर की आवाज को सुनने में असमर्थ होते हैं और उनके मार्ग से भटक जाते हैं तब माँ मरियम ईशमाता हमारा मार्गदर्शन करती हैं। हमारे लिए निरंतर ईश्वर से प्रार्थना करती हैं और हमें सन्मार्ग पर लाती हैं। इसलिये कलीसिया साल के प्रथम दिन माँ मरियम ईशमाता को हमारे सामने रखती है जिससे हम इस पूरे वर्ष उन पर अपनी नज़रे गड़ाये रहें जिससे हम भटके नहीं और प्रभु की ओर आगे बढे़ं।

चरवाहे जो प्रभु की खोज में आये थे, उन्हें मरियम, यूसुफ़ तथा चरनी में लेटे बालक के दर्शन हुये। उन्हें ईश पुत्र को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और वे इस ईश्वरीय अनुभव के साथ खुशी-खुशी लौट गये। आज हम भी प्रभु की खोज में इस वेदी के सामने एकत्र हुये हैं ताकि पवित्र यूखारिस्त में उनके दर्शन कर सकें। आज जब हम माँ मरियम ईशमाता का पर्व मनाते हुए नव वर्ष में प्रवेश कर रहें है, तब इस पूरे वर्ष में उन्हें हमारे सामने रखते हुये प्रभु के प्रति उनके समर्पण, दूसरों की सेवा एवं नम्रता के गुणों को अपनायें ताकि यह वर्ष हमारे लिये मंगलमय हो।

आज के पहले पाठ में ईश्वर मूसा से बात करते हुये विशेष आशिष का ज़िक्र करते हैं। वही आशिष हम माता मरियम ईश्वर की माँ की मध्यस्थता से माँगें। प्रभु हम लोगों को आशीर्वाद प्रदान करें और सुरक्षित रखें। प्रभु हम लोगों पर प्रसन्न हों और हम पर दया करें। प्रभु हम लोगों पर दया दृष्टि करें और हमें शांति प्रदान करें।


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