Smiley face

चक्र स -15. वर्ष का तीसरा इतवार

नेहम्या 8:2-4अ,5-6,8-10; कुरिन्थियों 12:12-30 या 12:12-14,27; लूकस 1:1-4,4:14-21

फादर डोमिनिक वेगस, एस.वी.डी.


आज के सुसमाचार में संत लूकस बडे़ ही सुन्दर शब्दों में प्रभु येसु के द्वारा अपने गॉव के सभागृह में किये गये कार्यों को हमें बताते हुये कहते हैं - वे खड़े होते हैं, पवित्र ग्रन्थ को अपने हाथों में लेते हैं और पवित्र ग्रन्थ में नबी इसायाह से एक पाठ पढ़ते हैं। इसके तत्पश्चात वे किताब को बन्द करते हैं और अपने स्थान पर बैठ जाते हैं। हर एक ख्रीस्तीय को ध्यानपूर्वक इन शब्दों को सुनना चाहिये जिसे प्रभु येसु ने हम सबों के लिये चुना है। इसी कार्य को आगे बढ़ाने के लिये ईश्वर ने संत लूकस को चुना। संत लूकस कभी भी किसी धर्म को सही ढ़ंग से चलाने की बात नहीं करते और न ही अधिक योग्य रीति से पूजा करने की बात करते हैं, परन्तु वे स्वतत्रता को बढ़ावा देकर, विश्वास, ज्योति, गरीबों के लिये आर्शीवाद का कारण बनने की बात करते हैं। ये ही वे शब्द हैं जिन्हें प्रभु येसु पढ़ते हैं, ‘प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है,...उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ।’’

येसु के मिशन को आज के सुसमाचार में एक महान विचार के रूप में व्यक्त किया गया है। यर्दन नदी में उन पर जो पवित्र आत्मा उतरे थे, वे जीवन देने के तरीके को सिखाने में अग्रसर थे। हमें बताया गया है कि उन्होंने विश्राम के दिन सभागृह में प्रवेश किया, जैसा कि वे आम तौर पर किया करते थे। येसु का ऐसा करना एक नये युग के आरंभ होने की घोषणा थी। नबी इसायस ने स्पष्ट रूप से भविष्यवाणी की थी कि जब मसीह आयेंगे तो क्या होगा।

येसु मसीह की शिक्षाओं को जीना और उनकी घोषणा करना आसान नहीं है। जो लोग सबसे अधिक पीड़ित होते हैं उनसे दूर रह कर हम किस सुसमाचार कर रहे हैं, किस येसु का हम अनुसरण कर रहे हैं? किस आध्यात्मिकता को बढ़ावा दे रहे हैं? अगर स्पश्ट शब्दों में कहा जाये तो आज की कलीसियाई समुदायों के बारे में हमारी क्या धारणा है? क्या हम उसी दिशा में चल रहे हैं जिसे येसु ने प्रकट किया था?

येसु ने उस अदभुत वाक्य को पढ़ा, फिर स्क्रोल को आगे बढ़ाया और घोषणा की कि आज ये शब्द मेरे बोलते हुये सच हो रहे हैं। इस बात को लोग स्वीकार नहीं कर पाये।

येसु के मिशन को आज के सुसमाचार में बहुत बल के साथ व्यक्त किया गया है। कुछ बुनियादी विद्रोह और गर्व अन्धापन और उत्पीड़न की ओर ले जाता है। ऐसा कुछ नहीं है जिसे हम बाहर से कुछ मदद के बिना हल कर सकते हैं। लेकिन हम से जुड़ने के लिये, हमारे नेतृत्व करने के लिये, हमें बचाने के लिये येसु हमारे साथ हैं। यह वह शक्तिशाली खुशखबरी है जिसकी घोषणा उन्होंने नाजरेत के सभागृह में की थी। प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उन्होंने गरीबों के लिये मेरा अभिशेक किया है।

येसु का जीवन ज़रूरतमन्दों के लिए समर्पित था और वे चाहते हैं कि हम भी जो उनके चेले हैं, ज़रूरतमन्दों की सेवा करें। वास्तव में येसु के शिष्य येसु के मिशन-कार्य को ही आगे बढ़ाते हैं। हम भी उनके मिशन-कार्य को जारी रखते हैं। हम भी दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने, बन्दियों को मुक्ति का और अन्धों को दृष्टिदान का सन्देश देने, दलितों को स्वतन्त्र करने के लिए बुलाये गये हैं। हमारी प्रतिक्रिया क्या है?


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